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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, February 21, 2015

असम्मानित शब्द-हिन्दी कविता(asmmanit shabd-hindi poem)



मुख से निकले शब्द

हवा में बह जाते हैं।



कोई सुने तो समझे

कोई अनसुना कर दे

अपना अर्थ कह जाते हैं।



कहें दीपक बापू  हृदय के भाव

संवेदनाओं की धारा में ही

सहजता से बहते हैं,

स्वार्थ के पत्थर से सजे दिमाग

भावनाओं के घर में नहीं रहते हैं,

शब्दों के सही अर्थ

उनके कान के द्वार पर ही

असम्मानित खड़े रह जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Monday, February 9, 2015

काबलियत का खेल-हिन्दी कविता(kabaliyat ke khel mein-hindi poem)



शतरंज के खेल में
चाल दमदार हो तो
पैदल भी वज़ीर बन जाता है।

जिदंगी के खेल में
काबलियत हो तो
आम इंसान भी
ज़माने के लिये नज़ीर बन जाता है।

कहें दीपक बापू चालाकी के खेल में
मतलबपरस्त जीतते हैं
ज़माने की अक्ल का डंडा घुमाकर
असलियत सामने आने पर
वही उनके पांव की जंजीर बन जाता है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Sunday, February 1, 2015

जरूरतों का दास इंसान -हिन्दी कवित(jarooraton ka das insan-hindi kavita)



इस संसार में
हर इंसान जरुरतों का
दास होता है।

जिनसे मतलब न हो
उसे कोई घास नहीं डालता
पूरी करे उम्मीद
वही खास होता है।

कहें दीपक बापू थोथे नारों  पर
चलकर ज्यादा देर तक
इंसानों को भरमाया
नहीं जा सकता
नारों का नारियल
फोड़कर पानी निकाले बिना
जनता की नज़र में
कोई पास नहीं होता है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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