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Wednesday, January 28, 2009

कहीं प्रचार के लिये पहले से तय झगड़े होंगे-हास्य व्यंग्य कविताएँ

पहले तो क्रिकेट मैचों पर
फिक्सिंग की छाया नजर आती थी
अब खबरों में भी होने लगा है उसका अहसास।
शराबखानों पर करते हैं लोग
सर्वशक्तिमान का नाम लेकर हमला
कहीं टूटे कांच तो कहीं गमला
बहस छिड़ जाती है इस बात पर कि
सर्वशक्तिमान के बंदे ऐसे क्यों होना चाहिये
लंबे चैड़े नारों का दौर शुरु
हर वाद के आते हैं भाषण देने गुरु
ढेर सारे जुमले बोले जाते हैं
टूटे कांच और गमलों के साथ
जताई जाती है सहानुभूति
पर ‘शराब पीना बुरी बात है’
इस पर नहीं होता कोई प्रस्ताव पास।
खबरफरोश भूल जाते हैं शराब को
सर्वशक्तिमान के नाम पर ही
होती है उनको सनसनी की आस।
किसे झूठा समझें, किस पर करें विश्वास।
..............................
शराब चीज बहुत खराब है
पीने वाला भी कर सकता है
न पीने भी कर सकता है
भले झगड़ा खराब है।
शराब खानों पर हुए झगड़ो पर
अब रोना बंद कर दो
क्योंकि सदियों से
करवाती आयी है जंग यह शराब
जैसे जैसे बढ़ते जायेंगे शराब खाने
वैसे ही नये नये रूपों में झगड़े
सामने आयेंगे
कहीं पीने वाले पिटेंगे तो
कहीं किसी को पिटवायेंगे
कहीं जाति तो कहीं भाषा के
नाम पर होंगे
कहीं प्रचार के लिये
पहले से ही तय झगड़े होंगे
इन पर उठाये सवालों का
कभी कोई होता नहीं जवाब है।

...............................................
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Saturday, January 24, 2009

करोड़पति बने या रहे खाकपति-हास्य कविताएँ

फिल्मों की कहानी में
गंदी बस्ती का लड़का
करोड़पति बन जाता है
पर हकीकत में भला कहां
कोई ऐसा पात्र नजर आता है
यह तो है बाजार के प्रचार का खेल
जो पहले करोड़पति बनने वाले
सवाल जवाब का कार्यक्रम बनाता है
उठते हैं उसकी सच्चाई पर सवाल
पर भला झूठ और ख्वाब के सौदागर
पर उसका असर कहां आता है
फिर बाजार रचता है
गंदी बस्ती का एक काल्पनिक पात्र
जो करोड़पति का इनाम जीत जाता है
प्रचार फिर उस काल्पनिक पात्र पर जाता है
सच कहते हैं एक झूठ सच बोलो
तो वह सच नजर आता है
.....................................
अमीरों में कभी भेद नहीं होता
पर गरीबों में बना दिये
जाति,भाषा और धर्म के कई भेद
करते हैं बाजार के सौदागर
समय पर अपना शासन चलाने के लिये
उसमें बहुत छेद
जिसका तूती बोलती है
उसी वर्ग के गरीब की तूती बजाते
भले ही उनके काम भी नहीं आते
पर दूसरे को तकलीफ पहुंचाते हुए
उनके मन में नहीं होता खेद
.......................
एक गरीब ने कहा दूसरे से
चलता है करोड़पति देखने
सुना है फिल्म में बहुत मजा आता है’
दूसरे ने कहा
‘पहले पता करूंगा कि
उसमें नायक के फिल्मी नाम की जाति कौनसी है
फिर चलूंगा
अगर तेरी जाति का नाम हुआ तो
मुझे गुस्सा आ जायेगा
करोड़पति बने या रहे खाकपति
मुझे तो अपनी जाति के नायक के फिल्मी नाम पर बनी
फिल्म देखने में ही मजा आता है

