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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, May 26, 2008

अपने हाथ से पहन लेते हैं अपने सिर पर ताज-हिन्दी शायरी

अपने हाथ से अपने ही सिर पर
पहन लेते हैं कोई भी ताज
किससे लिया और कैसे
सवालों के जवाब में रखते राज
मेहनत की राह चलकर
कौन तकलीफें उठाना चाहता
सभी बांधते हैं तारीफों के पुल
एक दूसरे के लिये
जीवन की सफलता का मार्ग
इस पार से उस पार जाकर पाता
सस्ते में बिकने से आता नहीं आदमी बाज
....................................
किसी की तारीफों के पुल बांधने से
सफलता का आसमान मिल गया होता
तो फिर धरती होती आकाश
और आकाश वीरान होता
भला कौन यहां अन्न के लिये बीज बोता
कौन बहाता पसीना
कौन कपड़ा बनता होता
मेहनतकश आसमान में इसलिये नहीं उड़ पाते
क्योंकि तारीफ लायक कोई उनके पास नहीं होता
हर कोई उनके पास खून चूसने के लिए होता
........................................

Thursday, May 22, 2008

मशहूर होकर क्या खाक लिख पायेंगे-व्यंग्य

लिखना मैंने इसलिये नहीं शुरू किया कि मुझे मशहूर होना है। मुझे अपने मशहूर होने की चिंता कभी नहीं सताती क्योंकि मुझे लगता है कि लोग अपनी पूरी ऊर्जा इसी प्रयास में नष्ट करते हैं कि वह प्रसिद्ध व्यक्ति बने और समाज में उनकी चर्चा चारों और लोग करें। मैं उनके करतबों पर ही लिखता रहता हूं पर किसी का नाम लिये बगैर अपनी बात कह जाता हूं कि अगर वह पढ़े भी तो उसे लगे कि किसी अन्य व्यक्ति के लिये लिखा होगा।

उस दिन पांच लोग कहीं आपस में मिले। इसमें मैं और मेरे ब्लाग@पत्रिका पढ़ने वाला एक मित्र भी था। तीन अन्य भी उसके परिचित थे। तीनों अपनी अपनी डींगे हांक रहे थे।
‘अरे, मैं किसी से नहीं डरता मेरी पहुंच दूर तक है।’
‘अरे, इस इलाके में मुझे सब जानते हैं। अपना ही राज्य है।’
‘मैं जहां रहता हूं, वहां सब लोग मेरी इज्जत करते हैं। एक मैं ही वहां इज्जतदार हूं।’
वैसे मेरा मित्र भी कम नहीं है, पर उसे मालुम है कि मैं हाल ही उसकी बात को पकड़ कर लिख कर व्यंग्य लिखने का काम कर सकता हूं। इसलिए कुछ देर तो चुप रहा फिर उसने मुझे ही वहां उलझाने के लिये अपना पासा फैंका और बोला-‘तुम मेरे इस मित्र को जानते हो। कई पत्र-पत्रिकाओं में इसके लेख और व्यंग्य छप चुके हैं। आजकल इंटरनेट पर लिखते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा रहा है पर देखों अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करता।’
मैंने मित्र की तरफ देखा और फिर कहा-‘‘अरे, यार तुम भी क्या बात लेकर बैठ गये। हमें भला कौन जानता है? लिखते हम भी हैं और फिल्मों के हीरो भी लिख रहे हैं पर भला कोई उनके मुकाबले हमें कौन पढ़ता है। तुम्हें और कोई नहीं मिला कि हमारा मजाक उड़ाने लगे।’
उनमें से एक सज्जन बोले-‘‘आप कौनसे अखबार में लिखते हैं?‘
मैने कहा-‘अरे, यह तो ऐसे ही बना रहा है। पहले कुछ कम प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं के लिखा था। अंतर्जाल पर ब्लाग लिख रहे हैं पर कौन पढ़ता है वहां पर। अब तो फिल्मी हीरो हीरोइन के ब्लाग बनते जायेंगे। लोग उनको पढेंगें कि हमें। यह मुझे मित्र कह रहा है इससे पूछो कितनी बार इसने मेरा ब्लाग खोला है?’

