समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, August 28, 2015

गीताप्रेस की रक्षा संचालक श्रमिकों के प्रति सद्भाव अपनाकर ही कर सकते हैं-हिन्दीलेख(sevegitapress with worker setisfication-hindiarticle

                                   गीताप्रेस के बारे में हमने कल लिखा था कि हमें उसके बंद होने के कारणो का पता नहीं है पर टीवी चैनलों के समाचारों से तमाम जानकारी मिल गयी। गीताप्रेस ट्रस्ट और वहां के कर्मचारियों के बीच विवाद चल रहा है।  वहां  बरसों से कार्यरत कर्मचारियों की दयनीय हालत ने हमें विचलित किया।  जहां तक हमारी जानकारी है गीता प्रेस एक ट्रस्ट से संचालित है। वहां के कर्मचारियों की हड़ताल के बारे में हमने बहुत दिन पहले पढ़ा था तब लगा कि मामला हल हो जायेगा।  अब प्रकाशन बंद होने की खबर आयी तो हमें लगा कि शायद आर्थिक तंगी के कारण ऐसा हो रहा है पर स्थिति वह नहीं निकली।
                                   हड़ताली कर्मचारियों की बातें सुनी। उनका कहना था कि आठ हजार प्राप्त करने के हस्ताक्षर कराकर राशि कम यह कहकर दी जाती कि बाकी ठेकेदार को दी गयी है।   ठेकेदार का नाम उनको नहीं बताया जाता। यह शोषण वाली बात सुनकर धक्का लगा।
                                   बहलहाल हमें ऐसा लगा कि भारतीय अध्यात्मिक के इस प्राचीन मंदिर की तरह स्थापित गीता प्रेस के स्वामियों में कहीं न कहंी अहंकार के साथ पुरानी यह रूढ़िवादिता भी है जिसमें अकुशल श्रम को हेय समझा जाता है-श्रीमद्भागवत गीता ऐसा करना आसुरी प्रवृत्ति का मानती है।
                                   दूसरी बात यह कि गीताप्रेस के स्वामियों को चाणक्य का यह सिद्धांत ध्यान रखना चाहिये कि धर्म से मनुष्य और अर्थ से धर्म की रक्षा होती है। यहां अर्थ के साथ न स्वार्थ जोड़ें न परमार्थ का नारा लगायें।  एक बात तय रही है कि आपके धर्म की रक्षा हो तो सबसे पहले इस बात का प्रयास करें कि लोगों के पास अपनी तथा परिवार की रक्षा के लिये अर्थ की उपलब्धि पर्याप्त मात्रा में  होती रहे। स्वामी का अहंकार तभी तक ठीक है जबतब श्रमिक प्रसन्न है। हमारे अनुमान से  गीता प्रेस के पास संपत्ति और आय की कमी नहीं है और श्रमिक चाहे ठेके के हों या नियमित उन्हें प्रसन्न करना पहला धर्म होना चाहिये। एक श्रमिक ने कहा कि हम कोई पच्चीस या पचास हजार नहीं मांग रहे। अपना हक मांग रहे हैं।
                                   उसका हक से आशय शायद जितनी राशि की प्राप्ति ली जाती है उतनी ही देने से भी है। हम स्वामियों से कह रहे हैं कि पच्चीस पचास हजार भी दे दिये तो कौनसा तूफान आने वाला है।  वह श्रमिक धर्म के सैनिक हैं और गीता प्रेस के अंदरूनी लोग हैं। विश्व में जिस तरह गीता प्रेस का भव्य नाम है उसे देखते हुए अगर उन्हें अगर पच्चीस हजार भी दे दिये तो कौन वह भारी अमीर हो जायेंगे।
याद रहे जिसके सैनिक प्रसन्न नहीं होते वह राजा लड़ाई हार जाता है, यह कौटिल्य ने कहा है।  अगर यह धर्म सैनिक अप्रसन्न है तो फिर गीता प्रेस का प्रतिष्ठित नहीं रह पायेगा। फिर बंद हो या नहीं।  अकुशल श्रम के प्रति हेयता का यह भाव अगर गीता प्रेस में है तो उसके बंद होने या खुले रहने के प्रति हमारी रुचि समाप्त हो जाती है। इसलिये हमारी बात अगर गीता प्रेस के संचालकों तक कोई पहुंचा सके ठीक वरना हम तो यह आग्रह कर ही रहे हैं कि श्रमिकों के साथ सद्भावना से मामला निपटाये। हम जैसे स्वतंत्र अध्यात्मिक लेखक और पाठक यही चाहते हैं।
--------------------------------------     
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Sunday, August 23, 2015

