समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, December 28, 2011

दिल का झंडाबरदार-हिन्दी शायरियां (Dil ka jhandabardar-hindi shayriyan or poem's)

अपने अपने सभी के इलाके हैं
कोई न कोई कहीं का सरदार है,
डूब हैं सभी अपने घर बचाने के लिये
गलतफहमी में रहे हम कि वह असरदार हैं।
कहें दीपक बापू दोगलापन खून में है इंसानों के
मतलब निकलने तक सभी हमारे तरफदार हैं,
बाज़ार में बिकते मुद्दे पर चर्चा करना बकवास है
खुश वही है जो खुद के दिल का झंडाबरदार है।
---------
अपने जिस्म का पसीना
हमने उनके लिये बहाया
जो केवल दौलत के अहंसानमंद है,
उनसे तारीफ की क्या उम्मीद करना
जिनके ख्याल अपने ही मतलब में बंद हैं
---------------
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

Wednesday, December 14, 2011

दोस्ती का दम-हिन्दी शायरी (dosti ka dam-hindi shayri)

न वह दिल के पास हैं
न उनके कदम कभी हमारे घर की ओर
बढ़ते नज़र आते हैं,
कहें दीपक बापू
उनसे दोस्ती का दम क्या भरें
जिनकी वफा पर लगे ढेर सारे दाग
दिखते हैं जहां को
मगर वह खूबसूरती से
खुद से सच से ही आँखें फेर जाते हैं।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

Sunday, December 11, 2011

अन्ना हजारे (अण्णा हज़ारे) ने दी युवा की नयी परिभाषा-हिन्दी लेख (Anna hazare and today yung nanaration-hindi lekh or article)

         अन्ना हजारे अत्यंत दिलचस्प आदमी हैं। सच कहें तो हमने गांधी को नहीं देखा न सुना पर जितना पढ़ा है उसके आधार पर यह कह सकते हैं कि अन्ना की उनसे तुलना करने का अब मतलब नहीं रहा। अन्ना हजारे तो अन्ना हजारे हैं और इतिहास भारत में आजादी के बाद के महान पुरुष के रूप में उनको दर्ज करेगा। 11 दिसंबर को जंतर मंतर पर अनशन के दौरान अपने भाषणों में उन्होंनें बहुत सारी बातें कही गयी। उनमें कुछ बातें ऐसी हैं जो नारों या वाद से आगे जाकर उनके गंभीर चिंतक होने का प्रमाण देती है। इनमें युवा शक्ति को लेकर उनका बयान अत्यंत गंभीर दर्शन का प्रमाण है।
        अक्सर हमारे यहां युवाओं को आगे लाने की बात कही जाती है। जहां कहीं कोई संगठन, संस्था या आंदोलन विफल होता है तो युवा नेतृत्व लाने का नारा देकर समाज को ताजगी दिलाने का प्रयास किया जाता है। लोग भी पुराने लोगों से दुःखी होते हैं। निराशा उनको मनोबल तोड़ चुकी होती है। नया चेहरा देखकर वह यह आशा बांध लेते हैं कि शायद उनका कल्याण होगा मगर ऐसा नहीं होता बल्कि हालात बद से बदतर हो जाते हैं। अलबत्ता नया या युवा चेहरा बताकर कुछ समय तक समूहों पर नियंत्रण किया जाता है। दरअसल हमारे देश के सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक तथा अन्य संगठनों पर धनपतियों को अप्रत्यक्ष नियंत्रण है। कहने को सभी संगठन दावा करते हैं कि वह स्वतंत्र हैं पर कहीं न कहीं सभी प्रायोजन से प्रतिबद्ध दिखते हैं। युवा शक्ति के नाम पर अपने ही परिवार के सदस्यों को लाकर शिखर पुरुष खुश होते हैं तो परंपरागत से जीने वाला हमारा समाज भी खामोशी से स्वीकार करता है।
         अन्ना का कहना सही है कि युवा वही है जिसका हृदय या दिल जवान है। उनका यह भी कहना है कि अगर पैंतीस साल का आदमी हो और संघर्ष की स्थिति में कह दे कि जाने दो हमें क्या करना? वहीं कोई साठ साल को हो पर समाज के साथ खड़ा हो वही जवान है।
        एक तरह से उन्होंने यह साबित कर दिया है कि उनमें एक सक्षम नेता का गुण है। अपने अनशन से अपने आपको युवा साबित कर चुके अन्ना हजारे ने अपने दर्शन के व्यापक होने का इतना जबरदस्त प्रमाण है कि यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि पहले महाराष्ट्र और फिर पूरे देश में छा जाने वाला मजबूत नेतृत्व का उनमें जन्मजात रहा होगा। यह सही है कि इसके लिये धनपतियों के प्रचार माध्यमों का कम योगदान नहीं है। रविवार को छुट्टी के दिन उनके एकदिवसीय अनशन का आयोजन कई तरह की बातों की तरफ ध्यान खींचता है। इस दिन अवकाश के दिन देश भर में अनेक जगह हुए अनशन में भीड़ स्वाभाविक रूप से जुट जाती है। घर बैठे लोग टीवी पर सीधा प्रसारण देखते हैं। अन्ना हजारे के व्यक्तित्व का प्रचार इतना हो चुका है कि टीवी चैनलों ने इसे विज्ञापनों के बीच समय पास करने का एक महत्वपूर्ण विषय बना लिया है। यह रविवार का दिन इसमें बहुत सहायक होता है। ऐसे में अन्ना का प्रभावी भाषण उन्हें एक नये महापुरुष के रूप में स्थापित कर सकता है। खास तौर से युवा शक्ति पर उनके बयान से जहां युवा आकर्षित होंगे वहीं बड़ी आयु के लोग भी प्रसन्न होंगे। यकीनन अन्ना हजारे ने अपनी बात कहते हुए इस बात का ध्यान रखा होगा।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

Monday, November 28, 2011

वॉल मार्ट के आगमन का भय और भारतीय बाज़ार-हिन्दी लेख और एफ डी आई पर चर्चा (wal-mart and indian market-hindi lekh FDI)

