यमन में शिया और सुन्नियों के बीच संघर्ष की स्थिति में ईरान और सऊदी अरब
दोनों ही कूद पड़े हैं। आम तौर से ईरान और सऊदी अरब को एक ही धर्म का माना जाता है।
दोनों ही कहीं न कहीं प्रत्यक्ष रूप से अपने धर्म के आतंकवादियों के संरक्षक
हैं। अभी तक इनके धर्म में छोटे आंतरिक
हिंसक संघर्ष चलते रहते थे पर पहली बार इतना बड़ा युद्ध यमन में सामने आया। सऊदी अरब सुन्नियों का प्रभाव यमन में देखना
चाहता है और ईरान शिया विद्रोहियों के साथ है। यमन से भारतीय नागरिका निकालने की
कार्यवाही चल रही है पर हमारे देश के
संदर्भ में वहीं तक सीमित रहना ठीक नहीं है। खासतौर से भारतीय अध्यात्मिक
तथा धार्मिक विद्वानों पर पश्चिमी धार्मिक विचाराधाराओं पर दृष्टिपात करना ही चाहिये।
हमारे यहां कभी धार्मिक संघर्ष नहीं हुए। शैव्य तथा वैष्णवों के बीच वाद
विवाद की बात इतिहास में है पर इतनी बड़ी नहीं है कि हम भारतीय धार्मिक विचाराधारा
को ही गलत समझें। फिर हमारे यहां सनातन धर्म के प्रवाह के चलते ही जैन, बौद्ध तथा सिख धर्म
सहजता से प्रकट हुए। इसके विपरीत पश्चिम
की दोनों विचाराधाराओं के समाज आपस में ही जूझते रहे हैं। धार्मिक आधार पर हिंसा की प्रवृत्ति हमारे यहां
पाश्चात्य प्रभाव से ही आयी। पश्चिमी और
मध्य एशिया में धार्मिक आधार पर हिंसक संघर्ष हुए हैं और इतिहास इसका गवाह है।
वहां धर्म को राज्य विस्तार का आधार तत्व माना जाता है और सऊदी अरब कहीं न कहीं प्रारंभ से ही इसका
प्रयोक्ता रहा है। हमारे यहां अध्यात्म की
दृष्टि से सर्वशक्तिमान की पूजा का कोई भी तरीका मान्य है पर जहां कर्मकांड तथा
अंधमान्यताओं की बात आती है तो कहना ही
पड़ता है कि वह साम्राज्यवाद की प्रवाहक है। खान पान, रहन सहन,
पहनावे तथा चलने के तरीके जब धर्म का हिस्सा बनाकर
पेश किये जायें तो अनेक संशय होते ही हैं।
कहीं कोई पहनावा या खानपान ठीक तो दूसरी जगह अनावश्यक हो सकता है। मनुष्य की आध्यात्मिक स्थिति नहीं बदलती पर
भौतिक स्थिति में बाह्य प्रभाव आता है और स्थितियों के अनुसार उसे बदलना
चाहिये। हमने देखा कि हमारे धर्म से जुड़े
रहन सहन, भाषा, पहनावा, खान पान तथा आचार विचार धरती के कारण स्वाभाविक रूप से दिखते हैं। हमारे यहां धर्म का आशय अध्यात्मिक पूजा से है
जबकि पश्चिम से आये कथित धार्मिक प्रचारकों ने भाषा, नाम, रहन सहन, पहनावे तथा खान पान से भी उसे जोड़कर यहां अपने धर्मों का प्रचार कर
राजनीतिक साम्राज्य का ही विस्तार किया।
अगर किसी को पूजा पद्धति में बदलाव करना हो तो ठीक पर उन्होंने तो रहन सहन, भाषा तथा पहनावे में
परिवर्तन का काम किया। यहां के लोगों से
अलग दिखकर अपने देश के लोगों जैसा दिखाने का काम किया।
देखा जाये तो यमन, इराक, सीरिया, लीबिया, फिलीस्तीन तथा आसपास चल रहे अन्य देशों में तनाव में वहां उत्पन्न धार्मिक
विचाराधाराओं की ही छाप दिख रही है। अमेरिका तथा यूरोपीय राष्ट्र जिस धर्म को
मानते हैं वह भी पश्चिम एशिया से बाहर आया है।
मध्य एशिया में ही दूसरे धर्म का जन्म हुआ। दोनों के बीच भारी संघर्ष हुए
है। फिर दूसरे धर्म में भी तीन अंतर्धारायें हैं जिनके बीच संघर्ष होता रहता है।
वहां कथित धर्मनिरर्पेक्ष सिद्धांतों की दुहाई देने का कोई अर्थ नहीं है। ईरान ने
सबसे पहले सलमान रुशदी के विरुद्ध फतवा देकर धार्मिक आतंकवाद की शुंरुआत की थी अब वह अपने ही सहधर्मी राष्ट्रों से उलझ रहा
है। भारत के अध्यात्मिक विद्वानों के पास यही वह अवसर है ऐसे सवाल उठा सकते हैं
जिससे विदेशी विचाराधाराओं के समर्थक स्वयं को असहज अनुभव करें।
इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि एक बार कोई धार्मिक राष्ट्र अस्थिर
हुआ तो वह तबाही की राह चला। इराक, सीरिया, लीबिया, फिलीस्तीन और लेबनान इसका प्रमाण है। तुर्की अभी तक अपनी सहिष्णुता के कारण
बचा है। हालांकि दो मुख्य राष्ट्र सऊदी
अरब और ईरान बचे हैं पर अपने हीं अंदर चल रहे तनावों में उलझे हैं। उनसे मुंह
छिपाने के लिये दोनों ही बाहर धार्मिक साम्राज्य विस्तार कर अपनी जनता को भरमाये
हुए है। फिलहाल दोनों सुरक्षित दिख रहे हैं पर जिस तरह इन्होंने अन्य देशों की आग
में हाथ डाला है उसे जब तक संभाले रहे तो ठीक, वरना दोनों ही तबाही की राह जायेंगे।
सऊदी
अरब ने पाकिस्तान से यमन के लिये सेना मांगी पर उसने मना कर दिया है। पाकिस्तान ने
कहा है अगर सऊदी अरब पर कोई सीधा हमला हुआ तो वह सेना भेजेगा। इससे एक बात तो जाहिर होती है कि कहीं न कहीं
अमेरिका की मदद से सऊदी अरब ने उसे खड़ा कर रखा है कि कहीं कि हिन्दू भारत या बौद्ध
चीन कहीं उसके लिये खतरा न बन जाये। बहरहाल हमारा मानना है कि इन धर्म आधारित
राष्ट्रों का संकट भविष्य में विकराल रूप लेगा। पड़ौस में आग लगाने के बाद कोई आराम
से नहीं बैठ सकता। ईरान और सऊदी अरब के रणनीतिकारों के समझ में यह बात नहीं आ सकती
है। इसके लिये उन्हें भारतीय अध्यात्मिक दर्शन का ज्ञान होना आवश्यक है पर
श्रेष्ठता का अहंकार तथा धर्म के आधार पर पूरे विश्व पर नियंत्रण की कामना उनमें
इतनी है कि वह मूर्तिपूजकों के विरोधी होने के कारण इसे स्वीकार नहीं कर सकते। यह
अलग बात है कि यही उनकी नीयत उन्हें संकट में लाने वाली हैं।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका