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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, July 31, 2015

जनमानस में राज्य प्रबंध के साथ ही अन्य क्षेत्रों में बदलाव की चाहत पूरी होना ही चाहिये(janmanas mein rajya prabandh ke sath hi anya kshetron min badlaw ki chahat puri hona hi chahiye)

         
                    भारत में सामाजिक, आर्थिक, धाार्मिक, शिक्षा पत्रकारिता, खेल, फिल्म, टीवी तथा अन्य सभी सार्वजनिक विषयों में राज्य का हस्तक्षेप हो गया है।  अनेक ऐसे काम जो समाज को ही करना चाहिये वह राज्य प्रबंध पर निर्भर हो गये हैं। ऐसे में जब कोई राजनीतिक बदलाव होता है तो हर क्षेत्र में उसके प्रभाव देखने को मिलते हैं।  देश में गत साठ वर्षों से राजनीतिक धारा के अनुसार ही सभी सार्वजनिक विषयों तथा उनसे संबद्ध संस्थाओं में राज्य का हस्तक्षेप का हस्तक्षेप हुआ तो विचाराधाराओं के अनुसार ही वहां संचालक भी नियुक्त हुए।  हमारे देश में तीन प्रकार की राजनीतिक विचाराधारायें हैं-समाजवादी, साम्यवादी और दक्षिणपंथी।  उसी के अनुसार रचनाकारों के भी तीन वर्ग बने-प्रगतिशील जनवादी तथा परंपरावादी।  अभी तक प्रथम दो विचाराधारायें संयुक्त रूप से भारत की प्रचार, शिक्षा तथा सामाजिक निर्माण में जुटी रहीं हैं पर परिणाम ढाक के तीन पात।  उल्टे समाज असमंजस की स्थिाित में है।
                    पिछले साल हमारे देश में एतिहासिक राजनीतिक परिवर्तन हुआ। पूरी तरह से दक्षिणपंथी संगठन राजनीतिक परिवर्तन के संवाहक बन गये।  भारत में यह कभी अप्रत्याशित लगता  था पर हुआ।  अब दक्षिणपंथी संगठन अपने प्रतिपक्षी विचाराधाराओं की नीति पर चलते हुए वही कर रहे है जो पहले वह करते रहे थे।  प्रतिपक्षी विचाराधारा के विद्वान शाब्दिक विरोध करने के साथ ही  हर जगह अपने मौजूदा तत्वों को प्रतिरोध  के लिये तत्पर बना रहे हैं।
                    इस लेखक ने तीनों प्रकार के बुद्धिजीवियों के साथ कभी न कभी बैठक की है।  प्रारंभ  में दक्षिण पंथ का मस्तिष्क पर  प्रभाव था पर श्रीमद्भागवत गीता, चाणक्य नीति, कौटिल्य, मनुस्मृति, भर्तुहरि नीति शतक, विदुर नीति तथा अन्य ग्रंथों पर अंतर्जाल पर लिखते लिखते अपनी विचाराधारा भारतीय अध्यात्मिक दर्शन से मिल गयी है।  हमें लगता है कि हमारे अध्यात्मिक दर्शन में न केवल आत्मिक वरन् भौतिक विषय में भी ढेर सारा ज्ञान है। पश्चिमी अर्थशास्त्र में दर्शन शास्त्र का अध्ययन नहीं होता और हमारे यहां दर्शन शास्त्र में भी अर्थशास्त्र रहता है।  दक्षिणपंथ की विचाराधारा से यही सोच हमें प्रथक करती है।
          बहरहाल हमारा मानना है कि समाजवाद और साम्यवादियों की विचाराधारा के आधार  पर समाज और उसकी संस्थाओं का राज्य प्रबंध की शक्ति से  ही चलाया गया था।  अब अगर राज्य प्रबंध बदल गया है तो अन्य संस्थाओं में  दक्षिणपंथी विद्वानों का नियंत्रण चाहें तो न चाहें तो होगा तो जरूर।  अध्यात्मिक विचारधारा के संवाहक होने की दृष्टि से हम भी चाहते हैं कि परिवर्तन हो। आखिर समाज और उसके विचार विमर्श तथा शिक्षण की संस्थाओं में जनमानस के दिमाग में परिवर्तन की वही चाहत तो है जो लोगों ने राज्य प्रबंध में बदलाव कर जाहिर की है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Sunday, July 26, 2015

सार्वजनिक छवि चमकाने के लिये फांसी का विरोध-हिन्दी चिंत्तन लेख(sarvjanik chhavi chamkane ke liye faansi ke liye virodh-hindi chintta article)


