समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, August 31, 2009

बीस में काम चलता हो पचास कौन खर्च करेगा-हिंदी हास्य कविता (20-twenty & one day cricket match-hindi hasya kavita

उन्होंने तय किया है कि
एक दिन में पचास ओवर की
जगह बीस ओवर वाले मैच खेलेंगे।
देखने वाले तो देखेंगे
जो नहीं देखने वाले
वह तो व्यंग्य बाण ऐसे भी फैंकेंगे।

सच है जब बीस रुपये खर्च से भी
हजार रुपया कमाया जा सकता है तो
पचास रुपये खर्च करने से क्या फायदा
फिल्म हो या खेल
अब तो कमाने का ही हो गया है कायदा
पचास ओवर तक कौन इंतजार करेगा
जब बीस ओवर में पैसे से झोला भरेगा
मूर्खों की कमी नहीं है जमाने में
मैदान पर दिखता है जो खेल
उस पर ही बहल जाते हैं लोग
नहीं देखते कि खिलाड़ियों को
अभिनेता की तरह पर्दे के पीछे
कौन लगा है नचाने में
पैसा बरस रहा है खेल के नाम पर
फिल्म वाले भी लग गये उसमें काम पर
दाव खेलने वाले भी
जल्दी परिणाम के ंलिये करते हैं इंतजार
खिलाने वाले भी
अब हो रहे हैं बेकरार
पैसे का खेल हो गया है
खेलते हैं पैसे वाले
निकल चुके हैंे कई के दिवाले
खाली जेब जिनकी है
बन जाते समय बरबाद करने वाले
अभिनेताओं में भगवान
खिलाड़ियों में देवता देखेंगे।

कहें दीपक बापू
‘नकली शयों का शौकीन हो गया जमाना
चतुरों को इसी से ही होता कमाना
पर्दे के नकली फरिश्तों के जन्म दिन पर
प्रचार करने वाले नाचते हैं
मैदान पर बाहर की डोर पर
खेलने वालों के करतबों पर
तकनीकी ज्ञान फांकते हैं
जब हो सकती है दो घंटे में कमाई
तो क्यों पांच घंटे बरबाद करेंगे
बीस रुपये में काम चलेगा तो
पचास क्यों खर्च करेंगे
आम आदमी हो गया है
मन से खाली मनोरंजन का भूखा
जुआ खेलने को तैयार, चाहे हो पैसे का सूखा
जिनके पास दो नंबर का पैसा
वह खुद कहीं खर्च करें या
उनके बच्चे कहीं फैंकेंगे।
खेल हो या फिल्म
जज्बातों के सौदागर तो
बस! अपना भरता झोला ही देखेंगे।

................................
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

Friday, August 28, 2009

फरिश्तों का मुखौटा-हिंदी हास्य कविताएँ (farishton ka maukhauta-hindi hasya kavitaen)


पर्दे पर आंखों के सामने
चलते फिरते और नाचते
हांड़मांस के इंसान
बुत की तरह लगते हैं।
ऐसा लगता है कि
जैसे पीछे कोई पकड़े है डोर
खींचने पर कर रहे हैं शोर
डोर पकड़े नट भी
खुद खींचते हों डोर, यह नहीं लगता
किसी दूसरे के इशारे पर
वह भी अपने हाथ नचाते लगते हैं
...........................
चारो तरफ मुखौटे सजे हैं
पीछे के मुख पहचान में नहीं आते।
नये जमाने का यह चालचलन है
फरिश्तों का मुखौटा शैतान लगाते।

........................
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

Sunday, August 23, 2009

किंग कहला रहे हैं-हास्य कविता (king kahala rahe hain-hindi hasya kavita)

भ्रम को सच बताकर

वह जमाने को बहला रहे हैं।

जज्बातों के सौदागर

दर्द यूं मु्फ्त में नहीं सहला रहे हैं।

आंखें हैं तुम्हारी तरफ

पर हाथ फैले हैं पीछे की तरफ

जहां से बटोर कर नकदी

अपनी जेब में ला रहे हैं

आज के युग में सिद्ध कोई नहीं है

सब खुद को किंग कहला रहे हैं।

........................................

