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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, December 28, 2011

दिल का झंडाबरदार-हिन्दी शायरियां (Dil ka jhandabardar-hindi shayriyan or poem's)

अपने अपने सभी के इलाके हैं
कोई न कोई कहीं का सरदार है,
डूब हैं सभी अपने घर बचाने के लिये
गलतफहमी में रहे हम कि वह असरदार हैं।
कहें दीपक बापू दोगलापन खून में है इंसानों के
मतलब निकलने तक सभी हमारे तरफदार हैं,
बाज़ार में बिकते मुद्दे पर चर्चा करना बकवास है
खुश वही है जो खुद के दिल का झंडाबरदार है।
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अपने जिस्म का पसीना
हमने उनके लिये बहाया
जो केवल दौलत के अहंसानमंद है,
उनसे तारीफ की क्या उम्मीद करना
जिनके ख्याल अपने ही मतलब में बंद हैं
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

Wednesday, December 14, 2011

दोस्ती का दम-हिन्दी शायरी (dosti ka dam-hindi shayri)

न वह दिल के पास हैं
न उनके कदम कभी हमारे घर की ओर
बढ़ते नज़र आते हैं,
कहें दीपक बापू
उनसे दोस्ती का दम क्या भरें
जिनकी वफा पर लगे ढेर सारे दाग
दिखते हैं जहां को
मगर वह खूबसूरती से
खुद से सच से ही आँखें फेर जाते हैं।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

Sunday, December 11, 2011

अन्ना हजारे (अण्णा हज़ारे) ने दी युवा की नयी परिभाषा-हिन्दी लेख (Anna hazare and today yung nanaration-hindi lekh or article)

         अन्ना हजारे अत्यंत दिलचस्प आदमी हैं। सच कहें तो हमने गांधी को नहीं देखा न सुना पर जितना पढ़ा है उसके आधार पर यह कह सकते हैं कि अन्ना की उनसे तुलना करने का अब मतलब नहीं रहा। अन्ना हजारे तो अन्ना हजारे हैं और इतिहास भारत में आजादी के बाद के महान पुरुष के रूप में उनको दर्ज करेगा। 11 दिसंबर को जंतर मंतर पर अनशन के दौरान अपने भाषणों में उन्होंनें बहुत सारी बातें कही गयी। उनमें कुछ बातें ऐसी हैं जो नारों या वाद से आगे जाकर उनके गंभीर चिंतक होने का प्रमाण देती है। इनमें युवा शक्ति को लेकर उनका बयान अत्यंत गंभीर दर्शन का प्रमाण है।
        अक्सर हमारे यहां युवाओं को आगे लाने की बात कही जाती है। जहां कहीं कोई संगठन, संस्था या आंदोलन विफल होता है तो युवा नेतृत्व लाने का नारा देकर समाज को ताजगी दिलाने का प्रयास किया जाता है। लोग भी पुराने लोगों से दुःखी होते हैं। निराशा उनको मनोबल तोड़ चुकी होती है। नया चेहरा देखकर वह यह आशा बांध लेते हैं कि शायद उनका कल्याण होगा मगर ऐसा नहीं होता बल्कि हालात बद से बदतर हो जाते हैं। अलबत्ता नया या युवा चेहरा बताकर कुछ समय तक समूहों पर नियंत्रण किया जाता है। दरअसल हमारे देश के सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक तथा अन्य संगठनों पर धनपतियों को अप्रत्यक्ष नियंत्रण है। कहने को सभी संगठन दावा करते हैं कि वह स्वतंत्र हैं पर कहीं न कहीं सभी प्रायोजन से प्रतिबद्ध दिखते हैं। युवा शक्ति के नाम पर अपने ही परिवार के सदस्यों को लाकर शिखर पुरुष खुश होते हैं तो परंपरागत से जीने वाला हमारा समाज भी खामोशी से स्वीकार करता है।
         अन्ना का कहना सही है कि युवा वही है जिसका हृदय या दिल जवान है। उनका यह भी कहना है कि अगर पैंतीस साल का आदमी हो और संघर्ष की स्थिति में कह दे कि जाने दो हमें क्या करना? वहीं कोई साठ साल को हो पर समाज के साथ खड़ा हो वही जवान है।
        एक तरह से उन्होंने यह साबित कर दिया है कि उनमें एक सक्षम नेता का गुण है। अपने अनशन से अपने आपको युवा साबित कर चुके अन्ना हजारे ने अपने दर्शन के व्यापक होने का इतना जबरदस्त प्रमाण है कि यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि पहले महाराष्ट्र और फिर पूरे देश में छा जाने वाला मजबूत नेतृत्व का उनमें जन्मजात रहा होगा। यह सही है कि इसके लिये धनपतियों के प्रचार माध्यमों का कम योगदान नहीं है। रविवार को छुट्टी के दिन उनके एकदिवसीय अनशन का आयोजन कई तरह की बातों की तरफ ध्यान खींचता है। इस दिन अवकाश के दिन देश भर में अनेक जगह हुए अनशन में भीड़ स्वाभाविक रूप से जुट जाती है। घर बैठे लोग टीवी पर सीधा प्रसारण देखते हैं। अन्ना हजारे के व्यक्तित्व का प्रचार इतना हो चुका है कि टीवी चैनलों ने इसे विज्ञापनों के बीच समय पास करने का एक महत्वपूर्ण विषय बना लिया है। यह रविवार का दिन इसमें बहुत सहायक होता है। ऐसे में अन्ना का प्रभावी भाषण उन्हें एक नये महापुरुष के रूप में स्थापित कर सकता है। खास तौर से युवा शक्ति पर उनके बयान से जहां युवा आकर्षित होंगे वहीं बड़ी आयु के लोग भी प्रसन्न होंगे। यकीनन अन्ना हजारे ने अपनी बात कहते हुए इस बात का ध्यान रखा होगा।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

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