शोर मचा है कहीं बाज़ार में
सौदागर काले हाथ करते हुए पकड़े हैं,
कानून की जंजीरों में अब जकड़े है,
हैरान है सौदागरों के कारिंदे
यह सोचकर कि अपना काफिला
कैसे आगे चलेगा,
कहंी उनके घर में घी की बजाय
तेल का चिराग तो नहीं जलेगा,
इसलिये नारे लगाते हुए
अपने मालिक की ईमानदारी पर
सीना तानकर खड़े अकड़े हैं।
कहें दीपक बापू
दौलतमंद चाहे कितने भी आगे हों
सारे जहान में
मगर ईमान के रास्ते चलने पर
उनकी नानी हमेशा मरती,
हुकुमत पर काबू रखने का
ख्वाब अच्छा है
मगर उसके आगे चलने की ख्वाहिश भी
उनकी आहें भरती,
यह अलग बात है
कानून अंधा है
कभी कभी चल पड़ता है
अपने ही दोस्तों की तरफ
अपने हाथ बढ़ाते हुए,
खरीदते हैं जो उसे अपने सिक्कों की दम पर
चल पड़ता है डंडा लेकर कभी
उनको डराते हुए,
सौदागरों के हमदर्द
ज़माने के बिखर जाने का खौफ दिखाते हैं
आवाज इतनी जोर से करते
ताकि कोई न पूछे
उनके मालिकों के दूसरे कितने लफड़े हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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