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Tuesday, January 15, 2008

स्वेट मार्डेन-अपने मन में शंका को स्थान न दें

आपकी योग्यता के बारे में लोगों का विचार कुछ भी क्यों न हो आप कभी अपने मन में शंका को स्थान न दें की जिस कार्य को करने की आपके मन में इच्छा है या जो कुछ आप बनाना चाहते हैं वह आप नहीं कर सकते । अपने व्यक्तिगत विश्वास को हर संभव ढंग से बढाईये। आप ऐसा कर सकते हैं। अपने मन में बार-बार यह शब्द दोहराते रहे -''मैं आत्मा हूँ सब कुछ कर सकता हूँ। मेरे लिए प्रत्येक कार्य संभव है। असंभव शब्द मूर्खों के शब्दकोष में मिलता है-स्वेट मार्डेन।

Saturday, January 12, 2008

संत कबीर वाणी:सकाम भक्ति निष्फल होती है

कबीर कलिजुग आइ करि, कीये बहुत जो भीत
जिन दिल बांध्या एक सूं, ते सुखु सोवे निचींत


संत कबीर दास जी कहते हैं की कलियुग में आकर हमने बहुतों को मित्र बनाया पर जिन्होंने अपने दिल को एक से ही बाँध लिया, वे ही निश्च्नंत सुख के नींद सो सकते हैं.

जब लगा भगहित सकामता, तब लगा निर्फल सेव
कहै 'कबीर' वै क्यूं मिलै, निहकामी निज देव

संत कबीर दास जी कहते हैं कि भक्ति जब तक सकाम है, भगवान की सारी सेवा तब तक निष्फल ही है. निश्कामी देव से सकामे साधक की भेंट कैसे हो सकती है.

Wednesday, January 9, 2008

संत कबीर वाणी:भेष ने अलख को भुला दिया

चतुराई से हरी न मिलै, ए बातां की बात
एक निस प्रेही निरधार का गाहक गोपीनाथ


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कितनी भी चतुराई कर लो उसके सहारे हरि मिलने का नहीं है, चतुराई की तो केवल दिखावे की बात है जबकि गोपीनाथ तो उसी के अपने होते हैं जो निस्पृह और निराधार होता है।

पघ से बूढी पृथमी, झूठे कुल की लार
अलघ बिसारियो भेष में, बूड़े काली धार


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि किसी न किसी प्रकार के पक्षों को लेकर और वाद-विवाद में पड़कर कुल की परम्पराओं पर चलते हुए सब डूब रहे हैं। भेष ने अलख को भुला दिया। तब काली धर में तो डूबना ही था।

Tuesday, January 8, 2008

संत कबीर वाणी:जहाँ अंहकार वहाँ विकार

मोह फंद सब फंदिया, कोय न सकै निवार
कोई साधू जन पारखी, बिरला तत्व बिचार

संत शिरोमणि कबीर दास जे कहते हैं कि सारे संसार के लोग मोह के फंदे में फंसे हुए हैं और कोई भी इस फंदे को काटने में समर्थ नहीं है। कोई पारखी साधू ही विरला होता है जो इस तत्व पर विचार करके इस फंदे से मुक्त हो जाता है।

जहाँ आपा तहं आपदा, जहाँ संसै तहां सोग
कहैं कबीर कैसे मिटें, चारों दीरघ रोग


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जहाँ अहंकार हैं वहाँ अनेक प्रकार की विपत्तियाँ स्वत: आ जातीं हैं इसी प्रकार जहाँ संशय होता वहाँ शोक अवश्य उपस्थित हो जाता है। अत चारों रोग-अहं, आपत्तियां संशय और शोक-कैसे मिट सकते हैं।

Monday, January 7, 2008

रहीम के दोहे:संपति के पास विपत्ति ही ले जाती है

कोउ रहीम जनि कहू के, द्वार गए पछिताय
संपति के सब जात हैं, विपति सबै ले जाय


कविवर रहीम कहते हैं कि विपत्ति अपने पर सभी को किसी से मदद मांगनी पड़ती हैं और इसमें शर्माने या पछताने से कोई लाभ नहीं है क्योंकि जिसके पास संपति है उनके पास विपति लोगों को ले ही जाती है।

