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Friday, February 26, 2010

'आई लव यू' चलेगा पर रंगीन वेबसाईटें नहीं-हिन्दी लेख (I LOVE YOU AND BLUE WEBSITE--hindi article)

यह कहना कठिन है कि ताइवान में आखिर इस लेखक के दो ब्लाग स्पाट पर बने हिन्दी ब्लाग आखिर कैसे पढ़े जा रहे हैं? वैसे यह पता नहीं कि इन दो ब्लाग पर गूगल सर्च इंजिन की क्यों कृपा हुई है कि वह ब्लाग स्पाट के इन दो ब्लाग को कुछ अधिक ही समर्थन दे रहा है। वैसे तो यह कहा जाये कि सर्च इंजिनों में कोई भी ब्लाग कहीं भी पहुंच सकता है और जरूर नहीं कि उसे खोलने वाला पाठक उसे पढ़े। मगर जब निरंतर टिप्पणियां आती हैं तब यह सवाल उठता है कि आखिर उनका उद्देश्य क्या है?
पहले दिन तो इन दोनों ब्लाग पर करीब तीस करीब टिप्पणियां एकसाथ आईं। चीनी भाषा में टिप्पणियां थीं पर उनके अक्षरों पर कर्सर ले जाने पर यह आभास होता था कि उनके पीछे वेबसाईटें हैं। इस लेखक ने उनको खोलकर देखा तो रंगीन किस्म की वेबसाईटें दिखाईं दी। यह दोनों ब्लाग माडरेशन से मुक्त थे इसलिये सभी तीस टिप्पणियों को हटाने के लिये मेहनत करनी पड़ी। टिप्पणियां एक क्रम में नहंी थी जिसका आशय यह था कि टिप्पणीकर्ता ने पाठों के चयन के आधार पर टिप्पणियां की है। वेबसाईटों की संख्या बहुत थी। उनका रंगीन विषय देखकर उन्हें हटा देने के साथ ही ब्लाग पर माडरेशन लगा दिया गया। इसके बावजूद टिप्पणियों के आने का क्रम जारी रहा। यह टिप्पणियां इस ब्लाग लेखक को प्रेरणा देने या पाठकों को पाठ के विषय में अतिरिक्त सामग्री देने की बजाय अपनी वेबसाईटों के प्रचार के लिये लिखी गयी लगती हैं। इसके बाद अनेक टिप्पणियों को हटाया जाता रहा। मगर लिखने वाला बाज नहीं आ रहा है। टिप्पणीकर्ता ने सोचा होगा कि हिन्दी का ब्लाग लेखक है और चीनी भाषा नहीं समझता तो उसने सबसे पहले अंग्रेजी शब्द लिखे ‘आई लव यू’। उसके बाद चीनी भाषा में कुछ शब्द थे। कर्सर रखते ही यह पता तो लगा कि इनके पीछे भी रंगीन विषय वाले फोटो हैं पर यह जानने के लिये आखिर उनका हिंदी अनुवाद क्या है, अनुवाद टूलों में उनको लिया गया।
चीनी भाषा में शब्द इस प्रकार थे।