आज शांतिवार है-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन लेख (today is peace day-hindi satire thought article,aaj shantiwar hai-hindi vyangya lekh)

                     
                                   उधर उत्तर और दक्षिण कोरिया इधर भारत और पाक के बीच तीन दिन तक प्रचार युद्ध हुआ। शनिवार तक चले इस युद्ध में दोनों ही स्थानों पर आज का रविवार एक तरह से शांतिवार लग रहा है। उधर उत्तर कोरिया सीमा पर दक्षिण कोरिया के लाउडस्पीकरों से हो रहे प्रचार पर इतना उत्तेजित था कि लगा रहा था कि अब युद्ध छिड़ने वाला ही है। अंतर्जाल पर भाई लोग इस इंतजार में लगे थे कि वह इस युद्ध के प्रारंभ होने की प्रथम सूचनावाहक बने। ऐसा हुआ नहीं। अचानक दोनों देशों के बीच शांतिवार्ता प्रारंभ हो गयी।  इधर भारत और पाकिस्तान के बीच शांतिवार्ता प्रारंभ करने का शोर इतना था कि नहीं हुआ तो एकदम युद्ध प्रारंभ हो जायेगा। शांतिवार्ता नहीं हुई पर युद्ध होने जैसी कोई संभावना भी नहीं दिख रही।
                                   उधर का तो पता नहीं कि वहां प्रचार माध्यमों ने विज्ञापन से कमाई की या नहीं पर यहां जमकर विज्ञापन प्रसारित हुए। वैसे हमारा अनुमान है कि वहां भी इसी तरह के व्यवसायिक प्रचार माध्यम हैं और उन्होंने इतना ही शोर मचाया होगा।  इधर का पता है। यहां भारत और पाकिस्तान के प्रचार माध्यम विज्ञापन के मैदान में युद्धरत लग रहे थे।  पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज की भारत के अपने समकक्ष अनिल डोभाल से भेंट होनी थी। जहां तक हमारी जानकारी है दोनों सभ्रांत वर्ग के हैं और मुलाकात में एक दूसरे से शब्दों का आदान प्रदान करने वाले थे। प्रचार माध्यमों की तरफ देखें तो ऐसा लग रहा था कि दोनों कोई युद्ध करने वाले हैं।  पाकिस्तान के प्रचार माध्यम जहां अपने सुरक्षा सलाहकार को कमजोर बताकर अपने देश के लोगों से निराशा की सामग्री परोस रहे थे तो इधर भारत के प्रचार माध्यम अपने सुरक्षासलाहकार की शक्ति बखान करने में लगे थे।  हमारे समझ में यह नहीं आया कि चल क्या रहा है।  ऐसा लग रहा था कि क्रिकेट मैच चल रहा है जिसमेें कभी ओवर के बीच में विज्ञापन आ रहे हों। कहीं गेंद बदली जा रही है तो विज्ञापन आ रहा है।
                                   ऐसा लगता है कि प्रचार माध्यमों ने अपनी कमाई का कोटा पूरा कर लिया है इसलिये आज वैसी आक्रामकता नहीं दिख रही।  आमतौर से सुपर संडे या चमत्कृत रविवार इतना ठंडा नहीं रहता। आमतौर से शनिवार को ही सुपर संडे या चमत्कृत रविवार की सामग्री प्रचार प्रबंधक तैयार करते हैं पर आज शनिवार के बाद रविवार कम शांतिवार ज्यादा लग रहा है।
-----------------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Sunday, August 16, 2015

जिंदगी के रंग-हिन्दी व्यंग्य कविता(zindagi ke rang-hindi poem)

समंदर में अमृत के साथ
विष भी मिलता है।

कांटों के बीच गुलाब
कीचड़ में कमल खिलता है।

कहें दीपक बापू जिंदगी के रंगों से
नफरत और प्यार का
रिश्ता निभाना बेकार
जिस दुकान पर
ठंड रोकने का कंबल बिकता
मुर्दे के लिये कफन भी
वहीं मिलता है।
---------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Wednesday, August 12, 2015

15 अगस्त आजादी का दिन-हिन्दी व्यंग्य कविता (15 augurst azadi ka din-hindi satire poem)

आजादी का दिन
एक फिर मनायेंगे।

गुलामी पाने की होड़ में
किताबें पढ़ते छात्र
गुलामी जैसे पढ़ाते शिक्षक
आजादी का गीत गायेंगे।

कहें दीपक बापू अंग्रेेज मर गये
औलाद छोड़ गये
किताबों से मिले गुलामी
नवाबी नखरों जैसी खामी
समाज में जोड़ गये
मन उड़ना चाहता
आजाद पंछी की तरह
रूढ़ियों के बंधन की लाचारी
उसे कैसे समझायेंगे।
-------------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Saturday, August 8, 2015