खर्च बढ्यो, उद्यम घट्यो, नृपति निठुर मन कीन
कहू रहीम कैसे जिए, थोरे जल की मीन


कविवर रहीम कहते हैं कि व्यय अधिक हो गया, प्रयास भी घाट गया और स्वामी निष्ठुर हो गया तो कैसे काम चलेगा। कम जल में मछली कैसा जिंदा रह सकती हैं।

Sunday, January 6, 2008

क्रिकेट में बेईमानी:ज़रा चाणक्य नीति देख लें

आस्ट्रेलिया में जो बीसीसीआई की टीम से जो व्यवहार हुआ उस पर सब चैनल दिखा रहे हैं और अपने देश के पुराने विद्वान खिलाड़ी अपनी-अपनी राय दे रहे हैं-उनकी बातें समझ में नहीं आ रहीं है । इस हालत में क्या करना चाहिए? मैंने सोचा क्यों न चाणक्य नीति देखी जाये। यहाँ मैं बता दूं कि महापुरुषों के सन्देश ज्ञान बघारने के लिए नहीं बल्कि स्वाध्याय करने के लिए लिखता हूँ। आज मैंने पुन: अपना लिखा ढूँढा उसमें मुझे कुछ वाक्य सही लगे और उन्हें प्रस्तुत कर रहा हूँ।

1.किसी भी व्यक्ति का सम्मान जिस क्षेत्र में न हो उसे त्याग देना चाहिऐ क्योंकि सम्मान के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता।

मैं सोच रहा था कि क्या वहाँ बीसीसीआई की टीम का सम्मान कहीं रह गया है जो वहाँ अभी भी रुकी हुई है।

2.अपने कर्तव्य से विमुख होकर होकर कहीं भी सम्मान नहीं पाता है। अपने सम्मान के रक्षा स्वयं करनी होती है।

क्या उसकी टीम जो अपने देश के नाम को धारण किये बैठी है देश के सम्मान की रक्षा का कर्तव्य निर्वाह कर रही है और अपमानित करने वालों के खिलाफ कहीं कोई कार्यवाही की है।

3.ऐसा धन जो बैरियों की शरण में जाने पर मिलता है उसे त्याग देना चाहिए।
जिस तरह आस्ट्रेलिया में खिलाडियों और अंपायरों ने उसके साथ व्यवहार किया है क्या उसे बैरियों जैसा नहीं है और अब भी यह टीम तीसरे टेस्ट के लिए तैयार हो गयी है। क्या यह व्यवासायिक मजबूरी निभाना अब भी जरूरी है।

चाणक्य नीति:गुणी का निर्धन होने पर भी सम्मान होता है

1.इस संसार में गुणी व्यक्ति का सम्मान सभी जगह पाया जाता है, भले ही वह अर्थाभाव से पीड़ित हो। भारी धन संपति के बावजूद धनवान अगर गुणहीन है तो उसका लोग ह्रदय से सम्मान नहीं करते।
2.जो नीच प्रवृति के लोग दूसरों के दिलों को चोट पहुचाने वाले मर्मभेदी वचन बोलते हैं, दूसरों की बुराई करने में खुश होते हैं। अपने वचनों द्वारा से कभी-कभी अपने ही द्वारा बिछाए जाल में स्वयं ही घिर जाते हैं और उसी तरह नष्ट हो जाते हैं जिस तरह रेत की टीले के भीतर बांबी समझकर सांप घुस जाता है और फिर दम घुटने से उसकी मौत हो जाती है।
3. समय के अनुसार विचार न करना अपने लिए विपत्तियों को बुलावा देना है, गुणों पर स्वयं को समर्पित करने वाली संपतियां विचारशील पुरुष का वरण करती हैं। इसे समझते हुए समझदार लोग एवं आर्य पुरुष सोच-विचारकर ही किसी कार्य को करते हैं। मनुष्य को कर्मानुसार फल मिलता है और बद्धि भी कर्म फल से ही प्रेरित होती है। इस विचार के अनुसार विद्वान और सज्जन पुरुष विवेक पूर्णता से ही किसी कार्य को पूर्ण करते हैं।

