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Monday, August 30, 2010

अपराधियों की छबि समाज सेवकों जैसी-हास्य कविताएँ (image of criminal-hindi comic poem)

फर्जी मुठभेड़ों की चर्चा कुछ
इस तरह सरेआम हो जाती कि
अपराधियों की छबि भी
समाज सेवकों जैसी बन जाती है।
कई कत्ल करने पर भी
पहरेदारों की गोली से मरे हुए
पाते शहीदों जैसा मान,
बचकर निकल गये
जाकर परदेस में बनाते अपनी शान
उनकी कहानियां चलती हैं नायकों की तरह
जिससे गर्दन उनकी तन जाती है।
--------
टीवी चैनल के बॉस ने
अपने संवाददाता से कहा
‘आजकल फर्जी मुठभेड़ों की चल रही चर्चा,
तुम भी कोई ढूंढ लो, इसमें नहीं होगा खर्चा।
एक बात ध्यान रखना
पहरेदारों की गोली से मरे इंसान ने
चाहे कितने भी अपराध किये हों
उनको मत दिखाना,
शहीद के रूप में उसका नाम लिखाना,
जनता में जज़्बात उठाना है,
हमदर्दी का करना है व्यापार
इसलिये उसकी हर बात को भुलाना है,
मत करना उनके संगीन कारनामों की चर्चा।
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Thursday, August 26, 2010

नई उम्मीद के चिराग-हिन्दी शायरी (nai ummeed ki chirag-hindi shayari)

वादे जुबान पर हैं उनके
नीयत में नहीं
यह समझ नहीं पाये,
धोखा होने का शक था
इसलिये मिलने पर भी नहीं पछताये।
------
खतरे कम रहें
इसलिये दोस्त कम ही बनाये,
दुनियां का इतिहास पढ़ा है हमने भी,
अपनों ने सबसे ज्यादा दगा के दाव लगाये।
--------
उनके मुंह फेर जाने पर
पल भर रो भी लिये,
मगर पहले से ही अंदेशा था कि
मतलब निकलते ही
वह साथ छोड़े देंगे
इसलिये जल्द ही संभलकर
नई उम्मीद के चिराग जलाये।
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Sunday, August 22, 2010

चेतना-हिन्दी शायरी(chetana-hindi shayari)

मर गयी है लोगों की चेतना इस कदर कि
सपने देखने के लिये भी
सोच उधार लेते हैं,
अपनी मंज़िल क्या पायेंगे वह लोग
जो हमराह के रूप में कच्चे यार लेते हैं,
अपने ख्वाबों में चाहे कितने भी देखे सपने
आकाश में उड़ने के
पर इंसान को पंख नहीं मिले
फिर भी कुछ लोग उड़ने के अरमान पाल लेते हैं।
----------
लोगों में चेतना लाने का काम
भी अब ठेके पर होने लगा है,
जिसने लिया वह सोने लगा है,
मर गये लोगों के जज़्बात
मुर्दा दिलों में हवस के कीड़ों का निवास होने लगा है।
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Thursday, August 19, 2010

नीयत-क्षणिका (neeyat-kshnika)

भ्रष्टाचार के विरुद्ध
अब कभी ज़ंग नहीं हो सकती,
अलबत्ता हिस्सा बांटने पर
हो सकता है झगड़ा
मगर मुफ्त में मिले पैसे को
हक की तरह वसूल करने में
किसी की नीयत तंग नहीं हो सकती।
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Saturday, August 14, 2010

नागपंचमी का अध्यात्मिक महत्व-हिन्दी लेख (naagpanchami ka mahatva-hindi lekh)

