एक पाश्चात्य वैज्ञानिक ने बताया है कि दैवीय कण अत्यंत शक्तिशाली है और वह
पल भर में सृष्टि का नाश कर सकता है। पश्चिम में ही एक वैज्ञानिक प्रयोग हुआ था
जिसमें यह दावा किया गया कि इस सृष्टि के रचयिता दैवीय कण का पता चल गया है। इस
संबंध में प्रयोग चल रहे हैं पर हम जब इसे भारतीय अध्यात्मिक विज्ञान की दृष्टि से
देखते हैं तो यह एक प्रचार के लिये रचे गये प्रपंच से अधिक नहीं है। हमें पाश्चात्य विज्ञान की समझ नहीं है पर
दैवीय कण शब्द को प्रयोग ही इस बात पर संदेह पैदा करता है कि इस तरह की कोई खोज
हुई है जिसके आधार पर भ्रम को सत्य स्प बताकर प्रचारित किया जायेगा।
दैवीय कण की स्वीकार्यता का अर्थ है कि इस संसार के आधार में भौतिक तत्व की
उपस्थिति मान लेना। हमारा सिद्धांत कहता
है कि परमात्मा प्रकट स्वरूप में नहीं है। इस सृष्टि में जीवन प्रवाहित करने के
लिये पांच तत्व माने गये हैं-प्रथ्वी, वायु, सूर्य,
जल और आकाश-अगर दैवीय कण सिद्धांत को मान लिया जाये
तो वह भौतिक तत्व प्रथ्वी का संकेत देता है।
हमारे अध्यात्मिक विज्ञान के सिद्धांत के अनुसार इन पंच तत्वों को शक्ति
प्रदान करने वाला अदृश्य, अप्रकट तथा अव्यक्त पर तत्व परमात्मा है। वह
अनश्वर तथा स्पर्श से परे है, इसलिये दैवीय कण का सिद्धांत भारतीय दर्शन से
मेल नहीं खाता।
एक दूसरा सिद्धांत भी इस दैवीय कण के नियम से मेल नहीं खाता। पश्चिम का दैवीय सिद्धांत कहता है कि वह
शक्तिशाली है जबकि हमारा मानना है कि वह स्वयं शक्ति है। वह इस सृष्टि का धारक है
पर इसमें कहीं स्वयं उपस्थित नहीं है।
इसलिये पश्चात्य वैज्ञानिकों का यह दावा स्वीकार करना कठिन है कि उसे देखा
गया है। उनकी बातों से ऐसा लगता है कि
जैसे वह उनके हाथ लग गया है। अगर यह सही है तो वैज्ञानिकों से कई प्रमाण मांगे जा
सकते हैं। एक तो पानी से ही जुड़ा है। हमें एक सज्जन कह रहे थे कि पानी में ऑक्सीजन
और हाईड्रोजन होता है अगर वैज्ञानिकों के
हाथ दैवीय कण लग गया है तो वह ऑक्सीजन और हाईड्रजन मिलाकर पानी बनाकर दिखा
दें। इस तरह मिश्रित तत्वों से बनी
प्रकृतिक वस्तुऐं जिनका मानव शक्ति से निर्माण संभव नहीं है उन्हें दैवीय कण से
जोड़कर दिखाने पर ही पश्चात्य विज्ञान के दावों पर यकीन किया जा सकता है।
जिस तरह भारत में मनोरंजन की विषय धर्म के नाम पर निर्धारित होते हैं उसी
तरह पश्चिम में विज्ञान के आधार पर उनका सृजन होता है। पश्चिम की एक फिल्म आई थी
जुरासिक पार्क जिसमें डायनासोर नाम के एक कल्पित शक्तिशाली जीव का सिद्धांत दिखा
गया था। भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में किसी
ऐसे जीव का उल्लेख नहीं मिलता पर आजतक इस कथित डायनासोर के जीवाश्य मिल ही रहे है
जिनकी चर्चा होती हैं। उसी तरह पश्चिम ने
दूसरे ग्रहों से आये एलियन का भी प्रचार कर रखा है। इस पर जमकर मनोरंजन का व्यवसाय चल रहा है। यह
अलग बात है कि आज तक किसी ने एलियन को देखा ही नहीं है। अभी पश्चिम में सात सौ
वर्ष बाद का जीवन दर्शाने वाला एक वीडियो गेम प्रचारित हो रहा है। इसके बारे में
दावा यह किया जा रहा है कि बड़े बड़े वैज्ञानिकों से चर्चा कर यह गेम बनाया गया
है। इन वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस
तरह विश्व में प्रयोग चल रहे हैं उसके आधार पर सात सौ वर्ष बाद इस संसार में
मनुष्य का जीवन ऐसा ही होगा जैसा कि खेल में दिखा गया है।
भारत
में अधिकतर फिल्में कहीं न कहीं धर्म की आड़ लेकर बनती हैं पर उससे कोई भ्रम नहीं
फैलता पर पश्चिम में कथित विज्ञान की सहायता से फिल्म बनाकर उसे भूत और भविष्य का
सत्य मान लिया जाता है। वर्तमान के हालातों पर भ्रमित करना सहज नहीं है इसलिये
पश्चिम रचनात्मक जगत उससे दूर ही रहता है।
बहरहाल अब हमें कथित दैवीय कण पर आधारित मनोंरजन सामग्री का इंतजार है। एक बात तय रही कि इसमें गंभीर और हास्य दोनों
तरह के विषय शमिल होंगे। ठीक उसी तरह जैसे
डायनासोर और एलियन के विषयों पर भारी मनोरंजक व्यवसाय हुआ उसी तरह दैवीय कण भी
सहायक होंगे।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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