दूसरे सज्जन ने कहा-‘अगर आप लिखते हैं तो जरूर मशहूर हो जायेंगे। फिल्मी हीरो हीरोइन गासिपों के अलावा क्या लिखेंगे। वैसे भी उनका लिखा अखबार में आ जाता है। आप लिखते रहें तो एक दिन मशहूर हो जायेंेगें।
बहरहाल मैंने अपनी बौद्धिक शक्ति का उपयोग करते हुए वहां बातचीत का विषय बदल दिया। वहां से निकलते ही मैंने मित्र से कहा-‘दिलवा दिया शाप! उसने क्या कह दिया कि मशहूर हो जाओगे।

मेरा मित्र बोला-‘यार, फिर तो वाकई चिंता की बात है तुम्हारे ब्लाग पर मैंने अभी तक तीन टिप्पणियां लिखीं हैं तो हमें भी तो मशहूर हो जायेंगे। वैसे मशहूर होना तो अच्छी बात है।’
मैंने उससे कहा-‘मशहूर होकर लिखा नहीं जाता। आदमी इसी फिक्र में कई बातें इसलिए नहीं लिख पाता कि अब तो मशहूर हो गया हूं कहीं ऐसा न हो कि लोग इससे नाराज न हो जायें। मशहूर होने का बोझ ढोना कई लोगों के लिए मुश्किल काम है और उनमें हम एक है।
मित्र ने कहा-‘फिर तुम लिखते क्यों हो? मशहूर होने के लिए ही न!
मैंने कहा-‘‘मशहूर नहीं हूं इसलिये लिख रहा हूं। जमकर लिख रहा हूं। मशहूर होने के बाद तो यही सोचकर बैठा रहूंगा कि लिखूं क्या?’
मित्र ने आखिर मुझसे पूछा-‘आखिर मशहूर होना होता कैसे है?’
मैंने भी प्रति प्रश्न किया-‘कैसे होता है?’
मित्र ने कहा-‘‘मैं क्या जानूं? तुम लेखक हो तुम्हीं बताओ।’
मैने कहा-‘मशहूर होने की बात तो तुमने उठाई थी। मुझे लगा कि होगी कोई अच्छी बात है।’
मित्र बोला-‘अच्छा तुम अब मुझ पर ही व्यंग्य करने लगे। मैं इसलिये वहां चुप था कि कहीं तुम मेरी बातों से व्यंग्य सामग्री न ढूंढ लो और अब यही कारिस्तानी यहीं करने लगे। मेरी टिप्पणियां वहां से हटा देना। मुझे ऐसे व्यक्ति के साथ मशहूर नहीं होना जिसे मालुम ही न हो कि वह होता क्या है?’

मशहूर होने के लिये लोग जाने क्या क्या पापड़ बेलते हैं? तमाम तरह की उल्टी सीधी हरकतें करते हैं। उलूलजुलूल लिखते है। लिखने में सबसे बड़ा मजा यह है कि आप किसी आदमी के सामने नहीं होते और इसलिये कोई आपको पहचान नहीं पाता। पिछली राखी की बात है मैं एक रेस्टरां में चाय पी रहा था। उसी दिन एक अखबार में मोबाइल पर लिख मेरा एक व्यंग्य छपा था और दो आदमी उसे पढ़कर हंस रहे थे। एक ने कहा-‘‘देखो यार, मोबाइल पर उसने क्या लिखा है?
दूसरा उसे पढ़ते हुए हंस रहा था। उसे नहीं मालुम कि उसको लिखने वाला लेखक उसे मात्र पांच फुट की दूरी पर बैठा है। बाद में मैंने जब अपने मित्र को जब यह घटना बताई तो वह कहने लगा कि-‘तुमने उनको बताया क्यों नहीं कि तुम उसके लेखक हो।
‘अगर वह कह देते कि क्या बकवाद लिखी है तो मैं क्या करता?‘मैने कहा-‘‘इतना ही ठीक है कि मुझे पढ़ रहे थे। अपने आपको मशहूर करने के प्रयास में कभी कभी उल्टा सीधा भी सुनना पड़ता है। इससे बेहतर है अपने लेख भले ही मशहूर हों, थोड़ा बहुत नाम भी हो जाये पर हमें अपना यह चेहरा मशहूर नहीं कराना।’