पूरे देश में नागपंचमी का पर्व बड़े धूमधाम से बनाया जाता है। दरअसल इसका धार्मिक महत्व सभी जानते हैं पर शायद ही कोई इसका अध्यात्मिक महत्व समझता हो क्योंकि उसका संबंध आंतरिक अनुभूतियों से है जो अव्यक्त होती हैं जबकि लोग व्यक्त भाव से मंदिरों में पूजा अर्चना कर ही इतिश्री कर लेते हैं। अध्यात्मिक विषय आंतरिक क्रियाओं से जुड़ा है उनका ज्ञान होने पर हम हमने कर्मों का दृश्यव्य के साथ अदृश्यव्य परिणामों का भी अध्ययन कर सकते हैं।
नागपंचमी मनाते हुए इस देश को बरसों हो गये पर आज भी नाग और सांप के नाम पर इतने भ्रम फैले हैं कि देखकर आश्चर्य होता है। मजे की बात यह है कि शिक्षित तबका भी उस भ्रम के साथ जी रहा है जबकि सच उसने अपनी किताबों में पढ़ा है।
जो भ्रम इस देश में फैले हैं वह यह है कि
-सारे सांप और नाग जहरीले होते हैं।
-सांप और नाग दूध पीते हैं।
-नाग बीन की आवाज पर नाचता है।
इनका सच यह है कि
-नब्बे फीसदी से अधिक सांप और नाग जहरीले नहीं होते।
-सांप और नाग दूध पी नहीं सकते क्योंकि उनके मुख में अंदर चीज ले जाने की क्षमता नहीं होती। वह निगलते हैं इसलिये चूहे या मैंढक को सीधे मुंह में लेकर पेट में निगल जाते हैं। ?
-सपेरा बीन बजाते हुए स्वयं भी नृत्य करता है जिसे देखकर उसका पालतू सांप या नाग नृत्य करता है। सांप या नाग को कान नहीं होते वह शरीर की धमनियों में जमीन पर होने वाले स्वर की अनुभूति कर अपना मार्ग चलता है।
अध्यात्मिक और आधुनिक ज्ञान के अभाव के कारण शिक्षित लोग जो कि आधुनिक कालोनी में बसते हैं वहां सांप या नाग के अपने घर में आने पर घबड़ा जाते हैं। वह कहते हैं कि सांप हमारे घर में आ गया जबकि सच यह है कि सांप या नाग के घर पर उन्होंने अपना निवास बनाया होता है। उनके घरों में सांप आने पर किसी को बुलाकर मरवा कर जलवा दिया जाता है। सांप को जीव शास्त्री वन संपदा मानते हैं क्योंकि वह फसलों को हानि पहुंचाने वाले कीड़ों को अपना भोजन बनाते हैं जिसमें चूहा भी शामिल है। अनेक लोग तो सांप और नाग को मनुष्य का बिना पाला हुआ वफादार जीव मानते हैं।
हमारे अध्यात्मिक ग्रंथों में सांपों और नागों की मनुष्य की तरह ही सक्रियता का वर्णन है। सबसे बड़ी बात यह है कि शेषनाग को प्रथ्वी धारण करने वाला माना गया है। इसे हम प्रतीकात्मक भी माने तो यह तो सच है कि सांप और नाग लंबे समय तक इस संसार के विनाशकारी कीड़ों को अपना भोजन बनाकर मनुष्य और पशुओं के जीवन का मार्ग ही प्रशस्त करते रहे हैं। जब कीटनाशक नहीं  रहे होंगे तब उनसे बचाने का काम इन्हीं जीवों ने किया होगा।
कालांतर में हम देखें तो सांप और नागों की संख्या कम होती गयी है और मनुष्य को अब अपनी फसलों के लिये कीटनाशक रसायनों का बड़े पैमाने पर उपयोग करना पड़ रहा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि अब विशेषज्ञ फलों और सब्जियों को इन कीटनाशकों के कारण विषैले होने की बात भी कह रहे हैं। किसी समय लोग केवल फलाहार कर जीवन गुजारते थे क्योंकि उनके लिये पका हुआ भोजन बीमारियों का कारण था। अनेक लोग तो मटर तथा अन्य सब्जियां बिना पकाये हुए खाते थे क्योंकि वह पौष्टिक मानी जाती थीं। अब हालत यह है कि बिना पकाये ग्रहण करना एक जोखिम भरा काम होता जा रहा है क्योंकि उनमें मिले कीटनाशकों को धोना जरूरी है। इनमें से कुछ कीटनाशक धोने में तो कुछ पकाने में अपना प्रभाव खो देते हैं पर उसके बावजूद भी सब्जियों की पौष्टिकता कम हो रही है।
अगर सांपों और नागों को पूज्यनीय बताया गया तो उसका कारण उनकी मनुष्य के लिए उपयोगिता से था। मगर आज हालत क्या है? वन क्षेत्र कम होने के साथ ही पशु पक्षियों और अन्य उपयोगी जीवों का जीना दुश्वार हो गया है। बरसात के समय जब सांप या नाग जमीन से बाहर निकलते हैं तो उनका जीवन एक खतरे की तरफ बढ़ता है। अनेक सांप और नाग वाहनों से कुचल जाते हैं तो अनेक दूसरों के घर में घुसने की सजा पाते हैं।
पेड़ पौद्यों की पर्यावरण की रक्षा के लिये आवश्यकता है और सांप और नाग इन्हीं पेड़ पौद्यों को नष्ट करने वाले कीड़ों को समाप्त करते हैं। जहां तक उनके द्वारा काटे जाने की घटनाओं की बात है वह नगण्य होती हैं और समय पर चिकित्सा मिल जाये तो आदमी बच भी जाता है-मगर देश की व्यवस्था ऐसी है कि कोई काम सहजता से नहीं होता, कहीं चिकित्सक है तो दवा नहीं मिलती। ऐसे में सांप और नाग की हत्या क्रेवल लोग भय के कारण ही करते हैं। सांप या नाग के काटे जाने का भय इस कदर लोगों में है कि शिक्षित से शिक्षित आदमी को भी समझाना कठिन है।
इसके बावजूद यह एक मान्य तथ्य है कि अन्य जीवों के अस्तित्व के कारण ही मनुष्य का अस्तित्व है और अगर वह उनको नहीं बचायेगा तो खुद मिट जायेगा। नागपंचमी में नाग या सांप की पूजा करने से ही केवल इतिश्री नहीं समझनी चाहिए बल्कि इन जीवों की रक्षा के प्रयास भी किये जाने चाहिये। इस नागपंचमी पर पाठकों तथा ब्लाग लेखक मित्रों को बधाई। इस अवसर पर यह संकल्प लेना चाहिए कि वन्य जीवों की रक्षा हर संभव प्रयास से करेंगे।
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Tuesday, August 10, 2010

