सप्ताह में सात दिन और दिन में 24 धंटे पर मंगलवार का सुबह 11.45 मिनट का समय सभी लोगों के लिये भारी होता है-जी नहीं! यह खबर किसी भारतीय ज्योतिषवेता की नहीं बल्कि पश्चिम के शोधकर्ताओं की है। इसे शिरोधार्य करना चाहिये क्योंकि वह तमाम तरह के प्रयोग करते हैं और किसी ज्योतिष गणना का सहारा नहीं लेते। अगर कोई भारतीय विशेषज्ञ ज्योतिषी कहता तो शायद लोग उसका मखौल उड़ाते।
वैसे भारतीय ज्योतिष में भी मंगल को एक तरह से भारी ग्रह माना जाता है और जिसकी राशि का स्वामी होता है उसके लिये जीवन साथी भी वैसा ही ढूंढना पड़ता है। लड़के और लड़की की जाति बंधन के साथ आजकल ग्रह बंधन भी हो गया है। इस देश में दो प्रकार के अविवाहित युवक युवतियां होती हैं-एक जो मांगलिक हैं दूसरे जो नहीं है। हम अब यह तो कतई नहीं कह सकते कि एक मांगलिक दूसरे अमांगलिक क्योंकि इससे अर्थ का अनर्थ हो जायेगा।
अनेक बार लोग एक दूसरे को शुभकामनायें देते हुए कहते हैं कि ‘तुम्हारा मंगल हो‘, ‘तुम्हारा पूरा दिन मंगलमय हो’ या ‘तुम्हारा अगला वर्ष मंगलमय हो‘। इसके बावजूद भारतीय ज्योतिष में मंगल ग्रह एक भारी ग्रह माना जाता है।
अपने यहां एक कहावत भी है कि ‘मंगल को होये दिवारी, हंसे किसान रोये व्यापारी‘। वैसे मंगल कामनायें कृषि के लिये नहीं बल्कि व्यापार में अधिक दी जाती हैं। कृषि के लिये तो सारे दिन एक जैसे हैं। अपने यहां पहले मंगलवार को ही व्यापार में अवकाश रखने का प्रावधान अधिक था। समय के साथ अब लोग रविवार को भी अवकाश रखने लगे।
शोधकर्ताओं ने मंगल 11.45 मिनट का समय इसलिये भारी बताया है कि शनिवार और रविवार के अवकाश-जी हां, वहां दो दिन का अवकाश ही रखा जाता है-के बाद आदमी सोमवार को अलसाया हुआ रहता है और पूरा दिन ऐसे ही निकाल देता है। मंगलवार को काम के मूड में सुबह वह काम पर आता है तो उसे पता लगता है कि उसके सामने तो काम बोझ रखा हुआ है। सुबह काम शुरु करने के बाद यह सोच 11.45 मिनट के आसपास उसके दिमाग में आता है। शोधकर्ताओं ने पांच हजार कर्मचारियों पर यह शोध किया।
वैसे नहीं मानने वाले अब भी यह नहीं मानेंगे कि भारतीय ज्योतिष ग्रहों के मनुष्य के दिमाग पर परिणाम की जो व्याख्या करता है वह सच है। वैसे देखा जाये तो सुबह उठकर जब यह याद आता है कि आज अवकाश का दिन है तो आदमी के दिमाग में एक स्वतः तरोताजगी आती है इसका किसी वार से कोई संबंध नहीं है। उसी तरह जब सुबह यह याद आता है कि आज काम पर जाना है तब तनाव भी स्वाभाविक रूप से आता है।
भारतीय ज्योतिष को लेकर अनेक तरह के विवाद हैं। दो ज्योतिषी एक मत नहीं होते। इसके अलावा एक बात जो स्पष्ट नहीं होती कि ज्योतिष और खगोलशास्त्र में क्या अंतर है? खगेालशास्त्र में ग्रहों की गति के आधार पर समय और अन्य गणनायें की जाती हैं। भारतीय खगोलशास्त्र कितना संपन्न है कि उनकी गणना के अनुसार सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण उसी समय पर आते हैं जब पश्चिम के वैज्ञानिक बताते हैं। भारतीय खगोलशास्त्रियेां की उनकी कई ऐसी गणनायें और खोज हैं जिनकी पश्चिम के वैज्ञानिक अब प्रमाणिक पुष्टि करते हैं। बुध,शुक्र,शनि,मंगल,गुरु तथा अन्य ग्रहों के बारे में भारतीय खगोलशास्त्री बहुत पहले से जानते हैं। भारत में सात वार है और पश्चिम में भी-इससे यह तो प्रमाणित होता कि कहीं न कहीं हमारे खगोलशास्त्री विश्व के अन्य देशों से आगे थे। संभवतः ज्योतिष विद्या उन ग्रहों की स्थिति के ह आधार पर मनुष्य और धरती पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या करने वाली विद्या मानी जा सकती है।