        खेरिज किराना व्यापार में विदेशी निवेश लाने के फैसले पर देश में बवाल बचा है और इस पर बहस हो रही है। एक आम लेखक और नागरिक के रूप में हमें इस फैसले के विरोध या समर्थन करने की शक्ति नहीं रखते हैं क्योंकि इस निर्णय तो शिखर पुरुषों को करना होता है। साथ ही चूंकि प्रचार माध्यमों में चर्चा करने में हम समर्थ नहीं है इसलिये अपने ब्लाग पर इसका आम नागरिकों की दृष्टि से विश्लेषण कर रहे हैं। हमने देखा कि आम जनमानस में इस निर्णय की कोई अधिक प्रतिक्रिया नहीं है। इसका कारण यह है कि आम जनमानस समझ नहीं पा रहा है कि आखिर मामला क्या है?
        अगर भारतीय बुद्धिजीवियों की बात की जाये तो उनका अध्ययन भले ही व्यापक होता है जिसके आधार वह तर्क गढ़ लेते हैं पर उनका चिंत्तन अत्यंत सीमित हैं इसलिये अधिक गहन जानकारी उनसे नहीं मिल पाती और उनके तक भी सतही होते हैं। यही अब भी हो रहा है। अगर खेरिज किराने के व्यापार में विदेशी निवेश की बात की जाये तो उस पर बहस अलग होनी चाहिए। अगर मसला संगठित किराना व्यापार ( मॉल या संयुक्त बाज़ार) का है तो वह भी बहस का विषय हो सकता है। जहां तक खेरिज किराना व्यापार में विदेशी निवेश का जो नया फैसला है उसे लेकर अधिक चिंतित होने वाली क्या बात है, यह अभी तक समझ में नहीं आया। दरअसल यह निर्णय हमारी उदारीकरण की उस नीति का इस पर सारे राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक संगठन चल रहे हैं। अगर हम यह मानते हैं कि केवल वाल मार्ट के आने से इस देश के छोटे किराने व्यापारी और किसान तबाह हो जायेंगे तो यह एक भारी भ्रम होगा क्योंकि हम जिन नीतियों पर समाज को चलता देख रहे हैं वह उससे अधिक खतरनाक हैं। यह खतरा लगातार हमारे साथ पहले से ही चल रहा है जिसमें छोटे मध्यम व्यवसाय अपनी महत्ता खोते जा रहे हैं।
           हमें याद है कि इससे पहले भी बड़ी कंपनियों के किराना के खेरिज व्यापार में उतरने का विरोध हुआ पर अंततः क्या हुआ? बड़े शहरों में बड़े मॉल खुल गये हैं। हमने अनेक मॉल स्वयं देखे हैं और यकीनन उन्होंने अनेक छोटे व्यवसायियों के ग्राहक-प्रगतिवादियों और जनवादियों के दृष्टि से कहें तो हक- छीने हैं। हम जब छोटे थे तो मेलों में बच्चों को खिलाने के लिये विभिन्न प्रकार के झूले लगते थे। कभी कभार मोहल्ले में भी लोग ले आते थे। आज मॉल में बच्चों के आधुनिक खेल हैं और तय बात है कि उन्होंने कहीं न कहीं गरीब लोगों की रोजी छीनी है। हम यहां यह भी उल्लेख करना चाहेंगे कि तब और बच्चों के रहन सहन और पहनावे में भी अंतर था। हम अगर उन्हीं झूलों के लायक थे पर आज के बच्चे अधिक धन की फसल में पैदा हुए हैं। तब समाज में माता पिता के बच्चों को स्वयं घुमाने फिराने का फैशन आज की तरह नहीं  था। यह काम हम स्वयं ही कर लेते थे। एक तरह से साफ बात कहें तो तब और अब का समाज बदला हुआ है। यह समाज उदारीकरण की वजह से बदला या उसके बदलते हुए रूप के आभास से नीतियां पहले ही बन गयी। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि उदारीकरण में पूंजीपतियों का पेट भरने के लिये समाज का बौद्धिक वर्ग पहले ही लगा हुआ था।
                 अब खुदरा किराना व्यापार की बात कर लें। धन्य है वह लोग जो आज भी खुदरा किराना व्यापार कर रहे हैं क्योंकि जिस तरह अब नौकरियों के प्रति समाज का रुझान बढ़ा है उसमें नयी पीढ़ी के बहुत कम लोग इसे करना चाहते हैं।
          हम यहां शहरी किराना व्यापार की बात कर रहे हैं क्योंकि मॉल और संयुक्त व्यापार केंद्र शहरों में ही हैं। पहली बात तो यह है कि जो पुराने स्थापित किराने व्यापारी हैं उनकी नयी पीढ़ी यह काम करे तो उस पर हमें कुछ नहीं कहना पर आजकल जिसे देखो वही किराना व्यापार कर रहा है। देखा जाये तो किराना व्यापारी अधिक हैं और ग्राहक कम! हमारे एक मित्र ने आज से पंद्रह साल पहले महंगाई का करण इन खुदरा व्यापारियों की अधिक संख्या को बताया था। उसने कहा था कि यह सारे व्यापारी खाने पीने की चीजें खरीद लेते हैं। फिर वह सड़ जाती हैं तो अनेक दुकानें बंद हो जाती हैं या वह फैंक देते हैं। इनकी वजह से अनेक चीजों की मांग बढ़ी नज़र आती है पर होती नहीं है मगर उनके दाम बढ़ जाते हैं। उसका मानना था कि इस तरह अनेक कंपनियां कमा रही हैं पर छोटे दुकानदार अपनी पूंजी बरबाद कर बंद हो जाते हैं। इसका अन्वेषण हमने नहीं किया पर जब हम अनेक दुकानदारों के यहां वस्तुओं की मात्रा देखते हैं तो यह बात साफ लगता है कि कंपनियों का सामान अधिक होगा ग्राहक कम!
          हमारे देश में बेरोजगारी अधिक है। एक समय तो यह कहा जाने लगा था कि कि जो भी अपने घर से रूठता है वही किराने की दुकान खोल लेता है। इधर मॉल खुल गये हैं। ईमानदारी की बात करें तो हमें मॉल से खरीदना अब भी महंगा लगता है। एक बात यह भी मान लीजिये कि मॉल से खरीदने वाले लोगो की संख्या अब भी कम है। हमारे मार्ग में ही एक कंपनी का खेरिज भंडार पड़ता है जहां सब्जियां मिलती हैं पर वहां से कभी खरीदी नहीं क्योंकि ठेले वाले के मुकाबले वहां ताजी और सस्ती सब्जी मिलेगी इसमें संशय होता है। हमारे शहर में कम से कम दो कंपनियों के खेरिज भंडार खुले और बंद भी हो गये यह हमने देखा।
          भारतीय अर्थव्यवस्था के अंतद्वंद्वों और उनके संचालन की नीतियों की कमियों पर हम लिखने बैठें तो बहुत सारी सामग्री है पर उसे यहां लिखना प्रासंगिक है। हम इन नीतियों को जब देश के लाभ या हानि से जोड़कर देखते हैं तो लगता है कि यह चर्चा का विषय नहीं है। इस देश में दो देश सामने ही दिख रहे हैं-एक इंडिया दूसरा भारत! कभी कभी तो ऐसा लगता है कि हम एक भारतीय होकर इंडियन मामले में दखल दे रहे हैं। कुछ लोगों को यह मजाक लगे पर वह मॉल और मार्केट में खड़े होकर चिंत्तन करें तो यह बात साफ दिखाई देगी। वॉल मार्ट एक विदेशी कंपनी है उससे क्या डरें, देशी कंपनियों ने भला कौन छोड़ा है? सीधी बात कहें तो नवीन नीति से देश के किसानों या खुदरा व्यापारियों के बर्बाद होने की आशंका अपनी समझ से परे है। हम मान लें कि वह कंपनी लूटने आ रही है तो उसका मुकाबला यहां मौजूद देशी कंपनियों से ही होगा। मॉल के ग्राहक ही वॉल मार्ट में जायेंगे जो कि देशी कंपनियों के लिये चुनौती है। बड़े शहरों का हमें पता नहीं पर छोटे शहरों में हमने देखा है कि कम से पचास ग्राम चाय खरीदने कोई मॉल नहीं जाता। देश में रोज कमाकर खाने वाल गरीब बहुत हैं और उनका सहारा खुदारा व्यापारी हैं। गरीब रहेगा तो खुदरा व्यापारी भी रहेगा। वॉल मार्ट या गरीबी मिटाने नहीं आ रही भले ही ऐसा दावा किया जा रहा है।
            अपने पास अधिक लिखने की गुंजायश नहीं है क्योंकि पढ़ने वाले सीमित हैं। इतना जरूर कह सकते हैं कि यह बड़े लोगों का आपसी द्वंद्व है जो अंततः आमजन के हित का नारा लगाते हुए लड़ते हैं। आज के आधुनिक युग में शक्तिशाली प्रचारतंत्र के कारण आमजन भी इतना तो जान गया है कि उसके हित का नारा लगाना इन शक्तिशाली आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक समूहों के शिखर पुरुषों की मजबूरी है। इसलिये उनके आपसी द्वंद्वों को रुचि से देखता है।
----------
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

Friday, November 18, 2011

क्रिकेट और भ्रष्टाचार-हिन्दी हास्य व्यंग्य कविता (cricket and corruption-hindi hasya vyangya kavita or comdey satire poem)

हिन्दी साहित्य,समाज,मस्ती,मनोरंजन,शायरी
क्रिकेट में भ्रष्टाचार नहीं है,
फिक्सिंग    को जुआ कहना
कतई शिष्टाचार नहीं है।
कहें दीपक बापू
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के खैरख्वाह
बल्ला हाथ में लिये गेंद खेल रहे हैं,
बाज़ार सौदागरों से के इशारे पर
देश के मसलों पर नारे लगाकर
ज़माने मे रुतवे पेल रहे हैं
सुना है क्रिकेट मैच में हर बॉल होती है फिक्स,
कभी कभी चौके से भी सस्ता हो जाता है सिक्स,
अगर क्रिकेट देखना छोड़ दें देश के लोग
भागने लगेगा यहां से बेईमानी का रोग,
न विज्ञापन दिखेंगे,
न सस्ते उत्पाद महंगे बिकेंगे,
शराब के सौदागर
खेल का बाज़ार लगा रहे हैं,
मनोरंजन के नाम पर हवस जगा रहे हैं,
आम इंसानों ने अपना दिमाग दे दिया है
बेईमानों के हाथ,
उम्मीद जोड़े हैं कुसंतों के साथ,
दो नंबर के धंधे की चाहत सभी को है
फिर कहते हैं कि भ्रष्टाचार यहीं है।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

Saturday, November 12, 2011

दिल पर बात-हिन्दी शायरी (dil par baat, subject of heart-hindi shayri or poem)

इंसानों के सिर
अपनी दौलत, शौहरत और ओहदों से
ऊंचे हो जाते हैं,
धरती पर चलते हों भले ही
मगर उनके  दिमाग
आसमानों में खो जाते हैं।
कहें दीपक बापू
जब तक इंसान चल रहा है खुद
उससे दोस्ती करना ठीक है
हुक्मरानों की संगत में रहकर
हुक्म चलाने लगे जो
उनसे दूर रहना ही ठीक है
क्योंकि कितने भी दरियादिल हों वह
दिल पर बात आये तो
खूंखार हो जाते हैं।
--------
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Monday, October 31, 2011

घर और जिंदगी-हिंदी शायरी (ghar aur jindagi-hindi shayri)

आओ कुछ सपने देखें
अपने घर खुशियाँ आने की
गम तो पल पल मिल जाते हैं ज़माने में,
दूसरों को दर्द देना आसान है
वक्त लगता हैं बहुत किसी को हंसाने में,
कहैं दीपक बापू
कागज के घर बनाने में
गुजर जाती है जिंदगी
पल लगता है उसे जलाने में.

Sunday, October 16, 2011

गरीबी पर चिंत्तन-हिन्दी कविताएँ (garibi par chinttan or thought on powerty-hindi poem's or kaivtaen

अपने घर में सोने के भंडार
तुम भरवाते रहो,
गरीब इंसान की रोटी से
टुकड़ा टुकड़ा कर चुरवाते रहो,
जब तक बैठे हो महलों में
झौंपड़ियों को उजड़वाते रहो।
यह ज्यादा नहीं चलेगा,
ज़माने की भलाई करने के नाम पर
सिंहासनों पर बुत बनकर बैठे लोगों
सुनो जरा यह भी
किसी दिन इतिहास अपना रुख बदलेगा,
किसी दिन तुम्हारी शख्सियत का
काला चेहरा भी हो जायेगा दर्ज
तब तक भले ही अपने तारीफों के पुल
कागजों पर जुड़वाते रहो।
----------
वातानुकूलित कक्षों में बैठकर वह
देश से गरीबी हटाने के साथ
विकास दर बढ़ाने पर चिंत्तन करते हैं,
बहसों के बाद
कागजों पर दौलतमंदों के
घर भरने के लिये शब्द भरते हैं।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Friday, October 7, 2011

सब्जी और चंदा-हिन्दी हास्य कविता (sabji aur chanda-hindi hasya kavita)

समाज सेवक की पत्नी ने कहा
‘‘सुनते हो जी!
आज नौकर छुट्टी पर गया है
तुम थैला लेकर जाओ,
उसमें
आलू , टमाटर और धनिया
खरीद कर लाना
जब घर वापस आओ।’’
समाज सेवक ने कहा
‘‘अभी तक तुम्हारे मस्तिष्क का विकास हुआ नहीं है,
घर पर खाना जरूरी है क्या
मेरे साथ चलो जहां में जा रहा हूं
खाने का होटल भी वहीं है,
अगर किसी ने देख लिया
थैले में हम सब्जी भर भरने लगे हैं,
तब दानदाता भी
हमारे थैले में पैसे की जगह

 आलू  और टमाटर भरने लगेंगे
छवि के दम पर चल रहा है अपना धंधा
वरना कौन लोग अपने सगे हैं,
नौकर एक दिन की छुट्टी पर गया है
तुम हमें हमेशा के लिये
समाज के धंधे से रिटायर न कराओ।’’
--------------
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Friday, September 23, 2011

देश के बिक जाने का खौफ-हिन्दी कविता (desh ke bik jane ka or terrar of sale of country-hindi kavita or poem)

यह खौफ क्यों सताता है तुमको
कि देश बिक जायेगा
कमबख्त, पहले लुटेरे
खुद लूटने आये इस देश का खजाना,
देश फिर भी फलाफूला
हो गये वह अपने देश रवाना,
अब उनके दलाल कमाकर दलाली
जमा कर रहे लुटेरों के घर दौलत,
फिर उधार उसे उधार लेकर आते हैं,
ब्याज भी यहीं से कमाते हैं
अपने बनकर पा रहे वफादार जैसी शौहरत
सब मिट जायेंगे एक दिन
देश फिर भी अपना कमाकर खायेगा
------------
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Monday, September 12, 2011

