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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, February 29, 2012

ज़िंदगी के आसरे-हिन्दी कविता (zindagi ke aasre-hindi poem)

हम तो कई बार टूटे और बिखरे
मगर आकाश के मालिक ने
फिर ज़मीन पर खड़ा कर दिया
उसकी कृपा पर
अपनी ज़िंदगी के सारे आसरे
बस यूं ही पार लगाएँगे।
कहें दीपक बापू
तुम अपनी फिक्र करो
अपने आसरे जिन कंधों पर
तुमने टिकाये हैं
सांसें चलना वह तुम्हारी बंद कर देंगे
मगर कब्र तक साथ नहीं आएंगे।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Thursday, February 16, 2012

अपनी औकात-हिन्दी शायरी (apni aukat-hindi shayri)

गफलत में हम कुछ यूं रहे कि
जिन पर भरोसा किया
वह उसे निभाना जानते नहीं थे,
दूसरों से उम्मीद करते वह
पर खुद भी वफा निभाएँ यह
कभी मानते नहीं थे।
कहें दीपक बापू
लोगों के कायदे
अपने मतलब से बदल जाते हैं,
चालक ढूंढें अपने फायदे
मूर्ख हाथ मलते रह जाते हैं,
जिंदगी में दोस्ती और रिश्ते भी
सौदे की तरह जिये जाते हैं
जब तक हमारे जज़्बात कुचले न गए
दूसरों की क्या
हम अपनी औकात जानते नहीं थे।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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Thursday, February 9, 2012

टूटे बोल-हिन्दी शायरियाँ (toote bol-hindi shayriyan)

खत अब हम कहाँ लिखते हैं,
जज़्बातों को फोन पर
बस यूं ही फेंकते दिखते हैं।
कहें दीपक बापू
बोलने में बह गया
ख्यालों का दरिया
खाली खोपड़ी में
लफ्जों का पड़ गया है अकाल
आवाज़ों में टूटे बोल जोड़ते दिखते हैं।
----------------
इस जहां में
लोगों से क्या बात करें
पहले अपनी रूह की तो सुन लें।

कहें दीपक बापू
बात का बतंगड़ बन जाता है
मज़े की महफिलों में
दूसरों की बातें सुनकर
हैरान या परेशान हों
बेहतर हैं लुत्फ उठाएँ
अपने दिल के अंदर ही
जिन्हें खुद सुन सकें
उन लफ्जों का जाल बुन लें।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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