कमीशन की बरसात-हास्य कविताएँ (commision ki barsat-hasya kavitaen)

बच्चे को मैदान पर हॉकी खेलते देख
पुराने एक खिलाड़ी ने उससे कहा
‘‘बेटा, बॉल से हॉकी कुछ समय तक
तक खेलना ठीक है,
फिर कुछ समय बाद पैसे का खेल भी सीख,
अगर केवल हॉकी खेलेगा  तो
बाद में मांगेगा भीख।’’
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बरसात के पानी से मैदान भर गया
खिलाड़ी दुःखी हो गये
पर प्रबंधक खुश होकर कार्यकर्ताओं में मिठाई बांटने लगा
जब उससे पूछा गया तो वह बोला
‘‘अरे, यह सब बरसात की मेहरबानी है,
मैदान बनाने के लिये फिर मदद आनी है।
वैसे ही मैदान ऊबड़ खाबड़ हो गया था,
पैसा तो आया
पर कैसे खर्च करूं समझ नहीं पाया,
इधर उधर सब बरबाद हो गये,
इधर जांच करने वाले भी आये थे
तो जैसे मेरे होश खो गये,
अब तो दिखाऊंगा सारी बरसात की कारिस्तानी,
हो जायेगा फिर दौलत की देवी की मेहरबानी,
धूप फिर पानी सुखा देगी
अगर फिर बरसात हुई तो समझ लो
अगली किश्त भी अपने नाम पर आनी है,
तुम खाओ मिठाई
मुझे तो बस किसी तरह कमीशन खानी है।
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Saturday, August 7, 2010

वफ़ादार-हिन्दी हास्य कविता (vafadaar-hindi hasya kavita)

