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Saturday, May 10, 2008
वही बनते महान-कविता
शब्दों के तीर चलाने के लिये
कलम को धनुष
स्याही को बनाओ कमान
यूं तो आत्ममुग्ध लोग जगह जगह
करते हैं अपने गुणों का स्वयं बखान
स्वार्थ के लिये देते सभी एक दूसरे को मान
जो खामोशी से चलते अपने जीवन पथ पर
करते हैं जो दूसरों के लिए संघर्ष
वही बनते महान
........................................
यूं तो आकाश में उड़ने की चाह में
सभी भ्रमित हो जाते हैं
ऊंचाई का पैमाना किसी के पास नहीं
फिर भी उड़े जाते हैं
कोई अटके बीच में
कोई फिर जमीन पर गिर जाते है
---------------------
दीपक भारतदीप
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