आओ ध्यान लगायें,
नकली गुलाल और रंग में
खेलने से जलेंगी आंखें और बदन
इसलिये अपने अंतर्मन में
स्थापित कर लें एक सुंदर स्वरूप
किस पर रंग फैंककर
किसका व्यक्तित्व अपने हाथ से चमकायें,
अपने हृदय को कर दें ध्यान में मग्न,
हो जायेंगे कीचड़ की समाधियां भग्न,
बरस भर जमा किया है कीचड़ मन में
वहां ज्ञान का कमल लगायें।
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खेलने से जलेंगी आंखें और बदन
इसलिये अपने अंतर्मन में
स्थापित कर लें एक सुंदर स्वरूप
उसके आगे अपनी हृदय का दीपक जलायें।
------------किस पर रंग फैंककर
किसका व्यक्तित्व अपने हाथ से चमकायें,
अपने हृदय को कर दें ध्यान में मग्न,
हो जायेंगे कीचड़ की समाधियां भग्न,
बरस भर जमा किया है कीचड़ मन में
वहां ज्ञान का कमल लगायें।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर
poet writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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