अपने तबादले से वह खुश नहीं थे,
क्योंकि नयी जगह पर
ऊपरी कमाई के अवसर कुछ नहीं थे,
इसलिये अपने बॉस के जाकर बोले,
‘‘मैंने तो आपकी आज्ञा का पालन
हमेशा वफादार की तरह किया,
मेरी टेबल पर जो भी तोहफा आया
बाद में डाला अपनी जेब में
आपका हिस्सा पहले आपके हवाले किया,
यह आप मेरे पेट पर क्यों मार रहे लात,
जो तबादले की कर दी घात।’’

बॉस ने रुंआसे होकर कहा
‘‘शायद तुम्हें पता नहीं
तुम्हारी वज़ह से मेरे ऊपर भी
संभावित जांच की तलवार लटकी है,
प्रचार वालों की नज़र अब तुम पर भी अटकी है,
जब आता है अपने पर संकट
तब शिकार के रूप में पेश
अपना वफ़ादार ही किया जाता है,
दाना दुश्मन से निपटते हैं बाद में
पहले नांदा दोस्त मिटाया जाता है,
तुम्हारे सभी जगह चर्चे हैं,
कि जितनी आमदनी है
उससे कई गुना घर के खर्चे हैं,
भला कौन बॉस सहन कर सकता है
अपने मातहत से अपनी तुलना,
बता रहे हैं लोग तुमको मेरे बराबर अमीर
तुम भी अब जाकर सुनना,
अधिकारी के अगाड़ी तुम चल रहे थे,
जैसे हम तुम्हारे हिस्से पर ही पल रहे थे,
एक तो छोटे के पिछाड़ी चलना मुझे मंजूर न था,
फिर तुम्हारी वज़ह से
हमारी मुसीबत का दिन भी दूर न था,
इसलिये तुम्हारा तबादला कर दिया,
अपने वफादार भी हम नहीं कृपालु
यह साबित कर
बदनामी से बचने के लिये रफादफा मामला कर दिया,
तुम्हारी वफदारी का यह है इनाम,
बर्खास्तगी का नहीं किया काम,
तबादले पर ही खत्म कर दी बात।
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Monday, August 2, 2010

विवाद की जरूरत-हिन्दी हास्य व्यंग्य (vivad ki jaroorat-hindi hasya vyangya)

