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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, May 31, 2014

स्वर्ग और नरक यहीं हैं-हिन्दी कवितायें(swarg aur narak yahin hain-hind shortQ poem)



स्वर्ग और नरक इस धरती पर ही यहीं कहीं है,
कहीं आम इंसान बसते तो राक्षसों के महल भी यहीं है।
कहें दीपक बापू इंसानों में नहीं मिलता देवत्व
काली करतूत को रोकना इसलिये संभव नहीं है।
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बेबसों पर ताकत आजमाते  वह दबंग हो नहीं सकते,
खाते  मछलियां मगरमच्छ समंदर के वह राजा हो नहीं सकते।
कहें दीपक बापू सभी इंसान बन गये थलचर
स्वार्थ के सिद्ध हैं बेबसों के देवता हो नहीं सकते।
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बेबसों के आंसूओं पर सभी हमदर्दी जताते हैं,
भूल जाते फिर सभी अपने काम में लग जाते हैं।
कहें दीपक बापू मजबूरों के दर्द पर चल रहा धंधा
हमदर्द की छवि बनाकर लोग कामयाबी पा जाते हैं।
----------- 

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Tuesday, May 13, 2014

सपने देखकर गमों से पीछा छुड़ायें-तीन हिन्दी क्षणिकायें(sapne dekhkar gamon se peechha chudayen-three short hindi poem)



बेचैन दिल लेकर कहां जायें,

हर जगह यादें साथ चली आयें।

कहें दीपक बापू दर्द भूलाने की आदत जरूरी है

आगे के सपने देखते हुए गमों से पीछा छुड़ायें।

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हम अपने मन की उदासी ज़माने को क्या दिखाते हैं,

हमारे दर्द पर लोग खुद को खुश्ी से  तसल्ली दिलाते हैं।

कहें दीपक बापू हैरान परेशान लोग क्या हमदर्द बनेंगे

अपने ही मसलों के हल का आसरा जो दूसरों पर टिकाते हैं।

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कभी आती हंसी कभी दिल उदास हो जाता है,

घड़ी की सुई चलती है हमेशा पर कभी वक्त खो जाता है।

कहें दीपक बापू जिंदगी का हर पल बीतता है

कोई लड़ता गम से कोई खामोश होकर सो जाता है।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
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Wednesday, May 7, 2014

संस्कारों में बची ख्वाहिश पाने की-हिन्दी कवितायें(sanskaron mein bachi khwahish pane ki-hindi kavitaen)



रूढ़ियों की अग्नि में जलकर राख हुए समाज
अस्थियां उठाने वाला कोई नहीं है,
संस्कारों में बसी है केवल पाने की ख्वाहिश
टूटते रिश्तों के जिंदा रहने की उम्मीद
अभी  इसलिये खोई नहीं है।
कहें दीपक बापू अपनी भावना आहत होने पर
सभी चिल्लाते हैं
किसी ने दूसरे के गम पर हमदर्दी
अपनी नम आंखों से ढोई नहीं है।
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किसी की याद में कोई मरता नहीं है,
अपनी जान फंसी हो तो
कोई किसी का सहायक बनता नहीं है।
कहें दीपक बापू समय की आंधी
उड़ा ले जाती है जिनके दिल के आशियाने
उन यायावरों का पता भी यहीं कहीं है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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