            मुंबई बम धमाकों के एक आरोपी को फांसी की सजा मिले या आजीवन कारावास की इस पर हम कोई निजी राय कायम नहीं कर पाये। इसका कारण यह है कि 22 वर्ष पूर्व हुए उन बमविस्फोटों के भयावह दृश्य हमने अखबारों में देखे थे। उसके बाद गंगा नदी में बहुत पानी बह गया तो हमारी स्मरण शक्ति की धारा में बहुत सारे नये तत्व घुल गये हैं। बहरहाल फांसी की सजा से पहले न्यायालय में एक प्रकरण कई दौर से निकलता है जिसमें सबूतों के आधार पर न्यायाधीश निर्णय देते हैं।  इसमें एक लंबा समय निकल जाता है। इन निर्णयों पर सार्वजनिक रूप से प्रतिकूल टिप्पणी करना अपराध है फिर भी प्रचार माध्यमोें जगह बनाने के लिये अब करने लगे हैं।  मुंबई धमाके के आरोपी की पृष्ठभूमि में कहीं न न कहीं मुंबईया फिल्म से भी जुड़ी है इसलिये अनेक अभिनेता अब जाकर उसे फांसी की सजा न देने की मांग कर रहे हैं।  उनके साथ मुंबई में रहने वाले अनेक  बुद्धिजीवी भी हो गये हैं। एक अभिनेता ने तो बाकायदा उसे बेगुनाह तक बता दिया और जब बवाल मचा तो उसे बयान वापस लिया।
                              हमारी सजा पर कोई राय नहीं है पर जिस तरह का वातावरण बना है उससे हैरान जरूर हैं। अगर वह बेगुनाह तो उसके यह नये हितचिंत्तक न्यायालय में जाकर उसके पक्ष में बोल सकते थे पर न बोले।  फांसी की सजा भी एक दिन में नही होती। पहले न्यायालय सजा देता है फिर वह राष्ट्रपति के पास जाती है।  इस प्रक्रिया के बीच भी इन हितचिंत्तकों के पास अवसर था पर वह अब जाकर चिट्ठी लिख रहे हैं जब राष्ट्रपति दया याचिका खारिज कर चुके हैं। फांसी के करीब पहुंचने के पहले उस आरोपी के हितचिंत्तकों के पास बहुत सार अवसर थे पर वह कुछ करना तो दूर सोचते हुए भी नहीं दिखे।  ऐसे में संदेह उठेंगे।  ऐसा लगता है कि आरोपी के समर्थन के बयान उसकी हित की अपनी सार्वजनिक छवि चमकाने की चिंता में ही दिये जा रहे हैं।
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Sunday, July 19, 2015

इतिहास के फरिश्ते-हिन्दी व्यंग्य कविता(itihas ke farishtey-hindi satire poem)

पंचतत्वों से बने इंसान
कभी हीरे या
सोने जैसे नहीं होते।

आदतों से मजबूर सभी
चरित्र में चालाकी के बीज
बोने जैसे नहीं होते।

कहें दीपक बापू इतिहास में
खल भी बन गये महानायक
दर्दनाक हादसे करने वाले
पर्दे पर बने घायल के सहायक
कहलाये फरिश्ते ऐसे नाम
जो भले इंसानों की जुबान पर
ढोने जैसे नहीं होते
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Thursday, July 16, 2015

बिके बुद्धिमान-हिन्दी कविता(bike buddhiman-hindi poem)


देश के अक्लमंदों ने
हर रंग के भाव की
अलग पहचान बताई है।

सभी रंगों के मेल की
तारीफ करते जरूर
यह अलग बात है
टकराव से रोटी कमाई है।

कहें दीपक बापू बिके बुद्धिमानों से
बहस करना बेकार है
अपने आकाओं से
हर रंग की पहचान
उन्होंने लिफाफे में
कागज पर रुपये से लिखी पायी है।
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Friday, July 10, 2015

सब गोलमाल है-हिन्दी व्यंग्य कविता(sab golmal hai-hindi satire poem)


चरण छूकर
सेवक की स्वयंभू उपाधि
धारण कर जाते हैं

आशीर्वाद लेकर
उड़ जाते आकाश में
स्वामीपन के अहंकार से
सभी डर जाते हैं।

कहें दीपक बापू सब गोलमाल है
 सेवा से मिलता मेवा
पर काम दिखता नहीं
अदाओं से ही प्रचार के
पन्ने भर जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Sunday, July 5, 2015

सभी क्रूर नहीं होते-हिन्दी कविता(sabhi kroor nahin hote-hindi poem)

दुनियां के सभी मजदूर
हमेशा मजबूर नहीं होते।

धरती के सभी गरीब
नरक के रहते करीब
स्वर्ग से भी दूर नहीं होते।

कहें दीपक बापू दिल से
साफ इंसानों का समंदर है,
काली नीयत वाले
महल के अंदर हैं,
जिंदगी के सफर में
अनजाने भी बन जाते हमदर्द
सौदागरों जैसे सभी क्रूर नही होते।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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