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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, July 5, 2011

लोग अदायें बदल देते हैं-हिन्दी शायरी (log adaen badal dete hain-hindi shayari)

खौफ आसमान से बिजली गिरने का नहीं है,
डर जमीन के धसकने का भी नहीं है,
नहीं घबड़ाते सांप के जहर से
फिर भी दिल घबड़ाता है
इस बात से
रोज मिलने वाले इंसानों में
कोई शैतान तो नहीं है।
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लोग नहीं बदलते चेहरा
बस, बयान बदल देते हैं,
बेशर्मी अब बुरी आदत नहीं कहलाती
कुछ मजबूरी
कुछ व्यापार बन गयी हैं बेदर्दी
लोग हालत बदलने के बहाने
अपनी अदायें बदल देते हैं।
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संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   'भारतदीप',ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
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Monday, June 27, 2011

चोर और ज्योतिषी-हिन्दी हास्य कविता (chor aur jyotishi-hindi hasya kavita)

चोर पहुंचा और एक हजार का नोट
हाथ में देते हुए बोला
‘‘महाराज,
मेरा हाथ देकर बताओ
कौनसा धंधा करूं, यह समझाओ,
चोरी या जेब काटने का,
दिन बुरे चल रहे हैं
कब आ जाये दिन धूल चाटने का,
अनेक जगह सोने की चोरी की
पता चला सभी जगह नकली मिला माल,
खाली जा रहा है पूरा साल,
आपको देखा तो
भविष्य पूछने के लिये
एक हजार का नोट किसी की जेब काटकर आया,
किसी का धन चुरा सकते हैं
पर अक्ल नहीं
अब यह आपका काम देखकर समझ पाया।’’

ज्योतिषी ने नोट को घुमा फिराकर देखा
फिर उसे वापस थमाते हुए कहा
‘‘बेटा,
तुम्हारा हाथ देखने की जरूरत नहीं,
जन्मपत्री भी मत दिखाना कहीं,
तुम्हारी किस्मत अब साथ छोड़ रही है
असलियत की तरफ मोड़ रही है,
यह नोट भी नकली है,
पर जिंदगी तुम्हारी असली है,
इससे अच्छा है तुम कहीं
ठेला चलाने का धंधा प्रारंभ करो,
न अब बुरे कर्म का दंभ भरो,
रकम छोटी आयेगी,
पर सच को साथ लायेगी,
अब तुम जाओ,
अभी तक लोगों से लिया पैसा
पर तुम्हें मुफ्त में भविष्य बताया।
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Tuesday, June 21, 2011

तख्त के लिये मची जंग-हिन्दी कविता(takhta ke liye jung-hindi kavita

तख्त के लिये मची है चारों तरफ जंग,
इंसानों के मुंह खुले पर दिमाग हैं तंग।
सजे हुए सब चेहरे, ओढ़े चमकीले कपड़े
मगर सभी की नीयत का काला है रंग।
भरोसा के नाम, मिलता तोहफा धोखे का
सच की लय को भ्रम ने किया है भंग।
कहें दीपक बापू अंधों के आगे क्या रोना
समाज बड़ा है, पर बंधे है उसके सारे अंग।
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Monday, June 13, 2011

हास्य कविता-धर्म के धंधे में कोई कर नहीं है (hasya kavita-dharm ke dhandhe mein tax nahin hai)

चेले ने कहा गुरु से
‘गुरुजी,
अब तो आपकी सेवा में बहुत सारे
चेले आ गये हैं,
सभी आपके भक्तों को भा गये हैं,
मुझे अब समाज सेवा के लिये
आश्रम से बाहर जाने की
सहमति प्रदान करे,
किसी बड़ी संस्था में पद लेकर
आपका नाम रौशन करूं,
अनुमति प्रदान करें।’
सुनकर गुरु जी बोले
‘सीधी बात क्यों नहीं कहता
कि अब अपनी धार्मिक छवि को
नकदी में भुनाना चाहता है,
माया के लोभ में
ज्ञान को भुलाना चाहता है,
मगर भईये!
समाज सेवा में राजनीति चलती है,
बाहर लगते हैं जनकल्याण के नारे
अंदर कमीशन पाने की नीयत पलती है,
तुझे लग रहा है कि यह रास्ता सरल है,
मगर वहां बदनामी का खतरा हर पल है,
फिर तेरा अनुभव तो पूजा पाठ का है
राजनीति में एक तरह से तू तो उल्लू काठ का है,
वहां पहले से ही मौजूद बड़े बड़े धुरंधर हैं,
कुछ बाहर पेल रहे हैं डंड तो कुछ अंदर हैं,
उनकी आपस में तयशुदा होती जंग,
देखती है जनता बड़े चाव से
भले ही हालातों से तंग,
फिर तू समाज सेवा के नाम पर
कोई आंदोलन चलायेगा,
डंडे की मार खाकर यहीं लौट आयेगा,
भले ही मेरी वजह से
तेरे को कई समाज सेवक मानते हैं,
पर उनके इलाके में अगर तू घुसा
मार खायेगा
यह हम जानते हैं,
वहां जाकर नाकामी तेरे हाथ आयेगी,
यह बदनामी मेरे नाम के साथ भी जायेगी,
इसलिये अच्छा है
कहंी दूसरी जगह आश्रम बनाकर
तू भी स्वामी बन जा,
धर्म के धंधे में एक खंबे की तरह तन जा,
यहां डंडे का डर नहीं है,
कमाई पर कोई कर नहीं है,
अभी तक मैं अपना खजाना अकेला भरता था
अब अलग होकर दोनों ही
अपनी तिजोरी दुगुनी गति से भरें।’
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Sunday, June 5, 2011

दूसरों के दर्द से कब तक छिपोगे-हिन्दी साहित्यक कवितायें (doosron ke dard se kab tak chhipaoge-hindi litgerature poem)

तुम सुनना नहीं चाहते, पर तुम्हारे कान बंद करने से
जमाने के लोगों की दर्दीली आवाज बंद नहीं हो जायेगी,
देखना नहीं चाहते किसी की पीड़ा, पर आंखें बंद करने से
लोगों के जिस्म की भूख, केवल वादों से नहीं मिट जायेगी,
 चाहे जब छिप जाओ तुम वातानुकूलित कमरों में
बाहर की आग और आंधी दीवारें उनको भी कभी ढायेगी।
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न खेलो इस ज़माने से
लोगों को खिलौना मानकर,
दूसरों के दर्द को
अनदेखा न करो अच्छी तरह जानकर।
अपने हाथ से किये कसूरों  पर
चाहे कितनी सफाई देते रहो
कोई यकीन नहीं करेगा,
भले ही डर से कोई
सामने नहीं कहेगा,
कभी न कभी न उठेगा
तुम्हारे किये कसूरों का तूफान
गिरा देगा तुम्हारे महल
तब रहो आराम से चादर तानकर।
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Thursday, May 26, 2011

