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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, March 25, 2011

वफादारी का चोला-व्यंग्य कवितायें (vafadari ka chola-vyangya kavitaen)

अपनों पर नहीं यकीन
इसलिये गैरों से उनके शिकवे और शिकायत करते हैं,
परायों के कमरे में जाकर छूते हैं पांव,
उनसे मुलाकात का दंभ भरते है आकर अपने गांव,
कुछ खास हैं
यह दिखाने के लिये
आखिर अपने रिश्तों में ही दम भरते हैं।
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अपनों से छिप कर वह
परदेसियों से आंखें लड़ाते हैं,
जिनको अपनी गली में नहीं मिलती इज्जत
वही बाहर जाकर अपना दर्द
बयान कर आते हैं।
साथियों में फिर वैसे ही वफादारी का
चोला पहनकर खामोशी से खड़े हो जाते हैं।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
poet writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Saturday, March 19, 2011

होली और ध्यान-हिन्दी कविता (holi aur dhyan-hindi kavita)

आओ ध्यान लगायें,
नकली गुलाल और रंग में
खेलने से जलेंगी आंखें और बदन
इसलिये अपने अंतर्मन में
स्थापित कर लें एक सुंदर स्वरूप

उसके आगे   अपनी हृदय का दीपक जलायें।
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किस पर रंग फैंककर
किसका व्यक्तित्व अपने हाथ से चमकायें,
अपने हृदय को कर दें ध्यान में मग्न,
हो जायेंगे कीचड़ की समाधियां भग्न,
बरस भर जमा किया है कीचड़ मन में
वहां ज्ञान का कमल लगायें।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
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Sunday, March 6, 2011

हाथ मुफ्त में घिस जायेगा-हिन्दी व्यंग्य कविता (hath mufta mein ghis jayega-hindi vyangya kavita)

पद का नशा ही ऐसा है कि
जो बैठता है कुर्सी पर
खास आदमी बन जाता है,
राह चलते हुए उसके साथ
रहता है आम आदमी का अहसास
दर्द झेलते हुए भी उसका
इलाज नहीं कर पाता
कलम के शेर, कागज पर ही दहाडेंगे
ज़मीन से उनका भला क्या नाता है।
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समाज में समस्याओं का अंबार है
उसे कौन निपटायेगा,
हर कोई करेगा शिकायत
फिर मौन हो जायेगा।
हल करने के लिये हाथ
कोई नहीं चलाता
मुफ्त में घिस जायेगा।
‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘
कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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