अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से अलविदा करने के
लिये तैयार कथित भगवान का अब भी बाज़ारीकरण हो रहा है। आखिर उसे भगवान कहा किसने? यकीनन कोई सच्चा क्रिकेट खिलाड़ी या प्रेमी
किसी भी खिलाड़ी के साथ भगवान की उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता। बाज़ार उसका कृतज्ञ है कि उसने अपने व्यक्तिगत
खेल के प्रभाव से उनके उत्पादों के विज्ञापनों का संचालन कुशलता से किया। उसका चेहरा आकर्षक है। आंखों की मासूमियत स्त्रियों को प्रभावित करती
है और उस पर फिल्माया गया कोई भी विज्ञापन अपनी वस्तु को लोकप्रियता दिलाता
है। बाज़ार के सहयोगी प्रचार माध्यम उसे
भगवान कहकर लोगों को हसंने का अवसर देते रहे।
वह भगवान उन लोगों के लिये रहा जिनको इससे पैसा कमाना था। वरना उसके निजी आंकड़े बीसीसीआई की क्रिकेट टीम
की किसी एतिहासिक यात्रा के सहायक नहीं बने।
इसके पीछे सच यह है कि जब वह जब अकेले पराक्रम प्रकट कर रहा था तब उसके
सहारे अनेक अक्षम खिलाड़ियों का खराब प्रदर्शन छिपता जा रहा था। कुछ बेईमान खिलाड़ी भी उसके साथ रहे जिन्हें बाद
में फिक्सिंग के कारण दंडित होना पड़ा।
देखा जाये तो जब उसका खेल चरम पर था तब फिक्ंिसग अपने पांव पूरी तरह जमा
रही थी। उसके खेल निर्विवाद श्रेष्ठ था पर
बीसीसीआई की टीम का सामूहिक प्रदर्शन उसी
दौर में सबसे ज्यादा खराब रहा। इस पर अलग
से विश्लेषण करना चाहिये।
हैरानी की बात यह है कि पिछले कुछ दिन से अंतर्राट्रीय मैचों से सट्टे की
चर्चा एकदम गायब थी पर जैसे ही वह अपने अंतिम मैच खेलने उतरा फिर सट्टे की चर्चा
गरम हो गयी। वह कितने रन बनायेगा, कब
आउट होगा, कितने रन बनायेगा इन
बातों को लेकर सट्टा लग रहा है, ऐसा
प्रचार माध्यम कह रहे हैं। इधर प्रचार
माध्यम भी अनेक सफेदपोश प्रतिष्ठित लोगों को एकत्रित कर उसकी विदाई को सम्मानजनक
बनाने में लगे हैं। क्रिकेट विशेषज्ञों
में कुछ ऐसे हैं जो भले ही पैसा कमाने के लिये पर्दे पर उसकी विदाई को आकर्षक
बनाने के लिये आंखों देखा हाल सुनाकर उसकी प्रशंसा कर रहे हों पर वह जानते हैं कि
बीसीसीआई की वर्तमान टेस्ट टीम में उसके
लिये जगह ही नहीं बनती। कलकत्ता में
बीसीसीआई की जिस टीम ने वेस्टइंडीज की हराया उसमें शामिल खिलाड़ियों पर दृष्टिपात
करें तो यही भगवान योग्यता की दृष्टि से 11 वां होना चाहिये। इसका मतलब यह है कि उससे ज्यादा योग्य खिलाड़ी
देश में है और 11 वां नंबर
इसलिये उसे मिला क्योंकि वह टीम में शामिल है। मुंबई में होने वाले अंतिम टेस्ट का
महत्व केवल इसलिये है क्योंकि भगवान वहां से विदाई लेने वाला है। जहां तक परिणाम
का प्रश्न है वेस्ट इंडीज की वर्तमान कमजोर टीम बीसीसीआई की टीम को हरा पाये इसकी
संभावना नगण्य है।
एक दूसरा सच भी है जैसे जैसे भगवान का पतन
प्रारंभ हुआ वैसे वैसे बीसीसीआई की टीम ने
उत्कर्ष की तरफ कदम बढ़ाये। अब तो लोगों ने
यह कहना प्रारंभ कर दिया था कि पहले भगवान दूसरे खिलाड़ियों का बोझ उठा रहा था अब
उसका बोझ नये खिलाड़ी उठा रहे हैं। कुछ
क्रिकेट विशेषज्ञ तो यह भी कहते रहे हैं कि भगवान को अनफिट हुए छह वर्ष हो गये
हैं। इतने बरस तक वह खेला तो केवल बाज़ार और प्रचार समूहों के प्रभाव की सहायता उसे
मिली। उसे टीम से हटाना सहज नहीं था। देखा जाये तो हम पर्दे पर जो अब टीमें देखते
हैं उनका निष्पक्ष चयन एक दिखावा होता है क्योंकि बिना प्रायोजकों की सहमति से
खिलाड़ियों का आना संभव नहीं है। कभी आपने
मैच के बाद पुरस्कारों के चयन के समय पीछे लगे कंपनियों के प्रचार वाले बोर्ड देखे
होंगे। क्या आप मान सकते हैं कि इतनी सारी
कपंनियां निरपेक्ष भाव से क्रिकेट खेल को चलते देख सकती हैं। अपने उत्पाद के
विज्ञापनों के माडलों की छवि बनाये रखने की चिंता नहीं करती होंगी जो खराब
प्रदर्शन के बावजूद उन्हें टीम में रखने से जाहिर होती है। यह कंपनियां खिलाड़ियों के चयन और खेल पर प्रभाव डालने का
प्रयास नहीं करती होंगी, इस पर
यकीन करना कठिन है। वह खिलाड़ी भगवान
इसलिये कहलाया क्योंकि उसकी वजह से कंपनियों को यह खेल एक सोने की खान की तरह हाथ
आया। सट्टेयबाजों ने भी अपना काम किया।
भगवान कभी स्वयं गलत काम में शािमल न हो पर उसकी आड़ में कुछ गलत तत्व छिपते
रहे।
चलते चलते विराट कोहली के खेल की चर्चा
करें। दूसरी पारी में लक्ष्य का पीछा करते
हुए जितने मैच उसने बीसीसीआई की टीम को इतनी कम अवधि में जितवायें होंगे उसके दस
फीसदी का मुकाबला भी भगवान की पारियों के आंकड़े नहीं कर सकते। लोग विराट कोहली में
भगवान का रूप देख रहे हैं और हम सोचते हैं कि भगवान विराट कोहली जैसा क्यों नहीं
खेल सका। 1983 में भारत को विश्व
कप जितवाने वाले कपिल देव और अब धोनी वास्तव में टीम के सदाबहार नायक कहे जा सकते
हैं। धोनी तो गजब का योद्धा है। हम सोचते हैं कि भगवान के व्यक्तिगत कीर्तिमान
भले ही उससे बेहतर हैं पर इतिहास उसके कुल पराक्रम को उस तरह प्रकट क्यों नहीं
करता जैसा कि दावा प्रचार माध्यम करते हैं।
बहरहाल एक मामले में उसकी प्रशंसा करना चाहिये। उसका व्यवहार मैदान पर हमेशा
शालीन रहा और यही देश के अन्य खिलाड़ियों को सीखना चाहिये। क्रिकेट में ऐसी शालीन विदाई भी किसी की नहीं
देखी गयी।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका