अंतर्जाल पर हिन्दी ब्लॉग लेखन एक तरह से थम गया है। इसका मुख्य कारण नयी पीढ़ी का फेसबुक की तरफ मुड़ जाना है। संवाद संप्रेक्षण की बृहद सीमा के बावजूद हिन्दी के ब्लॉग जगत में कोई ऐसी रचना पढ़ने को नहीं मिल रही जिससे याद रखा जा सके। समसामयिक विषयों पर भी वैसा ही पढ़ने को मिल रहा है जैसा कि परंपरागत प्रचार माध्यमों में-टीवी चैनल और पत्र पत्रिकाऐं-पढ़ने को मिल रहा है। दरअसल जब इस लेखक ने अपना लेखन ब्लॉग पर प्रारंभ किया था तब न तो सामने कोई लक्ष्य था न ही आशा। जिज्ञासावश प्रारंभ किये गये इस लेखन के दौरान समाज के पहले से ही मस्तिष्क में कल्पित रूप को सच में सामने देखा जिसे अपनी रचनाओं में भी व्यक्त किया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि अध्यात्मिक लेखन ने न केवल जीवन में परिपक्व बनाया बल्कि लक्ष्य की तरफ बढ़ने का संकल्प मजबूत करने के साथ ही अभिव्यक्ति को तीक्ष्ण बनाया। अब आंखें बंदकर कंप्यूटर पर उंगलियों से टंकण करते हैं तो देखने वाले लोग हैरान होकर पूछते हैं कि आखिर यह करते कैसे हो?
प्रारंभ में इस हिन्दी ब्लॉग जगत में कुछ दोस्त बने थे। अंतर्जाल पर हिन्दी में ब्लॉग लेखन उस समय प्रारंभिक दौर में था। पहले लगा कि वह वास्तविक दुनियां हैं पर जल्द लगा कि यह केवल आभास भर था। मित्र एक था या दो या पांच, कहना कठिन है। यह संभव है कि एक मित्र हो और पांच रूप धरता हो। संभव है दो हों। एक बात तय रही कि कम से कम एक आदमी ऐसा है जो हम जैसा सोच रखता है। वह दो भी हो सकते हैं यह हम नहीं मानते। अद्वितीय हम हैं यह हम मानते हैं पर बुद्धिमान या अज्ञानी यह दूसरों के लिये विश्लेषण का विषय है। जीवन में लेखन प्रारंभ करते समय हमारे एक मित्र ने हमें बता दिया था कि तुम्हारा सोच अद्वितीय है और इसे अद्वितीय आदमी ही समझेगा। एक हमारे परिचित लेखक मित्र हैं वह भी ब्लॉग लेखन करते हैं और उनकी प्रवृत्तियां भी अद्वितीय श्रेणी की है। इसका मतलब यह कि कम से हम जैसे दो लोग हैं जो हमारी बात समझते हैं। अगर इस ब्लॉग लेख्न की बात की जाये तो हमारे लिये यही संतोष का विषय है कि हम जैसे विचार वाला एक आदमी तो यहां है।
इधर हिन्दी दिवस आ रहा है। ब्लॉग लेखन अब हमारे लिये एकाकी यात्रा हो गयी है। हिन्दी लेखन में यह दुविधा है कि अगर आप अकेले होकर लिखते हैं तो प्रचार के प्रबंधन के अभाव में आपको कोई पूछता नहीं है और अगर प्रबंधन करने जाते हैं तो लिखने की धार खत्म हो ही जाती है। हिन्दी में ब्लॉग लेखन बेपरवाह होकर ही किया जा सकता है। शुरुआती दौर में हमें एक दो मित्र ऐसे मिले जिनसे यह अपेक्षा थी कि शायद वह लंबी लड़ाई के साथी हैं पर बाद में पता लगा कि वह प्रबंध कौशल दिखाते हुए हमें अपने साथियों की भीड़ में शािमल किये हुए थे। अब शायद भीड़ बढ़ गयी तो वह उनके अगुवा होकर प्रचार अभियान में इस तरह जुटे कि हमारा नाम तक उनको याद नहीं रहा है। हिन्दी लेखन की यह दूसरी दुविधा यह है कि वही लेखक बड़ा या महान कहलाता है जिसके चार छह लेखक शागिर्द हों। हम भी किसी के शागिर्द बन जाते पर चूंकि व्यवसायिक रूप से इसका कोई लाभ हमें मिलने की संभावना नहीं लगी तो बराबरी का व्यवहार करते रहे। अखबारों में कभी हमारा नाम ब्लॉगर के रूप में दर्ज नहीं हो्रता इसलिये हमारे पाठक कभी किसी समाचार पत्र या पत्रिका ब्लॉग से संबंधित सामग्री देखकर हमारा नाम न खोजें तो अच्छा ही है। उस दिन हमारे एक दोस्त ने हमसे पूछा कि ‘‘यार तुम अंतर्जाल पर हिन्दी भाषा में इतना सारा लिखते हो पर कोई सम्मान वगैरह की खबर नहीं आती।’’