.................................................
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Wednesday, January 21, 2009

चमचे और दोस्त-व्यंग्य कविता

घूमते हुए एक शख्स के पीछे

दो ही प्रकार के लोग नहीं उकताते

एक होते अजीज दोस्त

दूसरे चमचे कहलाते

अजीज तो दिल की

धड़कनों में बसते हैं

उनसे दूरी बहुत सताती है

पर चमचे जब तक मिलता माल है

तभी तक अपने घर के चक्कर लगाते

कभी कभी कर तारीफों के ऐसे पुल भी

बांध जाते हैं

जिससे सुनकर अपने दोस्त भी शरमा जाते

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Thursday, January 15, 2009

महानतम दिखाने के लिये-व्यंग्य

फिल्म,खेल,कला और साहित्य का कोई देश नहीं होता-ऐसा जुमला हमारे देश के मूर्धन्य बुद्धिजीवी और लेखक मानते हैं पर अवसर पाते ही वह इनसे देशभक्ति के जज्बात जोड़ने से बाज नहीं आते। यह अवसर होता है जब कोई पश्चिम से किसी को पुरस्कार या सम्मान मिलता है या नहीं मिलता है। मिल जाये तो वाह वाह हो जाती है। देश का गौरव और सम्मान बढ़ने पर प्रसन्नता व्यक्त की जाती है और न मिले तो पश्चिमी देशों की उन संस्थाओं को कोसा जाता है जो इनको प्रदान करती है।
असल में बात यह हुई कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने अब तक दुनियां के महानतम बल्लेबाजों की सूची जारी की उसमें पहले दस में कोई भारतीय खिलाड़ी शामिल नहीं है। अपने प्रचार माध्यम उस सूची को पहले बीस तक ले गये क्योंकि बीसवें नंबर पर भारत के महानतम बल्लेबाज सुनील गावस्कर का नाम है-1983 में जीते गये इकलौते विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता में वह भारतीय टीम के वह भी सदस्य था इसलिये उनकी महानता पर कोई संदेह नहीं है। बीस के बाद उनकी नजर 26 वें नंबर पर गयी जहां उस बल्लेबाज का नाम था जिसे भारतीय प्रचार माध्यम दुनियां के क्रिकेट का भगवान घोषित कर चुके हैं। हाय! यह क्या गजब हो गया। भारतीय प्रचार माध्यमों की हवा खराब हो गयी। इस देश की जनता का भ्रम टूट न जाये इसलिये उसे बनाये रखने के लिये उन्होंने बहस शुरु कर दी है और उस सूची को नकार ही दिया।

यह होना ही था। ईमानदारी की बात यह है कि ज्ञानी लोग खेल वगैरह में देशप्रेम जैसी बात जोड़ने का समर्थन नहीं करते। दूसरी बात यह है कि जिस भगवान के किकेट अवतार को भारतीय प्रचार माध्यम जिस तरह अपने व्यवसायिक मजबूरियों के चलते अभी तक ढो रहे हैं उसके खेल पर अपने देश में ही लोग सवाल उठाते हैं। इसमें भी एक मजेदार बात यह है कि जिन बीस भारतीय बल्लेबाजों के नाम है उनमें एक ही भारतीय है बाकी विदेशी है। इसलिये भारतीय लोग उस सूची को नकारने से तो रहे। वजह यह है कि इस देश के लोग यह जानते हुए भी कि ‘दूर के ढोल सुहावने होते हैं’ दूर के ढोलों पर ही अधिक यकीन करते हैं और यह प्रवृति प्रचार माध्यमों ने बढ़ाई हैं कमी नहीं की।