वह भद्र पुरुष बुद्धिजीवी बहुत दिनों से बिना प्रचार के सांसें ले रहा था। कहने को लेखक था और संबंधों के दम पर अच्छा खासा छपता भी था पर अब न वह लिख पाता था और न ही उसकी दिलचस्पी थी। अलबत्ता अपने पुराने रिश्तों के सहारे कहीं उसने साहित्यक संस्थाओं के पद वगैरह जरूर हथिया कर रखे थे ताकि साहित्यकार की छबि बनी रहे। बहुत दिन से न तो अखबार में नाम आया और न ही टीवी चैनल वालों ने पूछा।
उस दिन एक भद्र महिला बुद्धिजीवी का फोन उसके पास आया। उसने रिसीवर उठाया ‘‘हलौ कौन बोल रहा है?’’
भद्र महिला ने कहा-‘‘मैं बोल रही हूं।’’
भद्र पुरुष ने कहा-‘‘कौन बोल रही हो। नाम तो बताओ।’’
भद्र महिला ने कहा-‘पहले अपनी खांसी बंद तो कर बुढऊ, तब तो बताऊं।’
भद्र पुरुष ने खांसते हुए कहा-‘‘पहले नाम तो बताओ! गोरी नाम है या काली या सांवली या दिलवाली! तुम नाम बताओगी तो खांसी अपने आप रुक जायेगी। नहीं तो मुझे यह भ्रम बना रहेगा कि पंद्रह दिन से मायके में गयी मेरी बीवी बोल रही है, उसे अधिक बात न करना पड़े इसलिये मेरा गला वैसे ही बिदकता है। मेरे समझाने पर भी नहीं समझता।’’
भद्र महिला-कमबख्त! तू अब भी नाम पूछता है। तेरा नाम तो डूबा जा रहा है। उसे बचाने के लिये मौका चाहिए कि नहीं!
भद्र पुरुष की खांसी रुक गयी और बोला-‘अच्छा! तू बोल रही है.........तभी मैं कहूं कि ऐसा स्वर किसका है जिसकी वजह से खांसी नहीं रुक रही। मेरे कान तो कोयल के स्वर सुनने के आदी हैं न कि कौएनी के!’
भद्र महिला-‘लगता है सठिया गये हो। अब यह कौएनी कौन? क्या हिन्दी में कोई नया शब्द जोड़ा है। तुझे खुशफहमी है कि तू हिन्दी का बड़ा ठेकेदार है।’
भद्र पुरुष बोला-‘‘कौए के नारी रूप को क्या कहेंगे? मेरे हिन्दी ज्ञान से इसके लिये यही शब्द ठीक है। अब ज्यादा माथा न खपा। बता मामला क्या है?’’
भद्र महिला-‘‘इधर बहुत दिन से मेरा नाम न तो अखबार में आ रहा है न तुम्हारा। इसलिये कुछ ऐसा करो कि अपना नाम चलता रहे। इधर इंटरनेट पर अपना नाम कहीं चमक नहीं रहा।’’
भद्र पुरुष-‘अपने तो चेले चपाटे चमका रहे हैं। रोज कोई न कोई विवाद खड़ा करता रहता हूं। तू अपनी कह, करना क्या है? हां, एक बात याद रखना मैं अब केवल विवाद ही खड़ा करता रहूंगा क्योंकि सीधा सपाट लिखना पढ़ना अब हिन्दी वाले जानते ही नहीं।’
भद्र महिला-‘‘कल एक कार्यक्रम रखा है जिसमें हम दोनों हिन्दी भाषा के साहित्य पर बहस करेंगे। तुम्हारे एक चेले ने ही इसे रखवाया है और कह रहा था कि गुरुजी को आप मना लो। जब बहस होगी तो तय बात विवाद तो होगा। आजकल के प्रचार जगत को विवादों की बहुत जरूरत है।’’
भद्र पुरुष ने हामी भर दी। दोनों समय पर वहां पहुंचे। पहले भद्र पुरुष को बोलना था। उसने भद्र महिला की तरफ देखा और बोला-‘अरे, आजकल कुछ महिला लेखिकाऐं तो यह साबित करने में जुटी हैं कि
उनके लिखे में कौन ज्यादा छिनालपन दिखा सकता है।’
उसने कनखियों से भद्र महिला बुद्धिजीवी को देखा। जैसे उसने सुना ही नहीं। भद्र पुरुष इधर उधर देखने लगा। पास में आयोजक चेला आया तो भद्र बुद्धिजीवी पुरुष ने उसके कान में कहा-‘‘यह सुन नहीं रही शायद! नहीं तो अभी तक तो हमला कर चुकी होंती।’’
चेला तत्काल महिला बुद्धिजीवी के पास गया और बोला-‘आपने सुनने वाली मशीन नहीं लगायी क्या?’
महिला ने वह भी नहीं सुना पर जब कानों में हाथ डाला तो झेंप गयी और तत्काल मशीन लगा ली। तब भद्र पुरुष की जान में जान आयी।
उसने फिर अपने शब्द दोहराये।
