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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, October 27, 2015

जिंदा रहने की आदत-हिन्दी कविता(Zinda rahane ki adat-Hindi Kavita)

पेट की भूख
इंसान की आंखों में
लाचारी का भाव लाती है।

मन की चाहत
जुबान के अग्निबाण से
कर्ण जलाती है।

कहें दीपकबापू बेपरवाही से
जिंदा रहने की आदत
बदनाम कर देती
बेशरम की तरह
मगर जिंदगी में
दिल चैन से चलाती है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Friday, October 16, 2015

कलम और शब्द-हिन्दी कविता(Kalam aur Shabd-Hindi Poem)

संबंध में संवादहीनता
निभाने का विश्वास
कम कर देती है।

रास्तों पर मुलाकतों का
कोई लाभ नहीं
चाहे आंखें नम कर देती हैं।

कहें दीपक बापू बिखरी जिंदगी में
कलम से समेट रहे
शब्दों के मोती
अर्थ ने साथ नहीं दिया
फिर भी कोशिश
मस्ती जमकर देती है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Wednesday, October 7, 2015

सम्मान असम्मान-दो क्षणिकायें(Samman Asamman-TwoShortHindiPoem)


पुराना सम्मान
वापस कर
नाम कमा रहे हैं।

कहें दीपकबापू पुराने सामान से
सभी पीछा छुड़ाते हैं
हम तो नये पर
आंख जमा रहे हैं।
.................
पुराना सम्मान था
फैंक दिया
कबाड़ी ने दाम
पुराने लगाये थे।
कहें दीपकबापू जब नया था
तब का भी सवाल
पाने के लिये
कितना पसीना बहाये थे।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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