पहले 19 खिलाड़ी विदेशी महान होंगे इस बात पर इस देश के लोग यकीन कर लेंगे क्योंंकि वह देख रहे हैं कि जिस तरह इस देश के कथित कलाकार, खिलाड़ी, लेखक, पत्रकार तथा अन्य विशेषज्ञ विदेशी पुरस्कारों और सम्मानों के लिये मरे जाते हैं उस हिसाब से वहां योग्यता और तकनीकी के ऊंचे मानदंड होंगे। तय बात है कि 19 खिलाड़ी महान ही होंगे तभी तो उनको घोषित किया गया है। भारतीय प्रचार माध्यम क्रिकेट का गुणगान तो खूब करते हैं पर यह सच छिपा जाते हैं कि 1983 के बाद विश्व क्रिकेट के नाम यहां कुछ नहीं आया। फिर उनके ,द्वारा सुझाये गये महानतम बल्लेबाज की महानता का हाल यह है कि आजकल कई लोग चाहते हैं कि वह क्रिकेट से हट जाये मगर नहीं जनाब!

वह हर बार विश्व कप क्रिकेट कप का सपना दिखाता है पर वह पूरा नहीं होता। दावा यह है कि 19 साल से क्रिकेट खेल रहा है पर भई उसने कितने विश्व क्रिकेट जिताये मालुम नहीं। यह सही है कि महानतम की सूची में उस महानतम बल्लेबाज से पहले भी कई ऐसे बल्लेबाज हैं जिन्होंने अपने देश को विश्व कप नहीं जितवाया पर इसका दूसरा पक्ष यह भी कि उनमें अधिकतर के समय में विश्व कप होता भी नहीं था पर उन्होंने किकेट के विकास में वाकई उस समय योगदान दिया जब उसमें पैसा नहीं था। वैसे प्रचार माध्यम एक नहीं अपने तीन बल्लेबाजों के महानतम न होने पर नाराज है पर 26वें नंबर पर अपने अवतारी बल्लेबाज के होने पर अधिक बवाल मचा रहे हैं जिसका क्रिकेट के विकास में नहीं बल्कि उसके दोहन में अधिक योगदान रहा है।
यार, यहां भी इतने पुरस्कार मिलते हैं पर अपने देश के गुणी लोगों को पता नहीं वह हमेशा छोटे नजर आते हैं। हमारे यहां हर साल ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाता है पर प्रचार माध्यम उसका समाचार देकर फिर मूंह फेर लेते हैं पर अगर अमेरिका की कोई संस्था- जिसका नाम तक हम लोग नहीं जानते-अगर किसी को मिल जाये तो बस वह यहां भगवान बना दिया जाता है।

इसका परिणाम यह हुआ है कि जिन संस्थाओं को अपना नाम इस देश में नाम करना होता है वह यहां के किसी ऐसे अज्ञात आदमी को पुरस्कार देती है जिसने अपने जीवन में एकाध कोई किताब लिखी हो। हमारे यहां जिन लोगों को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलता है उन्होंनें कई किताबें लिखी होती हैं पर उनको प्रचार माध्यम पहचानते तक नहीं पर कोई एक पुस्तक लिखकर विदेश से पुरस्कार प्राप्त कर ले तो उसे बरसों तक ढोते हैं। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि जोकरों को पुरस्कार मिला हो। विदेशों से पुरस्कार विजेता तो ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे कि वह हर विषय में जानते हों। कई बार तो वह अपने देश के संवदेनशीन मामलों में ऐसे बोलते हैं जैसे कि देश के विरोधी बोल रहे हों। तब यह भी संदेह होता है कि कहीं ऐसे लोगों को बकवास करने के लिये ही तो कहीं इस आश्वासन पर तो विदेशों में सम्मान या पुरस्कार नहीं दिये जाते कि अपने देश के लोगों को भावनात्मक रूप से आहत करते रहना।