भद्र महिला तत्काल उठकर आयी और उसके हाथ से माईक खींचककर बोली-‘‘यह आदमी सरासर मूर्ख है। इसके लिखे में तो ऐसा छिछोरापन दिखता है कि पढ़ते हुए भी हमें शर्म आती है। फिर आज यह समूची महिला लेखिकाओं पर आक्षेप करता है। इसके अंदर सदियों पुरानी पुरुष अहं की भावना है। जिस तरह पुरुष स्त्री को हमेशा ही लांछित करता है। उसी तरह यह भी......’’
एक श्रोता उठकर बोला-‘‘उन्होंने केवल कुछ महिला लेखिकाऐं कहा है तो आप भी कुछ पुरुष कहें। आप दोनों कोई पुरुष या महिला के इकलौते प्रतिनिधि नहीं हैं। हिन्दी भाषा में अच्छे लेखक और लेखिकायें भी हैं पर आप दोनों कैसे हैं यह पता नहीं।’
इस पर भद्र बुद्धिजीवी चिल्ला पड़ा-‘‘ओए, तू कहां से बीच में कूद पड़ा। हम दोनों प्रसिद्ध बुद्धिजीवी हैं इसलिये समूचे मानव जाति के प्रतिनिधि हैं। बैठ जा.......हमें बोलने दे।’’
भद्र महिला-‘बोली और क्या? इस बहस में केवल विद्वान ही हिस्सा ले सकते हैं।’
वह श्रोता बोला-‘पर आप लोग यह किस तरह के असाहित्यक शब्द उपयोग में ला रहे हैं।’
तब आयोजक चेला बोला-‘तुम कोई साहित्यकार हो?’
श्रोता बोला-‘नहीं!
आयोजक चेला-‘तुम्हें कोई पुरस्कार मिला है?’
श्रोता ने ना में सिर हिलाया तो वह चिल्लाया-‘बैठ जा! इतने महान विद्वानों की बहस के बीच में मत बोल।’
श्रोता बोला-‘पर मैं तो इनका नाम भी पहली बार सुन रहा हूं। वैसे मैं सब्जी खरीदने घर से बाज़ार जा रहा था। बरसात की वजह से यहां सभागार के बाहर पोर्च में खड़ा था। अंदर नज़र पड़ी तो देखा कि यहां कोई साहित्यक कार्यक्रम हो रहा है सो चला आया। मुझे नहीं पता था कि यहां कोई भाषाई अखाड़ा है जहां साहित्यक पहलवान आ रहे हैं।’
भद्र महिला चीख पड़ी-‘मारो इसे! यह तो इससे ज्यादा छिछोरेपन की बात कर रहा है।’
इससे पहले कि कोई उससे कहता वह भाग निकला।
उसके साथ ही एक दूसरा श्रोता भी निकल आया और थोड़ी दूर चलने पर उसे रोका बोला-‘यार, अच्छा हुआ मैं बच गया। वरना यह सब बातें मैं ही कहने वाला था पर मेरे पास बैठे एक आदमी ने यह कहकर रोका यहां तो पहले से ही तयशुदा कुश्ती होने वाली है।’
पहले श्रोता ने कहा-‘तुम वहां क्यों गये थे?’
दूसरा श्रोता बोला-‘जैसे तुम बरसात से बचने के लिये गये थे। सुना है आजकल इंटरनेट की वजह से इन पुराने हिन्दी दुकानदारों की स्थिति ठीक नहीं है इसलिये ऐसे स्वांग रचे जा रहे हैं ताकि प्रचार जगत में अहमियत बनी रहे। ऐसा वहीं बैठे एक आदमी ने बताया। अब देखना इस पर चहूं ओर चर्चा होगी। निंदा परनिंदा होगी! कुछ जगह बहसें होंगी। दोनों का डूबता हुआ नाम चमकेगा।’
पहले श्रोता को यकीन नहीं हुआ पर अगले दिन उसने टीवी और समाचार पत्रों में यह सब सुना और पढ़ा। तब मन ही मन बुदबुदाया-छिछोरापन, छिनालपन और तयशुदा जंग।
सारे विवाद में प्रचार जगत में दो दिन तक दोनों भद्र पुरुष और महिला सक्रिय रहे। तीन दिन बाद भद्र महिला ने भद्र पुरुष को फोन किया-‘धन्यवाद, आपने तो कल कमाल कर दिया। एक ही शब्द से ही धोती फाड़कर रुमाल कर दिया। बुढ़ापे में भी रौनक कम नहीं हुई।’
भद्र पुरुष ने कहा-‘इसलिये ही तो ज्यादा लिखना कम कर दिया है। क्या जरूरत है, जब एक शब्द से ही विवाद खड़ा कर नाम कमाया जा सकता है!’
------------
नोट-यह हास्य व्यंग्य किसी घटना या व्यक्ति पर आधारित नहीं है। अगर इसमें लिखा किसी की कारितस्तानी से मेल खा जाये तो लेखक जिम्मेदार नहीं है। इसे केवल पाठकों के मनोरंजन के लिये लिखा गया है।
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