प्रलय का दिन-हिन्दी व्यंग्य लेख (pralaya ka din-hindi hasya vyangya

     अमेरिका के एक तथाकथित ज्योतिषी ने 21 मई 2011 को प्रलय का दिन घोषित किया, मगर हुआ कुछ नहीं। विशेषज्ञों ने पहले ही बता दिया था कि कोई भी ऐसी अंतरिक्षीय आपदा की संभावना नहीं है जिससे धरती नष्ट हो जाये। इसके बावजूद लोगो को भगवान की प्राार्थना के लिये प्रेरित किया गया। बाज़ार और उसके प्रचार माध्यम लोगों को इस तरह के अंधविश्वास से दूर होने की सलाह देते रहे जो कि उनके उस व्यवसायिक कौशल का परिणाम था जिसमें एक फालतु खबर तैयार कर उस चर्चा या बहस प्रस्तुति के दौरान अपने विज्ञापनों के लिये विषय सामग्री जुटाई जाती है।
     इस धरती पर अक्सर कुछ ऐसे लोग प्रकट होते हैं जो इसक नष्ट होने की भविष्यवाणी करते हैं। तारीखें बताते हैं पर उस दिन कुछ नहीं हेाता। इन भविष्यवाणियों में हमेशा ही अंतरिक्ष से आपदा प्रकट होने का संकेत होता है क्योंकि धरती की आपदाओं से मनुष्य जाति पूरी तरह विलुप्त होने का अंदेशा नहंी होता न ही वह प्रलय की परिधि में आती हैं। जहां तक धरती पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं की बात है तो वह तो आती रहती हैं क्योकि वह स्वयं ही उसका कारण बनती है। इस संसार में सांस लेने वाले लोग अपने जीवन में अनेक आपदाओं को झेल चुके होते हैं या फिर स्वयं दूसरी जगह देखकर भूल जाते हैं।
     यह संयोग ही है कि पश्चिम में रहने वाले एक फ्लाप ज्योतिषी ने यह भविष्यवाणी की। वह पहले ही एक ऐसी भविष्यवाणी कर चुका था जो प्रकट नहीं हुई इसकेे बावजूद भारतीय प्रचार माध्यम उसकी सनसनी को भुनाते रहे। दरअसल भारत में मई का महीना संकट का ही होता है। सूर्यनारायण सीधी आंखों से भारत की तरफ ताकते हुए ऐसे लगते हैं जैसे कि नाराज हों। वायुदेवता उनके अनुयायी होने की वजह से आग साथ लेकर निकलते हैं। जलदेवता सिकुड़ने लगते हैं जैसे कि विश्राम कर रहे हों। ऐसे में मनुष्य, पशु, पक्षी और जलवायु का प्रभावित होना स्वाभाविक है। एक दूसरी मुश्किल भी है कि इसी महीने में आंधी अक्सर चलती है। जमीन सूखी होने क कारण धूल इस कदर उठती है कि राहों पर चलना कठिन हो जाता है। यह संयोग ही है कि 21 मई 2011 को हमारे देश में विकट आधंी आई। ऐसी आंधी ने उत्तर भारत के अनेक शहरों का जीवन अस्तव्यस्त कर दिया। जमकर बरसात भी हुई। एक समय तो ऐसा लग रहा था कि आंधी कहीं अपने वेग से सीमेंट, ईंट और लोहे से बने मकान न पास में दबाकर चली जाये।
     ऐसे अवसर पर लोगों को 21 मई को प्रलय के दिन की भविष्यवाणी याद आई। आंधी, बरसात और अंधेरे से जूझ चुके लोग जब सुबह आपस में मिले तो प्रलय के दिन की भविष्यवाणी को याद कर रहे थे। एक ने हमसे कहा कि ‘ः21 मई को प्रलय के दिन की भविष्यवाणी सही निकली।
     हमने कहा कि ‘क्या हम स्वर्ग या नरक में मिल रहे हैं।’
     वह बोले-‘क्या मतलब?
     हमने कहा कि -‘प्रलय का मतलब होता है कि धरती पर जीवन का नष्ट होना। जहां तक हमारी जानकारी है उस समय धरती जलमग्न हो जाती है। जीवन की जगह जल अपना शासन करता है। अगर हम मान लें कि प्रलय की भविष्यवाणी सत्य हुई है तो इसका मतलब यह है कि हम धरती से लापता होकर कहीं दूसरी जगह मिल रहे हैं। वह दूसरी जगह स्वर्ग या नरक ही हो सकती है। जहां तक हमारे ज्ञान चक्षु देखते और कर्ण सुनते हैं वहां तक धरती के बाद यह दो ही स्थान है। जहां मनुष्य आता जाता है।
वह बोले-‘इसका मतलब तो हम नरक में मिल रहे हैं। देखो, हमारे घर की बिजली सारी रात गुल रही। बरसात की वजह से हमारी छत के एक भाग में छेद होने के कारण वहां से पानी टपकता रहा। सुबह पानी नहीं भरा। भरी दोपहर में कूलर की बात तो दूर पंखे की हवा तक नसीब नहीं हुई। हमारे लिये तो प्रलय जैसा समय था।’’
हमने कहा-‘पल में प्रलय होती है पर वह पल की नहीं होती बल्कि वह धरती से जीवन को ही समेट कर अपनी भूख शांत करती है। यह तो संकट आते जाते हैं इनसे क्या घबड़ाना?’’
        वह बोले-‘वह तो समेट कर ही चली जाती । गनीमत है कि हम सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करते रहे। उन्होंने हमारी सुन ली तो बच गये। हमारी आस्था में बहुत शक्ति है जिसके कारण हम बच गये।’’
हमने हंसकर कहा-‘‘यहां आकर हमारे ज्ञानचक्षु अपना काम बंद कर देते हैं। आप कह रहे हैं कि आपकी आस्था में शक्ति है तो यकीनन होगी। हम तो यह कह रहे हैं कि आपकी आस्था में महान शक्ति है जो आप स्वयं ही नहीं सारा संसार बच गया।’’
      आज तक अनेक लोग आस्था और अंधविश्वास में अंतर नहीं कर पाये। यही कारण है कि ज्योतिष और भविष्यवाणी के आधार पर कोई भी बयान देकर अपना नाम कर लेता है। कभी कभी तो लगता है कि संसार में प्रलय की बात सुनकर लोग दुःखी कम खुश अधिक होते हैं। कम से कम अपने देश में तो यही लगता है। हमारे देश में अध्यात्मिक ज्ञान का विशाल भंडार है। यही कारण है कि हमारे लोग जानते हैं कि यहां आदमी अकेला आता और जाता है। लोग इस सच से इतना घबड़ाते हैं कि अपनी देह के नश्वर होने की बात को भुलाये ही रहते हैं। लोग इस बात को जानते हैं कि मृत्यु अवश्यंभावी है। अपनी मृत्यु के भय से सभी सहमे रहते है क्योंकि वह अकेला ही ले जाती है और सारा संसार यहीं धरा रहा जाता है। बस यहीं आकर हमारे देश के लोग त्रस्त हो जाते हैं कि उनके साथ कुछ नहीं जाता। हर कोई संसार का सुख अकेले भोगना चाहता है पर इससे भी किसी को खुशी नहीं होती। असली खुशी लोगों को तब मिलती है जब दूसरा के कष्ट हो। अपने पास किसी वस्तु होने का सुख तभी लोगों को मिलता है जब दूसरे के पास व न हो। लोगों की मनोवृत्ति यह है कि अगर अपनी एक आंख फूटने की कीमत पर दूसरे की दोनों फूटती हैं तो वह तैयार हो जाते हैं। प्रलय की बात उनको प्रसन्नता देती है क्योंकि यह संसार ही उनके साथ नष्ट होने वाला होता है। मतलब वह संसार के उन अंतिम लोगों में शामिल होना चाहते हैं जिनके भोग विलास के बाद यहां कुछ भी शेष नहीं रह जाता। उनको यह खुशी होती है कि यह संसार उनके बाद नहीं रहेगा। अपना अकेले जाना नहीं होगा बल्कि संगीसाथी भी साथ ही चलेंगे। इसलिये प्रलय के दिन को अपने सामने साकार होते देखना उनको सुखद अनुभूति हो सकता है।
        यही कारण है कि प्रलय की सनसनी भारत में बिकना कोई बड़ी बात नहीं है। सच बात तो यह है कि बाज़ार के सौदागर इस समय सारे संसार में दोनों हाथों से पैसा बटोर रहे हैं। वह चाहते हैं कि दुनियां के सारे आम मनुष्य फालतु की बातों में व्यस्त रहे। कहीं मनोरंजन तो कहीं सनसनी फैलाने के लिये फैलाने के लिये बकायत प्रायोजित साधनों का-यथा टीवी, फिल्म, समाचार पत्र पत्रिकायें तथा रेडियो-निर्माण किया गया है।
     कुछ लोगों ने प्रचार माध्यमों में सवाल किया था कि आखिर प्रलय के दिन का प्रचार करने वालों को पोस्टर आदि के लिये पैसा किसने दिया था। यह प्रश्न हमारे ब्लागों से उठायी गयी विचाराधारा से उपजा है। आतंकवाद को हमने ही अपने ब्लाग पर एक व्यापार कहा था। कुछ बुद्धिमान लोग अब उसे पढ़कर कह रहे हैं। पैसे के खेल में भीे कमीशन का खेल सभी जगह है। प्रलय के दिन के प्रचारकों को पैसा इसलिये ही मिला होगा कि दस पंद्रह दिन तक लोगों को व्यस्त रखो। इस पर भारत में मई का महीना तो वैसे ही प्रलय का छोटा भाई लगता है सो सनसनी तो फैलनी थी। बहरहाल अब कुछ दिन में बरसात का आगमन भी होना है। उस समय भी बाढ़ आदि का प्रकोप रहता है। ऐसे में अगर किसी को नाम करना हो तो वह जून जुलाई अगरस्त और सितंबर में कोई दिन प्रलय का घोषित कर सकता है। बाज़ार में वह भी बिक जायेगा।
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Tuesday, May 17, 2011