मशहूर होने को मतलब है कि अपने ऐसे विरोधी पैदा करना जो छींटाकशी के लिये तैयार बैठे रहते हैं और आप अपने मित्रों से हमेशा सतर्कता की आशा नहीं कर सकते जो सोचते हैं कि यह तो मशहूर आदमी है अपना बचाव स्वयं कर लेगा। वैसे चुपचाप लिखते रहने से ही इतनी आनंद की अनुभूति होती है कि लगता है कि मशहूर हुए तो मिलने वाले बहुत आयेंगे। कई तरह के फोन सुनने पड़ेंगे। तब भला क्या खाक लिख पायेंगे। ऐसे ही ठीक है कि कोई हमें चेहरे से जानता नहीं है। अधिक मशहूर होनेा मतलब अपनी शांति भंग करना भी होता है।

Saturday, May 10, 2008

वही बनते महान-कविता




शब्दों के तीर चलाने के लिये
कलम को धनुष
स्याही को बनाओ कमान
यूं तो आत्ममुग्ध लोग जगह जगह
करते हैं अपने गुणों का स्वयं बखान
स्वार्थ के लिये देते सभी एक दूसरे को मान
जो खामोशी से चलते अपने जीवन पथ पर
करते हैं जो दूसरों के लिए संघर्ष
वही बनते महान
........................................
यूं तो आकाश में उड़ने की चाह में
सभी भ्रमित हो जाते हैं
ऊंचाई का पैमाना किसी के पास नहीं
फिर भी उड़े जाते हैं
कोई अटके बीच में
कोई फिर जमीन पर गिर जाते है
---------------------

दीपक भारतदीप

Monday, May 5, 2008

कुछ लोगों को वाकई हैं यौन शिक्षा की जरूरत-हास्य व्यंग्य

कभी कभी तो लगता है कि वाकई इस देश के लोगों का यौन शिक्षा की आवश्यकता है। खासतौर से उन लोगों को जो यौन पर कहानियां लिखकर कुछ करना चाहते हैं। अगर उन लोगों की कहानियां देखीं जायें तो ऐसा लगता है कि सब कुछ ठीकठाक होते हुए भी उनमें यौन शिक्षा का अभाव है।

जब मैं जेम्स हेडली का उपन्यास पढ़ता था तब मेरे मित्र मुझे ऐसी कहानियां किताबें पढ़ने की सलाह भी देते थे जिनमें कथित रूप से यौन कहानियां होतीं थीं। कुछ ने ऐसी किताबें मुझे दी भी। मैं उनको पढ़ता पर मुझे मजा नहीं आता था। मेरे मित्र इस पर हंसते थे पर उनमें से कोई भी लेखक नहीं बन पाया और आज जब मेरा लिखा कहीं पढ़ते हैं तो उसकी प्रशंसा करते हैं। एक बार मेरे दिमाग में भी ऐसा विचार आया तब सोचा कि ऐसी पत्रिकाओं में अपनी रचना भेज कर अपना नाम कमाने का प्रयास करूं। इसलिये कुछ ऐसी कहानियां लिखने का प्रयास किया जो लिखते समय ही मेरी देह में उत्तेजना भर देतीं थी। कोई रचना पूरी नहीं हुई पर जितनी लिखता फिर उनको नष्ट कर देता। अगर अपनी इन रचनाओं के साथ ऐसा व्यवहार न करता तो उसे रखता कहां? घर में किसी के हाथ लग जाती तो हालत खराब होती। इस विषय में अधिक लिखने का प्रयास नहीं किया पर जिनको लिखते देखता हूं उन पर मुझे दया आती है।

आप जानना चाहेंगे क्यों? उस समय कोई साहित्यक व्यंग्य या कहानी लिखता तो मन प्रफुल्लित होता था पर ऐसी देह हो उत्तेजित करने वाली रचना शरीर को निचोड़ कर रख देतीं थीं। फिर कागज फाड़ कर फैंक देता और जब अपने अंदर अवलोकन करता तो लगता था कि उसमें सारे तत्व मृतप्राय पड़े हुए हैं। इंद्रिय भारी तनाव में हैं और जैसे कोई भारी अपराध कर दिया हो।
हां, यह मजेदार बात है कि मेरी उन रचनाओं में भी शरीर के अंगों का जिक्र नहीं होता बल्कि कुछ ऐसी कहानियां होतीं कि अगर आज भी उनको थोड़ा सात्विक रूप दूं तो मुझसे कोई यह नहीं कहेगा कि वह कोई बेकार रचना है। एक दो व्यंग्य तो ऐसे भी थे जो मैने अपने मित्रों को इस शर्त पर पढ़ने के लिये दिये कि वह किसी को इस बारे में बतायें नहीं, तो उनका कहना था कि मुझे उनको कहीं छपने के लिये भेजना चाहिए क्योंकि उसमें ऐसा वैसा कुछ नहीं है जिसमें अश्लीलता हो पर कहीं न कही वह उत्तेजना पैदा करने वाली थीं, यह भी एक सत्य है।

