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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, September 26, 2013

नाटकीय अंदाज-हिन्दी व्यंग्य कविता(natkiy andaz-hindi vyangya kavita)



दूसरे को विष देने के लिये सभी तैयार
पर  हर कोई खुद अमृत चखता है,
घर से निकलता है  अपनी  खुशियां ढूंढने
पूरा ज़माना बड़े जोश के साथ
दूसरों को सताने के लिये
दर्द की पुड़िया भी साथ रखता है।
कहें दीपक बापू
बातें बहुत लोग करते हैं
सभी का भला करने की
मगर आमादा रहते
अपना मतलब निकालने के वास्ते,
जुबां से करते गरीबों की मदद की बात
आंखें उनकी ढूंढती अपनी कमीशने के रास्ते,
बेबसों की मदद का नारा लोग  देते,
पहले अपने लिये दान का चारा लेते,
नाटकीय अंदाज में सभी को रोटी
दिलाने के लिये आते वही सड़कों पर
जिनके घर में चंदे से भोजन पकता है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Tuesday, September 17, 2013

हादसे होते रहेंगे-हिन्दी व्यंग्य कविता



देश में तरक्की बहुत हो गयी है
यह सभी कहेंगे,
मगर सड़कें संकरी है
कारें बहुत हैं
इसलिये हादसे होते रहेंगे,
रुपया बहुत फैला है बाज़ार में
मगर दौलत वाले कम हैं,
इसलिये लूटने वाले भी
उनका बोझ हल्का कर
स्वयं ढोते रहेंगे।
कहें दीपक बापू
टूटता नहीं तिलस्म कभी माया का,
पत्थर पर पांव रखकर
उस सोने का पीछा करते हैं लोग
जो न कभी दिल भरता
न काम करता कोई काया का,
फरिश्ते पी गये सारा अमृत
इंसानों ने शराब को संस्कार  बना लिया,
अपनी जिदगी से बेजार हो गये लोगों ने
मनोरंजन के लिये
सर्वशक्तिमान की आराधना को
खाली समय
पढ़ने का किस्सा बना लिया,
बदहवास और मदहोश लोग
आकाश में उड़ने की चाहत लिये
जमीन पर यूं ही गिरते रहेंगे।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Monday, September 9, 2013

हिन्दी दिवस पर व्यंग्य कविता-एक दिन की रौशनी (hindi diwas par vyangya kavita-ek din ki roshni



14 सितंबर हिन्दी दिवस के बहाने,
राष्ट्रभाषा का महत्व मंचों पर चढ़कर
बयान करेंगे
अंग्रेजी के सयानो।
कहें दीपक बापू
अंग्रेजी में रंगी जिनकी जबान,
अंग्रेजियत की बनाई जिन्होंने पहचान,
हर बार की तरह
साल में एक बार
हिन्दी का नाम जपते नज़र आयेंगे।
लिखें और बोलें जो लोग हिन्दी में
श्रोताओं और दर्शकों की भीड़ में
भेड़ों की तरह खड़े नज़र आयेंगे,
विद्वता का खिताब होने के लिये
अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है
वरना सभी गंवार समझे जायेंगे,
गुलामी का खून जिनकी रगों में दौड़ रहा है
वही आजादी की मशाल जलाते हैं
वही लोग हमेशा की तरह हिन्दी भाषा के  महत्व पर
एक दिन रौशनी डालने आयेंगे।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
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