हिंदी फिल्मों का हाल देखिये। विदेशी पुरस्कारों के लिये सभी दौड़ते फिरते हैं। हालत यह है कि अगर कहीं फिल्म पुरस्कार के नामांकित हो जाये तो उसका जीभर के प्रचार कर लिया जाता है जैसे कि वह मिल ही गया हो-हालांकि यह उनको पता होता है कि वह नहीं मिलेगा शायद इसलिये प्रचार की सारी कसर नामांकन से इनाम बंटने की बची की अवधि में ही कर लेते हैं। इन हिंदी फिल्म वालों से पूछिये कि जब हिंदी फिल्मों या टीवी सीरियलों के लिये इनाम वितरण होता है तब क्या देश की गैर हिंदी फिल्मों को कभी वह इनाम देते हैं जैसा कि वह अमेरिका में अंग्रेजी फिल्मकारों के बीच सम्मान चाहते हैं। सच तो यह है कि हमारे देश के दक्षिण भाषी फिल्मकारों की बनी अनेक फिल्मों का हिंदी में पुर्नफिल्मांकन प्रस्तुत किया जाता है जो बहुत सफल रहती हैं। दक्षिण का फिल्म उद्योग हिंदी से तकनीकी,कला,कहानी,संगीत और पटकथा में अधिक सक्षम माना जाता है। फिर भी कभी आपने सुना है कि किसी दक्षिण भारतीय फिल्म को हिंदी फिल्म समारोह में कभी देश सर्वश्रेष्ठ फिल्म घोषित किया गया हो। अपनों को सम्मान देने की बजाय दूसरों से इनाम पाने की चाहत ने गुणीजनों को पतन की गर्त में पहुंचा दिया है। सच तो यह है कि दक्ष हिंदी के लेखकों से तारतम्य के अभाव में हिंदी फिल्म उद्योग पैसा होते हुए भी लाचारगी की की स्थिति में हैं और उसकी अधिकांश फिल्में हालीवुड या दक्षिण भारतीय फिल्मों की नकल होती है। अपने ही हिंदी भाषी लेखकों,कलाकारों,गायकों, और संगीतकारों को कभी प्रोत्साहित न करने वाले हिंदी फिल्म उद्योग को विदेशों में सम्मान की आशा करना ही हास्यास्पद लगता है।

जी हां, सच यही है कि महानतम उस आदमी को कहा जाता है जो न केवल अपने जीवन में सफलता प्राप्त करे बल्कि दूसरों को भी ऐसी सफलता पाने में योगदान दे। भारत में एक ही महानतम क्रिकेट खिलाड़ी हुआ है वह कपिल देव क्योंकि उसके नाम पर एक विश्व कप हैं। हमारे महानतम हाकी खिलाड़ी स्व. ध्यानचंद के बाद वही एक लगते हैं महान जैसे। स्व. ध्यानचंद जी इसलिये महान नहीं थे कि हिटलर उनसे प्रभावित हुआ था बल्कि उन्होंने भारत को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जितवाया था इसलिये महान कहे गये। इतना ही नहीं वह अपने खेल से अपनी टीम को प्रेरणा देते थे। सो प्रचार माध्यम यह समझ लें कि वह जिन खिलाडि़यों के महानतम न होने पर विलाप कर रहे हैं उस पर देश के लोगों की हमदर्दी उनके साथ नहीं है बल्कि उनके कार्यक्रम एक लाफ्टर शो की तरह दिख रहे हैं। वह अपने बताये माडलों को विश्व का महानतम बताने के लिये जूझ रहे हैं और यह पश्चिम वाले हैं गाहे बगाहे उन पर आघात कर जाते हैं।
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Saturday, January 10, 2009

