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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, November 28, 2008

दूसरा सच-हिंदी शायरी


कहीं लगी आग है
कहीं बरसती बहार
कहीं है खुशी खेलती
कहीं गम करते प्रहार
शोक मनाओ
मूंह फेर जाओ
जीवन के पल तो गुजरते जाना है
जो दिल को तकलीफ दें
मत उठाओ उन यादों का भार

धरती बहुत बड़ी है
जबकि जिंदगी छोटी
कभी हादसे होते सामने
कभी लग जाती है हाथ मिल्कियत मोटी
धरती के कुछ टुकडों पर बरसती आग
तो बर्फ बिखेरती शीतलता का राग
जो छोड़ जाते दुनिया
उनका शोक क्यों करते
जो जिंदा है उनकी कद्र करो
कभी कभी आसमान से बरसा कहर
शब्दों को सहमा देता है
पर फिर भी समझना नहीं उनकी हार

दिखलाते है बहुत लोग तस्वीरें बनाकर
सभी को सच समझना नहीं
उनके पीछे छिपा होता है
दूसरा सच कहीं
कदम कदम पर बिखरा है प्रायोजित झूठ
तस्वीरें के पीछे देखे बिना
अपनी राय कायम करना नहीं
बिकते हैं बाजार में जज्बात
इसलिये जोड़ी जाती है उनसे हर बात
गुलाम बनाने के लिये
आदमी को पकड़ने की बजाय
उसके दिमाग पर किया जाता है घात
रची जाती है हर पल यहां
दर्द की नयी दास्तान
गिराया जाता है कोई न कोई छोटा आदमी
किसी को बनाने के लिये महान
कई हकीकतें हमेशा कहानियां नहीं बनतीं
पर कहानियां कई बार हकीकत हो जाती
जज्बात के सौदागरों का क्या
कभी दर्द तो कभी खुशी
उनके लिये बेचने की शय बन जाती
आखों से देखा
कानों से सुना
हाथों से छुआ भी झूठ हो सकता है
अगर अपनी सोच में नहीं गहराई तो
वाद और नारों का जाल में
किसी का दिमाग भी उलझ सकता है
जितना बड़ा है विज्ञान
उतना ही भ्रमित हुआ ज्ञान
इस जहां में हो गये हैं धोखे अपार

अपनी आंखों से सुनना
कानों से भी खूब सुनना
छूकर हाथ से देख लेना
पर अपने जज्बातों पर रखना काबू
नहीं आये किसी के बहकावे में
तो कुछ लोग अभिमानी कहेंगे कहेंगे
सवाल पूछोगे तो
शोर मचाने वाली कहानी कहेंगे
पल भर में टूटते और बनते लोगों के ख्याल
किसी की सोच को आगे नहीं बढ़ाते
तस्वीरों की सच्चाई में वह खुद ही बहक जाते
दुनियां इतनी बड़ी है पर
थोड़ी दुर्गंध में घबड़ाते
और मामूली सुंगंध में लोग महक जाते
कभी हादसों से गुजरती तो
कभी खुशियों के साथ बहती यह जिंदगी
बहती हुई धारा है
आदमी बनते बिगड़ते हैं हर पल
वह रंग बदलती है बारबार
..............................

दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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Monday, November 24, 2008

धड़कनों और जज्बातों का अहसास न था-हिंदी शायरी

चले थे हम अपने इस अनजान पथ पर
न मंजिल का पता था
न मकसद का
लोगों ने किये कई सवाल
जिनका जवाब नहीं था

क्योंकि जहां जिंदगी चलती है
दौलत कमाने के वास्ते
वहां बिकते है सभी रास्ते
जहां चाहता है इंसान शौहरत अपने लिये
वहां तैयार हो जाता है समझौतों के लिये
जहां ख्वाहिश है महल पाने की
वहां भला कौन करता है फिक्र करता जमाने की
जिसके दिल में ख्याल है
खुली आंखों से देखना जिंदगी को
वह जमाने से अलग हो जाते
चलते लगते हैं सबके साथ रास्ते पर
पर जमीन की हर चीज में अपन ख्याल नहीं लगाते
पत्थर और पैसों में जज्बात ढूंढने वाले
भला कब खुश रह पाते
हमने भी देख लिया
छूकर हर शय को
जिन पर मर मिटता है जमाना
कोशिश करता है हर चीज में खुद ही समाना
चमकती लगी हर शय
जिसमें दिल लगा लिया लोगों ने
हम दूर होकर चलते रहे अपने रास्ते पर
क्योंकि उनमें धड़कनों और जज्बातों का अहसास न था

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Saturday, November 15, 2008

फिर किनारों ने सुध नहीं ली-व्यंग्य शायरी

तालाब के चारों और किनारे थे
पर पानी में नहाने की लालच मेंं
नयनों के उनसे आंखें फेर लीं
पर जब डूबने लगे तो हाथ उठाकर
मांगने लगे मदद
पर किनारों ने फिर सुध नहीं ली
.....................................
दिल तो चाहे जहां जाने को
मचलता है
बंद हो जातीं हैं आंखें तब
अक्ल पर परदा हो जाता है
पर जब डगमगाते हैं पांव
जब किसी अनजानी राह पर
तब दुबक जाता है दिल किसी एक कोने में
दिमाग की तरफ जब डालते हैं निगाहें
तो वहां भी खालीपन पलता है

.................................
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Sunday, November 2, 2008

