अपनी आँखों से जो देखा है
वह सच किसी को न बताना,
अपने कानों से जो सुना नहीं
वह स्वर किसी को समझाना,
अपने दिमाग में भले ही पालो सपने
वह किसी के सामने न सजाना।
कहें दीपक बापू
जमाने के लोग अपने जिस्म का बोझ उठाने से लाचार है,
खरीदने वहाँ खड़े जाते, जहां खुशी का लगता बाज़ार है,
मरे जज़्बातों में हमदर्दी
ढूँढने में अपना वक्त गंवाना।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
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