पीठ पीछे सभी खंजर संजाये हैं-व्यंग्य कविता

चेहरे हैं उनके सजे हुए
अपने घर पर उन्होंने
पत्थर और प्लास्टिक के फूल सजाये हैं
अपनी जुबान से बात करते हैं
वह ईमान और वफा की
पर अपने करते नहीं वह धंधे जो
उन्होंने सभी को बताये हैं
नाम तो हैं बड़े आकर्षक पर
काम का कोई भरोसा नहीं है
कौन बिक जाये यहां
पता नहीं लगता
आजाद तो सभी दिखते हैं
चाल और चरित्र में ‘सत्य’ लिखते हैं
पर सवाल उठता है
फिर इतने सारे इंसान
गुलामों के बाजार में
बिकने कहां से आये हैं
फूल तो है सभी के एक हाथ में
पर दूसरे हाथ में पीठ पीछे
सभी खंजर सजाये हैं

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Tuesday, January 6, 2009

हंसी की फुहार-हास्य कविता

फंदेबाज लेकर अपने भतीजे को
पहुंचा और बोला
‘‘दीपक बापू, मेरा यह भतीजा
खूब लिखता है श्रृंगार रस से सराबोर कवितायें
पर नहीं सुनते पुरुष और महिलायें
आप तो इसे अब
हंसी का कार्यक्रम बतायें
ताकि हम लोग भी कुछ जमाने में इज्जत बनायें’’

उसके भतीजे को ऊपर से नीचे देखा
फिर गला खंखार कर
अपनी टोपी घुमाते बोले दीपक बापू
’’कमबख्त जब भी घर आते हो
साथ में होती बेहूदी समस्यायें
जिनके बारे में हम नहीं जानते
तुम्हें क्या बतायें
रसहीन शब्द पहले सजाओ
लोगों को सुनाते हुए कभी हाथ
तो कभी अपनी कमर मटकाओ
कर सको अभिनय तो मूंह भी बनाओ
चुटकुला हो या कविता सब चलेगा
जीवन के आचरण और चरित्र पर
कहने से अच्छा होगा
अपनी देह के विसर्जन करने वाले अंगों का
इशारे में प्रदर्शन करना
तभी हंसी का माहौन बनेगा
कामेडी बनकर चमकेगा
अपने साथ स्त्री रूप के मेकअप में
कोई पुरुष भी साथ ले जाना
उसकी सुंदरता के पर
अश्लील टिप्पणी शालीनता से करना
जिससे दर्शक बहक जायें
वाह वाह करने के अलावा
कुछ न बोल पायें
किसी के समझ में आये या नहीं
तुम तो अपनी बात कहते जाना
यौवन से अधिक यौन का विषय रखना
चुंबन का स्वाद न मीठा होता है न नमकीन
पर लोगों को फिर भी पंसद है देखना
हंसी की फुहार में भीगने का मन तो
हमारा भी होता है
दिल को नहला सकें हंसी से
पर सूखे शब्द और निरर्थक अदाओं से
कभी दिल खुश नहीं होता
फ़िर भी खुश दिखता है पता नहीं कैसे जमाना
इससे अधिक तुम्हें हम और क्या बताये"

..................................................
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Sunday, January 4, 2009

‘एक स्कूटर ब्लागर के ऊपर'-हास्य व्यंग्य

ब्लागर सड़क पर अपने स्कूटर से जा रहा था। सड़क ऊबड़ खाबड़ थी और ब्लागर और स्कूटर दोनों ही हांफते हुए बढ़ रहे थे कि अचानक एक गड्ढा आया और स्कूटर ने झटका खाया और अब वह आधा जमीन पर आधा अपने सवार ब्लागर के ऊपर था।

वह सड़क मुख्य सड़क से दूर थी इसलिये वहां अधिक भीड़ भाड़ नहीं थी। जमीन पर गिरे ब्लागर ने अपने ऊपर से स्कूटर उठाने का प्रयास करने से पहले अपने अंगों का अध्ययन किया तो पाया कि कहीं कोई चोट नहीं थी। अब वह जल्दी जल्दी अपने ऊपर से स्कूटर उठाने का प्रयास करने लगा कि कहीं कोई आदमी उसे गिरा हुआ देख न ले। अपने गिरने के दर्द से अधिक आदमी को इस बात की चिंता सताती है कि कोई उसे संकट में पड़ा देखकर हंसे नहीं।