हमने उत्तर दिया कि-‘‘एक लेखक के रूप में तुम ही क्या सम्मान देते हो कि दूसरा देगा।’’
लिखते तो हम पहले भी थे पर मानना पड़ेगा कि अंतर्जाल पर लिखते हुए हम श्रद्धेय गणेश जी भगवान की ऐसी कृपा बरसती है कि एक बार लिखना प्रारंभ करते है तो फिर रुकते नही। रचना स्वतः प्रवाहित होकर आती है। कभी कभी पुराने ब्लॉग मित्रों की याद आती है पर लेखन व्यवसाय से जुड़े उन लोगों से यह आशा करना उनके साथ ज्यादती करना है कि वह हमारे साथ जुड़े रहें या कहीं हमारी चर्चा करें।
फेसबुक पर नयी पीढ़ी सक्रिय है और ब्लॉग लेखन में उनकी रुचि नहीं है। फिर भी जो लोग ब्लॉग लिखना चाहते हैं वह मानकर चलें कि उनकी एकाकी यात्रा होगी। हिन्दी ब्लॉग लेखन में पूरी तरह से क्षेत्रीयता तथा जातीयता उसी तरह हावी है जिस तरह पुराने समय में थी। बड़े शहर या प्रतिष्ठित प्रदेश का निवासी होने का अहंकार यहां भी लेखकों में है। इस अहंकार की वजह से लिखने की बात हम नहीं जानते पर पढ़ना कई लोगों का बिगड़ गया। पहले उनको हमारी रचनाऐं दिखती थी पर अब हम उनके लिये लापता हो गये हैं। यह कोई शिकायत नहीं है। सच बात तो यह है कि इस एकाकीपन ने हमें बेपरवाह बना दिया है। हमारी पाठक संख्या लगातार बढ़ी है। साथ ही यह विश्वास भी बढ़ा है कि जब हम कोई गद्य रचना करेंगे तो लोग उसे पूरा पढ़े बिना छोड़ेंगे नहीं। इसका कारण यह कि श्रीमद्भागवत गीता के अध्ययन ने हमें ऐसा बना दिया है कि हमारी गद्य रचनाओं में आई सामग्री कही अन्यत्र मिल ही नहीं सकती। यह सब इसी अंतर्जाल पर श्रीगीता पर लिखते लिखते ही अनुभव हुआ है। फुरसत और समर्थन के अभाव में कभी कभी कुछ बेकार कवितायें लिखते हैं तो उनमें भी कुछ ऐसा होता है कि व्याकररण की दृष्टि से अक्षम होते हुए भी सामग्री अपने भाव के कारण लोकप्रिय हो जाती है।
ग्वालियर एक छोटा शहर है तो मध्यप्रदेश एक ऐसा प्रदेश है जिसकी प्रतिभाओं को वहीं रहते स्वीकार नहीं किया जाता। बड़े शहर में जाकर बड़े हिन्दी व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में कथित बड़े विद्वानों की चरणसेवा किये बिना राष्ट्रीय पटल पर स्थापित होना कठिन है पर अंतर्जाल पर हमें पढ़ने वाले पाठक जानते होंगे रचनायें हमेशा ही व्यापक दायरों में सोचने वाले लोगों के हाथ से होती है। कथित हिन्दी लेखक साम सामयिक विषयों में लिखकर आत्ममुग्ध होते हैं पर आम पाठक के लिये वह कोई स्मरणीय रचना नहीं लिख पाते। हमारे ब्लॉग पर ऐसी कई रचनायें हैं जो लोग पढ़कर आंदोलित या उत्तेजित होने की बजाय चिंत्तन में गोते लगाते हैं। बहरहाल यह बकवास हमने इसलिये कि हमारे बीस ब्लॉग कुल पच्चीस लाख की पाठक/पाठ पठन संख्या पार कर कर गये हैं। इस पर हम अपने पाठक तथा टिप्पणीकर्ताओं के आभारी है जिनके प्रोत्साहन की वजह से यह सब हुआ। अब चूंकि ब्लाग लेखक मित्रों से संपर्क बंद है इसलिये उनको इस बात के लिये धन्यवाद देना व्यर्थ है क्योंकि उनको तो यह मालुम भी नहीं होगा कि हमने ब्लॉग लिखना बंद नहीं किया भले ही अखबार वगैरह में हमारा नाम नहीं देते। जय श्री राम, जय श्री कृष्ण!