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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, June 23, 2010

आकाश की छतरी-हिन्दी कविता (akash ki chatri-hindi poem)

रिश्तों से हट गया विश्वास
भला कहां टिक पायेगा,
रोज मिलते हैं लोग यहां
करते हैं ज़माने की शिकायत
अपने अंदर नहीं अपनी ही
उम्मीद पूरी करने का आसरा,
दूसरा कोई इंसान
आकाश की छतरी बनाकर क्यों लगायेगा।
जागते हुए सो रहे सभी लोग
इस विश्वास में
कोई फरिश्ता आकर उनको जगायेगा।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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Monday, June 7, 2010

ज़मीर यकीन खो देगा-हिन्दी शायरी (zameer aur yakeen-hindi shayari)

बरसों इंतजार की आग में
बेबस होकर जलते रहे,
अपनी छा ही छाती पर मूंग दलते रहे,
उम्मीद थी कि इंसाफ
सारे जख्म धो देगा।
जब तारीख आई
तो वह भी मिला
पर जैसे पहाड़ खोदकर निकला चूहा
अफसोस यह था कि
पता लगी अपनी औकात
इसका अनुमान नहीं था कि
ज़मीर करता था जिस इंसाफ पर यकीन
वह भी खो देगा।
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Thursday, June 3, 2010

धूप में जवानी थोड़ा पक गयी है-हास्य कविता (dhoop men javani thoda pak gayi hai-hindi hasya kavita)

अंतर्जाल पर रोज मिलते थे
प्यार भरे शब्द एक दूसरे के लिये लिखते थे,
बहुत दिन बाद
आशिक और माशुका को
आपस में मिलने की बात दिमाग में आई,
एक तारीख चुनकर अपनी मीट होटल में सजाई।
आशिक पहले पहुंचकर टेबल पर बैठ गया
माशुका थोड़ी देर बाद आई।
दोनों ने देखा एक दूसरे को
तब एक उदासी उनके चेहरे पर नज़र आई।
फिर भी खाना पीना टेबल पर सज गया
तो उसे खाने की इच्छा उनके मन में आई।
आशिक ने बिल की कीमत बड़े बेमन से चुकाई।

बातचीत का दौर शुरु हुआ तो
माशुका एकदम जोर से आशिक पर चिल्लाई,
‘सच कहते हैं इंटरनेट पर
धोखे हजार है,
जो खाये वह हो बरबाद
जो दे उसकी तो बहार है
तुम तो छत्तीस के लगते हो
भले ही इंटरनेट में अपने फोटो में
पच्चीस के बांके जवान की तरह फबते हो,
शर्म की बात है
तुमने अपनी उम्र मुझे केवल तीस बताई।’

सुनकर उठ खड़ा हुआ आशिक
और बोला
‘तीस साल का ही हूं
वह तो धूप में जवानी थोड़ा पक गयी है,
तुम्हारे लिये टंकित करते हुए श्रृंगार रस से भरी कवितायें
यह आंखें कुछ थक गयी हैं,
कंप्यूटर पर बैठा बैठा
मोटा और भद्दा हो गया हूं,
पर इसका मतलब यह नहीं कि
जवानी का दिल बिछाकर सो गया हूं,
मेरी बात छोड़ो,
बात का रुख अपनी तरफ मोड़ो,
तुम छह साल से अपनी उम्र
अट्ठारह ही बता रही हो,
फोटो दिखाकर यूं ही सता रही हो,
जब तुम्हें मीट में आते देखा तो सोच रहा था
पता नहीं यह कहीं मेरी माशुका की
माताश्री तो नहीं आयी है।
मुझ पर लगा रही है हो छह साल
कम उम्र बताने का आरोप जबकि
तुमने तो कम से कम
सात साल सात महीने कम बतायी है।
जहां तक मेरा अनुमान है
तुम्हारा नाम भी दूसरा होगा
मुझ से तो तुमने छद्म मोहब्बत रचाई है।
होटल में खा पीकर चली जाओगी,
फिर दूसरी जगह दाव आजमाओगी,
मेरी यह गलती थी जो
छह साल तक तुम्हें अपने दिल की रानी माना,
अपनी तरफ देखो मुझे न दो ताना,
तुम्हें क्या दोष दूं
इंटरनेट की माया
दुनियां की तरह अज़ीब है
इसलिये मैंने यह छठी ठोकर खाई।’

इस तरह आशिक माशुक की पहली मीट ने
दोनों के इश्क की कब्र बनाई।
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