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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, August 29, 2014

कान सभी के मौन हैं-हिन्दी कवितायें(kan sabhi ke maun hain-hindi satire poem's)




सभी कह रहे अपनी कथा
वक्ता बहुत श्रोता शून्य
यहा सुनता कौन है।

कहें दीपक बापू वाणी चल रही
सभी की धाराप्रवाह
मगर कान सभी के मौन हैं।
--------

हम अपने हाल सुनाने
पहुंचते जहां भी
लोग अपना दर्द गाते हैं।

कहें दीपक बापू हमदर्दी की तलाश
कभी पूरी नहीं होती
दूसरे का दर्द बन जाता दवा
हम यूं ही उसे भुलाते हैं।


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Thursday, August 21, 2014

प्रतिभावान बुत--हिन्दी कविता(pratibhawan but-hindi kavita or poem)



कोई इंसान वातानुकूल यंत्र की
ठंडी हवा लेते हुए
राजमहल में पल रहा है।

कोई सूरज की जलती किरणों में
रोटी के लिये सामान बेचता हुआ
सड़क पर आग में जल रहा है।

कोई समाजवाद का
झंडा उठाये अपने हाथ में
अपने कर्म से भाग्य बदल रहा है।

कोई पूंजीवाद के लिये
उदारीकरण का नारा लगाता
विकास के सांचे में
प्रतिभावान बुत की तरह ढल रहा है।

कहें दीपक बापू चमकीली रातों में
गुजारने की ख्वाहिशें
इंसानियत को अंधेरे में खड़ा कर देंगी
बढ़ती लालच की उष्मा में संसार का
पूरा दिल जल रहा है।
                                                               ------------------------------------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
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Thursday, August 14, 2014

पेट की भूख और रोटी का नारा-हिन्दी कविता(pet ki bhookh aur roti ka nara-hindi poem)



दाने दाने पर लिखा है
खाने वाले का  नाम
तब किसके भूखे मरने का डर है,

फिर भी बादशाह बनने की
ख्वाहिश लेकर घूम रहे लोग
वही भुखमरी से जंग का वादा करते
 जिनका सोने का घर है।

सच यह कि  भूख से  अधिक
 सड़ी रोटी खाकर लोग ज्यादा मरते
मिलावट से सजा हर शहर है।

कहें दीपक बापू भूख मिटी
तब रोटी बनना बंद हो जायेगा,
कुदरत ने बनाया पेट भी ऐसा
कितना भरे फिर खाली हो जायेगा,
नये ज़माने में समाजसेवकों का
भूखों की भलाई का नारा
रह गया तख्त पाने का नारा भर है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
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Wednesday, August 6, 2014

इसलिये लोगों से सच छिपाते हैं-हिन्दी कविता(isliye logon se sach chhipate hain-hindi poem)



अपने साथ हुए हादसे
हंसी या सनसनी का कारण न बने
इसलिये लोगों से छिपाते हैं।

दिल से कोई हमदर्द बने
इसकी उम्मीद नहीं रहती
इसलिये अपने घाव का दर्द
मुस्कराहट के पीछे छिपाते हैं।

अपने हालातों से बेजार ज़माना
अफसाने ढूंढ रहा है
अपना गम भूलाने के लिये
न हो अपनी चर्चा चुटकुले की तरह
अपनी भूल इसलिये खुद से भी छिपाते हैं।

कहें दीपक बापू मकान मजबूत
मगर घर कमजोर हो गये हैं
कोई नहीं बन सकता पक्का हमराज
अपने दिल दिमाग में बसे सच
इसलिये दीवारों के पीछे छिपाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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