धर्म की पेशेवर कला से चिढ़ते हैं प्रचार और समाचार व्यवसायी-हिन्दी लेख(profeshnal art of busniness in religion and indian media-hindi new post in nindi article)


                    सामाजिक दृष्टि से भारत में माता की चौकी एक व्यवसाय के रूप में स्वीकार की गयी है तो उसे धर्म का धंधा कहना ठीक नहीं। शादी तथा अन्य घरेलू कार्यक्रमों पर अनेक जगह माता की चौकी का आयोजन होता है। इसे धर्म का व्यवसाय कहें तो गलत होगा। अगर कहते भी हैं तो बताना पड़ेगा कि उसमें बुराई क्या है? बार बार किसी पर माता की चौकी के नाम पर पैसे लेने पर उसे खलनायक कहना लोगों की आस्था से खिलवाड़ करना है। ऐसा लग रहा है कि प्रचार व्यवसाय के लोग चाहते हैं कि भारत में भक्ति के रूप में भजन और अन्य कार्यक्रम होते हैं वह मुफ्त में हों ताकि उसका पैसा उनकी फिल्मों को देखने या उनके विज्ञापनों में प्रचारित वस्तंुओं पर खर्च हो।
                                   हम भारतीय अध्यात्मिक दर्शन की बात करें तो उसमें किसी भी कर्म, रहन सहन, आचरण तथा विचारा को बुरा नहीं बताया गया।  उसमें तो मनुष्य को उसके कर्म, रहन सहन, खान पान, आचरण तथा विचार का परिणाम बताया गया हैं।  किसी के अनिष्ट की सोचना  बुरा नहीं है पर उसका स्वयं पर जो विपरीत प्रभाव होगा यह बताया गया है।   उपभोग की वस्तुओं के त्याग से अधिक उसके साथ संपर्क होने पर लिप्तता का भाव न रखने के लिये कहा गया है। संकल्प त्याग के भाव के आधार पर देखा जाये तो कोई संत अगर सोने के आभूषण पहनता है तो उस पर आपत्ति उठाना बेकार है जब तक यह पता न चले कि उसका भाव उसके प्रति लिप्तता का है या नहीं।  कोई संत भक्तों को दिखाने के लिये अच्छे कपड़े और  गहने पहनता है तो बुरी बात नहीं है। उसकी भाव लिप्तता  जाने बिना  प्रतिकूल टिप्पणी करना ठीक नहीं। प्रचार और समाचार के व्यवसायी संतों की सौंदर्य लीला में अश्लीलता और अपने फिल्म नायकों की अश्लील लीला में सौंदर्य का बोध जताते हैं। एक महिला संत बिकनी पहने तो धर्म विरोधी और उनकी फिल्मी नायिकायें पहिने तो सौंदर्य की मूर्ति हो जाती हैं।
                                   हम यहां पेशवर धार्मिक लोगों के कृत्यों का समर्थन नहीं कर रहे पर यह समझ लेना चाहिये भारतीय अध्यात्म मे भक्त चार प्रकार के भक्त होते हैं। अर्थार्थी, आर्ती, जिज्ञासु और ज्ञानी।  ज्ञानी भक्त भगवत् नाम  में अपना आसरा ढूंढ लेते हैं पर शेष तीनों वर्ग के भक्त इन्हीं भक्ति के व्यवसायियों में पास मन की शांति ढूंढते हैं। एक योग और ज्ञान साधक के रूप में हम इनकी निंदा करने की बजाय इस बात की प्रशंसा करते हैं कि वह अर्थार्थी और आर्ती भाव के भक्तों का समूह संभालते हैं। याद रखें भक्ति मन के भटकाव को रोकती है इससे समाज में हिंसक मनुष्यों की संख्या सीमित रहती है।
--------------------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Monday, August 3, 2015

परोपदेशे कुशल बहुतेरे-हिन्दी कविता(parodeshe kushal bahuter-hindi poem)


भूख सहने की ताकत
रखने की सलाह
वह लोग दे रहे
जो खाते स्वयं मलाई।

सस्ते में जिंदगी
गुजारने की बात कहते
सजी सोने से उनकी कलाई।

कहें दीपक बापू इस युग में
खोटे सिक्के भी चल जाते हैं
पानी से चमत्कार करने वालों के घर
घी के चिराग जल जाते हैं
हुनरमंद है वह लोग
करते सारे काम छोड़ भलाई।
------------------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

विशिष्ट पत्रिकाएँ