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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, April 23, 2014

खबर बिन शांति-लघु हिन्दी व्यंग्य कवितायें(khabar bin shanti-short hindi satire poem's)



न कोई खबर पढ़ी न सुनी हमने
दिल में बहुत शांति हैं,
पर्दे पर फिल्म देखते और गाने सुनते
नाच रहा मन मयूर की भांति है।
कहें दीपक बापू उकता गये हैं खबरों से
बहुत नारे सुने
कई आंदोलन भी देखे
अनसुलझे विषय अभी भी खड़े हैं प्रश्नों के साथ
उठाने वाले बन गये शिखर पुरुष
कभी मचाया था शोर उन्होंने होने वाली जैसे क्रांति है।
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पर्दे पर चलती हुई सनसनीखेज खबर,
उन पर बहस खिंच रही तर्क हो रहे बर्बर।
कहें दीपक बापू प्रायोजन का युग है
विज्ञापनों से बन जाते हैं बड़े लोग
कोई नृत्य कर
कोई कुकृत्य कर
मुफ्त में बना लेता है अपनी खबर।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Monday, April 14, 2014

चाय के प्याले में तूफ़ान-हिन्दी व्यंग्य कविता(chaya ke pyale mein toofan-short hindi poem)




किसी से वफादारी की उम्मीद नहीं की
इसलिये कभी हमने धोखा नहीं खाया,
हमारी खामोशी ने हमेशा झूठ बोलने की
बीमारी से बचाया।
कहें दीपक बापू जहां भीड़ होती है लोगों की
वहां अभिनय करने वाले चले ही आते हैं,
कुछ अपनी अदायें दिखाते कुछ नाचते
कोई दूसरों को नचाने आते हैं,
चाय के प्याले में तूफ़ान उठाते  इंसाफ के लिये शोर मचाने वाले,
दर्द झेलते है मेहनतकश हमेशा उनके पांव में पड़ जाते छाले,
बरसों से हम भी चीखे हालातों के बदलाव के लिये
वादे और नारे सुने पर ज़माने को वहीं खड़ा पाया।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
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Tuesday, April 8, 2014

कागजी नायक-हिन्दी व्यंग्य कविता(paper hero-hindi satire poem)



सवाल उठा रहे जहान की हालातों पर
वह अक्लमंद लोग जिनको जवाब देने हैं,
बहस होती  उनमें पर्दे पर विज्ञापनों के बीच
मगर फैसला लापता है
जुबान से निकले शब्दों के
मतलब अक्लमंदों से भी लेने हैं।
कहें दीपक बापू  जहान की मुसीबतों का हल
किसी फरिश्ते के पास भी नहीं मिल सकता
फिर भी कागजी नायक तैयारी करते दिखते हैं
हर कोई टाल रहा असली मुद्दे
क्योंकि लोगों के मसले बहुत पैने हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
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Tuesday, April 1, 2014

अपनी जान की पहचान-हिन्दी क्षणिका(apni jaan ki pahachan-hindi short poem)



इंसान भेजता रहता है चांद पर अंतरिक्ष यान,
आंकाश के रहस्य की तलाश में है
मगर अपनी धरती के स्वभाव से हो गया है अनजान।
कहें दीपक बापू संसार में विज्ञान की तरक्की बुरी नहीं है
मगर दुःखदायी है बिना इंसानियत के ज्ञान,
पत्थर और लोहे का सामान रंग से चमकता है
आंखों देखती है तो दिल धमकता है,
फिर भी लगता है कहीं खालीपन
क्योंकि होती नहीं अपनी जान की पहचान
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
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