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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, September 29, 2014

स्वच्छता अभियान-2 अक्टुबर महात्मा गांधी की जयंती पर सफाई अभियान पर हिन्दी कविता(swachchhata abhiyan-2 october mahtama gandhi jayanti par safai abhiyan par hindi poem)


पेट में डालकर दाना
कूड़ा वह राह पर
फैंक देते हैं
यह सोचकर कि
कोई दूसरा आकर उठायेगा।

सभी व्यस्त हैं काम में
फुर्सत नहीं किसी को
फालतू काम और बातों से
ख्याल यह है कि सफाई के लिये
कोई दूसरा आकर
अपना समय लुटायेगा।

कहें दीपक बापू आर्थिक दंड
अनिवार्य होना चाहिये
सार्वजनिक स्थान में
कचड़ा फैलाने पर
तब कोई सफाई के लिये समय
य पैसे स्वयं जुटायेगा।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Wednesday, September 24, 2014

डरपोकों के साथी अस्त्र शस्त्र-हिन्दी कविता(darpakon ke sathi astra shastra-hindi poem)



इंसान के सपने
मंगल तक पहुंच गये हैं
फिर भी पिशाच
धरती पर खून बहाकर
जश्न बनाते हैं।

सर्वशक्तिमान के करीबी
होने का दावा जताते
पुरानी रीतियों को पवित्र घोषित कर
मचाते हैं खतरे का शोर
इंसानों के वेश में
नरभक्षी जानवर बन जाते हैं।

कहें दीपक बापू निहत्थों पर
अकेले में वार कर
अपनी बहादुरी बखान करने वालों की
इस दुनियां में कमी नहीं
शादी हो या गमी
दिल में पैदा डर
छिपाने के लिये
शस्त्र को साथी बनाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
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Wednesday, September 17, 2014

क्रांति की बात-हिन्दी कविता(kranti ki baat-hindi poem)




जिंदगी की यात्रा में
एक से दूसरे पड़ाव तक
चेहरे बदले नज़र आते हैं।

इंसन तो इंसान हैं
एक जाये दूसरा आये
स्वभाव नहीं बदलता
चरित्र एक समान ही पाते हैं।

कहें दीपक बापू क्रांति की बात
सुनते हुए कान पक गये
एक दशक एक  इंसान
हमारे साथ रहा,
हमने उसे भी शांति से सहा,
दूसरा आया उसने
वादा किया साथ निभाने का,
वह भी निकला सहयोगी दिखाने का,
हम तो सहते रहे हादसों के दौर
अकेले ही खड़े रहे
स्थान और हमलावर बदल जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
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Thursday, September 11, 2014

दैवीय कण बनेगा मनोंरजन व्यवसाय का सहायक-हिन्दी व्यंग्य(Daviy kan banega manoranjan vyavasay ka sahara-hindi vyangya lekh, god porticla help for entertainment busines-hindi satire thought article)



            एक पाश्चात्य वैज्ञानिक ने बताया है कि दैवीय कण अत्यंत शक्तिशाली है और वह पल भर में सृष्टि का नाश कर सकता है। पश्चिम में ही एक वैज्ञानिक प्रयोग हुआ था जिसमें यह दावा किया गया कि इस सृष्टि के रचयिता दैवीय कण का पता चल गया है। इस संबंध में प्रयोग चल रहे हैं पर हम जब इसे भारतीय अध्यात्मिक विज्ञान की दृष्टि से देखते हैं तो यह एक प्रचार के लिये रचे गये प्रपंच से अधिक नहीं है।  हमें पाश्चात्य विज्ञान की समझ नहीं है पर दैवीय कण शब्द को प्रयोग ही इस बात पर संदेह पैदा करता है कि इस तरह की कोई खोज हुई है जिसके आधार पर भ्रम को सत्य स्प बताकर प्रचारित किया जायेगा।
            दैवीय कण की स्वीकार्यता का अर्थ है कि इस संसार के आधार में भौतिक तत्व की उपस्थिति मान लेना।  हमारा सिद्धांत कहता है कि परमात्मा प्रकट स्वरूप में नहीं है। इस सृष्टि में जीवन प्रवाहित करने के लिये पांच तत्व माने गये हैं-प्रथ्वी, वायु, सूर्य, जल और आकाश-अगर दैवीय कण सिद्धांत को मान लिया जाये तो वह भौतिक तत्व प्रथ्वी का संकेत देता है।  हमारे अध्यात्मिक विज्ञान के सिद्धांत के अनुसार इन पंच तत्वों को शक्ति प्रदान करने वाला अदृश्य, अप्रकट तथा अव्यक्त पर तत्व परमात्मा है। वह अनश्वर तथा स्पर्श से परे है, इसलिये दैवीय कण का सिद्धांत भारतीय दर्शन से मेल नहीं खाता।

