फिर सामने आकर लगायें महरम।।
जमाने में चमकना है जिनको सदा,
पहले करें हमला, फिर दिखायें रहम।।
शोर मचाते हैं इतनी जोर से अमन का,
जमाना खामोशी ओढ़ लेता, जाता सहम।।
चेहरे बदल बदल कर सामने आते बुत,
पहले कत्ल करते, फिर मनाते आकर मातम।।
फरिश्ते के भेष में छिपा शैतान, सभी जानते,
‘भारतदीप’ खराब नीयत देखकर भी खामोश हैं हम।
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मुखिया हमेशा अंग्रेजी में बोलें, चमचे हिंदी बकें।
भाषा के झगड़े, अंतर्जाल पर भी अब लोग रखें।।
चालांकियों साथ लिये चले रहे हैं यहां और वहां
‘हिंदी सेवक’ की उपाधि अपने साथ रखें।।
हिंदी जिनकी अभिव्यक्ति का एकमात्र सहारा
उनको गरीब कहकर, अपनी प्रतिष्ठा खुद रखें।।
‘लिखो-लिखो’ का नारा लिखकर होते खामोश
कविता समझे नहीं, कहानियों से आंख परे रखें।
उठाये झंडा, बन रहे खैरख्वाह हिंदी भाषा के,
भूले लोग ‘भारतदीप’, पहले अपने शब्द को चखें।।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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2 comments:
बहुत सटीक लिखा है .. बहुत सुंदर !!
आपके द्वारा यह लाजवाब प्रस्तुति जिसे पढ़ हम सराबोर हुए अब गुलशन-ए-महफ़िल बन आवाम को भी लुभाएगी | आप भी आयें और अपनी पोस्ट को (बृहस्पतिवार, ३० मई, २०१3) को प्रस्तुत होने वाली - मेरी पहली हलचल - की शोभा बढ़ाते देखिये | आपका स्वागत है अपने विचार व्यक्त करने के लिए और अपना स्नेह और आशीर्वाद प्रदान करने के लिए | आइये आप, मैं और हम सब मिलकर नए लिंकस को पढ़ें हलचल मचाएं | आभार
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