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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, December 28, 2014

आनंद एकांत में करें-हिन्दी कविता(anand ekang mein karen-hindi poem)



मन की व्यथा

बाहर सुनाने पर

लोग हंसते हैं।



आनंद बखान करने पर

बैठ जाता दिल सभी का

लोगों के दिमाग में

अनहोनी की चाहत के

 कांटे फंसते हैं।



कहें दीपक बापू यह युग

सच का नहीं रहा,

झूठ का नाला सभी जगह बहा,

कह गये बुद्धिमान

प्रसन्नता का आनंद और प्रमाद

एकांत में करो,

कोई असुर तुम्हें

देख रहा है

यह सोचकर डरो,

यह अलग बात है

माया ने हर ली जिनकी बुद्धि

व्यसन और हवस के

घरों में आनंद ढूंढते हुए

प्राण गंवाने की आशंका के बीच

अपनी गर्दन लेकर ठंसते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Sunday, December 21, 2014

अज्ञान के बुतों की सेवा-हिन्दी कविता(agan ke buton ki sewa-hindi poem)



सर्वशक्तिमान में आस्था
वह भीड़ में नाटकीयता के साथ
सभी को दिखाते हैं।

अपनी  पूजा पद्धति
दान में पायी भेंट बांटकर
दूसरों को सिखाते हैं।

कहें दीपक बापू अज्ञान के बुतों से
नहीं बनता कोई दूसरा काम,
सर्वशक्तिमान के सेवक के रूप में
कमाना चाहते पैसा और नाम,
सामान देकर खरीदते आस्था
भक्ति के व्यापार से
पूज्यनीय सूची में नाम लिखाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Sunday, December 14, 2014

चाहतें बर्बादी ला देती हैं-नशे पर कविता(chahten barabadi la detee hain-nashe par hindi poem)




मन में दबी आशायें
खुली आंखों से सपना
देखंने की आदत
मानव को नशा करने का
आदी बना  देती हैं।

आकाश में उड़ने की
नाकाम कोशिश
पूरी जिंदगी बर्बादी से
सना देती हैं।

कहें दीपक बापू टूटते हुए
दौलत से ऊब रहे हैं,
बोतलों के नशे में डूब रहे हैं,
उनकी लाचारियां
दिवालियों को भी
दौलतमंद बना देती हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Monday, December 8, 2014

शब्द हमेशा कुछ बोलते हैं-हिन्दी कविता(shabd hamesha kuchh bolte hain-hindi kavita)



किताबों में प्रकाशित
समूह में एकत्रित शब्द
हमेशा कुछ बोलते हैं।

पढ़ने वालों ने
कितना पढ़ा
कितना समझा पता नहीं
अर्थ की लाचारी कितना छिपायें
उनके शब्द ही राज खोलते हैं।

कहें दीपक बापू बाज़ार के शब्द
कभी ज्ञानहीन होते हैं,
दाम पाने की नीयत में
बड़े ही दीन होते हैं,
यह अलग बात है कि
हृदय में कामनाओं के साथ
सौदागर अर्थहीन शब्द
प्रचार करते डोलते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Monday, December 1, 2014

प्रचार के बाज़ार में खबर-हिन्दी कविता(prachar ka bazar mein khabar-hindi kavita)



कत्ल की खबर
प्रचार के बाज़ार में
महंगी बिक जाती है।

व्याभिचार का विषय हो तो
दिल दहलाने के साथ
 मनोरंजन के तवे पर विज्ञापन की
रोटी भी सिक जाती है।

कहें दीपक बापू साहित्य को
समाज बताया जाता था दर्पण,
शब्दों का अब नहीं किया जाता
पुण्य के लिये तर्पण,
अर्थहीन शब्द
चीख कर बोलने पर
प्रतिष्ठा पाता
जिसके भाव शांत हों
उसकी किसी के दिल पर स्मृति
टिक नहीं पाती है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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