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गूगल के अनुवाद टूल से इस तरह हिन्दी में दिखा।
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दरअसल आई लव यू शब्द ने इस लेखक को आकर्षित किया था। अंग्रेजी के इस शब्द के उपयोग की अपनी महिमा है। वैसे चीन और ताईवान के लोग अपनी भाषा के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। भारत में हम लोग लापरवाही दिखाते हुए अंग्रेजी पर लट्टू होते हैं पर इसका एक लाभ है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संपर्क करने में कठिनाई कम आती है। पूर्व के लोगों को इस समस्या से दो चार होना पड़ता होगा। हालांकि अनुवाद टूलों ने ब्लाग जगत को एक ही मंच बना दिया है। जिस तरह चीनी भाषा से हिन्दी में अनुवाद हुआ अगर ऐसा ही हिन्दी से चीनी में हो रहा होगा तो यकीनन उसे पढ़कर समझा तो जा सकता है। टिप्पणियों का क्रम पाठों के क्रम में न होने का कारण यह है कि उस ताईवानी टिप्पणीकर्ता ने केवल कविताओं पर ही अपनी बात रखी है। अनुवाद टूलों से यह तो लग रहा है कि गद्य की बजाय पद्य रचनाओं का अनुवाद कुछ अधिक सहज और शुद्ध होता है-यह भी संभव है छोटी होने के कारण उनको सहजता से पढ़ा जा सकता है।
टिप्पणीकर्ता पाठ पढ़कर कुछ भी टिप्पणी कर अनुग्रहीत करना चाहता है या उसका उद्देश्य ही अपनी वेबसाईटों का प्रचार करना है। कहीं ताईवान या चीन में ऐसा रिवाज तो नहीं है कि टिप्पणी लिखते हुए कुछ रंगीन वेबसाईटें पते के रूप में लिखा जाती हों-यह कहना कठिन है। ताईवान के उस टिप्पणीकर्ता ने कम से कम डेढ़ सौ टिप्पणियां की होंगी मगर उसकी वेबसाईटों की वजह से उसको जगह नहीं मिली। यह दोनों ब्लाग स्पाट के हैं जहां पाठक और टिप्पणियां कम ही आती हैं इसलिये उन पर ध्यान देना आसान रहता है। जबकि वर्डप्रेस के ब्लाग पर पाठकों की संख्या इतनी अधिक रहती है कि इस तरफ ध्यान से देखना कठिन है। वहां अन्य भाषाओं में टिप्पणियां आती हैं पर चीनी भाषा में कभी नहीं मिली।
दरअसल विश्व के पूर्वी हिस्से से हमारा भाषाई संपर्क सतत इसलिये भी कठिन है क्योंकि वहां अंग्रेजी को इतनी तवज्जो नहंी दी जाती। विदेशों में पश्चिम में जितने हिन्दी ब्लाग पढ़ते देखे हैं उतने पूर्व दिशा में नहीं। ऐसे में इंटरनेट पर अनुवाद टूलों से ही विचार और संवाद की प्रक्रिया प्रारंभ हो सकती है। अलबत्ता कम से कम अंग्रेजी की वैश्किता शायद ‘आई लव यू’ के कारण ही बनी हुई है। ताईवानी टिप्पणीकर्ता ने शायद इसलिये ही उसका इस्तेमाल किया कि इस ब्लाग लेखक को यह तो समझ में जरूर आयेगा। मगर उसके साथ दोस्ताना संपर्क में उनकी वेबसाईटें ही बाधक होंगी। अब यह कहना कठिन है कि वह कोई महिला ब्लाग लेखक है या पुरुष! एक ही आदमी टिप्पणी कर रहा है या अनेक लोग हैं। पर यह दिलचस्प है कि विश्व में भाषा और लिपि की दीवारें टूट रही हैं-अंग्रेजी ब्लाग के एक हिन्दी लेखक के एक पाठ पर यह टिप्पणी बहुत पहले की थी जो धीमी गति से ही सही साबित होती जा रही है।


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Monday, February 22, 2010

साइकिल, क्रिकेट और फिल्म-हिन्दी हास्य व्यंग्य (cycle,cricket and film-hindi haysa vyangya)

