आज महाशिवरात्रि का पर्व पूरे देश में मनाया
जा रहा है। सकाम और साकार भक्ति करने वाले
लोग इस पर्व भगवान शिवजी में मंदिर जलाभिषेक तथा दुग्धाभिषेक कर अपनी आस्था व्यक्त
करते हैं। हमारे समाज में धर्म और
अध्यात्मिक दर्शन के बीच कोई रेखा नहीं खींची गयी है। दूसरी बात यह है कि हमारे दर्शन में सकाम और
साकार भक्ति को मान्य तो किया गया है पर निष्काम निराकार भक्ति को उससे ज्यादा
महत्व मिला है। इस तरह की भक्ति प्रत्येक
व्यक्ति के लिये संभव नहीं है यह कहना तो गलत होगा पर अधिकतर लोग प्रत्यक्ष दिखने
वाली सकाम तथा साकार भक्ति में ही रुचि लेते हैं। निष्काम तथा निराकार भक्ति ज्ञान
होने पर ही संभव है इसलिये ही हमारे धार्मिक विशेषज्ञों ने मूर्तिपूजा तथा प्रसाद
आदि चढ़ाकर सकाम भक्ति को भी कभी हतोत्साहित नहीं किया। उनका मानना रहा कि कालांतर
में भक्ति से भी ज्ञान हो ही जाता है।
देखा जाये तो हमारे देश में भक्ति को लेकर कभी
विवाद नहंी रहा यह अलग बात है कि विदेशी विचाराधाराओं के भारत में प्रविष्ट होने
के बाद अनेक प्रकार के विवाद होते रहते हैं। अक्सर कहा जाता है कि भारत में जाति
पांत और धर्मांधता ज्यादा है पर शायद लोग यह नहीं जानते कि इसको लेकर कभी भारत में
राजकीय युद्ध नहीं हुए। जबकि भारत के बाहर धर्म तथा रंगभेद को लेकर अनेक राजकीय
युद्ध हो चुके हैं। जर्मनी के हिटलर ने तो
बकायदा यहूदी धर्म के खिलाफ अभियान ही छेड़ दिया था जिसकी परिणति इजरायल के जन्म के
रूप में हुई। इतना ही नहीं मध्य एशिया में
भी धर्म को लेकर अनेक तरह के युद्ध हो चुके हैं।
भारत के इतिहास में अनेक राजाओं के बीच युद्ध
हुए पर उसका कारण कभी जात या धर्म नहीं था। उनके बीच युद्ध व्यक्तिगत अहं के कारण
हुए। कभी भारत में भक्ति या इष्ट के भिन्न रूप के कारण संघर्ष नहीं हुए। इसका कारण यह है भारत का अध्यात्मिक ज्ञान
अत्यंत समृद्ध रहा है। जिसके अंश हर भारतीय में स्वाभाविक रूप से रहते ही
हैं। यह ज्ञान सत्य कहलाता है और जिसके
प्रतीक शिव हैं। शिव ही सत्य हैं और उनसे
परे होने के अर्थ अपना जीवन नरक में ही डालना है।
शिव मूर्तिमान भी हैं और अमूर्त भी।
शिव प्रकट हैं तो अप्रकट भी हैं।
शिव निर्माण और संहार दोनों के प्रतीक हैं। यही कारण है कि साकार तथा
निराकार दोनों ही प्रकार के भक्तों के इष्ट हर हर महादेव होते हैं।
महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर जहां साकार भक्त
शिवजी के मंदिर में जलाभिषेक या दुग्धाभिषेक करते हैं वही निष्काम योग तथा ज्ञान
साधकों के लिये शिवजी की ंअंतर्मन में आराधना कर अध्यात्मिक ज्ञान का अध्ययन,
चिंत्तन और मनन करने का अवसर यह पर्व
प्रदान करता हैं। दोनों में ही कोई अंतर
नहीं है। हम यह भी दावा नहीं कर सकते कि
श्रेष्ठ कौन है या निम्न कौन? एक
बात तय है कि अगर सच्चे हृदय से शिव की आराधना की जाये तो ज्ञान स्वतः ही प्राप्त
हो जाता है। शिवजी की आराधना न कर
सर्वशक्तिमान के किसी अन्य रूप की हृदय में स्थापना कर ज्ञान साधना की जाये तो
कालांतर में शिव के प्रति ही आस्था पैदा होती है।
योग साधना के पारंगत कुछ लोग भगवान शिव को
महायोगेश्वर भी कहते हैं। जिस तरह शिवजी
की लीलाओं का वर्णन किया जाता है उससे लगता है कि उनकी शक्ति योगमाता में ही
अंतर्निहित है। जिन साधकों ने ज्ञान तथा
योग का निरंतर अभ्यास कर उनकी शक्तियों को समझा है वही शिव का अप्रकट रूप अपने
हृदय में अनुभव कर सकते हैं। इस महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर मित्र ब्लॉग लेखकों
तथा पाठको को बधाई।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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