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Friday, April 25, 2008

‘सिवाय रोटी के इंतजार के और क्या कर सकता हूं’-व्यंग्य कविता

कुर्ते और पैंट में लगे पैबंद
पुराना और मैला कुचला थैला लटकाये
अपनी दाढ़ी बढ़ाये लेखक
पहुंचा प्रकाशक के पास और बोला
‘‘आपके यहां कोई लेखक की
जगह खाली है
इधर मेरा पेट खाली है
बेटा रहता है बीमार और
परेशान और रोटी को तरसी घरवाली है
आप मुझे अपने यहां कम देंगे
तो आपका आभार मानूंगा
मैं बहुत अच्छा लिख सकता हूं’’

प्रकाशक ने कहा
‘‘बताने की जरूरत नहीं है
हाल तुम्हारे बता देते हैं कि
तुम्हें हिंदी में लिखना होगा
नाम तो होगा हमारे घर के ही सदस्य का
तुम्हें अपना नाम भूलना होगा
हां तुम लिख सकते हो अच्छा
यह भी समझ में आता है
तुम्हारा फटेहाल होना यह दर्शाता है
पर एक महीने तक और भी
तुम्हें भूखा रहना होगा
रोटी को भूलना होगा
कोई एडवांस नहीं मिलेगा
शर्त मंजूर हो तो तुम्हें काम पर रख सकता हूं

लेखक ने कहा
‘आप मुझे एक सप्ताह बाद
कुछ पैसे देना
फिर चाहे वेतन में से काट लेना
लिखने के साथ रोटी भी जरूरी है
पेट भरने पर मैं और भी अच्छा लिख सकता हूं’

प्रकाशक ने कहा
‘मुझे इतना भी अच्छा नहीं लिखवाना
इसीलिये पेट तुम्हारा नहीं भरवाना
अंग्रेजी के होते तो सोचता
हिंदी के हो इसलिये
नहीं दे सकता तुम्हें कोई बहाना
भूखे रहोगे तो भूख पर लिखोगे
बीमारी पर तभी लिख सकते हो
जब उस जैसे अपने को दिखोगे
मैं कोई किसी का दर्द हरने वाला नहीं
बल्कि उसका व्यापार करता हूं
लिखवाता हूं भूखे से उसकी रोटी
बहुंत समय तक उधार रखता हूं
अपनी शर्तों पर ही मैं चल सकता हूं’

इस तरह भूखा लेखक लिखने बैठ गया
सोचने लगा
‘सिवाय रोटी के इंतजार के और क्या कर सकता हूं’

1 comment:

राजीव रंजन प्रसाद said...

दीपक जी,

गहरा व्यंग्य और कटु सत्य का बिलकुल सजीव चित्रण...

*** राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com

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