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Monday, October 5, 2009

दूसरे के जख्म देखकर मुस्कराते-हिंदी कविता (doosre ke jakhma-hindi kavita)

अक्सर सोचते हैं कि
कहीं कोई अपना मिल जाए
अपने से हमदर्दी दिखाए
मिलते भी हैं खूब लोग यहाँ
पर इंसान और शय में फर्क नहीं कर पाते.
हम अपने दर्द छिपाते
लोग उनको ही ढूंढ कर
ज़माने को दिखाने में जुट जाते
कोई व्यापार करता
कोई भीख की तरह दान में देता
दिल में नहीं होती पर
पर जुबान और आखों से दिखाते.
हमदर्दी होती एक जज़्बात
लोग बेजान होकर जताते.
दूसरे के जख्म देखकर मन ही मन मुस्कराते.
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कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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