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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, April 15, 2018

चौराहों पर वफादारी की दुकानें सजी हैं-दीपकबापूवाणी (Chaurahon par Vafadari ki Dukan-DeepakBapuWani)

सजे कक्ष में बैठे काजू के साथ जाम पीते, मजा लेकर सवाल पूछें गरीब कैसे जीते।
‘दीपकबापू’ अंग्रेजी से न शिक्षित रहे न गंवार, फ टे अर्थतंत्र में भ्रष्टाचार के पैबंद सीते।।
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माया के बंधक इंसानों पर भरोसा न करें, बेवफाई और दगा पर किसे कोसा न करें।
‘दीपकबापू’ फरिश्ते का मुखौट पहनते हैं, कहें अपने मन में शैतान पालापोसा न करें।।
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चौराहों पर वफादारी की दुकानें सजी हैं, दागदारों के घर चैर की बंसियां बजी हैं।
‘दीपकबापू’ अपने कंधे बनाते किसी की सीढ़िया, लात पड़ने से जमीन पर सजी हैं।।
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राम का नाम जपते ओटने लगे कपास, ऐसे भक्तों से क्या करें अपने भले की आस।
‘दीपकबापू’ जमा करते रहे बरसों ईंट पत्थर, ऊंची दीवारों के बीच बनाया अपना वास।।
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Sunday, April 1, 2018

दर पर जज़्बात के सौदागर आ ही जाते हैं-दीपकबापूवाणी jazbaat ke saudagar ghar aahi jate hain-DeepakapuWani)

जैसा मंजर सामने वैसा दिल होता,
इश्क देख मचले कत्ल से रोता।
कहें दीपकबापू रसों का स्वाद जानो
लगाओ हास्य रस में गोता।
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काम करो ढेर सवाल उठते हैं,
नाकामी पर बवाल उठते हैं।
कहें दीपकबापू चादर ढंककर सोयें
लालची लोग लोभ में लुटते हैं।
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बाज़ार नये नये सामाज से सजे हैं,
उधार पैसा ले लो मजे ही मजे हैं।
कहें दीपकबापू कर्ज में डूबी सोच
हाथ में मोबाईल पूछें कितने बजे हैं।
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अपने रास्ते चलना भी नहीं है तय,
आगे पीछे चलता हादसे का भय।
कहें दीपकबापू जमाना बदहवास
धूमिल चरित्र  टूटी चाल की लय।
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हम न कभी उनसे पैसा मांगें न प्यार,
फिर भी दर पर जज़्बात के सौदागर आ ही जाते हैं।
न गुलाब न कमल उनके पास
सुगंध के वादे साथ लाते हैं।
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उपाधि बड़ी पर प्रतिभा पर शक है,
नकल से भी जो मिल रहा हक है।
कहें दीपकबापू अंग्रेजी पढ़े बेकार
उनकी दौड़ केवल नौकरी तक है।
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भ्रष्टाचार पर इतना ही झगड़ा हैं,
आपस में हिस्सा बांटने मुद्दा तगड़ा है।
कहें दीपकबापू वह ईमानदार दिखे
जिसने अकेले नियम को रगड़ा है।
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मत पूछना हिसाब में बच्चे हैं,
नारों के खिलाड़ी अंकों में कच्चे हैं।
कहें दीपकबापू डंडे थामे हैं वह
डर के बोलें सभी आप सच्चे हैं।
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