भारत में आयोजित एक निजी क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता में पाकिस्तानियों को नहीं खरीदा गया। पाकिस्तान इसका बदला लेने की फिराक में था और उसने लिया भी, भारत की साइकिलिंग टीम को अपने यहां न बुलाकर। एक अखबार में कोने में छपी इस खबर ने दिल को हैरान कर दिया। न देशभक्ति के जज़्बात जागे न अपने साइकिल चलाने को लेकर अफसोस हुआ। भारत में इसकी कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दिखाई दी। अनेक्र लोगों को तो यह खबर ही समझ में नहीं आयी होगी कि साइकिल की भी प्रतियोगिता होती है और इसे ओलम्पिक में एक खेल का दर्जा प्राप्त है। मामला साइकिल से जुड़ा तो अनेक बुद्धिजीवियों को इस टिप्पणी करते हुए शर्म भी आयेगी यह सोचकर कि ‘साइकिल वालों का क्या पक्ष लेना?’
हमारी नज़र और दिमाग में यह खबर फंस गयी और अपने भाव व्यंग्य के रूप में ही अभिव्यक्त होने थे। सच तो यह है कि जिसे चिंतन और व्यंग्य में महारत हासिल करना है उसे साइकिल जरूर चलाना चाहिये। जहां तक हमारी जानकारी है हिन्दी में उन्हीं आधुनिक काल के लेखकों ने जोरदार लिखा जिन्होंने रिक्शा, पैदल या साइकिल की सवारी की। पाकिस्तान द्वारा साइकिलिंग टीम को रोकने पर ऐसी हंसी आयी जिसे हम खुद भी नहीं समझ पाये कि वह दुःख की थी या व्यंग्य से उपजी थी। ऐसे में तय किया इस पर शाम को लिखेंगे।
शाम को लिखने का विचार आया तो लगा कि पहले साइकिल चला कर आयें। इसलिये दस दिन बाद फिर साइकिल निकाली-ब्लाग लिखने के बाद साइकिल चलाना कम हो गयी है पर जारी फिर भी है। हमें पता था कि केवल कोई साइकिल चालक ही इस पर अच्छा सोच सकता है। जहां तक रही देशभक्ति की बात तो एक किस्सा हम लिख चुके हैं, उसका संक्षिप्त में वर्णन कर देते हैं।
एक बार स्कूटर पा जा रहे थे कि रेल की वजह से फाटक बंद हो गया। हम एक तरफ स्कूटर खड़ा कर उस पर ही विराजमान थे। उसी समय एक कार आकर रुकी। कार के पीछे एक गैस मैकनिक साइकिल पर आ रहा था। उसने बहुत कोशिश की पर वह कार को छू गयी।
वह गरीब मैकनिक चुपचाप हमारे आगे साइकिल खड़ी कर वहीं ठहर गया। उधर कार से एक सज्जन निकले-जो वस्त्रों से नेता लग रहे थे-और उस कार वाले को बुलाया। वह उनके पास गया और उन्होंने बड़े आराम से उसके गाल पर जोरदार थप्पड़ दिया। वह मासूम सहम गया। फिर वह उससे बोले-‘भाग साले यहां से!’
जब से स्कूटरों, कारों और मोटर साइकिलों का प्रचलन बढ़ा है साइकिल चालकों के लिये रास्ते पर चलना दुर्घटना से ज्यादा अपमान की आशंकाओं से ग्र्रसित रहता है। हमने भी अनेक बार झेला है। इसलिये जब साइकिल पर होते हैं तो हर तरह का अपमान सहने को तैयार रहते हैं। ऐसे में पाकिस्तान के द्वारा किया गया यह व्यवहार अपमाजनकर हमें अधिक दुःखदायी नहीं लगा। हमारे लिये उसके खिलाड़ियों को नहीं खिलाना साइकिल द्वारा कार को छूने जैसी घटना है और उसके व्यवहार थप्पड़ मारने जैसा तो नहीं चिकोटी काटने जैसा है। दरअसल दोस्ती और दुश्मनी अब दोनों देशों के खास वर्ग के लिये एक फैशन बन गया है। यह खास वर्ग अपने हिसाब से दोनों तरफ के आम इंसानों को कभी आपस में प्रेम रखना तो कभी दुश्मनी करने का संदेश देता है।
पाकिस्तान खिसिया गया है और खिसियाया गया आदमी कुछ भी कर सकता है। ऐसे में वह दूसरे को थप्पड़ मारते हुए अपना हाथ ही कटवा बैठता है। भारत के धनपतियों ने तो उससे गुलाम नहीं खरीदे थे पर उसने तो खिलाड़ियों को रोका है। याद रहे क्रिकेट को ओलम्पिक में खेल ही नहीं माना जाता। फिर इधर क्रिकेट और फिल्म तो संयुक्त व्यवसाय हो गये हैं। क्रिकेट खिलाड़ी रैम्प पर अभिनेत्रियों के साथ नाचते हैं तो फिल्म अभिनेत्रियां और अभिनेता उनकी टीमों के मालिक बन गये हैं। ऐसे ही एक अभिनेता मालिक ने पाकिस्तान से गुलाम न खरीदने पर अफसोस जताया! इस पर देश में एक सीमित वर्ग ने बेकार बावेला मचाया! दरअसल उसके प्रचार प्रबंधक चाहते यही थे इसलिये एक अभिनेत्री मालकिन से कहलवाया गया कि ‘चंद लोगों की धमकी के चलते ऐसा हुआ।’

