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Wednesday, April 27, 2011

हास्य कविताएँ -दौलत बहुत जरूरी है (daulat bahut jaroori hai-hindi hasya kavitaen)

बीमार गुरु ने चेले से
अपनी पार्थिव देह के संस्कार के बारे में पूछा
तो वह बोला-
‘‘महाराज,
भगवान करेगा आप ठीक हो जायेंगे,
जिंदगी भर चमत्कार किया है
भगवान अब आपके लिये
चमत्कार करने आयेंगे,
अगर ऐसा नहीं हुआ तो
आपकी अर्थी को बड़ी सादगी से सजायेंगे,
आपने हमेशा गरीबों का भला किया
इसलिये कोई शान शौकत नहीं दिखायेंगे।’’

सुनकर मरणासन्न गुरुजी
उठकर बैठे और बोले,
‘‘कमबख्त
किस जन्म का बदला लेने आया है,
जो यह सादगी का नारा बताया है,
तुझे मैंने कितनी बार बताया है कि
आदमी गरीब है या अमीर है
अज्ञानी है कि संत है,
या आम है कि खास है
इसका पता उसके मरने पर
निकलने वाली अर्थी से चलता है,
जिनकी जिंदगी बेरौनक रही
उनकी अर्थी में कोई नहीं चलता है,
जो जलाते हर समय ज्ञान का प्रकाश
उनकी पार्थिव देह के चारों तरफ
घी का दीपक जलता है,
सजता है फूलों का बाग,
बजता है चारों तरफ विरह का राग
फिर गरीबों के कल्याण के व्यापार में
कुछ ही इंसानों का भला किया जाता है,
बाकी तो ज़माने से सोना लूटकर उसे गला दिया जाता है,
हमारी अर्थी और दाह संस्कार पर तुम
धूमधड़कारा करना
इसी शर्त पर हमें मंजूर है अभी मरना,
वरना अपनी बीमारी साथ लेकर जिंदा रहेंगे
चाहे जितना दर्द हम सहेंगे,
मरने से पहले प्रिय शिष्य के रूप में
तुम्हारी जगह किसी दूसरे का नाम
वसीयत में लिखायेंगे,
दौलत बहुत जरूरी है
यह मरने के बाद भी दिखायेंगे।’’
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चेले ने कहा गुरु से
‘महाराज,
ढेर सारा पैसा आ गया है,
अपना फाईव स्टार होटल नुमा
आश्रम भी बनकर लगता नया है,,
यह सब आपके चमत्कारों का परिणाम है,
सत्संग में आपके पीछे खड़े होकर
भभूत, घड़ी और अंगूठी दी मैंने
पर हवाओं का हुआ नाम है
मगर अब छवि बदलने का समय आया है,
ज्ञान के बिना यह अंधेरी माया है,
इसलिये अब लोगों को पुराने ग्रथों से
रटकर उपदेश दिया करें,
ज्ञानियों से भी वाह वाह लिया करें,
वरना कोई आपको संत नहीं मानेगा,
हर कोई जादूगर जानेगा।’’

सुनकर बोले गुरुजी
‘मूर्ख,
क्या धरा ज्ञान में,
चमक है बस दौलत की शान में,
भला,
तूने किसी ज्ञानी को अपने आश्रम में आते देखा,
किसी ज्ञानी को महलनुमा आश्रम में
घर बसाते देखा है
हमारा देश विश्व में विश्व गुरु इसलिये कहलाता है
क्योंकि अज्ञान के अंधेरे में ज्ञान रौशन हो पाता है,
इस काम के लिये ढेर सारे लोग हैं,
जिनको मुफ्त में ज्ञान बांटने और दान करने जैसे रोग हैं,,
अपने देश में बहुत तंगहाली है
इसलिये अपने चमत्कार की चारो तरफ लाली है,
अगर हमने चमत्कार छोड़कर ज्ञान बघारा तो
हर कोई हमें मरा जानेगा।
जिंदा रहकर चमत्कार करते रहे
तो हर कोई हमें अमर मानेगा।’’
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
poet writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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Friday, April 22, 2011