अपने बदन उघाड़ डाले-हिन्दी व्यंग्य कविता (apane badan ughad dale-hindi vyangya kavita)

महल बनाने के लिये
उन्होंने कई घर उजाड़ डाले,
पैसा उनका भगवान है
उसकी बंदगी करते हुए
कई बंदों के घर उन्होंने उजाड़ डाले,
खौफ उनके पैसे का है
उनके खरीदे हथियारबंदों ने
दया के मंदिर ही उखाड़ डाले।

फिर भी नहीं की
अक्लमंदों ने भगवान मानकर
उनकी बंदगी
तो उन्होंने फरिश्ते का भेष उतारकर
शैतान की तरह डराने के लिये
ज़माने के सामने
अपने बदन उघाड़ डाले।
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Saturday, May 14, 2011

शास्त्रों के अध्ययन से गूढ ज्ञान की प्राप्ति होती है-हिन्दू धर्म विचार

        इस संसार में भांति भांति प्रकार के लोग हैं, जिनमें कुछ तो मन की शुद्धता के लिए धर्म कर्म करते हैं तो कुछ दिखावा करते हैं।  कुछ लोग प्रत्यक्ष रूप से भक्ति   तथा यज्ञ करते नहीं दिखते हैं और न ही भक्त होने का पाखंड रचते हैं जबकि समाज में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो धर्म के नाम पर कर्मकांड अथवा यज्ञ करने के लिये दबाव बनाते हैं। अनेक लोग बिना किसी दिखावे के सात्विक जीवन जीते हैं पर चूंकि वह हवन तथा यज्ञ आदि नहीं करते तो लोग उनको नास्तिक होने का ताना देते हैं। सच बात तो यह है कि यज्ञ तथा हवन आदि करने से अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि मनुष्य हृदय में तत्व ज्ञान धारण करे। इसके लिये प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए। नियमित अध्ययन करने से जिज्ञासा बढ़ती है और अभ्यास से तत्वज्ञान का अनुभव हो जाता है।
              इस विषय पर मनुस्मृति में कहा गया है कि
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             यथायथा हि पुरुषः शास्त्रं समधिगच्छति।
              तथातथा विज्ञानाति विज्ञानं चास्य रोचते।।
            ‘‘जैसे जैसे कोई व्यक्ति शास्त्र का अभ्यास करता है वैसे ही उसे गूढ़ ज्ञान की प्राप्ति होती है और उसकी प्रवृत्ति और जिज्ञासा ज्ञान विज्ञान में बढ़ती जाती है।’’
              एक बात निश्चित है कि हमारे पुराने ग्रंथों में ज्ञान के साथ विज्ञान भी अंतर्निहित है। कुछ लोग आज विज्ञान के युग में भारतीय अध्यात्मिक दर्शन को हेय मानते हैं पर उनको यह पता ही नहीं कि विज्ञान का आधार भी तत्वज्ञान है जिसके कारण हमारे प्राचीन अध्यात्मिक ग्रंथ विज्ञान के विषय में सामग्री से परिपूर्ण हैं।
कुछ लोग मंदिर न जाने या यज्ञों तथा हवनों में सक्रिय भागीदारी न करने वाले लोगों पर कटाक्ष करते हैं पर यह उनका ही अज्ञान है।
इस विषय पर मनुस्मृति में कहा गया है कि
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‘‘शास्त्रों के ज्ञाता कुछ गृहस्थ यज्ञादि नहीं करते पर अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर अपनी अध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि करते हैं। उनके लिये लिये नाक, जीभ, त्वचा, तथा कान पर संयम रखना ही एक तरह से महायज्ञ है।
                सच बात तो यह है कि धर्म तभी ही प्रशंसनीय है जब वह आचरण तथा कर्म में दृष्टिगोचर हो न कि केवल कर्मकांड और दिखावे में। कुछ लोग जो प्रतिदिन मंदिर जाते हैं वह दूसरों को अभक्त समझते हैं जो कि उनके अज्ञान का प्रमाण है। इतना ही नहीं कुछ तो लोग ऐसे हैं जो प्रतिदिन पूजा आदि करते हैं पर व्यवहार में ऐसा अहंकार दिखाते हैं जैसे कि वही भगवान के इकलौते भक्त हों। जो वास्तव में भक्त और ज्ञानी हैं वह दिखावे से अधिक आत्मनियंत्रण तथा आचरण से उसे प्रमाणित करते हैं।
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संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
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शास्त्रों 
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Tuesday, May 3, 2011