हिन्दी दिवस पर कविता और लघु व्यंग्य (hindi diwas or hindi divas par kavita aur laghukatha)

        एक आयोजक ने अपने कवि मित्र को अपनी संस्था में हिन्दी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम का आमंत्रण देते हुए कहा-‘यार, तुम कल 12 बजे आना। बढ़िया कार्यकम हैं। कार्यक्रम के बाद नाश्ते वगैरह का आयोजन किया गया है। कार्यक्रम में काव्य पाठ भी होगा तुम उसे सुन सकते हों!
     कवि मित्र ने कहा-‘‘तुम कहो तो हम कविता भी कर देंगे।’
      आयोजक ने कहा-‘‘देखो, यह कार्यक्रम मेरे पैसे से नहीं हो रहा है। जिन लोगों ने पैसे दिये हैं वह कविता करेंगे। सभी बड़े लोग हैं और उनको इसी दिन अपनी हिन्दी में भड़ास निकालने का अवसर मिलता है। तुम तो बस, उपस्थिति देने आना जिससे मेरी भी इज्जत बढ़ेगी।’’
        कवि मित्र ने कहा-‘‘इससे क्या? तुम एक दो कविता सुनाने का अवसर हमें भी दो।’
मित्र ने कहा-‘‘तुम तो मेरी उन बड़े लोगों से दुश्मनी कराओगे। तुम मंच पर आकर शुद्ध हिन्दी में काव्य पाठ करोगे, उसमें जोरदार सुर भरोगे। वह बड़े लोग जो अपनी भड़ास हिन्दी में निकालने के लिये यही दिन पाते हैं, अपनी हंग्रेजी यानि आधी हिन्दी और अंग्रेजी में अपनी बात कहेंगे और बीच में तुम्हारी कविता सुन ली तो कुंठित हो जायेंगे। इसलिये तुम्हें मंच पर लाने का खतरा मैं नहीं उठा सकता।’’
      कवि मित्र ने कहा-‘‘मैं वहां नहीं आऊंगा। तुम फुरसत पा लो तो रात को मेरे घर आ जाना। मैं भी हिन्दी दिवस पर कवितायें सुनाने के लिये आदमी ढूंढ रहा हूं पर कोई मिल नहीं रहा सभी हिन्दी दिवस में जा रहे हैं। अनेक लोग तो ऐसे हैं जिनको चार चार जगह से निमंत्रण मिले हैं। वह जाने से पहले हर जगह मिलने वाले नाश्ते की सामग्री पता कर रहे हैं। जहां अच्छा होगा वहंी जायेंगे। अलबत्ता तुम अपने यहां मिलने वाले नाश्ते की चीजें बता दो मैं उन हिन्दी प्रेमियों को बता दूंगा जो इस दिन ऐसे कार्यक्रम ढूंढते हैं।
मित्र खिसियाकर रह गया।
हिन्दी दिवस पर प्रस्तुत एक क्षणिका
----------------
उन्होंने अपने संस्थान में
हिन्दी धूमधाम से मनाया,
सभी वक्ताओं के भाषणों में
कहीं अंग्रेजी शब्द ठसे थे
तो किसी ने अंग्रेजी में ही
हिन्दी का महत्व बताया।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Friday, September 2, 2011

भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार-हिन्दी हास्य कवितायें (bhrashtachar aur bhrashtachar-hindi hasya kavita corruption and corrupted-hindi comic poem

वह ईमानदार हैं
इसलिये बिना दाम के
ईमान नहीं बेचते
मगर नेक हैं
मोलभाव नहीं करते।
................
एक आदमी ने दूसरे से पूछा
‘‘यार, हमारे जिम्मे जो काम हैं
उसे करने के लिये
हम लोगों से पैसा लेते हैं
कहीं इसी को तो भ्रष्टाचार नहीं कहा जाता है,
अगर यह सच है
छोड़ देते हैं यह काम
भ्रष्टाचारी कहलाना अब सहा नहीं जाता है।’’
दूसरे ने कहा
‘किस पागल ने हमारे काम को भ्रष्टाचार कहा है
काम के बदले दाम लेना
व्यापार कहलाता है,
जिसे नहीं मिलता वह
अपनी ईमानदारी को खुद ही सहलाता है,
वैसे मुझे नहीं मालुम भ्रष्टाचार किसे कहा जाता है,
पर लगता है कि कुछ लोग
बिना काम किये
पैसा लेते हैं,
फिर मुंह फेर लेते हैं,
ऐसे लोग मुफ्तखोर है या भिखारी
शायद दोनों को एक संबोधन देने के लिये
भ्रष्टाचारी कहकर पुकारा जाता है।’’
-----------
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Sunday, August 21, 2011

ईमानदारी की बही-हिन्दी हास्य कविता (imandari ki bahi or dayri of honesty-hindi hasya kavita or comic poem)

भ्रष्टाचारी ने ईमानदार को फटकारा
‘‘क्या पुराने जन्म के पापों का फल पा रहे हो,
बिना ऊपरी कमाई के जीवन गंवा रहे हो,
अरे
इसी जन्म में ही कोई अच्छा काम करते,
दान दक्षिणा  दूसरों को देकर
अपनी जेब भरने का काम भी करते,
लोग मुझे तुम्हारा दोस्त कहकर शरमाते हैं,
तुम्हारे बुरे हालात सभी जगह बताते हैं,
सच कहता हूं
तुम पर बहुत तरस आता है।’’
ईमानदार ने कहा
‘‘सच कहता हूं इसमें मेरा कोई दोष नहीं है,
घर में भी कोई इस बात पर कम रोष नहीं है,
जगह ऐसी मिली है
जहां कोई पैसा देने नहीं आता,
बस फाईलों का ढेर सामने बैठकर सताता,
ठोकपीटकर बनाया किस्मत ने ईमानदार,
वरना दौलत का बन जाता इजारेदार,
एक बात तुम्हारी बात सही है,
पुराने जन्म के पापों का फल है
अपनी ईमानदारी की बनी बही है,
यही तर्क अपनी दुर्भाग्य का समझ में आता है।
----------
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Friday, August 12, 2011

आम आदमी की जाग्रति के बिना कोई आंदोलन सफल नहीं हो सकता -हिन्दी लेख (anna hazare ka aandolan aur aam aadmi-hindi lekh)