हास्य कविता-भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन (bhrashtachar virodhi andolan or anti corruption movement-hasya kavita)

समाज सेवक की पत्नी ने कहा
‘तुम भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में
शामिल मत हो जाना,
वरना पड़ेगा पछताना।
बंद हो जायेगा मिलना कमीशन,
रद्द हो जायेगा बालक का
स्कूल में हुआ नया एडमीशन,
हमारे घर का काम
ऐसे ही लोगों से चलता है,
जिनका कुनबा दो नंबर के धन पर पलता है,
काले धन की बात भी
तुम नहीं उठाना,
मुश्किल हो जायेगा अपना ही खर्च जुटाना,
यह सच है जो मैंने तुम्हें बताया,
फिर न कहना पहले क्यों नहीं समझाया।’
सुनकर समाज सेवक हंसे
और बोले
‘‘मुझे समाज में अनुभवी कहा जाता है,
इसलिये हर कोई आंदोलन में बुलाता है,
अरे,
तुम्हें मालुम नहीं है
आजकल क्रिकेट हो या समाज सेवा
हर कोई अनुभवी आदमी से जोड़ता नाता है,
क्योंकि आंदोलन हो या खेल
परिणाम फिक्स करना उसी को आता है,
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में
मेरा जाना जरूरी है,
जिसकी ईमानदारी से बहुत दूरी है,
इसमें जाकर भाषण करूंगा,
अपने ही समर्थकों में नया जोशा भरूंगा,
अपने किसी दानदाता का नाम
कोई थोडे ही वहां लूंगा,
बस, हवा में ही खींचकर शब्द बम दूंगा,
इस आधुनिक लोकतंत्र में
मेरे जैसे ही लोग पलते हैं,
जो आंदोलन के पेशे में ढलते हैं,
भ्रष्टाचार का विरोध सुनकर
तुम क्यों घबड़ाती हो,
इस बार मॉल में शापिंग के समय
तुम्हारे पर्स मे ज्यादा रकम होगी
जो तुम साथ ले जाती हो,
इस देश में भ्रष्टाचार
बन गया है शिष्टाचार,
जैसे वह बढ़ेगा,
उसके विरोध के साथ ही
अपना कमीशन भी चढ़ेगा,
आधुनिक लोकतंत्र में
आंदोलन होते मैच की तरह
एक दूसरे को गिरायेगा,
दूसरा उसको हिलायेगा,
अपनी समाज सेवा का धंधा ऐसा है
जिस पर रहेगी हमेशा दौलत की छाया।’’
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
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Saturday, April 16, 2011

जमाने में अंधेरे वही पाले हैं-हिन्दी हाइकू

(1)
वह राक्षस
देवता का चेहरा
लगा रहा है।
(2)
लुटेरा दिल
जज़्बात का धंधा
सजा रहा है।
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(1)
साफ वस्त्र
पहन घूम रहे
दिल काले हैं।
(2)
दान लूटा है
जमाने में अंधेरे
वही पाले हैं।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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Monday, April 4, 2011

नकली ट्राफी का खेल-व्यंग्य चिंत्तन (nakli cup or trofy ka khel-vyangya chittan)