ओसामा बिन लादेन की मौत पर रहस्य बना ही रहेगा-हिन्दी लेख (suspesn on death of osama bin laden-hindi lekh or article)

                       ओसामा बिन लादेन अब इस धरती पर नहीं है यह बात तय है। विवाद इस बात पर है कि वह कब और कहां मरा? अमेरिकी स्वयं ही मामले को संदेहास्पद बना रहे हैं। उनकी कुछ बातें दिलचस्प है।

पाकिस्तान को कार्यवाही का नहीं पता
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                             अमेरिकन रणनीतिकारों का सबसे बड़ा झूठ यह कि पाकिस्तान को अमेरिकी सैन्य कार्यवाही का पता नहीं था। एक सैनिक की मौत पर ही  डरने वाला अमेरिका इतना बड़ा जोखिम नहीं ले सकता था। उसकी सेना अपने हेलीकॉप्टर उस पाकिस्तान में उतारने वाली थी जहां आतंकवादियों के पास भी विमान गिराने वाली मिसाइलें रहती हैं। यह संभव नहीं है कि इतने सारे हेलीकॉप्टर बाहर से उड़ कर आये और पाकिस्तानी सेना में किसी के पास जानकारी न हो। सभी अधिकारियों को नहीं तो अमेरिका के खास अधिकारियो को इसकी जानकारी होगी। दरअसल अमेरिका पाकिस्तान को बचा रहा है ताकि वह अपने ही धर्मबंधु देशों की नाराजगी का शिकार न हो। दूसरी बात यह कि वह ओसामा बिन लादेन को शरण देने के आरोपों से भी पाक रणनीतिकारों का बचा रहा है।
केवल बच्चा गवाह बन रहा है
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                  पाकिस्तान के एक बच्चे के अलावा कोई दूसरा गवाह नहीं है यह बताने वाला कि मरने वाला ओसामा बिन लादेन ही था। लादेन की लाश किसी ने नहीं देखी। कोई मरा वह कोई भी हो सकता था। बच्चा सारी बात बता रहा है पर वह यह दावा नहीं कर सकता कि उसे उपहार में दो खरगोश देन वाला बिन लादेन ही था। कोई बड़ा गवाह न मिलना इस बात का प्रमाण है कि कहीं न कहीं दाल में काला है।
परिवार को लेकर विरोधी बयान
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                             एक तरफ अमेरिका दावा कर रहा है कि इस हमले में बिन लादेन की एक पत्नी मारी गयी तो दो पकड़ी गयीं। इधर पाकिस्तान कह रहा है कि लादेन का परिवार उसके पास सुरक्षित है। सवाल यह है कि उसकी पत्नियों को प्रचारक लोग सामने क्यों नहीं ला रहे। पाकिस्तान कह रहा है कि लादेन के परिवार को उसके देश भेज दिया जायेगा। अगर लादेन को समुद्र में दफनाया गया तो उसके परिवार के लोगों को क्या वहां ले जाया गया? अगर नहीं तो क्यों?
यहां यह बात याद रखने लायक है कि मरने वाला लादेन ही था इसकी पुष्टि उसके परिवार के वही सदस्य ही कर सकते हैं जो इस हमले में समय उसके पास थे। अब सवाल यह है कि उनमें से कोई क्या कभी प्रचार माध्यमों के पास आकर बतायेगा कि वह लादेन ही था?
फिक्सिंग के लिये बदनाम है पाकिस्तान
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                      लादेन को गोली या बम से ही मरना था। जिस मार्ग पर वह चला वही सामने से आती गोली या ऊपर से गिरने वाले बम के साथ ही बंद हो जाता है। यह सच है। अमेरिका लादेन को मारने के इतने प्रयास कर चुका है कि उसके सेना की गज़ब की क्षमता और अचूक निशाने देखकर लगता है कि वह कई बार मरा होगा। एबटाबाद में उसका मरना कोई बड़ी बात नहीं है। पाकिस्तान हमेशा ही उसका खैरख्वाह रहा है। मगर जिस तरह अमेरिका और पाकिस्तानी रणनीतिकार ओसामा बिन लादेन की औपचारिक मौत के बाद जिस तरह नाटकबाजी कर रहे हैं उससे फिक्सिंग का शक होता है। वैसे भी पाकिस्तान की क्रिकेट टीम फिक्ंिसग के लिये बदनाम हैं। पाकिस्तान की टीम के बारे में कहा जाता है कि वह हमेशा ही हारना फिक्स करती है उसी तरह पाकिस्तान के रणनीतिकार भी अमेरिका से अपना पिटना फिक्स करते हैं। यह अलग बात है कि बाद में अमेरिका उनके घावों पर मरहम लगाता है। फिर पैसे की भी मदद करता है। ऐसे में यह संभव नहीं है कि पाकिस्तानी रणनीतिकार अपने आका की बात का किसी तरह प्रतिवाद करें।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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Wednesday, April 27, 2011

हास्य कविताएँ -दौलत बहुत जरूरी है (daulat bahut jaroori hai-hindi hasya kavitaen)

बीमार गुरु ने चेले से
अपनी पार्थिव देह के संस्कार के बारे में पूछा
तो वह बोला-
‘‘महाराज,
भगवान करेगा आप ठीक हो जायेंगे,
जिंदगी भर चमत्कार किया है
भगवान अब आपके लिये
चमत्कार करने आयेंगे,
अगर ऐसा नहीं हुआ तो
आपकी अर्थी को बड़ी सादगी से सजायेंगे,
आपने हमेशा गरीबों का भला किया
इसलिये कोई शान शौकत नहीं दिखायेंगे।’’