4.जो बात बीत गयी उसका सोच नहीं करना चाहिए। समझदार लोग भविष्य की भी चिंता नहीं करते और केवल वर्तमान पर ही विचार करते हैं।हृदय में प्रीति रखने वाले लोगों को ही दुःख झेलने पड़ते हैं।
5.प्रीति सुख का कारण है तो भय का भी। अतएव प्रीति में चालाकी रखने वाले लोग ही सुखी होते हैंजो व्यक्ति आने वाले संकट का सामना करने के लिए पहले से ही तैयारी कर रहे होते हैं वह उसके आने पर तत्काल उसका उपाय खोज लेते हैं। जो यह सोचता है कि भाग्य में लिखा है वही होगा वह जल्द खत्म हो जाता है। मन को विषय में लगाना बंधन है और विषयों से मन को हटाना मुक्ति है।

Saturday, January 5, 2008

चाणक्य नीति:जब तक वाणी मधुर न हो कोयल मौन रहती है

1. यह मनुष्य का स्वभाव है की यदि वह दूसरे के गुण और श्रेष्ठता को नहीं जानता तो वह हमेशा उसकी निंदा करता रहता है। इस बाट से ज़रा भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

उदाहरण- यदि किसी भीलनी को गजमुक्ता (हाथी के कपाल में पाया जाने वाला काले रंग का मूल्यवान मोती) मिल जाये तो उसका मूल्य न जानने के कारण वह उसे साधारण मानकर माला में पिरो देती है और गले में पहनती है।

2.बसंत ऋतू में फलने वाले आम्रमंजरी के स्वाद से प्राणी को पुलकित करने वाली कोयल की वाणी जब तक मधुर और कर्ण प्रिय नहीं हो जाती तबतक मौन रहकर ही अपना जीवन व्यतीत करती है।
इसका आशय यह है हर मनुष्य को किसी भी कार्य को करने के लिए उचित समय की प्रतीक्षा करना चाहिए अन्यथा असफलता का भय बना रहता है।
3.राजा , अग्नि, गुरु और स्त्री इन चारों से न अधिक दूर रहना चाहिऐ न अधिक पास अर्थात इनकी अत्यधिक समीपता विनाश का कारण बनती है और इनसे दूर रहने पर भी कोई लाभ नहीं होता। अत: विनाश से बचने के लिए बीच का रास्ता अपनाना चाहिऐ।

Friday, January 4, 2008

चाणक्य नीति:देवालयों का धन हड़पने वाला चांडाल

1.देव-मंदिरों के लिए निर्धारित भूमि, रत्नकोश (धन और अन्य संपदा), गुरुओं के भूमि जो धोखे से अपने कपट के व्यवहार से हड़प लेता है उसे चांडाल कहा जाता है।

2.रूप की शोभा गुण है। अगर गुण नहीं है तो रूपवान स्त्री और पुरुष भी कुरूप लगने लगता है।
3.कुल की शोभा शील मैं है। अगर शील नहीं है तो उच्च कुल का व्यक्ति भी नीच और गन्दा लगने लगता है।
4.विद्या की शोभा उसकी सिद्धि में है। जिस विद्या से कोई उपलब्धि प्राप्त हो वही काम की है।धन की शोभा उसके उपयोग में है ।
5.धन के व्यय में अगर कंजूसी की जाये तो वह किसी मतलब का नहीं रह जाता है, अत: उसे खर्च करते रहना चाहिऐ।
6.ऐसा धन जो अत्यंत पीडा, धर्म त्यागने और बैरियों के शरण में जाने से मिलता है, वह स्वीकार नहीं करना चाहिए।
7.बिना पढी पुस्तक की विद्या और अपना कमाया धन दूसरों के हाथ में देने पर समय पर न विद्या काम आती है न धनं.

Thursday, January 3, 2008

जहाँ सतीत्व को खतरा वहाँ साधुत्व क्या बच पायेगा

चेले ने गुरु से कहा
गुरूजी, कल मैं आश्रम से
बाहर निकलकर शहर जाऊंगा
वहाँ कहीं नये साल का जश्न मनाऊँगा
आप तो देते हो पुरातन शिक्षा
मंगवाते हो घर-घर से भिक्षा
अब नवीनतम शिक्षा लेने का विचार आया
शहर से कुछ लोगों का आफर आया
इस बहाने शहर भी देख आऊँगा''

गुरूजी बोले
''तो अन्तिम प्रणाम करता जा
मन हो तो गुरु दक्षिणा भी दे जा
जिन स्थानों पर औरत की अस्मत
अब सुरक्षित नहीं
जायेगा तू वहीं
बहुत हंगामा मचायेगा
जहाँ सतीत्व को ख़तरा हो
वहाँ तेरा साधुत्व भला कहाँ बच पाएगा
जाना है तो जा
तेरे लौटने में मुझे संशय है
इसलिए मैं तेरी जगह
अब कोई नया शिष्य
अपने इस आश्रम में बसाऊंगा
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Wednesday, January 2, 2008