कितना असली और कितना नकली

किसकी पहचान करें।

अपने बारे में ही होने लगे

अब ढेर सारे शक

पहले उनसे तो उबरें।


............................
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

Monday, August 10, 2009

समंदर भी खुशी का डराने लगता है-हिंदी शायरी (samandar bhi darata hai-hindi shayri)

कभी धूप कभी छांव
कभी कालीन पर तो
कभी पथरीले रास्ते पर पांव
जिंदगी हर पल रंग
बदलती जाती है
फिर भी क्यों नहीं समझती आंखें
खुशी में झूमती हैं
गम होने परं आंसुओं से नहाती है।

समंदर भी खुशी का कभी
डराने लगता है
एक धारा में बहते हुए
एक रंग की कहानी कहते हुए
उकताहट हो जाती है
तब किसी का गम भी
रंग बिरंगा लगता है
उसमें ही रस की खुशबू आती है
बदलते अहसासों के लिये
पल पल बदलती है रंग
जिंदगी रंग बिरंगी कहलाती है।

............................
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

Friday, August 7, 2009

जिंदगी की कड़वी हकीकत-हिंदी शायरी (zindgi ki haqiqat-hindi shayri)

कड़वी हकीकतों के साथ
जिंदगी गुजारना एक आदत बन गयी है।
कुछ पल के लिये आई खुशियां
बहुत सुकून देती हैं
पर फिर वापस लौटी हकीकत
ज्यादा खूंखार लगती है
खुशनुमा अहसासों के बीच भी
उसकी याद डराये रहती है
कभी कभी लगता है
जिंदगी, कड़वी हकीकतों की
बंधुआ बन गयी है।
........................
तुम अपने गम के इल्जाम भी
हमारे नाम कर दो।
टूटते बिखरने की आदत
हो गयी है हमारी
कितने हादसे आये
याद नहीं रहता
कुछ नाम तुम भी भर दो।

..............................
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

Tuesday, August 4, 2009

नियंत्रण के कायदे-व्यंग्य कविता (samaj ke kayde-hasya vyangya kavita)

वासनओं पर जितना नियंत्रण करोगे
वह बढ़ती जायेंगी।
तुम उन्हें भगाने की कोशिश मत करो
वह तुम्हें दौड़ायेंगी।

समाज को स्वच्छ रखने का
ख्याल बहुत अच्छा है
पर यहां हर कोई नहीं बच्चा है
वस्त्र पहनने की शर्त
आदमी ने खुद ओढ़ी है
आचरण की तरफ जिंदगी स्वयं मोड़ी है
वस्त्रों के पैमाने शर्म का आधार मत बनाओ
अल्प वस्त्र पहनकर नर नारियां
बटोर रहे हैं तालियां
वस्त्रहीन न घूमने का कायदा
उनको दे रहा है आधुनिक बनने फायदा
परंपराओं का वास्ता देकर
उन्हें मत चमकाओ
तोड़ने की भावनाऐं अधिक बढ़ जायेंगी।