जहां तक हमारी जानकारी पाकिस्तान के गुलामों को खरीदने को लेकर बयान से पहले कुछ कहा नहीं था। मगर अभिनेता मालिक ने जब बयान दिया तो उस पर हल्ला मचा। आखिर प्रचार प्रबंधकों ने ऐसा क्यों किया? अभिनेता की वह फिल्म पाकिस्तान के दर्शकों के बीच भी जानी थी। दूसरी बात यह कि उसमें उस जाति सूचक शब्द को शीर्षक में शामिल किया गया जो पाकिस्तानियों का सिर गर्व से ऊंचा कर देता है। सच तो यह है कि क्रिकेट के उस बयान को भारत में अनदेखा कर देना चाहिये था क्योंकि यह फिल्म के पाकिस्तानी प्रसारण को रोकने से बचाने के लिये दिया गया था। शायद भारत में कम ही लोग जानते हैं कि पाकिस्तान में अब भारतीय फिल्मों का प्रसारण सार्वजनिक रूप से किया जाने लगा है। कहीं पाकिस्तान के लोग चिढ़कर फिल्म का बहिष्कार न कर दें इसलिये उसे यहां रोकने का अभियान चलाया गया जिससे वहां के आम आदमी को यह अनुभव हो कि भारत के लोग इसे देखने पर चिढेंगे। इधर भारत में फिल्म रोकने के प्रयास को अभिव्यक्ति से जोड़ा गया।
होना तो यह चाहिये था कि पाकिस्तान उस अभिनेता की फिल्म को रोकता मगर विवाद इस तरह फंस गया कि उसके प्रसारण में वहां के प्रबंधकों ने अपना हित देखा। ऐसे में वह बदला कैसे ले! साइकिल वालों को रोक लो!
उसने सही पहचाना! दरअसल साइकिल वाले ऐसे सतही विवादों में नहीं पड़ते। यह कार, स्कूटर, और मोटर साइकिल वाले क्या लड़ेंगे! एक मील पैदल चलने में हंफनी आ जाती है। मामला दूसरा भी है। साइकिल वाले पेट्रोल के दुश्मन हैं यह अलग बात है कि भारत में अभी भी इस देश में कुछ लोग इस पर चल ही रहे हैं। पेट्रोल बेचने वाले देश पाकिस्तान के खैरख्वाह हैं। इस तरह उसने उनको भी बताया कि देखो कैसे भारत के साइकिल वालों को आने से रोका। कहीं यह प्रतियोगिता भारत के खिलाड़ी जीतते तो संभव है कि जिस तरह 1983 की विजय के बाद क्रिकेट का खेल यहां लेाकप्रिय हुआ था, अब कहीं साइकिल भी वहां लोकप्रिय न हो जाये।
एक टीवी पर विज्ञापन आता है। जिसमें स्वयं बच्चा साइकिल पंचर की दुकान खोलकर बाप को पेट्रोल बचाने का उपदेश देते हुए कहता है कि ‘इस तरह तो आपको साइकिल चलानी पड़ेगी, तब पंचर कौन जोड़ेगा।’
तब हंसी आती है क्योंकि पेट्रोल खत्म होने पर न बाप साइकिल चलाने वाला लगता है न लड़का ही कभी पंचर जोड़ने वाला बनते नज़र आता है। वैसे बड़े शहरों का पता नहीं पर छोटे शहरों में साइकिल पंचर जोड़ने वालों की कमी हमें नज़र नहीं आती। पेट्रोल कल खत्म हो जाता है, आज खत्म हो जाये, हमारी बला से! यह देश पानी से चल रहा है पेट्रोल से नहीं। यह भी विचित्र है कि जो पानी हमारे यहां बिखरा पड़ा है उसे बचाने का संदेश कोई नहीं देता बल्कि उस पेट्रोल को बचाने की बात है जिसका अपने देश में उत्पादन बहुत कम है।
हमें तो ऐसा लगता है कि जैसे जैसे साइकिल लोगों ने चलाना कम कर दिया वैसे ही उनकी विचार शक्ति भी क्षीण होती गयी है। कथित सभ्रांत वर्ग के युवाओं के लिये तो साइकिल अब एक अजूबा है। उनके पास समय पास करने के लिये पर्दे पर फिल्में देखना या क्रिकेट में आंखें झौंकने के अलावा अन्य कोई साधन नहीं है। जहां पहुंचना है फट से पहुंच जाते हैं। साइकिल पर जायें तो थोड़ा समय अधिक पास हो। हमारा तो यह अनुभव है कि घुटने घूमते हैं तो दिमाग भी घूमता है। उसमें नित नये विचार आते हैं। कल्पनाशक्ति तीव्र होती है। जब दिमाग विकार रहित होता है तो दूसरा उसका दोहन नहीं कर सकता। आजकल का बाजार जिन लोगों का दोहन कर रहा है उनके पास पैसा है और दिमाग के जड़ होने के कारण वह मनोरंजन का इंतजार करते रहते हैं। बाजार घर में उठाकर उठकार मनोरंजन फैंक रहा है। साइकिल पर चलते फिरते मनोरंजन करने वाले उसके दायरे से बाहर हैं। यही बाजार पूरे विश्व में फैल रहा है और पाकिस्तान ने भारत की साइकिलिंग टीम को रोककर साबित किया कि वह भी उसके दबाव में है। वह फिल्म अभिनेताओं और क्रिकेट खिलाड़ियों का आगमन तो रोक हीं नहीं सकता न!