             समझ में नहीं आ रहा है कि व्यंग्य लिखें कि गंभीर चिंत्तन। क्रिकेट को वैसे ही यकीनी खेल नहीं मानते। यहां तक कि जिसे लोग टीम इंडिया कहकर देश के लोग सिर पर उठाये रहते हैं उसके लिये भी हमने केवल एक क्लब बीसीसीआई की टीम मानते हैं। यह क्लब अपने क्रिकेट के व्यापार के लिये भारत के नाम, झंडे और गान का इस्तेमाल करता है इसलिये ही उसे भारत में दर्शक भारी मात्रा में मिलते हैं जिनकी जेब की दम पर पूरी दुनिया का क्रिकेट चल रहा है। बहरहाल हमारी टीम ने विश्व कप जीता खुशी की बात है-जीतने पर हम ऐसा ही करते हैं, हारने पर बीसीसीआई की टीम कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं-खिलाड़ियों के हाथ में ट्राफी या कप देखकर खुशी हुई।
            धोनी और गंभीर ने मन मोह लिया, मगर सारी प्रसन्नता चौबीस घंटे में हवा हो गयी। पता लगा कि उनको नकली कप या ट्राफी दी गयी है और असली भारतीय कस्टम विभाग के भंडार कक्ष की शोभा बढ़ा रही है। गनीमत है कि नागरिक सेवाओं से जुड़े कर्मचारी गोपनीयता के नियमों का पालन करते हैं वरना भंडार कक्ष में रखी ट्राफी का सरेआम दृश्य प्रसारित होता तब देश की इज्जत पर जो बट्टा लगता वह दुःखदायी होता।

            वैसे प्रचार माध्यम घुमाफिरा रहे हैं। बीसीसीआई के प्रवक्ता ने जब यह माना है कि ट्राफी नकली है तब उसमें शक की गुंजायश नहंी रहती। फिर भी आईसीसी कहती है कि असली ट्राफी यह कप है। वैसे प्रचार माध्यमों ने प्रमाणित कर दिया है कि वानखेड़े स्टेडियम में खेले गये विश्व कप 2011 के मैच के बाद भारत को दी गयी ट्राफी नकली है। उसमें विश्व कप का वह लोगो नहीं दिख रहा जिसे कोलंबो में अनावरण के समय देखा गया था। चूंकि यह ट्राफी अत्यंत महत्वपूर्ण है इसलिये यह संभव नहीं है कि उसे कहीं खुले में रखा गया हो जिससे उसका रंग उड़ जाये।
मतलब यह कि यह नकली ट्राफी है।
                  यह देश के साथ मजाक है और यकीनन बिना सोचे समझे नहीं किया गया। यह चिढ़कर किया गया है ताकि भारतीय लोग खुशी के बाद अवसाद के वातावरण का सामना करें। कोई है जो भारत की जीत से चिढ़ गया है। कौन हैं वह लोग? इसकी पड़ताल जरूरी है।

