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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, November 23, 2015

हमें भय लगता है-हिन्दी कविता(hamen Bhay lagta hai-HindiKavita)


भय के साये में
जीने वालों से भी
हमें भय लगता है।

कब आंसु बहाकर
हमदर्दी का सौदा करें
उनकी नीयत से
हमें भय लगता है।

कहें दीपकबापू हंस लो
मुंह छिपाकर
कोई अपनी मजाक
समझकर रुंआसा न हो जाये
उनका हमदर्द ज़माना
आकर लड़ने लगे
हमें भय लगता है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Sunday, November 15, 2015

वार्तालाप के वीर वाणी से लड़ते-दीपकबापू वाणी(Varatalap ke weer wani Se Ladte-DeepakWani)



चिंत्तन में चिंता करते बड़ी गंभीर, निशाना समझे बिना छोड़ें तीर।
साधन की साधना करें गुरु, ‘दीपकबापू चेले भी चालाकी में वीर।।
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स्वार्थ में सब लोग अटके हैं, त्यागी की प्रतीक्षा में भटके हैं।
अपने घर सुगंध उगाते नहीं, ‘दीपकबापू दुर्गंध में लटके हैं।।
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विकास के प्रतीक वाहन तमाम, संकरा पथ लगता हमेशा जाम।
दीपकबापू आंकड़ों के खेल में, गुण से अधिक गुणा का काम।।
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कतरा कतरा पी जाते हैं, शराब में लोग जी जाते हैं।
दीपकबापू बहकते आसानी से, संभलते जुबां सी जाते हैं।।
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शांति कभी नज़र नहीं आये, आंखों को द्वंद्वों के दृश्य लुभाते हैं।
दीपकबापू सहलाना सुखद है, दर्द से मजा लेने वाले सुई चुभाते हैं।।
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ज़माने के दर्द की बात करते, चंदा लेकर अपनी जेब भरते।
दीपकबापू भलाई के ठेकेदार, भूख दिखाते पर भूख से डरते।।
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वार्तालाप के वीर वाणी से लड़ते, कान बंद रख बस अपनी बात कहें।
दीपकबापू प्रचार के धंधे में, सफल वही जो विज्ञापन नदी में बहें।।
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जुबान पर सभी रखे हैं पत्थर, बेबस सिर का करते इंतजार।
दीपकबापू डूबे आकंठ स्वार्थ में, चाहें कि मिले मूर्ख सच्चा यार।।
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इंसानों मे भी खास और आम हैं, धनिकों के ही प्रसिद्धि में नाम है।
दीपकबापू करें सुखी अनुभव, न लुटने का भय न ही बदनाम है।।
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जमीन की दूरी कम दिखती, जब दिल में इश्क की आग लगती है।
दीपकबापू भूले यादगार रिश्ते, बीती सुहानी बातें आज ठगती हैं।।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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Wednesday, November 4, 2015

ठगता है अहसास-हिन्दी शायरी(Thagata hai Ahasas-Hindi Shayri)

समतल धरती की
घास पर टहलते उसके पांव
कर रहे मखमली अहसास।

अचानक नज़र जाती
सामने खड़े पहाड़ की तरफ
चल पड़ते हैं उसके पांव
ढूंढने नया ताजा अहसास।

ऊंचाई पर उसकी आंखें
निहार रही नीचे हरियाली
हांफते सीने में
धड़क रही यह सोच
वहां ज्यादा अच्छा था
कहें दीपक बापू
इसी तरह ठगता है अहसास
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
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