खत्म करो सारे नियंत्रण
भेजो वस्त्र हीनता को आमंत्रण
फिर भी सारा जमाना वस्त्र पहनेगा
वरना गर्मी में जल जायेगा
सर्दी में बर्फ की तरह जम जायेगा
पर अल्प वस्त्रों को दोहरा खेल
नहीं चल पायेगा
जब देंगे वस्त्रहीन उनको ललकारेंगे
अल्प वस्त्र वाले आधुनिकता के भ्रम से
और लोगों की वाह वाह से भागेंगे
समाज के चलने की है अपनी राह
अल्पवस्त्रों को देखकर क्यों भरते आह
सौदागर मनोरंजन के नाम पर खेल रहे हैं
भले लोग हतप्रभ होकर सब झेल रहे हैं
वस्त्रहीनों को भी खुलकर सड़क पर आने दो
कमाई शौहरत जिन्होंने अल्पवस्त्रों से
उनको भी चुनौती मिल जाने दो
मनोरंजन को खेल को बन जाने दो संघर्ष
मत करो अमर्ष
जिनको अपनी इज्जत प्यारी है
वह कोई तमाशा नहीं करेंगे
वस्त्र उतारने के खेल में
जो चढ़ गये है बुलंदियों पर
पर वह भी कोई आशा नहीं करेंगे
पर्दे पर रोज आयेंगे नये वस्त्रहीन नायक नायिकायें
बदल जायेंगी सारी परिभाषायें
कितना भी कोई शौहरत वाला क्यों न हो
वस्त्रहीन दिखने से घबड़ाता है
जब होगी अपने से अधिक बलशाली
वस्त्रहीन आदमी की चुनौती
मांगने लगेंगे पानी
सब जानते हैं कि वस्त्रहीनों से
सर्वशक्तिमान भी डरता है
अभी तक समाज पर हंस कर
उसी से बटोरी है वाह वाही
उसकी फब्तियां उनको दहलायेंगी।
.............................
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

Sunday, August 2, 2009

इलाज का मामला-हास्य कविता (ilaj ka mamla-hasya kavita)

चिकित्सक के गलत इलाज से
मरीज किसी तरह बच पाया।
निकला उसके अस्पताल से
घर पहुंचकर ही सांस ले पाया।
कभी सिर में दर्द रहता
तो कभी पांव से चलते हुए तकलीफ होती
‘जान बच गयी लाखों पाये’
यही सोचकर तसल्ली कर सब सहता
एक दिन उसे वकील से मिलने का ख्याल आया।
उसने जाकर उसे सब हाल बताया।
वकील ने उसे
क्षतिपूर्ति का मुकदमा करने की दी सलाह
साथ में चिकित्सक को भी नोटिस थमाया।
अब तो बढ़ गया झगड़ा
बदले हालत में
मरीज खुशी से हो गया तगड़ा
इधर चिकित्सक को भी समझौते के लिये
लोगों ने समझाया।
दोनों अपने वकीलों के साथ मिले एक जगह
ढूंढने लगे झगड़े की सही वजह
मरीज और चिकित्सक के वकील ने
दोनों को समझौते की लिए राजी कराया।
चिकित्सक ने मरीज की दस हजार फीस में से
पांच हजार उसके वकील और
पांच हजार अपने वाले को थमाया।
दोनों ने अपने पैसे अपनी जेब में रख लिये
यह देखकर
‘मेरे दस हजार कहां है
मुझे वापस दिलवाओ’
मरीज चिल्लाया।
मरीज का वकील बोला-
‘पगला गये हो
तुमने चिकित्सक का कितना नुक्सान कराया
तुम्हारे इलाज पर इतनी दवायेें लगाई
अपने लोगों से मेहनत कराई
फिर भी उनके हाथ कुछ नहीं आया।
तुमने मुफ्त में
उनके फाईव स्टार नुमा अस्पताल में
चार रातों के साथ दिन बिताया।
अब उनकी क्या गलती जो
तुमने आराम न पाया।
मैंने तुम्हें मुकदमें के लिये
भागदौड़ करा कर चंगा कर दिया
यही काम यह चिकित्सक भी करते
तो यह परेशानी नहीं आती
अपनी इसी गलती का
बिल इन्होंने भर दिया
क्या यह कम है
तुम तो अब स्वस्थ हो गये
फिर काहे का गम है
तुम्हें ठीक करने की फीस
हम दोनों वकीलों ने ले ली
तुम तो खर्च कर ही चुके
स्वस्थ होकर हर्जाना नहीं मांग सकते
बिचारे चिकित्ससक साहब का सोचो
जिनके हाथ कुछ न आया।’

.........................................
नोट-यह हास्य कविता एकदम काल्पनिक है। किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई लेनादेना नहीं है। अगर संयोग से किसी से इसकी कारिस्तानी मेल खा जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।



दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

विशिष्ट पत्रिकाएँ