                  अन्ना हजारे का 16 अगस्त से महानायक के रूप में राष्ट के दृश्य पटल पर पुनः अवतरण हो रहा है। देश के समस्थ्त प्रचार माध्यम इस महानायक के महिमामंडल में लगे हुए हैं क्योंकि उनके आंदोलन के दौरान प्रचार प्रबंधकों ऐसी विषय सामग्री मिलेगी जो उनके प्रकाशन तथा प्रसारणों वालेक विज्ञापन के साथ काम आयेगी। उनके कई घंटे इस दौरान उनको विज्ञापन का संग्रह कर कमाई करने का अवसर देंगे। सच बात तो यह है कि हमारे देश के प्रचार माध्यमों की स्थापना में लक्ष्य विज्ञापनों को पाना ही होता है, मगर अभिव्यक्ति के झंडाबरदार होने की छवि की वजह से प्रचार प्रबंधक कुछ ऐसी विषय सामग्री भी प्रकाशित और प्रसारित करते हैं जिससे माध्यमों का पत्रकारिता संस्थान होने का प्रमाण दिख सके। अगर ऐसा न होता तो टीवी चैनल को अपने प्रसारणों में अब निर्धारित समाचार, विश्लेषण तथा चर्चा की न्यूनतम मात्रा होने का प्रचार नहीं करना पड़ता। उनको अपने प्रचार यह सािबत करना पड़ता है कि वह विज्ञापन चैनल नहीं बल्कि समाचार चैनल चलाते हैं कि और कम से कम उनके यहां इतने समाचार तो प्रसारित होते ही हैं।
              इसमें कोई संदेह नहीं है कि अन्ना हजारे और बाबा रामदेव व्यक्तित्व और कृतित्व की दृष्टि से सात्विक प्रवृत्ति के है। अन्ना हजारे अपनी धवल तो बाबा रामदेव अपनी धार्मिक छवि के कारण देश के जनमानस में निर्विवाद व्यक्तित्व के स्वामी हैं। दोनों के व्यक्तित्व पर कोई आक्षेप नहीं है ऐसे में उनका व्यक्तित्व किसी भी ऐसे मुद्दे को निरंतर बनाये रखने में अत्यंत सहायक है जो जनमानस से जुड़ा हो। इस समय भ्रष्टाचार का मुद्दा ज्वलंत बन गया है और इससे जनमानस प्रभावित भी है और समाचार के साथ विश्लेषण विज्ञापनों के साथ निरंतर प्रचार किया जा रहा है। इसके बाद हम टीवी चैनल और समाचार पत्रों की कार्यप्रणाली पर भी विचार करते हैं  जिसमें उनको जनमानस के बीच अपनी छवि बनाये रखना होती है। उनको रोज नवीनता चाहिए। नये चेहरे, नये विषय और नये रोमांच आज के प्रचार माध्यमों को रोज जुटाने हैं। ऐसे में कभी कभी तो यह लगता है कि पूर्वनियोजित समाचार बन रहे हैं। इसका संदेह इसलिये होता है कि हमने देखा है हमारे प्रचार प्रबंधकों के आदर्श पश्चिमी गोरे राष्ट्र हैं जहां ऐसी भी खबरों सुनने को मिलती हैं कि सनसनी फैलाने के लिये प्रचार कर्मियों ने हत्यायें तक करा डालीं। हमारे देश के लोगों में   यह दुस्साहस करने की पशुवृत्ति नहीं है। यह अच्छी बात है पर अहिंसक योजनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। देश में जब पुराने चेहरों से उकताहट महसूस की जाने लगी तो उसी समय बाबा रामदेव और अन्ना हजारे का अपने मूल सक्रिय क्षेत्रों से हटकर भ्रष्टाचार विरोधी देतवा के रूप में अवतरण हुआ। बाबा रामदेव योग साधना सिखाते हुए पूरे विश्व में लोकप्रिय हो गये थे। उनके शिविरों के कार्यक्रमों का टीवी चैनलों पर प्रसारण हुआ तो समाचार पत्रों में भी खूब चर्चा हुई। इधर अन्ना हजारे भी अपने महाराष्ट्र प्रदेश में कुछ आंदोलनों से चर्चित होने के बाद फिर कहीं खोये रहे। ऐसे में अचानक दोनों ही भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के अगुआ बने या बनाये गये इसको लेकर सवाल उठता है। ऐसा लगता है कि इन दोनों के चेहरे का उपयोग शयद इसलिये हो रहा है ताकि भारत की छवि विश्व में धवल रहे जो कि कथित रूप से स्विस बैंकों में देश के लोगों के काला धन जमाने होने के कारण धूमिल हो रही है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश के आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक पुरुषों ने विश्व में अपनी छवि बनायी है पर लगता है कि उनको अन्य देशों के समक्क्षों के सामने अपने देश के भ्रष्ट आचरण के कारण शार्मिंदा होना पड़ता है। संभव है उनको मुर्दाकौम का शीर्षस्थ होने का ताना मिलता हो। इसलिये एक आंदोलन की आवश्यकता उनको अनुभव हुई जिससे यहां की जीवंत छवि बने और उनका सम्मान हो। ऐसे में आंदोलनों को अप्रत्यक्ष रूप से मदद देने से एक लाभ उनको तो यह होता है कि विश्व में उनकी छवि धवल होती है तो वही दूसरा लाभ यह है कि जनमानस मनोंरजन और आशा के दौर में व्यस्त रहता है और शिखर पुरुषों को अपने नियंत्रित समाज से अचानक विद्रोह की आशंका नहीं रहती। फिर प्रचार माध्यम तो उनके हाथ में तो उसमें विज्ञापित उत्पादों के भी वही निर्माता है। ऐसे में उनका विनिवेश कभी खाली नहीं जाता।
          बाबा रामदेव और अन्ना हजारे जनमानस के नायक हैं पर कहीं न कहीं उनके इर्दगिर्द ऐसे लोगों का जमावड़ा है जो पेशेवर अभियानकर्ता हैं और उनसे निष्काम भाव से काम करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। यही कारण है कि भले अन्ना साहेब और स्वामी रामदेव निच्छल भाव के हैं पर अपने सलाहकारों के कारण अनेक बार अपने अभियानों के संचालन के दौरान वैचरिक दृढ़ता का प्रदर्शन नहीं कर पाते। उनके अभियानों के दौरान वैचारिक लड़खड़ाहट की अनुभति होती है। मुख्य बात यह है कि अनेक बार ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं दोनों के पेशेवर अभियानकर्ता सलाहकार देश के शिखर पुरुषों से अप्रत्यक्ष रूप से संचालित हैं। इनमें एक तो ऐसे हैं जो कभी नक्सलियों के समर्थन में आते हैं तो्र कभी कभी कश्मीर के उग्रतत्वों के साथ खड़े दिखते हैं। भारतीय धर्म पर व्यंग्यबाण कसते हैं। ऐसा लगता है कि अन्ना हजारे और बाबा रामदेव की धवल छवि की आड़ में कोई ऐसा ही समूह सक्रिय है जो ऐसे अभियानों को पेशेवर अंदाज में चला रहा है। टीवी पर एक संगीत कार्यक्रम में अन्ना साहेब की उपस्थित और राखियों पर छपे चेहरे से यह बात साफ लगती है कि कहीं न कहीं बाज़ार को भी उनकी जरूरत है। ऐसे में 16 अगस्त से चलने वाले अन्ना साहेब के आंदोलन के परिणामों की प्रतीक्षा करने के अलावा अन्य कोई निष्कर्ष करना जल्दबाजी है पर बाज़ार और प्रचार प्रबंधकों की इसमें सक्रिय होना फिलहाल दिख रहा है जिनकी शक्ति के चलते भ्रष्टाचार खत्म होना अस्वाभाविक बात लगती है।
            आखिरी बात यह है कि भ्रष्टाचार के लिये कानून पहले से ही बने हुए हैं। मुख्य बात यह है कि कानून लागू करने वाली व्यवस्था कैसी हो। दूसरी बात यह है कि समाज स्वयं लड़ने को तैयार नहीं है। क्या आपने कभी सुना है कि कोई अपने रिश्तेदार या मित्र का इसलिये बहिष्कार करता है कि उस पर भ्रष्टाचार का संदेह है।
         यकीनन नहीं! दूसरी बात यह है कि अगर हम गौर करें तो हमारे देश में कानूनों की संख्या इतनी अधिक है कि सामान्य आदमी की समझ में ही नहीं आता कि उसके पक्ष में कौनसी धारा है। बिना जागरुकता के भ्रष्टाचार मिट नहीं सकता और यह तभी संभव है कि जब संक्षिप्त कानून हों जिनको आम आदमी समझ सके। आम आदमी को लगता है कानून का विषय उसके लिये कठिन है इसलिये वह व्यवस्था को केवल शक्ति का प्रतीक मानते हुए उदासीन रहता है। बार बार यह दावा किया जाता है कि देश का विकास आखिरी आदमी तक पहुंचना चाहिए पर हमारा मानना है कि यह तभी संभव है जब देश में कानून इतना सरल और संक्षिप्त बने जिसे आम आदमी उसे समझ सके। सच तो यह है कि अपने को कम जानकार मानने की वजह से कोई आम आदमी भ्रष्टाचार से लड़ना नहीं चाहता। भ्रष्टाचार होने का एक कारण यह भी है कि समाज ने ही इसे मान्यता दी है और भ्रष्ट लोगों को हेय दृष्टि से देखने की आदत नहीं डाली। एक आम लेखक के रूप में हम देश के लिये हमेशा कामना करते हैं कि यहां सभी लोग खुशहाल रहें इसलिये जब कोई बड़ी हलचल होती है तो उस पर नज़र जाती है। हम अपेक्षा करते हैं कि अच्छा हो पर जब चिंतन करते हैं तो लगता है कि अभी दिल्ली दूर है। फिर भी आशायें जिंदा रखते हैं क्योंकि जिंदा रहने का सबसे अच्छा तरीका भी यही है।
------------------
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Friday, August 5, 2011

शान-ओ-शौकत-हिन्दी शायरी (shan-shaukat-hindi shayari)

ताउम्र भरते रहे तिजोरियाँ,
अब संभालने में गंवा रहे
क्योंकि शहर में हो रही चोरियाँ।
अपनी अमीरी पर लोग बेकार इतराते हैं,
उनकी शान-ओ-शौकत पर
उनके कारिंदे भी इठलाते हैं,
कहलाए साहूकार
न रात को नींद
न दिन में चैन
ढोते रहे सिर पर सोने के सिक्कों की बोरियाँ।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Tuesday, August 2, 2011

अपना दर्द-हिन्दी शायरी (apna dard-hindi shayari)

अपना दर्द बयान करते करते
हमारी जुबां थक गयी
पर पता नहीं
गले तक मुसीबत में डूबे इस जहां में
किसी ने सुना कि नहीं,
लोगों के कान खुले दिखते हैं
मगर अपनी बात आप ही सुनते हैं
दूसरे का स्वर पहचानते हों
यह लगता नहीं,
हो सकता है
हमारी आवाज ही बेअसर हो कहीं
या जुबां लफ्ज असरदार बोलती नहीं।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Monday, July 18, 2011

इंसानियत की वर्दी मेंशैतान-हिन्दी शायरी (insaniyat ki vardi mein shaitan-hindi shayari)

कोयले की दलाली में ही
हाथ होते हैं काले,
वह तो सोने के दलाल होकर भी
काली नीयत हैं दिल में पाले,
मालिक होकर भी खुश होना
उनका ख्वाब नहीं है।
पेट में रोटी होने पर भी
पेटियां सोने से भरते रहने का सपना
जिंदा रखते हैं जो लोग
उन पर दौलत के अलावा
किसी का रुआब नहीं है।
----------------------------
सभी का जमीर गहरी नींद सो गया है,
इसलिये यकीन अब महंगा हो गया है।
भरोसेमंदों ही लूटने लगे हैं ज़माने के घर
इंसानियत की वर्दी में शैतान खो गया है।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Monday, July 11, 2011

दुर्घटना में कमीशन का डंका-हिन्दी हास्य कविताएँ (durghatna mein commistion-hindi hasya kavitaen)

घायल का दर्द हो
चाहे टूटे आशिक का गम हो
बाज़ार के लिए कमाए का जरिया है,
लोगों के आँखों के सामने
पर्दे पर चलते नज़ारे
मुफ्त में नहीं चलते,
चीजों को खरीदने के
मशविरों के चिराग भी साथ जलते,
दौलतमंदों के घर की खुशियां हों
चाहे नटों के जन्मदिन
बन जाता है
हर समय कमाई का दरिया।
----------------
टीवी चैनल का संवाददाता
ज़ोर से चिल्लाया
"संपादक जी
बड़ी जोरदार रेल दुर्घटना हुई है
कई लोगों के मरने की आशंका है।"
सुनते ही संपादक ने खुश होकर
संवाददाता को आगे की खबर
थोड़ी देर बाद देने को कहा
और फिर अपने प्रबंधक से कहा
"जनाब, अपने विज्ञापन विभाग से कहें,
अगले 48 घंटे तक सजग रहें,
रेल दुर्घटना में जहां मरने के दर्द भी होंगे,
तो संजोग से बचे कुछ खुश मर्द भी होंगे,
इसलिए अपना समय अच्छा पास होगा
बजने वाला आपकी कमीशन का डंका है।
-------------------
संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   'भारतदीप',ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Tuesday, July 5, 2011

लोग अदायें बदल देते हैं-हिन्दी शायरी (log adaen badal dete hain-hindi shayari)

खौफ आसमान से बिजली गिरने का नहीं है,
डर जमीन के धसकने का भी नहीं है,
नहीं घबड़ाते सांप के जहर से
फिर भी दिल घबड़ाता है
इस बात से
रोज मिलने वाले इंसानों में
कोई शैतान तो नहीं है।
------------
लोग नहीं बदलते चेहरा
बस, बयान बदल देते हैं,
बेशर्मी अब बुरी आदत नहीं कहलाती
कुछ मजबूरी
कुछ व्यापार बन गयी हैं बेदर्दी
लोग हालत बदलने के बहाने
अपनी अदायें बदल देते हैं।
---------
संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   'भारतदीप',ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Monday, June 27, 2011

चोर और ज्योतिषी-हिन्दी हास्य कविता (chor aur jyotishi-hindi hasya kavita)