सुनकर मरणासन्न गुरुजी
उठकर बैठे और बोले,
‘‘कमबख्त
किस जन्म का बदला लेने आया है,
जो यह सादगी का नारा बताया है,
तुझे मैंने कितनी बार बताया है कि
आदमी गरीब है या अमीर है
अज्ञानी है कि संत है,
या आम है कि खास है
इसका पता उसके मरने पर
निकलने वाली अर्थी से चलता है,
जिनकी जिंदगी बेरौनक रही
उनकी अर्थी में कोई नहीं चलता है,
जो जलाते हर समय ज्ञान का प्रकाश
उनकी पार्थिव देह के चारों तरफ
घी का दीपक जलता है,
सजता है फूलों का बाग,
बजता है चारों तरफ विरह का राग
फिर गरीबों के कल्याण के व्यापार में
कुछ ही इंसानों का भला किया जाता है,
बाकी तो ज़माने से सोना लूटकर उसे गला दिया जाता है,
हमारी अर्थी और दाह संस्कार पर तुम
धूमधड़कारा करना
इसी शर्त पर हमें मंजूर है अभी मरना,
वरना अपनी बीमारी साथ लेकर जिंदा रहेंगे
चाहे जितना दर्द हम सहेंगे,
मरने से पहले प्रिय शिष्य के रूप में
तुम्हारी जगह किसी दूसरे का नाम
वसीयत में लिखायेंगे,
दौलत बहुत जरूरी है
यह मरने के बाद भी दिखायेंगे।’’
----------------
चेले ने कहा गुरु से
‘महाराज,
ढेर सारा पैसा आ गया है,
अपना फाईव स्टार होटल नुमा
आश्रम भी बनकर लगता नया है,,
यह सब आपके चमत्कारों का परिणाम है,
सत्संग में आपके पीछे खड़े होकर
भभूत, घड़ी और अंगूठी दी मैंने
पर हवाओं का हुआ नाम है
मगर अब छवि बदलने का समय आया है,
ज्ञान के बिना यह अंधेरी माया है,
इसलिये अब लोगों को पुराने ग्रथों से
रटकर उपदेश दिया करें,
ज्ञानियों से भी वाह वाह लिया करें,
वरना कोई आपको संत नहीं मानेगा,
हर कोई जादूगर जानेगा।’’

सुनकर बोले गुरुजी
‘मूर्ख,
क्या धरा ज्ञान में,
चमक है बस दौलत की शान में,
भला,
तूने किसी ज्ञानी को अपने आश्रम में आते देखा,
किसी ज्ञानी को महलनुमा आश्रम में
घर बसाते देखा है
हमारा देश विश्व में विश्व गुरु इसलिये कहलाता है
क्योंकि अज्ञान के अंधेरे में ज्ञान रौशन हो पाता है,
इस काम के लिये ढेर सारे लोग हैं,
जिनको मुफ्त में ज्ञान बांटने और दान करने जैसे रोग हैं,,
अपने देश में बहुत तंगहाली है
इसलिये अपने चमत्कार की चारो तरफ लाली है,
अगर हमने चमत्कार छोड़कर ज्ञान बघारा तो
हर कोई हमें मरा जानेगा।
जिंदा रहकर चमत्कार करते रहे
तो हर कोई हमें अमर मानेगा।’’
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
poet writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
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Friday, April 22, 2011

हास्य कविता-भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन (bhrashtachar virodhi andolan or anti corruption movement-hasya kavita)

समाज सेवक की पत्नी ने कहा
‘तुम भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में
शामिल मत हो जाना,
वरना पड़ेगा पछताना।
बंद हो जायेगा मिलना कमीशन,
रद्द हो जायेगा बालक का
स्कूल में हुआ नया एडमीशन,
हमारे घर का काम
ऐसे ही लोगों से चलता है,
जिनका कुनबा दो नंबर के धन पर पलता है,
काले धन की बात भी
तुम नहीं उठाना,
मुश्किल हो जायेगा अपना ही खर्च जुटाना,
यह सच है जो मैंने तुम्हें बताया,
फिर न कहना पहले क्यों नहीं समझाया।’
सुनकर समाज सेवक हंसे
और बोले
‘‘मुझे समाज में अनुभवी कहा जाता है,
इसलिये हर कोई आंदोलन में बुलाता है,
अरे,
तुम्हें मालुम नहीं है
आजकल क्रिकेट हो या समाज सेवा
हर कोई अनुभवी आदमी से जोड़ता नाता है,
क्योंकि आंदोलन हो या खेल
परिणाम फिक्स करना उसी को आता है,
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में
मेरा जाना जरूरी है,
जिसकी ईमानदारी से बहुत दूरी है,
इसमें जाकर भाषण करूंगा,
अपने ही समर्थकों में नया जोशा भरूंगा,
अपने किसी दानदाता का नाम
कोई थोडे ही वहां लूंगा,
बस, हवा में ही खींचकर शब्द बम दूंगा,
इस आधुनिक लोकतंत्र में
मेरे जैसे ही लोग पलते हैं,
जो आंदोलन के पेशे में ढलते हैं,
भ्रष्टाचार का विरोध सुनकर
तुम क्यों घबड़ाती हो,
इस बार मॉल में शापिंग के समय
तुम्हारे पर्स मे ज्यादा रकम होगी
जो तुम साथ ले जाती हो,
इस देश में भ्रष्टाचार
बन गया है शिष्टाचार,
जैसे वह बढ़ेगा,
उसके विरोध के साथ ही
अपना कमीशन भी चढ़ेगा,
आधुनिक लोकतंत्र में
आंदोलन होते मैच की तरह
एक दूसरे को गिरायेगा,
दूसरा उसको हिलायेगा,
अपनी समाज सेवा का धंधा ऐसा है
जिस पर रहेगी हमेशा दौलत की छाया।’’
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Saturday, April 16, 2011

जमाने में अंधेरे वही पाले हैं-हिन्दी हाइकू

(1)
वह राक्षस
देवता का चेहरा
लगा रहा है।
(2)
लुटेरा दिल
जज़्बात का धंधा
सजा रहा है।
----------------
(1)
साफ वस्त्र
पहन घूम रहे
दिल काले हैं।
(2)
दान लूटा है
जमाने में अंधेरे
वही पाले हैं।
--------------



संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
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Monday, April 4, 2011

नकली ट्राफी का खेल-व्यंग्य चिंत्तन (nakli cup or trofy ka khel-vyangya chittan)

             समझ में नहीं आ रहा है कि व्यंग्य लिखें कि गंभीर चिंत्तन। क्रिकेट को वैसे ही यकीनी खेल नहीं मानते। यहां तक कि जिसे लोग टीम इंडिया कहकर देश के लोग सिर पर उठाये रहते हैं उसके लिये भी हमने केवल एक क्लब बीसीसीआई की टीम मानते हैं। यह क्लब अपने क्रिकेट के व्यापार के लिये भारत के नाम, झंडे और गान का इस्तेमाल करता है इसलिये ही उसे भारत में दर्शक भारी मात्रा में मिलते हैं जिनकी जेब की दम पर पूरी दुनिया का क्रिकेट चल रहा है। बहरहाल हमारी टीम ने विश्व कप जीता खुशी की बात है-जीतने पर हम ऐसा ही करते हैं, हारने पर बीसीसीआई की टीम कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं-खिलाड़ियों के हाथ में ट्राफी या कप देखकर खुशी हुई।
            धोनी और गंभीर ने मन मोह लिया, मगर सारी प्रसन्नता चौबीस घंटे में हवा हो गयी। पता लगा कि उनको नकली कप या ट्राफी दी गयी है और असली भारतीय कस्टम विभाग के भंडार कक्ष की शोभा बढ़ा रही है। गनीमत है कि नागरिक सेवाओं से जुड़े कर्मचारी गोपनीयता के नियमों का पालन करते हैं वरना भंडार कक्ष में रखी ट्राफी का सरेआम दृश्य प्रसारित होता तब देश की इज्जत पर जो बट्टा लगता वह दुःखदायी होता।

            वैसे प्रचार माध्यम घुमाफिरा रहे हैं। बीसीसीआई के प्रवक्ता ने जब यह माना है कि ट्राफी नकली है तब उसमें शक की गुंजायश नहंी रहती। फिर भी आईसीसी कहती है कि असली ट्राफी यह कप है। वैसे प्रचार माध्यमों ने प्रमाणित कर दिया है कि वानखेड़े स्टेडियम में खेले गये विश्व कप 2011 के मैच के बाद भारत को दी गयी ट्राफी नकली है। उसमें विश्व कप का वह लोगो नहीं दिख रहा जिसे कोलंबो में अनावरण के समय देखा गया था। चूंकि यह ट्राफी अत्यंत महत्वपूर्ण है इसलिये यह संभव नहीं है कि उसे कहीं खुले में रखा गया हो जिससे उसका रंग उड़ जाये।
मतलब यह कि यह नकली ट्राफी है।
                  यह देश के साथ मजाक है और यकीनन बिना सोचे समझे नहीं किया गया। यह चिढ़कर किया गया है ताकि भारतीय लोग खुशी के बाद अवसाद के वातावरण का सामना करें। कोई है जो भारत की जीत से चिढ़ गया है। कौन हैं वह लोग? इसकी पड़ताल जरूरी है।

               इसमें कोई संदेह नहीं है कि सट्टेबाजों की ताकत जहां व्यापक है वहीं उनके हाथ लंबे हैं। कहा जाता है कि दुनियां के देशों के कानूनों से अलग आईसीसी तथा सट्टेबाजों का के नियम हैं। वह कई जगह कानून बनकर काम चलाते हैं वहां उनके हाथ भी लंबे हैं। भले ही कहा जाता है कि गोरे ईमानदार होते हैं पर जिस तरह अपराधियों के हाथ वह बिकते देखे गये हैं उससे यह भ्रम टूट गया है। ऐसा लगता है कि इस विश्व कप में कहीं न कहीं सट्टेबाजों को अपना काम सही तरह से करने का अवसर नहीं मिला। सेमीफायनल में पाकिस्तान और फायनल में श्रीलंका पर भारत की जीत तय मानी जा रही थी। ऐसे में सट्टेबाजों के लिये विपरीत परिणाम ही फायदेमंद हो सकता था पर ऐसा हुआ नहीं। हालांकि सट्टेबाजों ने अब स्पॉटफिक्सिंग का रास्ता निकाल लिया है पर लगता है कि वह अपनी कमाई से संतुष्ट नहीं है। फिर सेमीफायनल में पहुंची चार टीमों में-भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा न्यूजीलैंड-से तीन गोरवर्ण का प्रतिनिधित्व नहीं करती। क्या गोरों के मन में यह मलाल रह गया था?
                  दूसरा सेमीफायनल और फायनल मैचों को भारत के अनेक संवैधानिक, राजनीतिक, आर्थिक, फिल्मी तथा अन्य विशिष्ट क्षेत्रों से जुड़े शिखर पुरुषों ने देखा। अपने कामकाज से फुरसत निकालकर वह कुछ देर आम इंसानों की तरह मैच देखने आये? उनकी मासुमियत तथा रुचियों को मजाक उड़ाने का कहीं यह इरादा तो नहीं है? क्या गोरे तथा भारत के विरोधियों को यह लगता है कि अमेरिका की लीबिया पर चल रही बमबारी को ही हम लोग देखते रहें और अपने क्रिकेट मैचों को देखना बंद कर देते।
क्रिकेट मैचों में हारने या जीतने पर भावुक नहीं होना चाहिए, यह हम हमेशा ही कहते रहे हैं पर नकली कप का मामला राष्ट्रवादियों को चिढ़ाने वाला है। भारत में आज नववर्ष विक्रम या विक्रमी संवत् 2068 के आगमन का स्वागत हो रहा है। ईसाई संवत् मानने वालों को यह बात समझ में नहीं आयेगी कि ऐसे अवसर इस तरह की अपमान जनक खबर बेहद दुःखदायी है। दो कौड़ी की आईसीसी-विश्व की क्रिकेट पर नियंत्रण करने वाली संस्था-और एक कोड़ी का फायनल मैच, पर देश का नाम अनमोल है। क्रिकेटर और उससे जुड़े संघों के लोग पैसे कमाने के चक्कर में चुप बैठ जायेंगे पर जिनको क्रिकेट से अधिक देश के प्रति प्रेम का भाव है वह इस व्यवहार से क्षुब्ध अवश्य होंगे।
          यह तो एक विचार है। इसका दूसरा पक्ष यह भी हो सकता है कि यह समाचार ही फिक्स कर बनाया गया हो। विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता का फायनल देखने के बाद यहां के लोगों का क्रिकेट से मन भर सकता है। इधर एक क्लब स्तरीय प्रतियोगिता शुरु हो रही है और उसे दर्शक कम मिल सकते हैं क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता और क्लब स्तरीय क्रिकेट मैचों में अंतर होता है। कहीं यह विश्व कप प्रतियोगिता का स्तर कमतर साबित करने का प्रयास तो नहीं है ताकि दर्शक इसे भूल जायें और क्लब स्तरीय प्रतियोगिता की तरफ जायें।
इधर यह भी सुनने में आया था कि कुछ सट्टेबाज इधर उधर पकड़े गये। उनके साथ आस्ट्रेलिया के दो गोरे खिलाड़ियों की मिलीभगत की बात सामने आयी। शायद इससे गोरे लोगों को सदमा लगा हो।
                  कहने का अभिप्राय है कि यह घटना पूर्वनियोजित है। इससे दो उद्देश्य या दोनों में से एक प्राप्त करने का प्रयास हो सकता है।
        एक तो भारत को अपमानित करना या फिर विश्व कप प्रतियोगिता को कमतर साबित करना ताकि क्लब स्तरीय प्रतियोगिता की तरफ जायें। लंबे समय तक विश्व कप की खुमारी उन पर न रहे क्योंकि छह अप्रैल से क्लब स्तरीय प्रतियोगिता प्रारंभ होने वाली है। शक की पूरी गुंजायश है कि इतनी बड़ी प्रतियोगिता में सब कुछ ठीकठाक रहा तो यह ट्राफी कस्टम का कर चुकाकर स्टेडियम में लायी क्यों न गयी? क्या वह इसे फ्री में लाना चाहते थे? करोड़ो रुपये की मालिक संस्थायें 20 लाख रुपये खर्च करने से मुकर क्यों गयीं? आखिरी बात दूसरी नकली ट्राफी अचानक कैसे बनकर आ गयी? मतलब जांच हो तो मामला कुछ का कुछ निकल सकता है।
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Friday, March 25, 2011