ब्लागर ने अपने ऊपर से स्कूटर का कुछ भाग हटाया ही था कि उसके कानों में आवाज गूजी-‘क्या यहां रास्तें बैठकर स्कूटर पर कोई कविता या चिंतन लिख रहे हो?’
ब्लागर ने पलटकर देखा तो उसके होश हवास उड़ गये। एक तरह से उसके लिये यह दूसरी दुर्घटना थी। दूसरा ब्लागर खड़ा था। गिरे हुए पहले ब्लागर ने कहा-‘यार, यह गड्ढा सामने आ गया था तो मेरे स्कूटर का संतुलन बिगड़ गया।

दूसरे ब्लागर ने हाथ नचाते हुए कहा-‘स्कूटर का संतुलन बिगड़ा कि तुम्हारा? स्कूटर के पास दिमाग नहीं होता जो उसका संतुलन बिगड़े। तुम्हारे दिमाग का संतुलन बिगड़ा तो ही तुम यहां गिरे। अपना दोष स्कूटर पर मत डालो

पहले ब्लागर ने कहा-‘यार, तुम्हें शर्म नहीं आती। इस हालत में स्कूटर मेरे ऊपर से हटाने की बजाय अपनी कमेंट लगाये जा रहे हो।’

दूसरे ब्लागर ने कहा-‘वैसे तो मेरा काम कमेंट लगाना है तुम्हारे ऊपर से स्कूटर हटाने का नहीं। अब हटा ही देता हूं पर इस बारे में तुम अपने ब्लाग पर लिखना जरूर कि मैंने तुम्हारी मदद की! हां पर कमेंट का आग्रह नहीं करना।’
इस बात पर पहले ब्लागर को गुस्सा आ गया और उसने उसकी सहायता के बिना ही स्कूटर अपने ऊपर से हटा लिया और खड़ा हो गया और बोला-‘तुम्हें तो मजाक ही सूझता है।’
दूसरे ब्लागर ने कहा-‘देखो मुझे कभी मजाक करना तो आता ही नहीं वरना मैं तुम्हारी तरह फूहड़ हास्य कवितायें लिखता। बहुत गंभीरता से कह रहा हूं कि तुम स्कूटर चलाना पहले सीख लो।’
पहले ब्लागर ने कहा-‘तुम मुझे स्कूटर सीखने के लिये कह रहे हो। दस वर्ष से यह स्कूटर चला रहा हूं। यह गड्ढा ऐसी जगह हो गया है कि इससे दूर निकलना कठिन था। इसलिये गिर गया, समझे।
दूसरा ब्लागर ने कहा-‘पर यह गड़ढा तो कई दिनों से है और तुम और हम कितनी बार यहां से निकल जाते हैं। वैसे तुम्हारा स्कूटर पुराना है इसलिये गिर गया उसे भी सड़क पर चलते हुए शर्म आती होगी। इतनी नयी और प्यारी गाडि़यां सड़क पर चलती हैं तो इस बूढ़े स्कूटर को शर्म आती ही होगी। कोई नया स्कूटर खरीद लो! क्यों पैसे की बचत कर अपने को कष्ट पहुंचा रहे हो।’
पहले ब्लागर ने कहा-‘नया स्कूटर क्या गड्ढे में नहीं गिरेग?’
दूसरे ब्लागर ने कहा-‘तो कोई कार खरीद लो। अरे ,भई अपने आपको दुर्घटना से बचाओ। कहीं अधिक चोट लग गयी तो परेशान हो जाओगे। अच्छा अब मैं चलता हूं। ध्यान से जाना आगे और भी गड्ढे हैं। अभी तो तुम्हारी किस्मत अच्छी थी जो मैं आ गया। और हां इस दुर्घटना पर अगर लिखो तो यह जरूर लिखना कि मैंने आकर तुम्हें बचाया।’