चोर पहुंचा और एक हजार का नोट
हाथ में देते हुए बोला
‘‘महाराज,
मेरा हाथ देकर बताओ
कौनसा धंधा करूं, यह समझाओ,
चोरी या जेब काटने का,
दिन बुरे चल रहे हैं
कब आ जाये दिन धूल चाटने का,
अनेक जगह सोने की चोरी की
पता चला सभी जगह नकली मिला माल,
खाली जा रहा है पूरा साल,
आपको देखा तो
भविष्य पूछने के लिये
एक हजार का नोट किसी की जेब काटकर आया,
किसी का धन चुरा सकते हैं
पर अक्ल नहीं
अब यह आपका काम देखकर समझ पाया।’’

ज्योतिषी ने नोट को घुमा फिराकर देखा
फिर उसे वापस थमाते हुए कहा
‘‘बेटा,
तुम्हारा हाथ देखने की जरूरत नहीं,
जन्मपत्री भी मत दिखाना कहीं,
तुम्हारी किस्मत अब साथ छोड़ रही है
असलियत की तरफ मोड़ रही है,
यह नोट भी नकली है,
पर जिंदगी तुम्हारी असली है,
इससे अच्छा है तुम कहीं
ठेला चलाने का धंधा प्रारंभ करो,
न अब बुरे कर्म का दंभ भरो,
रकम छोटी आयेगी,
पर सच को साथ लायेगी,
अब तुम जाओ,
अभी तक लोगों से लिया पैसा
पर तुम्हें मुफ्त में भविष्य बताया।
-----------
संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   'भारतदीप',ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Tuesday, June 21, 2011

तख्त के लिये मची जंग-हिन्दी कविता(takhta ke liye jung-hindi kavita

तख्त के लिये मची है चारों तरफ जंग,
इंसानों के मुंह खुले पर दिमाग हैं तंग।
सजे हुए सब चेहरे, ओढ़े चमकीले कपड़े
मगर सभी की नीयत का काला है रंग।
भरोसा के नाम, मिलता तोहफा धोखे का
सच की लय को भ्रम ने किया है भंग।
कहें दीपक बापू अंधों के आगे क्या रोना
समाज बड़ा है, पर बंधे है उसके सारे अंग।
संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   'भारतदीप',ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Monday, June 13, 2011

हास्य कविता-धर्म के धंधे में कोई कर नहीं है (hasya kavita-dharm ke dhandhe mein tax nahin hai)

चेले ने कहा गुरु से
‘गुरुजी,
अब तो आपकी सेवा में बहुत सारे
चेले आ गये हैं,
सभी आपके भक्तों को भा गये हैं,
मुझे अब समाज सेवा के लिये
आश्रम से बाहर जाने की
सहमति प्रदान करे,
किसी बड़ी संस्था में पद लेकर
आपका नाम रौशन करूं,
अनुमति प्रदान करें।’
सुनकर गुरु जी बोले
‘सीधी बात क्यों नहीं कहता
कि अब अपनी धार्मिक छवि को
नकदी में भुनाना चाहता है,
माया के लोभ में
ज्ञान को भुलाना चाहता है,
मगर भईये!
समाज सेवा में राजनीति चलती है,
बाहर लगते हैं जनकल्याण के नारे
अंदर कमीशन पाने की नीयत पलती है,
तुझे लग रहा है कि यह रास्ता सरल है,
मगर वहां बदनामी का खतरा हर पल है,
फिर तेरा अनुभव तो पूजा पाठ का है
राजनीति में एक तरह से तू तो उल्लू काठ का है,
वहां पहले से ही मौजूद बड़े बड़े धुरंधर हैं,
कुछ बाहर पेल रहे हैं डंड तो कुछ अंदर हैं,
उनकी आपस में तयशुदा होती जंग,
देखती है जनता बड़े चाव से
भले ही हालातों से तंग,
फिर तू समाज सेवा के नाम पर
कोई आंदोलन चलायेगा,
डंडे की मार खाकर यहीं लौट आयेगा,
भले ही मेरी वजह से
तेरे को कई समाज सेवक मानते हैं,
पर उनके इलाके में अगर तू घुसा
मार खायेगा
यह हम जानते हैं,
वहां जाकर नाकामी तेरे हाथ आयेगी,
यह बदनामी मेरे नाम के साथ भी जायेगी,
इसलिये अच्छा है
कहंी दूसरी जगह आश्रम बनाकर
तू भी स्वामी बन जा,
धर्म के धंधे में एक खंबे की तरह तन जा,
यहां डंडे का डर नहीं है,
कमाई पर कोई कर नहीं है,
अभी तक मैं अपना खजाना अकेला भरता था
अब अलग होकर दोनों ही
अपनी तिजोरी दुगुनी गति से भरें।’
-----------
संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   'भारतदीप',ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Sunday, June 5, 2011

दूसरों के दर्द से कब तक छिपोगे-हिन्दी साहित्यक कवितायें (doosron ke dard se kab tak chhipaoge-hindi litgerature poem)

तुम सुनना नहीं चाहते, पर तुम्हारे कान बंद करने से
जमाने के लोगों की दर्दीली आवाज बंद नहीं हो जायेगी,
देखना नहीं चाहते किसी की पीड़ा, पर आंखें बंद करने से
लोगों के जिस्म की भूख, केवल वादों से नहीं मिट जायेगी,
 चाहे जब छिप जाओ तुम वातानुकूलित कमरों में
बाहर की आग और आंधी दीवारें उनको भी कभी ढायेगी।
------------
न खेलो इस ज़माने से
लोगों को खिलौना मानकर,
दूसरों के दर्द को
अनदेखा न करो अच्छी तरह जानकर।
अपने हाथ से किये कसूरों  पर
चाहे कितनी सफाई देते रहो
कोई यकीन नहीं करेगा,
भले ही डर से कोई
सामने नहीं कहेगा,
कभी न कभी न उठेगा
तुम्हारे किये कसूरों का तूफान
गिरा देगा तुम्हारे महल
तब रहो आराम से चादर तानकर।
------------
संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   'भारतदीप',ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Thursday, May 26, 2011