वफादारी का चोला-व्यंग्य कवितायें (vafadari ka chola-vyangya kavitaen)

अपनों पर नहीं यकीन
इसलिये गैरों से उनके शिकवे और शिकायत करते हैं,
परायों के कमरे में जाकर छूते हैं पांव,
उनसे मुलाकात का दंभ भरते है आकर अपने गांव,
कुछ खास हैं
यह दिखाने के लिये
आखिर अपने रिश्तों में ही दम भरते हैं।
------------------
अपनों से छिप कर वह
परदेसियों से आंखें लड़ाते हैं,
जिनको अपनी गली में नहीं मिलती इज्जत
वही बाहर जाकर अपना दर्द
बयान कर आते हैं।
साथियों में फिर वैसे ही वफादारी का
चोला पहनकर खामोशी से खड़े हो जाते हैं।
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Saturday, March 19, 2011

होली और ध्यान-हिन्दी कविता (holi aur dhyan-hindi kavita)

आओ ध्यान लगायें,
नकली गुलाल और रंग में
खेलने से जलेंगी आंखें और बदन
इसलिये अपने अंतर्मन में
स्थापित कर लें एक सुंदर स्वरूप

उसके आगे   अपनी हृदय का दीपक जलायें।
------------
किस पर रंग फैंककर
किसका व्यक्तित्व अपने हाथ से चमकायें,
अपने हृदय को कर दें ध्यान में मग्न,
हो जायेंगे कीचड़ की समाधियां भग्न,
बरस भर जमा किया है कीचड़ मन में
वहां ज्ञान का कमल लगायें।
------------

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Sunday, March 6, 2011

हाथ मुफ्त में घिस जायेगा-हिन्दी व्यंग्य कविता (hath mufta mein ghis jayega-hindi vyangya kavita)

पद का नशा ही ऐसा है कि
जो बैठता है कुर्सी पर
खास आदमी बन जाता है,
राह चलते हुए उसके साथ
रहता है आम आदमी का अहसास
दर्द झेलते हुए भी उसका
इलाज नहीं कर पाता
कलम के शेर, कागज पर ही दहाडेंगे
ज़मीन से उनका भला क्या नाता है।
--------------
समाज में समस्याओं का अंबार है
उसे कौन निपटायेगा,
हर कोई करेगा शिकायत
फिर मौन हो जायेगा।
हल करने के लिये हाथ
कोई नहीं चलाता
मुफ्त में घिस जायेगा।
‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘
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Monday, February 28, 2011

जरूरतमंदों के सगे-हिन्दी शायरी (jaruratmandon ke sage-hindi shayri)

उनकी कोशिश यही थी
अपने दर्द पर आंसू कुछ इस तरह बहायें
कि पूरे जहां का दर्द उसमें समाया लगे।
उम्मीद थी शायद कुछ लोग
इलाज के लिये दें मदद
उनके अंदर दान का जज़्बात जगे।
आ गया पैसा जेब में
तो अपने एक हाथ से दूसरे में देने लगे,
भलाई बन गयी उनका व्यापार
अपनी जरूरतें पूरी करते रहे
हल्दी लगी न फिटकरी
धेला भी खर्च नहीं किया
पर प्रचार करते हुए
बन गये जरूरतमंदों के सगे।
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Monday, February 21, 2011

पहरे साथ लेकर वह लूट में जुटे हैं-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (pahare sath lekar loot-hindi vyangya kavitaen)

अपने चेहरे कालिख से पुते हैं,
वही दूसरों की कमीज पर
दाग लगाने में जुटे हैं।
अपने चरित्र को ईमान से नहीं नहला सकते,
ज़माने में सभी की नाक पर फब्तियां कसते,
कौन कर सकता है दबंगों कीशिकायत
पहरे साथ लेकर वह लूट में जुटे हैं।
-----------
कब सोचा था हमने कि
ज़माने को लूटने वाले
कभी अपनी ईमान का दम भरेंगे,
एक दूसरे को बेईमान बताते पहरेदार
लुटेरों का नाम लेते हुए भी डरेंगे।
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Thursday, February 10, 2011

नेकनीयती का दावा-हिन्दी व्यंग्य कविता (nekneeyati ka dava-hindi vyangya kavitaen)

वह लूट का धन छिपाने के लिये
ज़माने में मनोरंजन पर खर्च कर आते हैं,
गरीबी और भुखमरी का रोग छिपाने के लिये
उस पर क्रिकेट के छक्के,
और फिल्म के झटके,
दवा और मरहम की तरह लगाते हैं।
धन सफेद हो तो
किसे चिंता होती है,
पर काला हो तो
अनिद्रा साथ होती है,
मगर लूट का हो तो
अपना पाप छिपाने के लिये
धर्म की आड़ होना भी जरूरी पाते हैं।
-----------
अब फिक्र यह नहीं कि अपनों ने हमें लूटा है,
पर डर है कि रिश्तों का भांडा सरेराह फूटा है।
ग़म पैसा जाने का नहीं, क्योंकि वह फिर आयेंगे,
चिंता है कि कुनबे की नेकनीयती का दावा झूठा है।
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Friday, February 4, 2011

भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनयुद्ध में व्यवस्था में बदलाव बिना विजय संभव नहीं-हिन्दी लेख (bhrashtachar aur januddh-hindi lekh)