अंतर्जाल पर मैंने देखा है कि कुछ लोग ऐसे ब्लाग बना कर देह के अंगों की क्रियाओं को खुलेआम लिख रहे हैं। मैं उनको रुकने के लिये नहीं कर रहा क्योंकि जिन यौन कहानियों को वह लिख रहे हैं उनकी आयु अधिक नहीं होती क्योंकि हमारे देह की जितनी भी इंद्रिय उनको एक समय शिथिल होना ही होता है। आंखें देखते-देखते थक जाती हैं, पेट भरा हो तो रोटी और पानी भी विष लगते हैं। हमारा यह मन किसी भी समय एक इंद्रियों के साथ अधिक समय तक नहीं रहता। शायद व्यंजना विधा में कही जा रही बात किसी के समझ में नहीं आये तो स्पष्ट कर दूं कि सुबह का समय भक्ति का, दोपहर का कर्म का, सायंकाल का विश्राम, मनोरंजन और काम का और रात्रि का समय मोक्ष (निद्रा का ) के लिये होता है। मन इंद्रियों से अलग भी बहुत कुछ देखना चाहता है और उसके लिये संगीत, साहित्य और सत्संग आदि जैसे विषय उसे संतुष्ट कर पाते हैं। जो ऐसी वैसी कहानियां लिख रहे हैं उनका लिखा इस मनोरंजक श्रेणी में नहीं आता।

ऐसी ही कहानियों के लेखक की चर्चा मैंने एक दो ब्लाग पर पढ़ी थी जिसे अंतर्जाल के लोग इस बारे में उनको मशहूर बताते हैं। मैने उसका नाम कभी नहीं सुना। दिल्ली के आसपास ऐसे अनेक प्रकाशक और लेखक हैं पर किसी की भारत में ख्याति नहीं है। हमारे बीच के ब्लाग लेखक को पता होना चाहिए कि हिंदी बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के अलावा मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे विशाल प्रदेशों मे भी ं प्रचलित है-दक्षिण भारत में भी अब हिंदी अपने पैर फैला चुकी है- और वहां तक उनके द्वारा बताये गये लेखकों की कोई पहचान नहीं पहुंची है। हो सकता है कि उत्तरप्रदेश, बिहार और दिल्ली के आसपास के प्रदेशों में कुछ ऐसे लेखक हों जो ऐसी कहानियों के लिये विख्यात हों पर उसका मतलब पूरी देश में प्रसिद्ध होना नहीं है-कुछ ब्लाग लेखकों अपनी यह भ्रम दूर कर लेना चाहिए।
कुल मिलाकर अगर कुछ लोगों को यह गलतफहमी है कि इससे ख्याति प्राप्त करे लेंगे तो अपने भ्रम का निवारण करें। एक मजेदार बात यह है कि यह सब लोग छद्म नामों से लिखते हैं और ख्याति मिलेगी तो भी उनको अपने असली नाम से उपयोग नहीं कर पायेंगे। वैसे मैने पहले ही कहा था कि मेरा इरादा किसी को रोकने या विरोध करने का नहीं है पर अगर मेरी बात से कुछ लोग अगर विचार कर अच्छी कहानियां लिखने के लिये मुड़ते हैं तो इसमें बुराई क्या है? वैसे भी उनकी कहानियां देखकर मुझे लगता है कि उनको यौन शिक्षा के लिये किसी अमेरिकी विशेषज्ञ की किताब पढ़ना चाहिए क्योंकि उनकी रचना फूहड़ लगती हैं। अगर कुछ उनमें रोमांच हो तो हम पढ़ लें, मगर अफसोस उनको पता ही नहीं के यौन पर रोमांचक और दिल को वास्तव में प्रसन्न करने वाली कहानियां कैसे लिखीं जातीं है।

transletin in inglish by googl tool
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Sometimes, it is sure that the people of this country's sex education is needed. Especially those who want some written stories on sex. If those stories be seen, it looks like everything is right, the lack of sex education among them.