प्रलय का दिन-हिन्दी व्यंग्य लेख (pralaya ka din-hindi hasya vyangya

     अमेरिका के एक तथाकथित ज्योतिषी ने 21 मई 2011 को प्रलय का दिन घोषित किया, मगर हुआ कुछ नहीं। विशेषज्ञों ने पहले ही बता दिया था कि कोई भी ऐसी अंतरिक्षीय आपदा की संभावना नहीं है जिससे धरती नष्ट हो जाये। इसके बावजूद लोगो को भगवान की प्राार्थना के लिये प्रेरित किया गया। बाज़ार और उसके प्रचार माध्यम लोगों को इस तरह के अंधविश्वास से दूर होने की सलाह देते रहे जो कि उनके उस व्यवसायिक कौशल का परिणाम था जिसमें एक फालतु खबर तैयार कर उस चर्चा या बहस प्रस्तुति के दौरान अपने विज्ञापनों के लिये विषय सामग्री जुटाई जाती है।
     इस धरती पर अक्सर कुछ ऐसे लोग प्रकट होते हैं जो इसक नष्ट होने की भविष्यवाणी करते हैं। तारीखें बताते हैं पर उस दिन कुछ नहीं हेाता। इन भविष्यवाणियों में हमेशा ही अंतरिक्ष से आपदा प्रकट होने का संकेत होता है क्योंकि धरती की आपदाओं से मनुष्य जाति पूरी तरह विलुप्त होने का अंदेशा नहंी होता न ही वह प्रलय की परिधि में आती हैं। जहां तक धरती पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं की बात है तो वह तो आती रहती हैं क्योकि वह स्वयं ही उसका कारण बनती है। इस संसार में सांस लेने वाले लोग अपने जीवन में अनेक आपदाओं को झेल चुके होते हैं या फिर स्वयं दूसरी जगह देखकर भूल जाते हैं।
     यह संयोग ही है कि पश्चिम में रहने वाले एक फ्लाप ज्योतिषी ने यह भविष्यवाणी की। वह पहले ही एक ऐसी भविष्यवाणी कर चुका था जो प्रकट नहीं हुई इसकेे बावजूद भारतीय प्रचार माध्यम उसकी सनसनी को भुनाते रहे। दरअसल भारत में मई का महीना संकट का ही होता है। सूर्यनारायण सीधी आंखों से भारत की तरफ ताकते हुए ऐसे लगते हैं जैसे कि नाराज हों। वायुदेवता उनके अनुयायी होने की वजह से आग साथ लेकर निकलते हैं। जलदेवता सिकुड़ने लगते हैं जैसे कि विश्राम कर रहे हों। ऐसे में मनुष्य, पशु, पक्षी और जलवायु का प्रभावित होना स्वाभाविक है। एक दूसरी मुश्किल भी है कि इसी महीने में आंधी अक्सर चलती है। जमीन सूखी होने क कारण धूल इस कदर उठती है कि राहों पर चलना कठिन हो जाता है। यह संयोग ही है कि 21 मई 2011 को हमारे देश में विकट आधंी आई। ऐसी आंधी ने उत्तर भारत के अनेक शहरों का जीवन अस्तव्यस्त कर दिया। जमकर बरसात भी हुई। एक समय तो ऐसा लग रहा था कि आंधी कहीं अपने वेग से सीमेंट, ईंट और लोहे से बने मकान न पास में दबाकर चली जाये।
     ऐसे अवसर पर लोगों को 21 मई को प्रलय के दिन की भविष्यवाणी याद आई। आंधी, बरसात और अंधेरे से जूझ चुके लोग जब सुबह आपस में मिले तो प्रलय के दिन की भविष्यवाणी को याद कर रहे थे। एक ने हमसे कहा कि ‘ः21 मई को प्रलय के दिन की भविष्यवाणी सही निकली।
     हमने कहा कि ‘क्या हम स्वर्ग या नरक में मिल रहे हैं।’
     वह बोले-‘क्या मतलब?
     हमने कहा कि -‘प्रलय का मतलब होता है कि धरती पर जीवन का नष्ट होना। जहां तक हमारी जानकारी है उस समय धरती जलमग्न हो जाती है। जीवन की जगह जल अपना शासन करता है। अगर हम मान लें कि प्रलय की भविष्यवाणी सत्य हुई है तो इसका मतलब यह है कि हम धरती से लापता होकर कहीं दूसरी जगह मिल रहे हैं। वह दूसरी जगह स्वर्ग या नरक ही हो सकती है। जहां तक हमारे ज्ञान चक्षु देखते और कर्ण सुनते हैं वहां तक धरती के बाद यह दो ही स्थान है। जहां मनुष्य आता जाता है।
वह बोले-‘इसका मतलब तो हम नरक में मिल रहे हैं। देखो, हमारे घर की बिजली सारी रात गुल रही। बरसात की वजह से हमारी छत के एक भाग में छेद होने के कारण वहां से पानी टपकता रहा। सुबह पानी नहीं भरा। भरी दोपहर में कूलर की बात तो दूर पंखे की हवा तक नसीब नहीं हुई। हमारे लिये तो प्रलय जैसा समय था।’’
हमने कहा-‘पल में प्रलय होती है पर वह पल की नहीं होती बल्कि वह धरती से जीवन को ही समेट कर अपनी भूख शांत करती है। यह तो संकट आते जाते हैं इनसे क्या घबड़ाना?’’
        वह बोले-‘वह तो समेट कर ही चली जाती । गनीमत है कि हम सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करते रहे। उन्होंने हमारी सुन ली तो बच गये। हमारी आस्था में बहुत शक्ति है जिसके कारण हम बच गये।’’
हमने हंसकर कहा-‘‘यहां आकर हमारे ज्ञानचक्षु अपना काम बंद कर देते हैं। आप कह रहे हैं कि आपकी आस्था में शक्ति है तो यकीनन होगी। हम तो यह कह रहे हैं कि आपकी आस्था में महान शक्ति है जो आप स्वयं ही नहीं सारा संसार बच गया।’’
      आज तक अनेक लोग आस्था और अंधविश्वास में अंतर नहीं कर पाये। यही कारण है कि ज्योतिष और भविष्यवाणी के आधार पर कोई भी बयान देकर अपना नाम कर लेता है। कभी कभी तो लगता है कि संसार में प्रलय की बात सुनकर लोग दुःखी कम खुश अधिक होते हैं। कम से कम अपने देश में तो यही लगता है। हमारे देश में अध्यात्मिक ज्ञान का विशाल भंडार है। यही कारण है कि हमारे लोग जानते हैं कि यहां आदमी अकेला आता और जाता है। लोग इस सच से इतना घबड़ाते हैं कि अपनी देह के नश्वर होने की बात को भुलाये ही रहते हैं। लोग इस बात को जानते हैं कि मृत्यु अवश्यंभावी है। अपनी मृत्यु के भय से सभी सहमे रहते है क्योंकि वह अकेला ही ले जाती है और सारा संसार यहीं धरा रहा जाता है। बस यहीं आकर हमारे देश के लोग त्रस्त हो जाते हैं कि उनके साथ कुछ नहीं जाता। हर कोई संसार का सुख अकेले भोगना चाहता है पर इससे भी किसी को खुशी नहीं होती। असली खुशी लोगों को तब मिलती है जब दूसरा के कष्ट हो। अपने पास किसी वस्तु होने का सुख तभी लोगों को मिलता है जब दूसरे के पास व न हो। लोगों की मनोवृत्ति यह है कि अगर अपनी एक आंख फूटने की कीमत पर दूसरे की दोनों फूटती हैं तो वह तैयार हो जाते हैं। प्रलय की बात उनको प्रसन्नता देती है क्योंकि यह संसार ही उनके साथ नष्ट होने वाला होता है। मतलब वह संसार के उन अंतिम लोगों में शामिल होना चाहते हैं जिनके भोग विलास के बाद यहां कुछ भी शेष नहीं रह जाता। उनको यह खुशी होती है कि यह संसार उनके बाद नहीं रहेगा। अपना अकेले जाना नहीं होगा बल्कि संगीसाथी भी साथ ही चलेंगे। इसलिये प्रलय के दिन को अपने सामने साकार होते देखना उनको सुखद अनुभूति हो सकता है।
        यही कारण है कि प्रलय की सनसनी भारत में बिकना कोई बड़ी बात नहीं है। सच बात तो यह है कि बाज़ार के सौदागर इस समय सारे संसार में दोनों हाथों से पैसा बटोर रहे हैं। वह चाहते हैं कि दुनियां के सारे आम मनुष्य फालतु की बातों में व्यस्त रहे। कहीं मनोरंजन तो कहीं सनसनी फैलाने के लिये फैलाने के लिये बकायत प्रायोजित साधनों का-यथा टीवी, फिल्म, समाचार पत्र पत्रिकायें तथा रेडियो-निर्माण किया गया है।
     कुछ लोगों ने प्रचार माध्यमों में सवाल किया था कि आखिर प्रलय के दिन का प्रचार करने वालों को पोस्टर आदि के लिये पैसा किसने दिया था। यह प्रश्न हमारे ब्लागों से उठायी गयी विचाराधारा से उपजा है। आतंकवाद को हमने ही अपने ब्लाग पर एक व्यापार कहा था। कुछ बुद्धिमान लोग अब उसे पढ़कर कह रहे हैं। पैसे के खेल में भीे कमीशन का खेल सभी जगह है। प्रलय के दिन के प्रचारकों को पैसा इसलिये ही मिला होगा कि दस पंद्रह दिन तक लोगों को व्यस्त रखो। इस पर भारत में मई का महीना तो वैसे ही प्रलय का छोटा भाई लगता है सो सनसनी तो फैलनी थी। बहरहाल अब कुछ दिन में बरसात का आगमन भी होना है। उस समय भी बाढ़ आदि का प्रकोप रहता है। ऐसे में अगर किसी को नाम करना हो तो वह जून जुलाई अगरस्त और सितंबर में कोई दिन प्रलय का घोषित कर सकता है। बाज़ार में वह भी बिक जायेगा।
संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   'भारतदीप',ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Tuesday, May 17, 2011

अपने बदन उघाड़ डाले-हिन्दी व्यंग्य कविता (apane badan ughad dale-hindi vyangya kavita)

महल बनाने के लिये
उन्होंने कई घर उजाड़ डाले,
पैसा उनका भगवान है
उसकी बंदगी करते हुए
कई बंदों के घर उन्होंने उजाड़ डाले,
खौफ उनके पैसे का है
उनके खरीदे हथियारबंदों ने
दया के मंदिर ही उखाड़ डाले।

फिर भी नहीं की
अक्लमंदों ने भगवान मानकर
उनकी बंदगी
तो उन्होंने फरिश्ते का भेष उतारकर
शैतान की तरह डराने के लिये
ज़माने के सामने
अपने बदन उघाड़ डाले।
------------
संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   'भारतदीप',ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Saturday, May 14, 2011

शास्त्रों के अध्ययन से गूढ ज्ञान की प्राप्ति होती है-हिन्दू धर्म विचार

        इस संसार में भांति भांति प्रकार के लोग हैं, जिनमें कुछ तो मन की शुद्धता के लिए धर्म कर्म करते हैं तो कुछ दिखावा करते हैं।  कुछ लोग प्रत्यक्ष रूप से भक्ति   तथा यज्ञ करते नहीं दिखते हैं और न ही भक्त होने का पाखंड रचते हैं जबकि समाज में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो धर्म के नाम पर कर्मकांड अथवा यज्ञ करने के लिये दबाव बनाते हैं। अनेक लोग बिना किसी दिखावे के सात्विक जीवन जीते हैं पर चूंकि वह हवन तथा यज्ञ आदि नहीं करते तो लोग उनको नास्तिक होने का ताना देते हैं। सच बात तो यह है कि यज्ञ तथा हवन आदि करने से अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि मनुष्य हृदय में तत्व ज्ञान धारण करे। इसके लिये प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए। नियमित अध्ययन करने से जिज्ञासा बढ़ती है और अभ्यास से तत्वज्ञान का अनुभव हो जाता है।
              इस विषय पर मनुस्मृति में कहा गया है कि
                   -------------------------------------
             यथायथा हि पुरुषः शास्त्रं समधिगच्छति।
              तथातथा विज्ञानाति विज्ञानं चास्य रोचते।।
            ‘‘जैसे जैसे कोई व्यक्ति शास्त्र का अभ्यास करता है वैसे ही उसे गूढ़ ज्ञान की प्राप्ति होती है और उसकी प्रवृत्ति और जिज्ञासा ज्ञान विज्ञान में बढ़ती जाती है।’’
              एक बात निश्चित है कि हमारे पुराने ग्रंथों में ज्ञान के साथ विज्ञान भी अंतर्निहित है। कुछ लोग आज विज्ञान के युग में भारतीय अध्यात्मिक दर्शन को हेय मानते हैं पर उनको यह पता ही नहीं कि विज्ञान का आधार भी तत्वज्ञान है जिसके कारण हमारे प्राचीन अध्यात्मिक ग्रंथ विज्ञान के विषय में सामग्री से परिपूर्ण हैं।
कुछ लोग मंदिर न जाने या यज्ञों तथा हवनों में सक्रिय भागीदारी न करने वाले लोगों पर कटाक्ष करते हैं पर यह उनका ही अज्ञान है।
इस विषय पर मनुस्मृति में कहा गया है कि
-----------------
‘‘शास्त्रों के ज्ञाता कुछ गृहस्थ यज्ञादि नहीं करते पर अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर अपनी अध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि करते हैं। उनके लिये लिये नाक, जीभ, त्वचा, तथा कान पर संयम रखना ही एक तरह से महायज्ञ है।
                सच बात तो यह है कि धर्म तभी ही प्रशंसनीय है जब वह आचरण तथा कर्म में दृष्टिगोचर हो न कि केवल कर्मकांड और दिखावे में। कुछ लोग जो प्रतिदिन मंदिर जाते हैं वह दूसरों को अभक्त समझते हैं जो कि उनके अज्ञान का प्रमाण है। इतना ही नहीं कुछ तो लोग ऐसे हैं जो प्रतिदिन पूजा आदि करते हैं पर व्यवहार में ऐसा अहंकार दिखाते हैं जैसे कि वही भगवान के इकलौते भक्त हों। जो वास्तव में भक्त और ज्ञानी हैं वह दिखावे से अधिक आत्मनियंत्रण तथा आचरण से उसे प्रमाणित करते हैं।
-----------------------

संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com

-------------------------
शास्त्रों 
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका


Tuesday, May 3, 2011

ओसामा बिन लादेन की मौत पर रहस्य बना ही रहेगा-हिन्दी लेख (suspesn on death of osama bin laden-hindi lekh or article)