सुनने में आया है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध कहीं जनयुद्ध शुरु हो गया है। बड़े बड़े नाम हैं जो इस युद्ध की अगुआई कर रहे हैं। ऐसे नामों की छबि को लेकर कोई संदेह है क्योंकि वह स्वच्छ है। कुछ विद्वान हैं तो कुछ कानूनविद! हम यहां कि इस जनयुद्ध के सकारात्मक होने पर संदेह नहीं कर रहे पर एक सवाल तो उठायेंगे कि कहीं यह अभियान भी तो केवल नारों तक ही तो नहीं सिमट जायेगा?
विश्व प्रसिद्ध योग शिक्षक बाबा रामदेव के व्यक्त्तिव को कोई चुनौती नहीं दे सकता पर उनके चिंतन की सीमाओं की चर्चा हो सकती है। श्रीमती किरण बेदी की सक्रियता प्रसन्नता देने वाली है पर सवाल यह है कि वह भ्रष्टाचार का बाह्य रूप देख रही हैं यह उसका गहराई से भी उन्होंने अध्ययन किया है। बाबा रामदेव योग के आसन सिखाते हैं मगर उनके परिणामों के बारे में वह आधुनिक चिकित्सकीय साधनों का सहारा लेते हैं। सच बात तो यह है कि बाबा रामदेव योग आसन और प्राणायाम जरूर सिद्धहस्त हैं पर उसके आठों अंगों के बारे में में पूर्ण विद्वता प्रमाणिक नहीं है। फिर भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनयुद्ध प्रारंभ करने वाले महानुभावों को साधुवाद! उनकी प्रशंसा हम इस बात के लिये तो अवश्य करेंगे कि वह इस देश में व्याप्त इस निराशावाद से मुक्ति दिलाने में सहायक हो रहे हैं कि भ्रष्टाचार को मिटाना अब संभव नहीं है।
सवाल यह है कि भ्रष्टाचार समस्या है या समस्याओं का परिणाम! इस पर शायद बहस लंबी खिंच जायेगी पर इतना तय है कि वर्तमान व्यवस्था में भ्रष्टाचार अपनी जगह बनाये रखेगा चाहे जितने अभियान उसके खिलाफ चलाये जायें। मुख्य समस्या व्यवस्था में है कि उससे जुड़े लोगों में, इस बात का पता तभी लग सकता है जब एक आम आदमी के चिंतक के रूप में विचार किया जाये।
जो विद्वान भ्रष्टाचार को मिटाने की बात करते हैं तो वह भ्रष्ट तत्वों को पकड़ने या उनकी पोल खोलने के लिये तैयार हैं मगर यह हल नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि हम अपने राज्य, समाज, परिवार तथा समाजसेवी संस्थाओं की संचालन व्यवस्था को देखें जो अब पूरी तरह पश्चिम की नकल पर चल रही है। ऐसा नहीं है कि कभी कोई राज्य भ्रष्टाचार से मुक्त रहा हो। अगर ऐसा न होता तो हम अपने यहां राम राज्य के ही सर्वोत्तम होने की बात स्वयं मानते हैं। इसका आशय यह है कि उससे पहले और बाद की राज्य व्यवस्थायें दोषपूर्ण रही हैं। इसके बावजूद भारतीय राज्य व्यवस्थाओं में राजाओं की जनता के प्रति निजी सहानुभूति एक महत्वपूर्ण पक्ष रहा है। इसमें राजा भले ही कोई कैसे भी बना हो वह प्रजा के प्रति निजी रूप से संवेदनशील रहता था-कुछ अपवादों को छोड़ना ही ठीक रहेगा। आधुनिक लोकतंत्र में भले ही राजा का चुनाव जनता करती हो पर वह निजी रूप से संवेदनशील हो यह जरूरी नहीं है। राज्य कर्म से जुड़ने वाले जनता का मत लेने के लिये प्रयास करते हैं। इस दौरान उनका अनाप शनाप पैसा खर्च होता है जो अंततः धनवानों से ही लिया जाता है जिनको राजकीय रूप से फिर उपकृत करना पड़ता है। उनको अपनी कुर्सी जनता की नहीं धन की देन लगती है। बस, यहीं से भ्रष्टाचार का खेल प्रारंभ हो जाता है।
अब जो देश की स्थिति है उसमें हम आधुनिक लोकतंत्र से पीछे नहीं हट सकते पर व्यवस्था में बदलाव के लिये यह जरूरी है कि राज्य पर समाज का दबाव कम हो। यह तभी संभव है जब समाज की सामान्य व्यवस्था में राजकीय हस्तक्षेप कर हो। सबसे बड़ी बात यह है कि हमें अपना पूरा संविधान फिर से लिखना होगा। पहले तो यह निश्चय करना होगा कि जो अंग्रेजों ने कानून बनाये उनको पूरी तरह से खत्म करें। अंग्रेजों ने हमारे संविधान के कई कानून इसलिये बनाये थे जिससे कि वह यहां के लोगों को नियंत्रण में रख सकें। वह यहां के समाज में दमघोंटू वातावरण बनाये रखना चाहते थे जबकि उनका समाज खुले विचारों में सांस लेता है। उनके जाने के बाद भारत का संविधान बना पर उसमें अंग्रेजों के बनाये अनेक कानून आज भी शामिल हैं। सीधी बात कहें तो यह कि समाज में राज्य का हस्तक्षेप कम होना चाहिये। भारतीय संविधान की व्यवस्था ऐसी है कि उसकी किताबों की पूरी जानकारी बड़े बड़े से वकील को भी तब होती है जब संबंधित विषय पर पढ़ता है। उसी संविधान की हर धारा की जानकारी आम आदमी होना अनिवार्य माना गया है। अनेक प्रकार के कर जनता पर लगाये गये हैं पर राजकीय संस्थाओं के लिये आम जनता के प्रति कोई दायित्व अनिवार्य और नियमित नहीं है। केंद्रीय सरकार को जनता के प्रति सीधे जवाबदेह नहंी बनाया जा सकता। कुछ हद तक राज्य की संस्थाओं को भी मुक्ति दी जा सकती है पर स्थानीय संस्थाओं के दायित्वों को कर वसूली से जोड़ा जाना चाहिये। इतना ही स्थानीय संस्थाओं में कार्यरत अधिकारियों और कर्मचारियों की जनता के प्रति सीधी जवाबदेही तय होना चाहिये। प्रशासनिक व्यवस्थाओं से अलग जनसुविधाओं वाले विभागों को-स्वास्थ्य, शिक्षा तथा परिवहन-जनोन्मुखी बनाया जाना न कि धनोन्मुखी।
सबसे बड़ी बात यह है कि सभी प्रकार के करों की समीक्षा कर उनकी दरों का मानकीकरण होना चाहिये। जनता से सीधे जुड़े काम होने की निर्धारित अवधि तय की जाना चाहिये-इस मामले में हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार के उठाये गये कदम प्रशंसनीय है। कहने का अभिप्राय यह है कि जब लोकतंत्र है तो सरकार की शक्ति को लोगों से अधिक नहीं होना चाहिये। आखिरी बात यह कि भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिये वर्तमान व्यवस्था में बदलाव की बात सोची जानी चाहिये। यह भारी चिंतन का काम है पर इसके बिना काम भी नहीं चलने वाला। खाली नारे लगाने से कुंछ नहीं होगा।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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