चंद्रमा हमारे सबसे निकट एक ग्रह है इसलिये उसके प्रभाव की अनुभूति तत्काल की जा सकती है। गर्मी में जब सूर्यनारायण दिन भर झुलसा देते हैं तब रात को आकाश में चंद्रमा आंखों मेें जो ठंडक देता है उसे हम उसे शीघ्र अनुभव करते हैं। अन्य ग्रह कुछ अधिक दूर है इसलिये उनके प्रभावों का एकदम पता नहीं चलता-उनका प्रभाव होता है यह तो हम मानते हैं।
समस्या इस बात की है कि ज्योतिष के नाम पर ढोंग और पाखंड अधिक हो गया है। कुछ कथित ज्योतिषी अपने पैसे कमाने के लिये तमाम तरह के ऐसे हथकंडे अपनाते हैं जिससे समाज में ज्योतिष विद्या की छबि खराब होती है। वैसे इन ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने का एक ही उपाय है परमात्मा की सच्चे मन से भक्ति और निष्काम भाव से अपना कर्म करते रहना। अगर आदमी निष्काम भाव से रहे तो फिर उसके लिये अच्छा क्या? बुरा क्या? अपना क्या? पराया क्या?
योग साधन, ध्यान, मंत्र जाप और प्रार्थना से मनुष्य को अपनी देह में ही ऐसी शक्तियों का आभास होता है जो उसका बिगड़ता काम बना देती है। लक्ष्य उनके कदम चूमता है। हां, सकाम रूप से भक्ति और अन्य कार्य करने वालों की ही ज्योतिष की सहायता की आवश्यकता होती है। बहरहाल यह कहना कठिन है कि इस देश में कितने ज्योतिष ज्ञानी है और कितने अल्पज्ञानी। अलबत्ता धंधा केवल वही कर पाते हैं जिनके पास व्यवसायिक चालाकियां होती हैं।
इन ज्योतिष ज्ञानियों द्वारा दी गयी जानकारियों में विरोधाभास अक्सर देखने को मिलता है। इंटरनेट पर इसका एक रोचक अनुभव हुआ। एक महिला ज्योतिष विद् ने इस लेखक के ब्लाग/पत्रिका पर टिप्पणी की। वह ज्योतिष के नाम पर होने वाले पाखंड के विरुद्ध अभियान शुरु किये हुए हैं-उन्होंने अपनी प्रकाशित एक किताब की जानकारी भी भेजी। उन्होंने अध्यात्म ब्लाग पर लिखने के लिये इस लेखक की प्रशंसा करते हुए अपने अभियान में समर्थन का आश्वासन मांगा। मुझे बहुत खुशी हुई। लेखक ने जवाब में समर्थन के आश्वासन के साथ अंतर्जाल पर सक्रिय एक अन्य ज्योतिषी के ब्लाग का पता भी दिया और साथ में यह राय भी कि आप उनका ब्लाग देखकर उनसे भी इस मामले में सहायता मांगे। लौटती डाक से जवाब आया कि ‘वह उन ज्योतिषी की गणनाओं से सहमत नहीं है।’
तब यह देखकर हैरानी हुई कि दो ज्योतिष विशारद आखिर क्यों आपस में इस तरह असहमत होते हैं? हम तो इस मामले में पैदल हैं इसलिये कहते हैं कि यह भी सही और वह भी सही मगर जब जानकार लोग इस तरह भ्रम पैदा करें तो..............शायद यही कारण है कि भारतीय ज्योतिष विश्व में कभी वह स्थान प्राप्त नहीं कर पाया जिसकी अपेक्षा की जाती रही है। हां , उपरोक्त शोध से एक बात तो सिद्ध हो गयी कि भारतीय ज्योतिष का भी कोई न कोई तार्किक आधार होगा तभी इतने लंबे समय से वहा प्रचलन में है। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि अध्यात्मिक ज्ञान का एक भाग ज्योतिष ज्ञान भी माना जाता है। पश्चिम के वैज्ञानिकों के शोध के आधार पर यह तो कहा जा सकता है कि ‘भारतीय ज्योतिष की जय हो’
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कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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