पहले ब्लागर ने गुस्से में पूछा-‘तुमने आकर मुझे बचाया। क्या बकवाद करते हो?’
दूसरे ब्लागर ने कहा-’अगर मैं आकर तुम्हें गुस्सा नहीं दिलवाता तो शायद तुम पूरी ताकत से स्कूटर को नहीं हटा पाते।‘
दूसरा ब्लागर चला गया। पहले ब्लागर ने स्कूटर पर किक लगायी पर वह शुरू नहीं हुआ। तब वह उसे घसीटता हुआ मरम्मत की दुकान तक लाया। वहां उसका परिचित एक डाक्टर भी अपनी मोटर साइकिल की मरम्मत करवा रहा था। ब्लागर को देखते हुए बोला-‘क्या बात है? ऐसे स्कूटर खींचे चले आ रहे हो?’
ब्लागर ने कहा-‘खराब हो गया है।’
डाक्टर ने कहा-’स्कूटर पुराना हो गया। कोई नया खरीद लो।’
ब्लागर ने कहा-‘नया स्कूटर क्या खराब नहीं होगा? तुम्हारी यह दो साल पुरानी मोटर साइकिल भी तो आज खराब हुई। वैसे मैं इसे तुम्हें दूसरी या तीसरी बार बनवाते हुए देख रहा हूं।’
डाक्टर से बातचीत हो ही रही थी कि दूसरा ब्लागर किसी दूसरे के साथ उसके स्कूटर पर बैठ कर वहां से निकल रहा था। उसने जब पहले ब्लागर को वहां देखा तो उसने अपने साथी को वही रुकने के लिये कहा और उसे दूर खड़ाकर वहां आया जहां डाक्टर और पहला ब्लागर खड़े थे। डाक्टर भी उसे जानता था। उसने डाक्टर को देखकर कहा-’सर, आप अपनी गाड़ी बनवा रहे हैं उसमें समय लगेगा। यह मेरा मित्र है स्कूटर समेत एक गड्ढे में गिर गया था। यह घसीटता हुआ स्कूटर यहां तक लाया है। आप जरा इसके अंगों का निरीक्षण करें और देखें कि कहीं कोई गंभीर चोट तो नहीं आयी। यह सड़क पर गिरा हुआ था। स्कूटर इसके ऊपर था। मैंने उसे हटाया और फिर इसे उठाया। वहां से चला गया पर मेरा मन नहीं माना। अपने इस पड़ौसी से अनुरोध कर उसे स्कूटर पर ले आया कि देखूं कहीं कोई बड़ी अंदरूनी चोट तो नहीं है। आप थोड़ा इस दुकान के अंदर जाकर देख लेंे तो मुझे तसल्ली हो जाये।’
डाक्टर हंस पड़ा और बोला-‘तुम अपनी हरकत से बाज नहीं आओगे। यह तुम्हारा नहीं मेरा भी दोस्त है। यहां तुम इसका हालचाल पूछने नहीं आये बल्कि मुझे बताने आये हो कि यह कहीं गिर गये हो। अब तुम जाओ। तुम्हें अब इसकी दुर्घटना की बात हजम हो जायेगी। मुझे पता है कि तुम्हारा हाजमा बहुत खराब है जब तक कोई आंखों देखी घटना या दुर्घटना पांच दस लोग को बताते नहीं हो तब तक पेट में दर्द होता है।’

इतने में दूसरे ब्लागर का स्कूटर वाला साथी वहां आया और उससे बोला-‘भाई साहब, जल्दी चलो। बातें तो होती रहेंगी। मुझे अस्पताल अपनी मां के पास नाश्ता जल्दी लेकर पहुंचारा है। अगर मेरी मां को देखने चलना है तो जल्दी चलो। नहीं तो पीछे से आते रहना।’