                       ओसामा बिन लादेन अब इस धरती पर नहीं है यह बात तय है। विवाद इस बात पर है कि वह कब और कहां मरा? अमेरिकी स्वयं ही मामले को संदेहास्पद बना रहे हैं। उनकी कुछ बातें दिलचस्प है।

पाकिस्तान को कार्यवाही का नहीं पता
------------
                             अमेरिकन रणनीतिकारों का सबसे बड़ा झूठ यह कि पाकिस्तान को अमेरिकी सैन्य कार्यवाही का पता नहीं था। एक सैनिक की मौत पर ही  डरने वाला अमेरिका इतना बड़ा जोखिम नहीं ले सकता था। उसकी सेना अपने हेलीकॉप्टर उस पाकिस्तान में उतारने वाली थी जहां आतंकवादियों के पास भी विमान गिराने वाली मिसाइलें रहती हैं। यह संभव नहीं है कि इतने सारे हेलीकॉप्टर बाहर से उड़ कर आये और पाकिस्तानी सेना में किसी के पास जानकारी न हो। सभी अधिकारियों को नहीं तो अमेरिका के खास अधिकारियो को इसकी जानकारी होगी। दरअसल अमेरिका पाकिस्तान को बचा रहा है ताकि वह अपने ही धर्मबंधु देशों की नाराजगी का शिकार न हो। दूसरी बात यह कि वह ओसामा बिन लादेन को शरण देने के आरोपों से भी पाक रणनीतिकारों का बचा रहा है।
केवल बच्चा गवाह बन रहा है
--------------
                  पाकिस्तान के एक बच्चे के अलावा कोई दूसरा गवाह नहीं है यह बताने वाला कि मरने वाला ओसामा बिन लादेन ही था। लादेन की लाश किसी ने नहीं देखी। कोई मरा वह कोई भी हो सकता था। बच्चा सारी बात बता रहा है पर वह यह दावा नहीं कर सकता कि उसे उपहार में दो खरगोश देन वाला बिन लादेन ही था। कोई बड़ा गवाह न मिलना इस बात का प्रमाण है कि कहीं न कहीं दाल में काला है।
परिवार को लेकर विरोधी बयान
----------------
                             एक तरफ अमेरिका दावा कर रहा है कि इस हमले में बिन लादेन की एक पत्नी मारी गयी तो दो पकड़ी गयीं। इधर पाकिस्तान कह रहा है कि लादेन का परिवार उसके पास सुरक्षित है। सवाल यह है कि उसकी पत्नियों को प्रचारक लोग सामने क्यों नहीं ला रहे। पाकिस्तान कह रहा है कि लादेन के परिवार को उसके देश भेज दिया जायेगा। अगर लादेन को समुद्र में दफनाया गया तो उसके परिवार के लोगों को क्या वहां ले जाया गया? अगर नहीं तो क्यों?
यहां यह बात याद रखने लायक है कि मरने वाला लादेन ही था इसकी पुष्टि उसके परिवार के वही सदस्य ही कर सकते हैं जो इस हमले में समय उसके पास थे। अब सवाल यह है कि उनमें से कोई क्या कभी प्रचार माध्यमों के पास आकर बतायेगा कि वह लादेन ही था?
फिक्सिंग के लिये बदनाम है पाकिस्तान
-------------------
                      लादेन को गोली या बम से ही मरना था। जिस मार्ग पर वह चला वही सामने से आती गोली या ऊपर से गिरने वाले बम के साथ ही बंद हो जाता है। यह सच है। अमेरिका लादेन को मारने के इतने प्रयास कर चुका है कि उसके सेना की गज़ब की क्षमता और अचूक निशाने देखकर लगता है कि वह कई बार मरा होगा। एबटाबाद में उसका मरना कोई बड़ी बात नहीं है। पाकिस्तान हमेशा ही उसका खैरख्वाह रहा है। मगर जिस तरह अमेरिका और पाकिस्तानी रणनीतिकार ओसामा बिन लादेन की औपचारिक मौत के बाद जिस तरह नाटकबाजी कर रहे हैं उससे फिक्सिंग का शक होता है। वैसे भी पाकिस्तान की क्रिकेट टीम फिक्ंिसग के लिये बदनाम हैं। पाकिस्तान की टीम के बारे में कहा जाता है कि वह हमेशा ही हारना फिक्स करती है उसी तरह पाकिस्तान के रणनीतिकार भी अमेरिका से अपना पिटना फिक्स करते हैं। यह अलग बात है कि बाद में अमेरिका उनके घावों पर मरहम लगाता है। फिर पैसे की भी मदद करता है। ऐसे में यह संभव नहीं है कि पाकिस्तानी रणनीतिकार अपने आका की बात का किसी तरह प्रतिवाद करें।
----------------------

कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
poet writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
------------------------
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
५.दीपक भारतदीप का चिंत्तन
६.ईपत्रिका
७.दीपक बापू कहिन
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका

Wednesday, April 27, 2011

हास्य कविताएँ -दौलत बहुत जरूरी है (daulat bahut jaroori hai-hindi hasya kavitaen)

बीमार गुरु ने चेले से
अपनी पार्थिव देह के संस्कार के बारे में पूछा
तो वह बोला-
‘‘महाराज,
भगवान करेगा आप ठीक हो जायेंगे,
जिंदगी भर चमत्कार किया है
भगवान अब आपके लिये
चमत्कार करने आयेंगे,
अगर ऐसा नहीं हुआ तो
आपकी अर्थी को बड़ी सादगी से सजायेंगे,
आपने हमेशा गरीबों का भला किया
इसलिये कोई शान शौकत नहीं दिखायेंगे।’’

सुनकर मरणासन्न गुरुजी
उठकर बैठे और बोले,
‘‘कमबख्त
किस जन्म का बदला लेने आया है,
जो यह सादगी का नारा बताया है,
तुझे मैंने कितनी बार बताया है कि
आदमी गरीब है या अमीर है
अज्ञानी है कि संत है,
या आम है कि खास है
इसका पता उसके मरने पर
निकलने वाली अर्थी से चलता है,
जिनकी जिंदगी बेरौनक रही
उनकी अर्थी में कोई नहीं चलता है,
जो जलाते हर समय ज्ञान का प्रकाश
उनकी पार्थिव देह के चारों तरफ
घी का दीपक जलता है,
सजता है फूलों का बाग,
बजता है चारों तरफ विरह का राग
फिर गरीबों के कल्याण के व्यापार में
कुछ ही इंसानों का भला किया जाता है,
बाकी तो ज़माने से सोना लूटकर उसे गला दिया जाता है,
हमारी अर्थी और दाह संस्कार पर तुम
धूमधड़कारा करना
इसी शर्त पर हमें मंजूर है अभी मरना,
वरना अपनी बीमारी साथ लेकर जिंदा रहेंगे
चाहे जितना दर्द हम सहेंगे,
मरने से पहले प्रिय शिष्य के रूप में
तुम्हारी जगह किसी दूसरे का नाम
वसीयत में लिखायेंगे,
दौलत बहुत जरूरी है
यह मरने के बाद भी दिखायेंगे।’’
----------------
चेले ने कहा गुरु से
‘महाराज,
ढेर सारा पैसा आ गया है,
अपना फाईव स्टार होटल नुमा
आश्रम भी बनकर लगता नया है,,
यह सब आपके चमत्कारों का परिणाम है,
सत्संग में आपके पीछे खड़े होकर
भभूत, घड़ी और अंगूठी दी मैंने
पर हवाओं का हुआ नाम है
मगर अब छवि बदलने का समय आया है,
ज्ञान के बिना यह अंधेरी माया है,
इसलिये अब लोगों को पुराने ग्रथों से
रटकर उपदेश दिया करें,
ज्ञानियों से भी वाह वाह लिया करें,
वरना कोई आपको संत नहीं मानेगा,
हर कोई जादूगर जानेगा।’’

सुनकर बोले गुरुजी
‘मूर्ख,
क्या धरा ज्ञान में,
चमक है बस दौलत की शान में,
भला,
तूने किसी ज्ञानी को अपने आश्रम में आते देखा,
किसी ज्ञानी को महलनुमा आश्रम में
घर बसाते देखा है
हमारा देश विश्व में विश्व गुरु इसलिये कहलाता है
क्योंकि अज्ञान के अंधेरे में ज्ञान रौशन हो पाता है,
इस काम के लिये ढेर सारे लोग हैं,
जिनको मुफ्त में ज्ञान बांटने और दान करने जैसे रोग हैं,,
अपने देश में बहुत तंगहाली है
इसलिये अपने चमत्कार की चारो तरफ लाली है,
अगर हमने चमत्कार छोड़कर ज्ञान बघारा तो
हर कोई हमें मरा जानेगा।
जिंदा रहकर चमत्कार करते रहे
तो हर कोई हमें अमर मानेगा।’’
--------------
कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
poet writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
------------------------
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
५.दीपक भारतदीप का चिंत्तन
६.ईपत्रिका
७.दीपक बापू कहिन
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका

Friday, April 22, 2011

हास्य कविता-भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन (bhrashtachar virodhi andolan or anti corruption movement-hasya kavita)

समाज सेवक की पत्नी ने कहा
‘तुम भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में
शामिल मत हो जाना,
वरना पड़ेगा पछताना।
बंद हो जायेगा मिलना कमीशन,
रद्द हो जायेगा बालक का
स्कूल में हुआ नया एडमीशन,
हमारे घर का काम
ऐसे ही लोगों से चलता है,
जिनका कुनबा दो नंबर के धन पर पलता है,
काले धन की बात भी
तुम नहीं उठाना,
मुश्किल हो जायेगा अपना ही खर्च जुटाना,
यह सच है जो मैंने तुम्हें बताया,
फिर न कहना पहले क्यों नहीं समझाया।’
सुनकर समाज सेवक हंसे
और बोले
‘‘मुझे समाज में अनुभवी कहा जाता है,
इसलिये हर कोई आंदोलन में बुलाता है,
अरे,
तुम्हें मालुम नहीं है
आजकल क्रिकेट हो या समाज सेवा
हर कोई अनुभवी आदमी से जोड़ता नाता है,
क्योंकि आंदोलन हो या खेल
परिणाम फिक्स करना उसी को आता है,
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में
मेरा जाना जरूरी है,
जिसकी ईमानदारी से बहुत दूरी है,
इसमें जाकर भाषण करूंगा,
अपने ही समर्थकों में नया जोशा भरूंगा,
अपने किसी दानदाता का नाम
कोई थोडे ही वहां लूंगा,
बस, हवा में ही खींचकर शब्द बम दूंगा,
इस आधुनिक लोकतंत्र में
मेरे जैसे ही लोग पलते हैं,
जो आंदोलन के पेशे में ढलते हैं,
भ्रष्टाचार का विरोध सुनकर
तुम क्यों घबड़ाती हो,
इस बार मॉल में शापिंग के समय
तुम्हारे पर्स मे ज्यादा रकम होगी
जो तुम साथ ले जाती हो,
इस देश में भ्रष्टाचार
बन गया है शिष्टाचार,
जैसे वह बढ़ेगा,
उसके विरोध के साथ ही
अपना कमीशन भी चढ़ेगा,
आधुनिक लोकतंत्र में
आंदोलन होते मैच की तरह
एक दूसरे को गिरायेगा,
दूसरा उसको हिलायेगा,
अपनी समाज सेवा का धंधा ऐसा है
जिस पर रहेगी हमेशा दौलत की छाया।’’
-----------
कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
poet writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
------------------------
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
५.दीपक भारतदीप का चिंत्तन
६.ईपत्रिका
७.दीपक बापू कहिन
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका

Saturday, April 16, 2011

जमाने में अंधेरे वही पाले हैं-हिन्दी हाइकू

(1)
वह राक्षस
देवता का चेहरा
लगा रहा है।
(2)
लुटेरा दिल
जज़्बात का धंधा
सजा रहा है।
----------------
(1)
साफ वस्त्र
पहन घूम रहे
दिल काले हैं।
(2)
दान लूटा है
जमाने में अंधेरे
वही पाले हैं।
--------------



संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
poet writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
------------------------
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
५.दीपक भारतदीप का चिंत्तन
६.ईपत्रिका
७.दीपक बापू कहिन
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका

Monday, April 4, 2011

नकली ट्राफी का खेल-व्यंग्य चिंत्तन (nakli cup or trofy ka khel-vyangya chittan)

             समझ में नहीं आ रहा है कि व्यंग्य लिखें कि गंभीर चिंत्तन। क्रिकेट को वैसे ही यकीनी खेल नहीं मानते। यहां तक कि जिसे लोग टीम इंडिया कहकर देश के लोग सिर पर उठाये रहते हैं उसके लिये भी हमने केवल एक क्लब बीसीसीआई की टीम मानते हैं। यह क्लब अपने क्रिकेट के व्यापार के लिये भारत के नाम, झंडे और गान का इस्तेमाल करता है इसलिये ही उसे भारत में दर्शक भारी मात्रा में मिलते हैं जिनकी जेब की दम पर पूरी दुनिया का क्रिकेट चल रहा है। बहरहाल हमारी टीम ने विश्व कप जीता खुशी की बात है-जीतने पर हम ऐसा ही करते हैं, हारने पर बीसीसीआई की टीम कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं-खिलाड़ियों के हाथ में ट्राफी या कप देखकर खुशी हुई।
            धोनी और गंभीर ने मन मोह लिया, मगर सारी प्रसन्नता चौबीस घंटे में हवा हो गयी। पता लगा कि उनको नकली कप या ट्राफी दी गयी है और असली भारतीय कस्टम विभाग के भंडार कक्ष की शोभा बढ़ा रही है। गनीमत है कि नागरिक सेवाओं से जुड़े कर्मचारी गोपनीयता के नियमों का पालन करते हैं वरना भंडार कक्ष में रखी ट्राफी का सरेआम दृश्य प्रसारित होता तब देश की इज्जत पर जो बट्टा लगता वह दुःखदायी होता।

            वैसे प्रचार माध्यम घुमाफिरा रहे हैं। बीसीसीआई के प्रवक्ता ने जब यह माना है कि ट्राफी नकली है तब उसमें शक की गुंजायश नहंी रहती। फिर भी आईसीसी कहती है कि असली ट्राफी यह कप है। वैसे प्रचार माध्यमों ने प्रमाणित कर दिया है कि वानखेड़े स्टेडियम में खेले गये विश्व कप 2011 के मैच के बाद भारत को दी गयी ट्राफी नकली है। उसमें विश्व कप का वह लोगो नहीं दिख रहा जिसे कोलंबो में अनावरण के समय देखा गया था। चूंकि यह ट्राफी अत्यंत महत्वपूर्ण है इसलिये यह संभव नहीं है कि उसे कहीं खुले में रखा गया हो जिससे उसका रंग उड़ जाये।
मतलब यह कि यह नकली ट्राफी है।
                  यह देश के साथ मजाक है और यकीनन बिना सोचे समझे नहीं किया गया। यह चिढ़कर किया गया है ताकि भारतीय लोग खुशी के बाद अवसाद के वातावरण का सामना करें। कोई है जो भारत की जीत से चिढ़ गया है। कौन हैं वह लोग? इसकी पड़ताल जरूरी है।

               इसमें कोई संदेह नहीं है कि सट्टेबाजों की ताकत जहां व्यापक है वहीं उनके हाथ लंबे हैं। कहा जाता है कि दुनियां के देशों के कानूनों से अलग आईसीसी तथा सट्टेबाजों का के नियम हैं। वह कई जगह कानून बनकर काम चलाते हैं वहां उनके हाथ भी लंबे हैं। भले ही कहा जाता है कि गोरे ईमानदार होते हैं पर जिस तरह अपराधियों के हाथ वह बिकते देखे गये हैं उससे यह भ्रम टूट गया है। ऐसा लगता है कि इस विश्व कप में कहीं न कहीं सट्टेबाजों को अपना काम सही तरह से करने का अवसर नहीं मिला। सेमीफायनल में पाकिस्तान और फायनल में श्रीलंका पर भारत की जीत तय मानी जा रही थी। ऐसे में सट्टेबाजों के लिये विपरीत परिणाम ही फायदेमंद हो सकता था पर ऐसा हुआ नहीं। हालांकि सट्टेबाजों ने अब स्पॉटफिक्सिंग का रास्ता निकाल लिया है पर लगता है कि वह अपनी कमाई से संतुष्ट नहीं है। फिर सेमीफायनल में पहुंची चार टीमों में-भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा न्यूजीलैंड-से तीन गोरवर्ण का प्रतिनिधित्व नहीं करती। क्या गोरों के मन में यह मलाल रह गया था?
                  दूसरा सेमीफायनल और फायनल मैचों को भारत के अनेक संवैधानिक, राजनीतिक, आर्थिक, फिल्मी तथा अन्य विशिष्ट क्षेत्रों से जुड़े शिखर पुरुषों ने देखा। अपने कामकाज से फुरसत निकालकर वह कुछ देर आम इंसानों की तरह मैच देखने आये? उनकी मासुमियत तथा रुचियों को मजाक उड़ाने का कहीं यह इरादा तो नहीं है? क्या गोरे तथा भारत के विरोधियों को यह लगता है कि अमेरिका की लीबिया पर चल रही बमबारी को ही हम लोग देखते रहें और अपने क्रिकेट मैचों को देखना बंद कर देते।
क्रिकेट मैचों में हारने या जीतने पर भावुक नहीं होना चाहिए, यह हम हमेशा ही कहते रहे हैं पर नकली कप का मामला राष्ट्रवादियों को चिढ़ाने वाला है। भारत में आज नववर्ष विक्रम या विक्रमी संवत् 2068 के आगमन का स्वागत हो रहा है। ईसाई संवत् मानने वालों को यह बात समझ में नहीं आयेगी कि ऐसे अवसर इस तरह की अपमान जनक खबर बेहद दुःखदायी है। दो कौड़ी की आईसीसी-विश्व की क्रिकेट पर नियंत्रण करने वाली संस्था-और एक कोड़ी का फायनल मैच, पर देश का नाम अनमोल है। क्रिकेटर और उससे जुड़े संघों के लोग पैसे कमाने के चक्कर में चुप बैठ जायेंगे पर जिनको क्रिकेट से अधिक देश के प्रति प्रेम का भाव है वह इस व्यवहार से क्षुब्ध अवश्य होंगे।
          यह तो एक विचार है। इसका दूसरा पक्ष यह भी हो सकता है कि यह समाचार ही फिक्स कर बनाया गया हो। विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता का फायनल देखने के बाद यहां के लोगों का क्रिकेट से मन भर सकता है। इधर एक क्लब स्तरीय प्रतियोगिता शुरु हो रही है और उसे दर्शक कम मिल सकते हैं क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता और क्लब स्तरीय क्रिकेट मैचों में अंतर होता है। कहीं यह विश्व कप प्रतियोगिता का स्तर कमतर साबित करने का प्रयास तो नहीं है ताकि दर्शक इसे भूल जायें और क्लब स्तरीय प्रतियोगिता की तरफ जायें।
इधर यह भी सुनने में आया था कि कुछ सट्टेबाज इधर उधर पकड़े गये। उनके साथ आस्ट्रेलिया के दो गोरे खिलाड़ियों की मिलीभगत की बात सामने आयी। शायद इससे गोरे लोगों को सदमा लगा हो।
                  कहने का अभिप्राय है कि यह घटना पूर्वनियोजित है। इससे दो उद्देश्य या दोनों में से एक प्राप्त करने का प्रयास हो सकता है।
        एक तो भारत को अपमानित करना या फिर विश्व कप प्रतियोगिता को कमतर साबित करना ताकि क्लब स्तरीय प्रतियोगिता की तरफ जायें। लंबे समय तक विश्व कप की खुमारी उन पर न रहे क्योंकि छह अप्रैल से क्लब स्तरीय प्रतियोगिता प्रारंभ होने वाली है। शक की पूरी गुंजायश है कि इतनी बड़ी प्रतियोगिता में सब कुछ ठीकठाक रहा तो यह ट्राफी कस्टम का कर चुकाकर स्टेडियम में लायी क्यों न गयी? क्या वह इसे फ्री में लाना चाहते थे? करोड़ो रुपये की मालिक संस्थायें 20 लाख रुपये खर्च करने से मुकर क्यों गयीं? आखिरी बात दूसरी नकली ट्राफी अचानक कैसे बनकर आ गयी? मतलब जांच हो तो मामला कुछ का कुछ निकल सकता है।
---------------
कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
poet writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
------------------------
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
५.दीपक भारतदीप का चिंत्तन
६.ईपत्रिका
७.दीपक बापू कहिन
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

विशिष्ट पत्रिकाएँ