               इसमें कोई संदेह नहीं है कि सट्टेबाजों की ताकत जहां व्यापक है वहीं उनके हाथ लंबे हैं। कहा जाता है कि दुनियां के देशों के कानूनों से अलग आईसीसी तथा सट्टेबाजों का के नियम हैं। वह कई जगह कानून बनकर काम चलाते हैं वहां उनके हाथ भी लंबे हैं। भले ही कहा जाता है कि गोरे ईमानदार होते हैं पर जिस तरह अपराधियों के हाथ वह बिकते देखे गये हैं उससे यह भ्रम टूट गया है। ऐसा लगता है कि इस विश्व कप में कहीं न कहीं सट्टेबाजों को अपना काम सही तरह से करने का अवसर नहीं मिला। सेमीफायनल में पाकिस्तान और फायनल में श्रीलंका पर भारत की जीत तय मानी जा रही थी। ऐसे में सट्टेबाजों के लिये विपरीत परिणाम ही फायदेमंद हो सकता था पर ऐसा हुआ नहीं। हालांकि सट्टेबाजों ने अब स्पॉटफिक्सिंग का रास्ता निकाल लिया है पर लगता है कि वह अपनी कमाई से संतुष्ट नहीं है। फिर सेमीफायनल में पहुंची चार टीमों में-भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा न्यूजीलैंड-से तीन गोरवर्ण का प्रतिनिधित्व नहीं करती। क्या गोरों के मन में यह मलाल रह गया था?
                  दूसरा सेमीफायनल और फायनल मैचों को भारत के अनेक संवैधानिक, राजनीतिक, आर्थिक, फिल्मी तथा अन्य विशिष्ट क्षेत्रों से जुड़े शिखर पुरुषों ने देखा। अपने कामकाज से फुरसत निकालकर वह कुछ देर आम इंसानों की तरह मैच देखने आये? उनकी मासुमियत तथा रुचियों को मजाक उड़ाने का कहीं यह इरादा तो नहीं है? क्या गोरे तथा भारत के विरोधियों को यह लगता है कि अमेरिका की लीबिया पर चल रही बमबारी को ही हम लोग देखते रहें और अपने क्रिकेट मैचों को देखना बंद कर देते।
क्रिकेट मैचों में हारने या जीतने पर भावुक नहीं होना चाहिए, यह हम हमेशा ही कहते रहे हैं पर नकली कप का मामला राष्ट्रवादियों को चिढ़ाने वाला है। भारत में आज नववर्ष विक्रम या विक्रमी संवत् 2068 के आगमन का स्वागत हो रहा है। ईसाई संवत् मानने वालों को यह बात समझ में नहीं आयेगी कि ऐसे अवसर इस तरह की अपमान जनक खबर बेहद दुःखदायी है। दो कौड़ी की आईसीसी-विश्व की क्रिकेट पर नियंत्रण करने वाली संस्था-और एक कोड़ी का फायनल मैच, पर देश का नाम अनमोल है। क्रिकेटर और उससे जुड़े संघों के लोग पैसे कमाने के चक्कर में चुप बैठ जायेंगे पर जिनको क्रिकेट से अधिक देश के प्रति प्रेम का भाव है वह इस व्यवहार से क्षुब्ध अवश्य होंगे।
          यह तो एक विचार है। इसका दूसरा पक्ष यह भी हो सकता है कि यह समाचार ही फिक्स कर बनाया गया हो। विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता का फायनल देखने के बाद यहां के लोगों का क्रिकेट से मन भर सकता है। इधर एक क्लब स्तरीय प्रतियोगिता शुरु हो रही है और उसे दर्शक कम मिल सकते हैं क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता और क्लब स्तरीय क्रिकेट मैचों में अंतर होता है। कहीं यह विश्व कप प्रतियोगिता का स्तर कमतर साबित करने का प्रयास तो नहीं है ताकि दर्शक इसे भूल जायें और क्लब स्तरीय प्रतियोगिता की तरफ जायें।
इधर यह भी सुनने में आया था कि कुछ सट्टेबाज इधर उधर पकड़े गये। उनके साथ आस्ट्रेलिया के दो गोरे खिलाड़ियों की मिलीभगत की बात सामने आयी। शायद इससे गोरे लोगों को सदमा लगा हो।
                  कहने का अभिप्राय है कि यह घटना पूर्वनियोजित है। इससे दो उद्देश्य या दोनों में से एक प्राप्त करने का प्रयास हो सकता है।
        एक तो भारत को अपमानित करना या फिर विश्व कप प्रतियोगिता को कमतर साबित करना ताकि क्लब स्तरीय प्रतियोगिता की तरफ जायें। लंबे समय तक विश्व कप की खुमारी उन पर न रहे क्योंकि छह अप्रैल से क्लब स्तरीय प्रतियोगिता प्रारंभ होने वाली है। शक की पूरी गुंजायश है कि इतनी बड़ी प्रतियोगिता में सब कुछ ठीकठाक रहा तो यह ट्राफी कस्टम का कर चुकाकर स्टेडियम में लायी क्यों न गयी? क्या वह इसे फ्री में लाना चाहते थे? करोड़ो रुपये की मालिक संस्थायें 20 लाख रुपये खर्च करने से मुकर क्यों गयीं? आखिरी बात दूसरी नकली ट्राफी अचानक कैसे बनकर आ गयी? मतलब जांच हो तो मामला कुछ का कुछ निकल सकता है।
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