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Friday, May 28, 2010

हिंसा के समर्थक किसको धोखा दे रहे हैं-हिन्दी लेख (hinsa samarthak de rarhe hain dhokha-hindi lekh)

देश के भ्रष्टाचार, अनाचार तथा भेदभाव बहुत है। कोई बताये तो सही कौनसा इलाका ऐसा है जहां आम आदमी आराम से है। गर्मी में पानी, बिजली, तथा बीमारियों से देश का एक बहुत बड़ा भूभाग जूझ रहा है। उत्तर भारत में आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित लोग बड़ी संख्या में है पर उनसे ज्यादा अधिक संख्या ऐसे लोगों की है जो खुले आकाश में सूरज की इस तपिश को प्यासे कंठ से झेलते हैं। मगर कोई भी अभावों से ग्रसित आदमी उस तरह की हिंसा करने की नहीं सोचता जैसी कि कथित नक्लसवादी कर रहे हैं।
इस लेखक को यह स्वीकार करने में जरा भी यह हिचक नहीं है कि वह अर्द्धसुविधा भोगी वर्ग से है जिसे अनेक बार सुविधा मिलती है तो अनेक बार असुविधा भी झेलना पड़ती है। दूसरी बात यह है कि इस लेखक ने भी मजदूर के रूप में अपना जीवन प्रारंभ किया तब समझ लिया था कि समाज में अमीर और गरीब के बीच की एक कभी न पाटी जाने वाली खाई है जिसमें अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिये परिश्रम के साथ ही बौद्धिक चालाकी की भी आवश्यकता होगी। तब भी नफरत के ऐसे बीज बोने का विचार नहीं आया था जैसे कि आज नक्सलियों के समर्थक बुद्धिजीवी बो रहे हैं। एक आम आदमी के रूप में अनेक कष्ट झेलने पड़ते हैं पर तब भी किसी की मौत का ख्याल नहीं आता। जिस तरह एक ट्रेन (ज्ञानेश्वरी एक्सप्रसे) पर हमला कर नक्सलियों ने सैंकड़ों लोगों को मार दिया उसके बाद उनके समर्थक बुद्धिजीवियों से वाद विवाद करने की गुंजायश कम ही बची है।
पिछली बार एक पाठ पर नक्सलियों का एक समर्थक बौखला गया था। उसने इस लेखक के पाठ पर बेहूदा टिप्पणी की फिर प्रतिवाद में पाठ लिखा तब भी उस पर गुस्सा नहीं आया।
यह लेखक बार बार पूछता है कि ‘आखिर नक्सलियों के पास हथियार खरीदने के लिये धन कहां से आता है? हथियार कहां से आते हैं यह तो पता लग ही गया है क्योंकि उनको गोली बारूद बेचने के आरोप में कुछ पुलिस वाले भी गिरफ्तार हो चुके हैं-यह बात अखबारों से पता चली। मतलब यह कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने वाले यह नक्सली संगठन न केवल उसी के सहारे हैं बल्कि उसे बढ़ा भी रहे हैं। जिन कथित बौद्धिक दृष्टि से पैदल मूर्खों का यह कहना कि नक्सली प्रभावित इलाकों में भ्रष्टाचार की वजह से जन असंतोष है उनकी नज़र इस पर नहीं जाती। भूखे और गरीब के पास इतना पैसा नहीं होता कि वह बंदूक खरीद सके तब यह सवाल उठता है कि इन नक्सलियों के पास हथियार खरीदने के लिये पैसा कहां से आता है?
यह पैसा एक दो रुपये कर नहीं बटोरा जाता होगा। एक मुश्त बड़ी रकम कोई न कोई व्यक्ति, संगठन या समूह देता है और वह कोई दान नहीं करता बल्कि इसके बदले अधिक रकम कमा रहा होगा। उसका व्यवसाय भी अपराधिक पृष्ठभूमि पर आधारित होगा।
इस लेखक की स्पष्टतः मान्यता है कि धर्म, जाति, भाषा, वर्ग या वर्ण के नाम पर होने वाली हिंसा उनके नाम पर बने समूहों के हित के लिये होेने का दावा एकदम गलत है। अगर किसी हिंसक वारदात में कोई बहस योग्य तत्व ढूंढ रहा है तो वह महामूर्ख है और देश में ऐसे लोगों की जमात बड़े पैमाने पर दिख रही है।
आतंकवाद एक व्यापार है। जिस तरह किसी व्यापार में कोई व्यक्ति अपना सौदा बेचने के लिये धर्म और सर्वशक्तिमान की कसम खाता है यही हाल आतंकवाद के इन व्यापारियों का है। इस आतंकवाद का एक ही उद्देश्य होता है कि सरकार और प्रशासन का ध्यान बंटा रहे ताकि उसके प्रायोजकों का धंधा चलता रहे। हालांकि इस तरह के आतंकवाद के समर्थकों के लिये मूर्ख कहना भी अपने आपको धोखा देना है क्योंकि वह भी कहीं न कहीं से प्रायोजित होते हैं। कहना गलत न होगा कि कुछ सफेदपोश संगठन इन आतंकवादियों के मुखौटे होते हैं और उसी के सदस्य ही सामाजिक, आर्थिक तथा वैचारिक विवादों की आड़ लेते हैं।