When I read the novel of James hadlee was my friend when I read books such stories also give the advice which were allegedly to have sex stories. There has also given me some books. I read them I do not relish coming. My friends laugh at any of them had not become a writer when I wrote today, and found much to admire its read. It is also a time in my mind the thought that the idea of such magazines in the creation of an attempt to send his name to earn them. So some tried to write stories that the time to write all over my body let up in the excitement. Was not completed as the creation of a writing again destroyed them. If his work with such behaviour of these, it does not matter where? In the hands of a house, took the bad condition. The subject did not try to write more of those on whom I am writing to see compassion comes.

You would like to know why? At that time the story or write a satire laugh was on the mind of such a body be created to stimulate the body to let her put the squeezes. The paper gives फैंक and tore the inside of your review when it does, it was all the elements of the dead are lying. And a heavy sense of tension such as a heavy crime has become.
Yes, it is interesting that my work in the body's organs but does not mention that if some of the stories are still give them a little sattvik as the one I will say that he is not a waste created. There was also a two-satire, which I read your friends on the condition that he have for anyone not know about it, he says, was that I should send them elsewhere for Special do so because it is not something which Pornography has not said much of the excitement that was generated, it is also a fact.

I see that some people on a Blog by making the body's organs functioning of the public are writing. I do not stop them doing it because of the sex stories to their age are writing more because of our body does not sense them as it is a time to be lazy. Given the eyes - are tired look, stomach full of food and water, poison even begin. It is our mind at any time one senses with more time does not live up to. Perhaps in the mode vyanjana being said, do not understand a thing clear to me that, come the morning devotional time, the object of the afternoon, the rest of the evening, entertainment and night-time work and salvation (of sleep) is for Is. Different from the mind senses something more for him and wants to see music, literature and Satsang subject etc. are able to satisfy it. That such stories are writing their written does not appear in this entertaining series.

The author of such stories I have discussed a two-Blog, which was read out on the people of about them famous show. I never heard his name. Delhi around a number of publishers and authors are not on anyone's reputation in India. Author of Blog between us should know Hindi in Bihar, Uttar Pradesh, besides Delhi and Madhya Pradesh, Rajasthan and Chhattisgarh, such as California also is prevalent in the vast territories - now in Hindi in south India has already spread his legs - and there until his The authors of the report were not reached any identification. It is possible that Uttar Pradesh, Bihar and Delhi in the vicinity of some authors who are famous for such stories are on the means to be famous in the whole country is not - some of his Blog writers should take away the confusion.
Overall, if some people misunderstood the reputation that it will receive the prevention of their confusion. This is an interesting thing is that all the pseudo names and write them to your reputation will still not be able to use the real name. Although I already said that my intention was to prevent any protest or not to talk to me if some of the people if a good idea to write stories for turning evil, what is it? Even though their stories makes me think that sex education for them, a U.S. expert should read the book, because their creation slovenly appear. If some of them, we read romance, but regret they did not address the sexual adventures of the heart and really pleased with how stories are written.

Thursday, May 1, 2008

मजदूर का बेटा कभी हीरो नहीं बनता है-व्यंग्य कविता

आज मजदूर दिवस है
आओ सब मिलकर नारे लगायें
जो गरीबों और मजदूरों को भायें
जन कल्याण और न्याय के लिये
जोर से आवाज उठायें
फिर भूल चाहे भूल जायें
एक ही दिन तो सब करना है
फिर कौन पूछेगा कोई कि
हम क्या कर रहे हैं
मजदूर दिवस कोई रोज नहीं आता
जो कोई फिक्र करें कि
उसके बाद भी कुछ करना होगा
फिर तो पूर वर्ष
न नारे होंगे न कोई सभायें
फिर क्यों घबड़ायें
................................
पत्थर तोडने वाले मजदूर की बेटी से
खेलते हुए दूसरे मजदूर के बेटे ने कहा
‘‘मै तो बड़ा होकर हीरो बनूंगा’
उसने कहा
‘‘अब ठहर गया है जमाना
समय बदलता है यह सत्य है
पर कितना भी बदले
मजदूर का बेटा हीरो नहीं बनता है
सब जगह यही है हाल
यहां आदमी अब मां के पेट से बनता है
मजदूर का बेटा चाहे कितना भी कर ले
वह समाज में हीरो नहीं बनता है
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