चाणक्य नीति:छोटे आदमी से ज्ञान मिले तो ग्रहण करें

1.ईर्ष्या असफलता का दूसरा नाम है। अपनी असफलता और दुसरे की सफलता से मनुष्य ईर्ष्यालु हो जाता। ईर्ष्याग्रस्त मनुष्य महत्वहीन होता है, अतएव ईर्ष्या करना अपना महत्व घटाता है,हजारों गायों के बीच बछ्दा केवल अपने माँ के पास जाता है, इसी प्रकार मनुष्य का कर्म भी उसी में पाया जाता है, जो उसका कर्ता होता है। कर्ता कर्म का फल भोगे बिना कैसे रह सकता है ।
2.ईश्वर ने सोने में सुगंध नहीं डाली, गन्ने में फल नहीं लगाए, चन्दन के पेड को फूलों से नहीं सजाया , विद्वान को धन से संपन्न नहीं बनाया और राजा को दीर्घायु प्रदान नहीं की। इनके साथ इस तरह के अभाव का रहस्य का कारण यही है इन वस्तुओं के उपयोग के साथ और मनुष्यों में उसकी प्रवृति में दुरूपयोग और अहंकार का भाव पैदा न हो। अगर इससे ज्यादा गुण होते तो यह दोनों के लिए घातक होता।
3.यदि गंदे स्थान पर सोना पडा है उसे उठाने में गुरेज नहीं करना नहीं चाहिए, क्योंकि वह कीमती हैं। यदि विद्या निम्न कोटि के व्यक्ति से भी सीखना पडे तो संकोच नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह उपयोगी होती है। यदि विष से अमृत मिलता है जरूर प्राप्त करना चाहिए।
*इसका आशय यह है हमें अगर ज्ञान अपने लघु व्यक्ति से मिलता हो तो उसे ग्रहण करना चाहिऐ। सज्जन व्यक्ति से अगर वह गरीब भी है तो संपर्क करना चाहिए। आगे व्यक्ति गुणी है पर निम्न जति या वर्ग है तो भी उसकी प्रशंसा करना चाहिए।
4.युवावस्था में काम-क्रोध हावी होते हैं, इसी कारण व्यक्ति की विवेक शक्ति निष्क्रिय हो जाती है। काम वासना से व्यक्ति को कुछ नहीं सूझता। काम-क्रोध व्यक्ति को अँधा कर देता है।
५।धूर्तता, अन्याय और बैईमानी आदि से अर्जित धन से संपन्न आदमी अधिक से अधिक दस वर्ष तक संपन्न रह सकता है, ग्यारहवें वर्ष में मूल के साथ-साथ पूरा अर्जित धन नष्ट हो जाता है।<ब्र />
*इसका सीधा आशय यह है कि भ्रष्ट और गलत तरीके से कमाया गया पैसा दस वर्ष तक ही सुख दे सकता है, हो सकता है कि इससे पहले ही वह नष्ट हो जाय।

Tuesday, January 1, 2008

अपने लिए खुद ही बहाओ खुशी का झरना

मौसम की तरह लोग भी
बदल जाते हैं
सर्दी में गर्मी की यादें नहीं आती
मुसीबत की घडी में जो साथ दें
खुशियों के पल में
उनकी स्मृति दिमाग से परे हो जाती

तुमने अगर किसी को
दिया हो उसके तकलीफों में तो भूल जाओ
सदियों से कहते आ रहे हैं
नेकी कर दरिया में डाल
तुम भले ही अपने मन में रखो
पर नेकी के रास्ते का
भूलने के दरिया की तरफ ही है ढाल
वह खुद ही चलकर जायेगी
इसलिए तू ही उसे खुद डाल
तुम भी वैसी चलते जाओ
जैसे घडी की सुई चलती जाती
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भरोसा तोड़ देते हैं लोग
इसलिए छोड़ दें करना
बिखर जायेंगे खुद ही वरना
किसी का काम कर भूल जाओ
उधार देकर मांगने मत जाओ
अपने लिए खुद ही बहाओ खुशी का झरना

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