जिस ब्लाग लेखक ने इस लेखक के पाठ का प्रतिवाद किया था वह प्रत्यक्ष नक्सलवादियों का समर्थन नहीं कर उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों की समस्याओं की बात कर रहा था। यह उसकी चालाकी थी क्योंकि हिंसक वारदातों के चलते सीधा समर्थन करने की गुंजायश अब बहुत कम बुद्धिजीवियों के पास बची है इसलिये वहां की समस्याओं की आड़ लेते हुए मध्यमार्गी दिखने का प्रयास करते हैं-लिखते हैं कि वहां का विकास हो जाये तो यह समस्या खत्म हो जायेगी।
इस लेखक ने अपने पाठ में नक्सल प्रभावित वाले क्षेत्रों की समस्याओं की चर्चा का समर्थन किया पर एक ही आग्रह किया था कि जब नक्सलवाद की बात करें तो उनकी चर्चा बेमानी है क्योंकि हिंसक तत्व केवल उसकी आड़ ले रहे हैं। इन नक्सलियों को न केवल हथियार मिल रहे हैं बल्कि उनको अन्य भौतिक सुविधायें भी उपलब्ध हैं। मज़दूरों, गरीबों तथा बेसहारों के कल्याण की बात अगर वह करते हैं तो संसार के प्रचार माध्यमों को धोखा दे रहे हैं। दरअसल प्रचार पाकर ही उनको धन मिल सकता है इसलिये ऐसी वारदातें कर रहे हैं।
बंदूक और बम आने के बाद आदमी में हैवानियत छा जाती हैं। चूंकि नक्सलवादियों के समर्थकों को भारतीय अध्यात्म विष तुल्य लगता है इसलिये उनको बता दें कि भगवान श्रीराम की पत्नी सीता अपने पति को यही समझाती थी कि ‘हथियार आदमी की मति को भ्रष्ट कर देते हैं।’
उन्होंने एक किस्सा अपने पति को सुनाया था। एक तपस्वी के तप से संकट अनुभव कर रहे देवराज इंद्र ने उसके पास जाकर अपना एक खड्ग धरोहर के रूप में रखा। उस धरोहर की रक्षा करते हुए वह तपस्वी हिंसक हो उठे और बेकसूरों को मारने लगे और उनका तप भंग हो गया। भगवान श्रीराम और देवी सीता के नाम से बिदकने वाले नक्सल समर्थक बुद्धिजीवियों को बताना जरूरी है ताकि यह समझें कि यह देश अभी भी अध्यात्मवादियों से भरा हुआ है और उनकी चालाकियों को समझता है। आप चाहे कितना भी दावा करें पर सच यही है कि हथियार पकड़ने वाला मनुष्य दूसरों से ज्यादा अपने लोगों के लिये अधिक खतरनाक होता है और आदिवासियों का समर्थन इन नक्सलियों के पास है यह बात भले ही चालाकी से कहें पर इसे आम जनता मूर्खतापूर्ण ही मानती है। यह अलग बात है कि ज्ञानी लोग जानते हैं कि ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें लिखने वाले चालाकी से प्रायोजित हैं।
अगर देश के भ्रष्टाचार, बेईमानी, अन्याय, अत्याचार, दुराचार तथा अपराध की बात की जाये तो भला कौनसा ऐसा क्षेत्र है जहां स्वर्ग बसा हुआ है। इन पर चर्चा होना चाहिये पर अगर इसके नाम पर कुछ क्षेत्रों में हिंसा का समर्थन किया जाता है तो फिर यह सवाल भी उठता है कि कथित रूप से गरीब और पिछड़े क्षेत्रों के गरीबों के पास हथियार आ जाते हैं पर रोटी हाथ में नहंी आती। चलिये यह काम दूसरे दानी करते हैं तो भी यह बतायें कि उनको संघर्ष के नाम पर हथियार देने वाले क्या उनको रोटी नहीं दे सकते? हमारा यह स्पष्टतः मानना है कि गरीब, पिछ़डे और अन्यास से जूझ रहे लोगों को हर जगह नैतिक समर्थन देना चाहिये पर जब आप इस आड़ में हिंसक तत्वों को प्रचार देते हैं तो आपकी नीयत पर शक होगा।
यह कहना तो सरासर मूर्खता है कि विकास होने से वहां की समस्या दूर हो जायेगी। दरअसल विकास न हो इसलिये ही तो यह हिंसा की जा रही है क्योंकि विकास से लोग जागरुक हो जाते हैं तब काले धंधे वालों के लिये मुश्किल होती है। तय बात है कि उनके प्रायोजन से चल रहे हिंसक तत्वों का विकास से कोई वास्ता नहीं है। जो बुद्धिजीवी इन हिंसक तत्वों के लिये समर्थन करते हुए पाठ लिखते हैं वह स्वयं धोखे में है या आम लोगों को धोखा दे रहे हैं।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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1 comment:

Unknown said...

आपने सही कहा ये राक्षस से कम नहीं हैं
हमने आज विस्तार से लिखा है वो जो महसूस किया

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