नीयत में नहीं
यह समझ नहीं पाये,
धोखा होने का शक था
इसलिये मिलने पर भी नहीं पछताये।
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खतरे कम रहें
इसलिये दोस्त कम ही बनाये,
दुनियां का इतिहास पढ़ा है हमने भी,
अपनों ने सबसे ज्यादा दगा के दाव लगाये।
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उनके मुंह फेर जाने पर
पल भर रो भी लिये,
मगर पहले से ही अंदेशा था कि
मतलब निकलते ही
वह साथ छोड़े देंगे
इसलिये जल्द ही संभलकर
नई उम्मीद के चिराग जलाये।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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