हमारी परवाह न होने का अहसास जताया.
खूब चिराग जलाए उन्होंने
पर अन्दर के अँधेरे में
चमकता रहा हमारा चेहरा और नाम
बड़ी मेहनत से उन्होंने छिपाया.
हमारा नाम लेने पर उन्होंने
अपने मेहमान पर गुस्सा दिखाकर
अपनी नापसंदगी दिखाई
पर सच है कि जो खौफ है
उनके दिमाग में
हमारे हाथ से जलते चिरागों से
ज़माने के रौशन होने का
वही अनजाने में बाहर आया.
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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2 comments:
अपनी महफ़िल में उन्होंने बुलाया नहीं
हमारी परवाह न होने का अहसास जताया.
खूब चिराग जलाए उन्होंने
पर दिलो में अँधेरा छाया रहा ....
बहुत सुन्दर भाव इसे व्यंग्य भी कहा जा सकता है .
ये अन्दर की बात अच्छी लगी धन्यवाद्
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