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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, September 23, 2011

देश के बिक जाने का खौफ-हिन्दी कविता (desh ke bik jane ka or terrar of sale of country-hindi kavita or poem)

यह खौफ क्यों सताता है तुमको
कि देश बिक जायेगा
कमबख्त, पहले लुटेरे
खुद लूटने आये इस देश का खजाना,
देश फिर भी फलाफूला
हो गये वह अपने देश रवाना,
अब उनके दलाल कमाकर दलाली
जमा कर रहे लुटेरों के घर दौलत,
फिर उधार उसे उधार लेकर आते हैं,
ब्याज भी यहीं से कमाते हैं
अपने बनकर पा रहे वफादार जैसी शौहरत
सब मिट जायेंगे एक दिन
देश फिर भी अपना कमाकर खायेगा
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Monday, September 12, 2011

हिन्दी दिवस पर कविता और लघु व्यंग्य (hindi diwas or hindi divas par kavita aur laghukatha)

        एक आयोजक ने अपने कवि मित्र को अपनी संस्था में हिन्दी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम का आमंत्रण देते हुए कहा-‘यार, तुम कल 12 बजे आना। बढ़िया कार्यकम हैं। कार्यक्रम के बाद नाश्ते वगैरह का आयोजन किया गया है। कार्यक्रम में काव्य पाठ भी होगा तुम उसे सुन सकते हों!
     कवि मित्र ने कहा-‘‘तुम कहो तो हम कविता भी कर देंगे।’
      आयोजक ने कहा-‘‘देखो, यह कार्यक्रम मेरे पैसे से नहीं हो रहा है। जिन लोगों ने पैसे दिये हैं वह कविता करेंगे। सभी बड़े लोग हैं और उनको इसी दिन अपनी हिन्दी में भड़ास निकालने का अवसर मिलता है। तुम तो बस, उपस्थिति देने आना जिससे मेरी भी इज्जत बढ़ेगी।’’
        कवि मित्र ने कहा-‘‘इससे क्या? तुम एक दो कविता सुनाने का अवसर हमें भी दो।’
मित्र ने कहा-‘‘तुम तो मेरी उन बड़े लोगों से दुश्मनी कराओगे। तुम मंच पर आकर शुद्ध हिन्दी में काव्य पाठ करोगे, उसमें जोरदार सुर भरोगे। वह बड़े लोग जो अपनी भड़ास हिन्दी में निकालने के लिये यही दिन पाते हैं, अपनी हंग्रेजी यानि आधी हिन्दी और अंग्रेजी में अपनी बात कहेंगे और बीच में तुम्हारी कविता सुन ली तो कुंठित हो जायेंगे। इसलिये तुम्हें मंच पर लाने का खतरा मैं नहीं उठा सकता।’’
      कवि मित्र ने कहा-‘‘मैं वहां नहीं आऊंगा। तुम फुरसत पा लो तो रात को मेरे घर आ जाना। मैं भी हिन्दी दिवस पर कवितायें सुनाने के लिये आदमी ढूंढ रहा हूं पर कोई मिल नहीं रहा सभी हिन्दी दिवस में जा रहे हैं। अनेक लोग तो ऐसे हैं जिनको चार चार जगह से निमंत्रण मिले हैं। वह जाने से पहले हर जगह मिलने वाले नाश्ते की सामग्री पता कर रहे हैं। जहां अच्छा होगा वहंी जायेंगे। अलबत्ता तुम अपने यहां मिलने वाले नाश्ते की चीजें बता दो मैं उन हिन्दी प्रेमियों को बता दूंगा जो इस दिन ऐसे कार्यक्रम ढूंढते हैं।
मित्र खिसियाकर रह गया।
हिन्दी दिवस पर प्रस्तुत एक क्षणिका
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उन्होंने अपने संस्थान में
हिन्दी धूमधाम से मनाया,
सभी वक्ताओं के भाषणों में
कहीं अंग्रेजी शब्द ठसे थे
तो किसी ने अंग्रेजी में ही
हिन्दी का महत्व बताया।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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Friday, September 2, 2011

भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार-हिन्दी हास्य कवितायें (bhrashtachar aur bhrashtachar-hindi hasya kavita corruption and corrupted-hindi comic poem

वह ईमानदार हैं
इसलिये बिना दाम के
ईमान नहीं बेचते
मगर नेक हैं
मोलभाव नहीं करते।
................
एक आदमी ने दूसरे से पूछा
‘‘यार, हमारे जिम्मे जो काम हैं
उसे करने के लिये
हम लोगों से पैसा लेते हैं
कहीं इसी को तो भ्रष्टाचार नहीं कहा जाता है,
अगर यह सच है
छोड़ देते हैं यह काम
भ्रष्टाचारी कहलाना अब सहा नहीं जाता है।’’
दूसरे ने कहा
‘किस पागल ने हमारे काम को भ्रष्टाचार कहा है
काम के बदले दाम लेना
व्यापार कहलाता है,
जिसे नहीं मिलता वह
अपनी ईमानदारी को खुद ही सहलाता है,
वैसे मुझे नहीं मालुम भ्रष्टाचार किसे कहा जाता है,
पर लगता है कि कुछ लोग
बिना काम किये
पैसा लेते हैं,
फिर मुंह फेर लेते हैं,
ऐसे लोग मुफ्तखोर है या भिखारी
शायद दोनों को एक संबोधन देने के लिये
भ्रष्टाचारी कहकर पुकारा जाता है।’’
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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