उत्तराखंड
में बादल फटने से हुई तबाही प्रलय का ही वह रूप है जिसकी चर्चा हमारे अनेक धर्म ग्रंथों
में की गयी है। कहा जाता है कि जब धरती पर पाप बढ़ जाते हैं तब प्रथ्वी भगवान के पास
जाकर प्रार्थना करती है कि वह स्वयं अवतरित होकर उसके बोझ का हल्का करें। इस प्रसंग में अनेक कथायें हमारे धार्मिक ग्रंथों
में प्रचलित है। इसी तारतम्य में भगवान के चौदह अवतारों की चर्चा भी होती है।
उत्तराकांड प्रलय में जो लोग मर गये उन पर क्या लिखा जाये पर
जो बचें हैं उनको यह सदमा कितना सतायेगा यह तो वही समझेंगे जो झेलेंगे। जिन लोगों ने
अपने परिवार के सदस्यों को खोया होगा उनके लिये यह यात्रा कभी समाप्त न होने वाली कठिन
जीवन यात्रा का प्रारंभ होने वाली भी सिद्ध
हो सकती है। उनके साथ कभी न मिटने वाला दर्द
भी साथ हो सकता है।
प्रकृति
के प्रकोपों का इतिहास उसके जन्म के साथ ही जुड़ा है। श्रीमद्भागवत गीता में भगवान के मुख से कहा भी कहा
गया है कि जब जब संसार में पाप बढ़ते हैं धर्म की स्थापना के लिये मैं अपनी योग माया
से प्रकट होता हूं। एक जगह भगवान श्रीकृष्ण
अपने प्रिय सखा अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाते हुए कहते हैं कि मैं इस संसार में
विध्वंस के लिये बड़ा हुआ महाकाल हूं’।
उनके
इस वाक्यांश पर अभी हाल ही में एक फिल्म बनी थी। उस फिल्म का नाम था ऑ माई गॉड। उसमें
एक बीमा कंपनी ने एक अभिदाता को यह कहते हुए बीमा राशि देने से मना कर दिया था कि वह
भगवान के प्रकोप से हुई हानि की क्षतिपूर्ति देने के लिये बाध्य नहीं हैं। यह मामला अदालत में लाया गया। वह एक फिल्मी कथा
थी पर उसमें मुख्य पात्र बीमाधारक ने मंदिरों के स्वामियों पर मामला दर्ज कर यह दावा
जताने का प्रयास किया कि वही लोग उसकी हानि का क्षतिपूर्ति करें। इस फिल्म पर कुछ धार्मिक लोगों ने किया था पर यह
फिल्म श्रीमद्भागवत गीता के साधकों के लिये अत्यंत रुचिकर थी।
बहरहाल
उत्त्राखंड भारत का वह इलाका है जो प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। हरियाली तथा जल की बहुतायत की वजह से वहां ग्रीष्म ऋतु में बाहर के लोगों के लिये
पर्यटन की दृष्टि से अनेक महत्वपूर्ण केंद्र बन गये हैं। वहां ऐसे लोगों के लिये भी कुछ शहरों में पर्यटन
केंद्र बन गये है जिनकी धार्मिक विषयों में रुचि नहीं है पर आनंद उठाना चाहते हैं। इसी प्राचीन काल से लोगों को आकर्षित करने के लिये अनेक धार्मिक केंद्र
बने हुए थे जिससे लोग धर्म निर्वाह के साथ
ही अपने मन को भी शांत रखने का प्रयास कर सकें
इनमें चार धामों की यात्रा तो पुरातन समय से चल रही है।
जब हम
देश में धार्मिक आधार पर व्यवसाय चलने की बात करते हैं तो केवल आनंद के लिये आधुनिककाल
में और प्राचीन समय में धर्म निर्वाह के लिये बनाये केंद्रों में अंतर सहजता
से पता नहीं चलता। पहले लोगों गंगोत्री,
यमनोत्री, बद्रीनाथ तथा केदारनाथ की
यात्र अत्यंत श्रद्धाभाव से करते थे। अनेक लोग जीवन में एक बार इन चारों धामो की यात्रा
कर अपना जीवन धन्य समझते थे। यह भाव लोगों में आया कैसे? तय बात है कि कहीं न कहीं इसके पीछे
निष्काम ज्ञानियों के साथ ही व्यवसायिक लाभ उइाने वालों का भी प्रयास रहा होगा। ठीक उसी तरह जिस तरह अब श्रीनगर, शिमला तथा मनाली जैसे गर्मी
में आंनददायी स्थानों के प्रचार के लिये व्यवसायिक लोग प्रयास करते हैं। यहां यह भी हम समझ लें कि निष्काम ज्ञानियों के
प्रचार में व्यवसायिकता का अभाव होता है पर धर्म के प्रति आकर्षण पैदा की शक्ति होती
है। इसके बावजूद वह अधिक लोगों को प्रेरित नहीं कर पाते। उनकी गतिविधियों को देखकर
व्यवसायिक लोग अपनी योजना बनाते हैं और उनके लक्ष्यों को व्यवसायिक बनाकर अधिक लोगों
को आकर्षित कर लेते हैं। ऐसे में धर्म और उसके
व्यवसायक का अंतर पता करना सहज नहीं होता।
यही कारण है कि हम हरिद्वार में अनेक जगह यही नारा पढ़ते हैं कि ‘सारे तीर्थ बार बार,