            एक दूसरा सिद्धांत भी इस दैवीय कण के नियम से मेल नहीं खाता।  पश्चिम का दैवीय सिद्धांत कहता है कि वह शक्तिशाली है जबकि हमारा मानना है कि वह स्वयं शक्ति है। वह इस सृष्टि का धारक है पर इसमें कहीं स्वयं उपस्थित नहीं है।  इसलिये पश्चात्य वैज्ञानिकों का यह दावा स्वीकार करना कठिन है कि उसे देखा गया है।  उनकी बातों से ऐसा लगता है कि जैसे वह उनके हाथ लग गया है। अगर यह सही है तो वैज्ञानिकों से कई प्रमाण मांगे जा सकते हैं।  एक तो पानी से ही जुड़ा है।  हमें एक सज्जन कह रहे थे कि पानी में ऑक्सीजन और हाईड्रोजन होता है अगर वैज्ञानिकों के  हाथ दैवीय कण लग गया है तो वह ऑक्सीजन और हाईड्रजन मिलाकर पानी बनाकर दिखा दें।  इस तरह मिश्रित तत्वों से बनी प्रकृतिक वस्तुऐं जिनका मानव शक्ति से निर्माण संभव नहीं है उन्हें दैवीय कण से जोड़कर दिखाने पर ही पश्चात्य विज्ञान के दावों पर यकीन किया जा सकता है।
            जिस तरह भारत में मनोरंजन की विषय धर्म के नाम पर निर्धारित होते हैं उसी तरह पश्चिम में विज्ञान के आधार पर उनका सृजन होता है। पश्चिम की एक फिल्म आई थी जुरासिक पार्क जिसमें डायनासोर नाम के एक कल्पित शक्तिशाली जीव का सिद्धांत दिखा गया था।  भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में किसी ऐसे जीव का उल्लेख नहीं मिलता पर आजतक इस कथित डायनासोर के जीवाश्य मिल ही रहे है जिनकी चर्चा होती हैं।  उसी तरह पश्चिम ने दूसरे ग्रहों से आये एलियन का भी प्रचार कर रखा है।  इस पर जमकर मनोरंजन का व्यवसाय चल रहा है। यह अलग बात है कि आज तक किसी ने एलियन को देखा ही नहीं है। अभी पश्चिम में सात सौ वर्ष बाद का जीवन दर्शाने वाला एक वीडियो गेम प्रचारित हो रहा है। इसके बारे में दावा यह किया जा रहा है कि बड़े बड़े वैज्ञानिकों से चर्चा कर यह गेम बनाया गया है।  इन वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस तरह विश्व में प्रयोग चल रहे हैं उसके आधार पर सात सौ वर्ष बाद इस संसार में मनुष्य का जीवन ऐसा ही होगा जैसा कि खेल में दिखा गया है।
            भारत में अधिकतर फिल्में कहीं न कहीं धर्म की आड़ लेकर बनती हैं पर उससे कोई भ्रम नहीं फैलता पर पश्चिम में कथित विज्ञान की सहायता से फिल्म बनाकर उसे भूत और भविष्य का सत्य मान लिया जाता है। वर्तमान के हालातों पर भ्रमित करना सहज नहीं है इसलिये पश्चिम रचनात्मक जगत  उससे दूर ही रहता है। बहरहाल अब हमें कथित दैवीय कण पर आधारित मनोंरजन सामग्री का इंतजार है।  एक बात तय रही कि इसमें गंभीर और हास्य दोनों तरह के विषय शमिल होंगे।  ठीक उसी तरह जैसे डायनासोर और एलियन के विषयों पर भारी मनोरंजक व्यवसाय हुआ उसी तरह दैवीय कण भी सहायक होंगे।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Friday, September 5, 2014

स्वार्थ और परमार्थ-हिन्दी व्यंग्य कविता(swarth aur parmarth-hindi satire poem)



 भक्ति में शक्ति है
इसलिये होती कम
मगर बाहर ज्यादा दिखाते।

आकाश में देवता रहते
इसलिये हमेशा हाथ उठाकर
उनसे मांगना सिखाते।

कहें दीपक बापू नैतिकता से
परहेज करते स्वयं लोग,
इच्छा यह कि
दूसरा पाले आदर्श रोग,
स्वार्थ की राह पर चलने वाले,
परमार्थ की आशा दूसरे पर डाले,
स्वामीपन का अहंकार हृदय में
समाज सेवक की सूची में
कमाई के लिये नाम लिखाते।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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