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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, March 28, 2014

उनका भरोसा-हिन्दी व्यंग्य क्षणिका(unka bharosa-hindi vyangya short poem)



हमें ऊंचे लक्ष्य की तरफ उन्होंने मदद का
भरोसा देकर ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर  धकेल दिया
मौका आया तो बताने लगे अपने मसले और मजबूरी,
यूं ही छोड़ जाते तो कोई बात नहीं
उन्होंने बना ली दिल से दूरी।
कहें दीपक बापू तन्हाई इतना नहीं सताती,
बिछड़ने के दर्द दूर करने की कोई दवा नही आती
हमने भी तय किया है
उसी जंग में उतरेंगे जो लड़ सकेंगे खुद ही पूरी।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Monday, March 24, 2014

शब्दों के व्यापारी-हिन्दी व्यंग्य कविता(shabdon ke vyapari-hindi vyangya kavita)



जहान की चिंत्ताओं का बोझ ढोते दिखते हैं शब्दों के व्यापारी,
बाज़ार में कोई शय नहीं बेचने के लिये वादों से करते छवि भारी,
एक चेहरा बदनामी से पुराना हुआ  फिर नया कोई आ जाता है,
भलाई की दुकान का हक कोई जन्म से कोई कर्म से पाता है,
चतुरों ने  अंग्रेजी सेे सभी को भरमाया फिर हिन्दी से भी कमाया,
लगने लगा जब फैशन पुराना अब हिंग्लिश को जरिया बनाया,
उड़ते हैं आसमान में ज़मीन पर रैंगने वालों के बनते वफादार,
नारे लगाने से  जल्दी पा जाते तख्त फिर बन जाते दागदार,
कहें दीपक बापू  अपने जख्मों का इलाज खुद ही करना सीखो
निभाने आयेंगे बहुत सारे हमदर्द दवा पर होगी उनकी नीयत सारी
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Sunday, March 16, 2014

होली का मजाक-हिन्दी व्यंग्य कविता(holi ka mazak-hindi vyangya kavita)




चेहरे का रंग उड़ा है जिनका उन पर कौनसा रंग लगायें,
हुलिया बिगाड़ा है जिन्होंने स्वयं का उनके साथ कैसे होली मनायें।
हर पल देते हैं जो धोखा वह  लोग क्या समझेंगे हास परिहास,
शब्दों का जो अनर्थ करते वह क्या जायेंगे किसी के दिल के पास,
सभी के साथ वादे करते हुए जिंदगी गुजारी कभी पूरे किये नहीं,
दिखाकर सपने दिल का सौदा किया  दाम कभी पूरे दिये नहीं,
भूख, भ्रष्टाचार और भय के विषय बेचते हैं बाजार में सस्ता जताकर,
अपनी मंजिल पर पहुंचते हैं वही दूसरों को रास्ता भटकाकर,
चाल जिनकी टेढ़ीमेढ़ी चरित्र लापता  चेहरे पर पाखंड की छाया है,
चमक रहे  कैमरे पर वही चेहरे जिनकी  असुंदर नीयत और काया है
कहें दीपक बापू होली पर झूठ बोलकर करते हैं  लोग मजाक
करें प्रतिदिन  प्रलाप उनके शब्दों में कहां हास्य का तत्व हम पायें।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Tuesday, March 11, 2014

दवा के दाम में हिस्से-हिन्दी व्यंग्य कविता(dawa ke dam mein hisse-hindi vyangya kavita)




अंगद जैसे उनके पांव नहीं पर फिर भी सेवा के लिये अड़े हैं,
चंदे और दान से व्यापार चलाते शर्म नहीं वह चिकने घड़े हैं।
कागजों पर अपना खुद लिखते हुए इतिहास वह बन गये महान,
मदद का पैसा आत्मप्रचार पर फूंककर पर्दे पर सीना रहे तान,
अपनी चाहतों का पूरा करने के लिये दूसरे का दर्द दिखाते,
खुद करते कमाई ज़माने को तरक्की के सपने देखना सिखाते,
सबके चरित्र पर दाग हैं उन पर कोई उंगली नहीं उठायेगा,
बेआबरुओं से सभी डरते हैं अपनी इज्जत कोई नहीं लुटायेगा,
मशहुर हुए वह ं करके बाज़ारों के सौदागरों से गठबंधन,
जिनके नाम का लिया सहारा उन बेबसों का जारी है कं्रदन,
कहें दीपक बापू अपनी सेहत बचाने का जिम्मा खुद पर है
देह हो या दिल की बीमारी दवा के दाम में उनके हिस्से बड़े हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Wednesday, March 5, 2014

दिल के चैन के लिये-हिन्दी व्यंग्य कविता(dil ke chain ke liye-hindi vyangya kavita)




नित्य स्वांग कर इंसानों की भीड़ लगाकर उन्हें भेड़ की तरह हांको,
खबरों में बनने के लिये पत्थरों को किसी दीवार पर फैंक कर टांको।
भलाई करने की बात करना सरल पर कठिन है करना,
कोई काम  न कर सकों बहाओ आश्वासनों का झरना,
हल्दी लगे न फिटकरी चीखने से चेहरे का रंग चोखा आयेगा,
लोगों के सामने पर्दे से जो शख्स  दूर रहेगा प्रचार में धोखा खायेगा,
इंसान की चाल और चरित्र में जोरदार सनसनी होना चाहिये,
कैमर रहेगा हमेशा पीछे इसलिये माहौन में तनातनी बनाईये,
कहें दीपक बापू बैचैनी से बचना हो तो आंखें और कान बंद कर लो,
दिल बहलाने के लिये घर के अंदर बाहर होते झगड़ों में न झांको।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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