गंगासागर एक बार’। इस नारे के यह प्रभाव हुआ है कि अब अधिकतर लोग हरिद्वार में जाकर गंगास्नान कर
अपना जीवन धन्य समझते हैं। इस स्नान में लोग
धार्मिक भाव के साथ नहाने वालों की संख्या कम आनंद उठाने वालों की ज्यादा होती है।
यहां हम
धार्मिक विरोधाभासों पर इससे अधिक चर्चा नहीं कर सकते पर इतना तय है कि समय के साथ
अब हरिद्वार को ही सभी तीर्थों में अधिक महत्व का मान लिया है। इसके बावजूद चारों तीर्थों की परंपरा चलती रही है
तो केवल इस कारण कि पर्यटन के व्यवसायियों ने चारों धामों तक की यात्र को पहले से अधिक सहज बना दिया है। सरकार ने भी सड़कें बनाकर
बसों के साथ पुल बनाकर आवागमन से परिवहन को सहज बना दिया है। इन चारों धामों के लिये हर शहर में चारों धामों
को सहजता से कराने का दावा कराने वाले व्यवसायिक संस्थान हर शहर में खुल गये हैं। फिर
अपने देश के लोग धर्मभीरु होते ही हैं। फिर
मन कहीं न कहीं भटकने के लिये लालायित होता ही
है। ऐसे में मनोरंजन के साथ ही अनेक
लोग स्वयं को ही धार्मिक दिखने और दूसरों को
दिखाने कें लिये लोग तीर्थयात्राओं पर जाते हैं। जैसा कि गीता में वर्णित है इन लोगों
में चार प्रकार के भक्त होते ही होंगे-आर्ती,अर्थार्थी, जिज्ञासु और ज्ञानी। अधिक संख्या अर्थार्थी दृष्टिकोण वालों की ही होती
है। चारों धामों का प्रचार आज से सदियों पहले
ही हुआ है और तय बात है कि व्यवसायिक लोगों का प्रयास आज भी उसे बनाये रखे हुए हैं।
जहां तक
हिन्दू धर्म की बात करें तो उसके चारों दिशाओं में अनेक महत्वपूण्र धार्मिक केंद्र
हैं। गंगा यमुना नदियों के नाम अत्यंत्र पवित्र हैं पर नर्मदा, कावेरी तथा क्षिप्रा नदियों
केा भी कम धार्मिक महत्व नहीं है। यही कारण है कि चार महाकुंभों में से दो ही गंगा
यमुना पर होते हैं तो एक नर्मदा दूसरा क्षिप्रा पर होता है। तबाही से उत्तराखंड में भारी हानि हुई। इसके दूरगामी
प्रभाव होंगे। वहां के मनोरंजक तथा धार्मिक
स्थानों की यात्रा के आधार पर व्यवसायिक करने वाले अनेक लोगों की आय में यकीनन कमी
आयेगी। चारों धामों में यात्रा सुगम नहीं रही
और इससे नव धनाढ्य लोगों का आकर्षण बनाये रखना
अब संभव नही है क्योंकि उनके लिये धर्म का भाव आनंद से संयुक्त होने के साथ ही सहज
भी होना चाहिये। दूसरी बात यह कि केदारनाथ
धाम में आरती पूजा बंद है। यह उसके खंडित होने
की स्थिति है। चारों धाम एक दूसरे के साथ संबद्ध है और भले ही गंगोत्री, यमनोत्री और बद्रीनाथ सुरक्षित
हों पर केदारनाथ धाम के बिना उनको भी खंडित ही माना जा सकता है। इन चारों धामों की यात्रा एक दो वर्ष तक नही हो
पायेगी। इसका मतलब यह है कि सदियों पुरानी निरंतरता का लाभ अब मिलना कठिन है। ऐसे में
भी हिन्दुओं के लिये भावनात्मक संकट अधिक नहीं है क्योंकि उसके पास तीर्थों के रूप
में अनेक केंद्र पहले से ही हैं।
अक्सर अनेक लोग यह आक्षेप करते हैं कि हिन्दूओं का कोई एक स्थान पूज्यनीय है
नहीं। उनको कोई एक देवता नहीं है। उन्हें यह समझना होगा कि सनातन धर्म जिसे अब हिन्दू
धर्म माना जाता है वह निरंकार की उपासना का प्रेरक है। इसमें साकार तथा निराकार पूजा को मान्यता दी जाती
हैं। भारत में अनेक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान
हैं। किसी एक स्थान पर संकट उपस्थित पर
हिन्दू कांपता नहीं है। न ही विलाप करता है। इतना ही नहीं समय की दृष्टि से हिन्दू अपने धार्मिक
स्थानों का निर्माण करते ही रहते हैं। आज भी
वृंदावन, अमरनाथ,
उज्जैन, नासिक, इलाहबाद और वाराणसी अपनी
धार्मिक आस्था के साथ हिन्दुओं का आत्मविश्वास बनाये रखे हुए हैं। इसके अलावा दक्षिण में अनेक स्थान हैं जहां हिन्दू
धर्म का झंडा लहराता है। हम यह आशा करते हैं
कि बहुत जल्दी इन चारों धर्म की यात्रायें
सहज हो जायेंगी। मूल समस्या पीड़ित लोगों की है। यही दुआ करते हैं कि भगवान सभी
को यह शक्ति झेलने की शक्ति प्रदान करे।