दूसरे ब्लागर ने कहा-‘चलो चलते हैं।’फिर वह पहले ब्लागर को दूर लेजाकर बोला-‘डाक्टर साहब को दिखा देना कि कहीं अंदरूनी चोट तो नहीं है। हां, इस घटना पर रिपोर्ट जरूर लिखना ‘एक स्कूटर ब्लागर के ऊपर’।
वह चला गया तो ब्लागर अपने स्कूटर के पास लौटा तो डाक्टर ने उससे पूछा-‘यह तुम्हारा दोस्त कब से बन गया? मैं तो तुम्हें बचपन से जानता हूं इससे कैसे परिचय हुआ?’
ब्लागर ने कहा-‘बस ऐसे ही। मुझे भी याद नहीं कब इससे मुलाकात हुई। आप तो जानते हैं कि मैं एक लेखक हूं लोगों से मिलना होता है। सभी के साथ मिलने का सिलसिला चलता है। यह याद कहां रहता है कि किससे कब मुलाकात हुई?‘
डाक्टर ने कहां-‘ यह तुम्हें जाते जाते क्या कहा रहा था? एक स्कूटर! किसके ऊपर कह रहा था? यह मैं सुन नहीं पाया!’
इसी बीच में मैकनिक ने आकर डाक्टर से कहा-’लीजिये साहब, आपकी मोटर साइकिल बन गयी।’
पहले ब्लागर से विदा ले डाक्टर चला गया। दूसरे मैकनिक ने स्कूटर भी बना दिया था। पहले मैकनिक ने ब्लागर से पूछा‘-स्कूटर किसके ऊपर था? डाक्टर साहब क्या पूछ रहे थे? वह आपके दूसरे साथी क्या कह गये थे?’
ब्लागर आसमान में देखते धीरे धीरे बुदबुदाया-‘एक स्कूटर, ब्लागर के ऊपर!
मैकनिक ने कहा-‘यह ब्लागर कौन?’
पहले ब्लागर ने कहा-‘जो ब्लाग पर लिखता है?’
मैकनिक ने पूछा-‘यह ब्लाग क्या होता है?’
पहले ब्लागर ने कंधा उचकाते हुए कहा-‘मुझे नहीं मालुम?’
इधर दूसरा मैकनिक स्कूटर बनाकर पहले ब्लागर के पास लाया और पहले मैकनिक से बोला-‘तुम्हें नहीं मालुम ब्लाग क्या होता है? अरे, बड़े बड़े हीरो ब्लाग लिख रहे हैं। तू मुझसे कहता है न कि अखबार क्यों पढ़ता है? मैंने अखबार में पढ़ा है अरे, अखबार पढ़ने से नालेज मिलता है। देख तुझे और साहब दोनों का पता नहीं कि ब्लाग क्या होता है? वह जो डाक्टर साहब के पास जो दूसरे सज्जन आये थे और साहब की चैकिंग करने को कह रहे थे वह भी बहुत बड़े ब्लागर हैं। कितनी बार कहता हूं कि तुम भी अखबार पढ़ा करो।’

पहले ब्लागर ने मैकनिक को पैसे दिये और स्कूटर शुरू किया तो पहने मैकनिक ने पूछा-‘यह स्कूटर क्या उन सज्जन के ऊपर था।’
पहले ब्लागर ने कहा-‘नहींं।
वह वहां से चला गया तो पहले मैकनिक ने दूसरे से पूछा-‘अगर यह दूसरे सज्जन ब्लागर थे और स्कूटर उनके ऊपर नहीं था तो फिर यह स्कूटर किसके ऊपर था? घसीटते हुए तो यह सज्जन ले लाये थे तो वह ब्लागर कौन था।’
दूसरे मैकनिक-‘इसका ब्लाग से क्या संबंध?’
दूसरे ने अपना सिर पकड़ लिया और कहा-‘चलो यार, अब अपना काम करें।
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