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Thursday, February 18, 2010

दरअसल-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (darasal-hindi vyangya adaen-hindi vyangya kavitaen)

न हार है, न जीत है,
न क्रोध है,न प्रीत है।
पर्दे के दृश्यों में मत बहो
सभी इंसानों से अभिनीत हैं।
-------
उनकी अदायें देखकर
हम भी हैरान थे,
दरअसल पुतलों के भेष में
वह चलते फिरते इंसान थे।
पर उनका कदम बढ़ता था
दूसरे के इशारे पर,
जुबां से निकलते तभी शब्द
लिख कर देता कोई कागज पर,
लुटाये लोगों ने उन पर पैसे
अपनी झोली में समेट कर, वह चल पड़े
किसी को जानते न हों जैसे,
चेहरा सजाया था फरिश्तों की तरह
दरअसल वह खरीदे हुए शैतान थे।

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Sunday, February 14, 2010

मुस्कराहट और आंसु-हिन्दी व्यंग्य कविता (muskrahat aur ansu-hindi vyangya kavita)

हादसे हों या खुशी के मौके

बाजार के सौदागरों के हाथ

लड्डू ही आते हैं,

क्योंकि कफन हो या लिबास

वही से लोग लाते हैं।

चीजों के साथ जज़्बात भी

कहीं मोल मिलते तो

कहीं किराये पर

इसलिये कृत्रिम मुस्कराहट बेचने वाले

आंसु भी बेचते नज़र आते हैं।

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Wednesday, February 10, 2010

इंसाफ का दरबार-हिन्दी व्यंग्य कविता (insaf ka darbar-hindi comic poem)

होते हथियार में तो हम भी

अमन के पहरेदारों की तरह

अपनी अदायें दिखाते।

लूट की दौलत होती तो

ईमानदारों की सूची में

अपना नाम लिखाते।

इस जमाने में भलमानसियत के

मायने अब पहले जैसे नहीं रहे,

लुटेरों और हमलावरों को

हर इंसान सलाम कहे,

बेकसूरों का खून बहाने की ताकत जिनमें है

वही अपने घर पर इंसाफ का दरबार बनाकर

हवाओं को सजा दिलाते।

रंगे हैं हाथ जिनके बेईमानी और खून से

उनसे दोस्ती का रिश्ता भी निभाते।

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Thursday, February 4, 2010

दिखावटी दुनियां-हिन्दी व्यंग्य कविता (dikhvati duniya-hindi comic poem)

उन्होंने अपने अभिनय से

कर ली दुनियां अपनी मुट्ठी में

पर अपना ही सच भूल जाते हैं।

बोलते अपनी जुबां से, वह जो भी शब्द,

करता है उसे कोई दूसरा कलमबद्ध,

दूसरों के इशारे पर बढ़ाते कदम,

उनके चलने को होता बस, एक वहम,

पर्दे पर हों या पद पर

अपने ही अहसासों को भूल जाते हैं,

फुरसत में भी आजादी से  सांस लेना मुश्किल

बस, आह भरकर रह जाते हैं।

जमाना उनको बना रहा है अपना प्रिय

जो दिखावटी प्रेम का अभिनय किस जाते हैं।

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Monday, February 1, 2010

नयी स्वयंवर परंपरा-हिन्दी हास्य कविता (nai svyamvar parampara-hindi comic poem)

पति ने पत्नी से कहा

‘ बहुत कोशिश पर भी इतने दिनों में

अपने बेटे की

 शादी नहीं करवा पाये,

कमाता कौड़ी भी नहीं है

पर कमाऊ दिखाने के लिये

अपने बैंक खाते भी उसके नाम करवाये।

जानने वाले लोग पोल खाते हैं

इसलिये क्यों न अब उसके लिये स्वयंवर

आयोजित किया जाये।

नयी परंपरा है

लोग दौड़े चले आयेंगे

हो सकता है कि काम बन जाये।’

पत्नी ने कहा

‘हां, अच्छा है

अपना बेटा भी भगवान राम की तरह ही गुणवान है,

भले ही कमाता नहीं पर अपनी शान है,

सीता जैसी बहू मिल जाये

तो जीवन धन्य हो जाये,

पर समधी भी जनक जैसा हो,

दहेज देने में झिझके नहीं, ऐसा हो,

पर किसी पर यकीन नहीं करना

अपने कार्यक्रम में ऐसे ही लोगों को

आमंत्रित करना जिनके पास माल हो,

ऐसा न कि बाद में बुरा हाल हो,

घुसने से पहले सभी को

अपनी मांग बता देना,

उनकी हालत भी पता कर लेना,

सभी खोये रहें इस नयी स्वयंवर परंपरा में

पर तुम कम दहेज पर सहमत न होना

कोई कितना भी समझाये।’

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