पद का नशा ही ऐसा है कि
जो बैठता है कुर्सी पर
खास आदमी बन जाता है,
राह चलते हुए उसके साथ
रहता है आम आदमी का अहसास
दर्द झेलते हुए भी उसका
इलाज नहीं कर पाता
कलम के शेर, कागज पर ही दहाडेंगे
ज़मीन से उनका भला क्या नाता है।
--------------
समाज में समस्याओं का अंबार है
उसे कौन निपटायेगा,
हर कोई करेगा शिकायत
फिर मौन हो जायेगा।
हल करने के लिये हाथ
कोई नहीं चलाता
मुफ्त में घिस जायेगा।
‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘
राह चलते हुए उसके साथ
रहता है आम आदमी का अहसास
दर्द झेलते हुए भी उसका
इलाज नहीं कर पाता
कलम के शेर, कागज पर ही दहाडेंगे
ज़मीन से उनका भला क्या नाता है।
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समाज में समस्याओं का अंबार है
उसे कौन निपटायेगा,
हर कोई करेगा शिकायत
फिर मौन हो जायेगा।
हल करने के लिये हाथ
कोई नहीं चलाता
मुफ्त में घिस जायेगा।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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