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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, October 24, 2013

सौदागरों के लफड़े-हिन्दी व्यंग्य कविता(saudagaron ke lafde-hindi vyangya kavita)



शोर मचा है कहीं बाज़ार में
सौदागर काले हाथ करते हुए  पकड़े हैं,
कानून की जंजीरों में अब जकड़े  है,
हैरान है सौदागरों के कारिंदे
यह सोचकर कि अपना काफिला
कैसे आगे चलेगा,
कहंी उनके घर में घी की बजाय
तेल का चिराग तो नहीं जलेगा,
इसलिये नारे लगाते हुए
अपने मालिक की ईमानदारी पर
सीना तानकर खड़े अकड़े हैं।
कहें दीपक बापू
दौलतमंद चाहे कितने भी आगे हों
सारे जहान में
मगर ईमान के रास्ते चलने पर
उनकी नानी हमेशा मरती,
हुकुमत पर काबू रखने का
ख्वाब अच्छा है
मगर उसके आगे चलने की ख्वाहिश भी
उनकी आहें भरती,
यह अलग बात है
कानून अंधा है
कभी कभी चल पड़ता है
अपने ही दोस्तों की तरफ
अपने हाथ बढ़ाते हुए,
खरीदते हैं जो उसे अपने सिक्कों की दम पर
चल पड़ता है डंडा लेकर कभी
उनको डराते हुए,
सौदागरों के हमदर्द
ज़माने के बिखर जाने का खौफ दिखाते हैं
आवाज इतनी जोर से करते
ताकि कोई न पूछे
उनके मालिकों के दूसरे कितने लफड़े हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Monday, October 14, 2013

उनका हिसाब-हिन्दी व्यंग्य कविता (unka hisab-hindi vyangya kavita)



जिनको उम्मीद है कोई तुमसे
उन पर  अपना आसरा
कभी नहीं टिकाना,
वादे पर वादे वह करेंगे
मतलब निकलते ही
बदल लेंगे  अपना ठिकाना।
कहें दीपक बापू
अगर वह चालाक नहीं होते,
गद्देदार पलंग की बजाय जमीन पर सोते,
वफादारी निभाने की अगर उनमें तमीज होती,
तब क्यों उनकी एकदम सफेद कमीज होती,
पसीने की एक बूंद नहीं है शरीर पर जिनके,
आम इंसान होते उनके लिये तिनके,
एक हाथ उठाकर वह एक चीज मांगें
तुम दोनो हाथों से दो चीज देना
किसी के खाते में उनका हिसाब न लिखाना,
आदत नहीं है उनको
मतलब पूरा होने के बाद अपनी शक्ल दिखाना।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
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Sunday, October 6, 2013

कुदरत की चाल और इंसान की चालाकियां-हिन्दी कविता(kudrat ki chal aur insan ki chalakiyan-hindi kavita)



कुदरत की अपनी चाल है
इंसान की अपनी चालाकियां है,
कसूर करते समय
सजा से रहते अनजान
यह अलग बात है कि
सर्वशक्तिमान की सजा की भी बारीकियां हैं,
दौलत शौहरत और ओहदे की ऊंचाई पर
बैठकर इंसान घमंड में आ ही जाता है,
सर्वशक्तिमान के दरबार में हाजिरी देकर
बंदों में खबर बनकर इतराता है,
आकाश में बैठा सर्वशक्तिमान भी
गुब्बारे की तरह हवा भरता
इंसान के बढ़ते कसूरों पर
बस, मुस्कराता है
फोड़ता है जब पाप का घड़ा
तब आवाज भी नहीं लगाता है।
कहें दीपक बापू
अहंकार ज्ञान को खा जाता है,
मद बुद्धि को चबा जाता है,
अपने दुष्कर्म पर कितनी खुशफहमी होती लोगों को
किसी को कुछ दिख नहंी रहा है,
पता नहीं उनको कोई हिसाब लिख रहा है,
गिरते हैं झूठ की ऊंचाई से लोग,
किसी को होती कैद
किसी को घेर लेता रोग
उनकी हालत पर
जमीन पर खड़े इंसानों को तरस ही जाता है।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
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