देवताओं की कृपा है इसलिये अमीरी भी बसती है-आलेख

भारत की गरीबी पूरे विश्व में हमेशा चर्चित रही है। यही कारण है कि भारत के जब आर्थिक विकास की चर्चा होती है तो यहां की गरीबी पर भी दृष्टिपात किया जाता है। अभी तक विश्व के अनेक लोग यह तय नहीं कर पा रहे कि भारत एक गरीब देश है या अमीर।
स्विस बैंक एसोसिएशन में विभिन्न देशों के लोगों द्वारा जमा के आंकड़े देकर यह सवाल पूछा गया है कि ‘कौन कहता है कि भारत एक गरीब देश है’। इसमें क्रमवार पहले पांच देशों का नाम दिया गया है। ताज्जुब की बात है कि भारत का पहला नंबर है और शायद इसी कारण यह प्रश्न किया गया है।
कुछ लोग हैरान है! हर कोई अपने दृष्टिकोण से टिप्पणी कर रहा है। इस लेखक ने भी इसे पढ़ा पर उसकी दिलचस्पी केवल स्विस बैंक द्वारा दिये गये आंकड़े और ऊपर ब्लाग में लिखे गये शीर्षक में थी।
पहले तो यह बात है कि हम कतई नहीं कहते कि भारत एक गरीब देश है। हां, दुनियां के सबसे अधिक गरीब यहां रहते हैं और औसत आंकड़े भी अन्य देशों से अधिक है इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता। यही गरीब एक शोपीस बन गया है। उसके नाम पर जितनी सहायता देश और विदेशों से आती है वह अगर उसके पास पहुंच जाये तो शायद वह अपनी गरीबी भूल जाये। ऐसा होना नहीं है क्योंकि फिर दुनियां भर के अमीर क्या करेंगे? यहां की गरीबी मिटती नहीं तो केवल इसलिये कि वह विश्व की दर्शनीय वस्तु बनकर रह गयी है जिसके आधार पर अनेक फिल्में और उपन्यास बिक जाते हैं। कुछ लोग यहां भी उनके नाम पर नारे और वाद चलाकर अपना काम चला लेते हैं इस आशा में शायद उनको विदेश में कोई पुरस्कार मिल जाये। अनेक फिल्में बनीं और उपन्यास लिखे गये और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनको पुरस्कार मिला। कथित रूप से सम्मानित फिल्मकार और उपन्यासकार उसके परिणाम स्वरूप यहां अपने जलवे पेलते रहे। कई लोग मूंह बनाकर गरीबों को दर्द का बयां करते हैं तो कुछ विदेश से सम्मानित होकर यहां अनर्गल बातें करते हैं और उनको अखबार में जगह मिल जाती है।

एक उपन्यासकारा हैं जिनका उपन्यास विदेश में सम्मानित हो गया उसके बाद ही उनको इस देश में पहचाना गया। आजकल उनके अनेक विषयों पर विचार प्रकाशित होते हैं और यकीन मानिये वह एकदक अनर्गल प्रलाप लगते हैं। अंतर्जाल पर मित्र लोग उसके विचार प्रकाशित कर अपने आपको धन्य समझते हैं। कई बार विचार आता है कि यहां जवाब दें पर एक तो यहां पाठक कम है दूसरे यह लेखक कोई प्रसिद्ध नहीं कि कोई उसकी सुनेगा। इसलिये ऊर्जा बेकार करना ठीक नहीं लगता है । बहरहाल भारत की गरीबी और कथित सामाजिक दुर्दशा पर अंग्रेजी में लिखने वाले बहुत लोकप्रिय होते हैं पर हिंदी में उनका कोई सम्मान नहीं होता। हिंदी वाले वैसे ही गरीब हैं भला वह क्यों ऐसी बोरिंग रचनाऐं पढ़ेंगे। वैसे भी कहा जाता है कि आदमी के मन को अपनी विपरीत परिस्थितियों का देख और पढ़कर ही मनोरंजन प्राप्त होता है और अंग्रेजी वालों के पास धन और वैभव इसलिये उनको ही ऐसी रचनायें पसंद आती हैं।

बहरहाल हम देश की अमीरी और यहां गरीबों की स्थिति पर नजर डालें। यह देश अमीर है क्योंकि यहां देवताओं का वास है। इंद्र,वायु और अग्नि देवता यहां वास करते हैं और उनकी कृपा से अमीर और गरीब दोनों ही पल जाते हैं। यह कोई अंधविश्वास की स्थापना का प्रयास नहीं है। यह तो पश्चिम के भूवैज्ञानिक द्वारा दी गयी यह जानकारी है कि जितना भूजल भारत में उपलब्ध है उतना अन्य किसी देश में नहीं है। इस मामले में वह भारत को भाग्यशाली मानते हैं। अब यह तो सभी जानते हैं कि इस प्रथ्वी पर जीवन का आधार तो जल ही है। जल की वजह से यहां वायु और अग्नि देवता की भी कृपा है। यही कारण लोग उनको पूजते हैं और वह उनकी रक्षा करते हैं। ब्रह्मा जी ने देवताओं की उत्पति कर यही कहा था कि देवता प्रथ्वी पर जीवन का सृजन कर उसका पालन करें और मनुष्य उनकी पूजा करें। यही तो सब सदियों से चल रहा है। ब्रह्मा जी ने धन धान्य से इस देश को संपन्न किया और फिर लोगों को मानसिक शांति दिलाने के लिये भक्ति अध्यात्म ज्ञान के लिये भी यहां अपने विचार भी रखे। याद रखिये भारत को विश्व में अध्यात्म गुरु भी माना जाता है और सोने की चिडि़या तो पहले भी कहा जाता था पर बीच में छोड़ दिया था अब फिर सवाल उठा है तो जवाब देना पड़ता है कि हां भई यहां लक्ष्मीजी का भी वास है।

इस देश का आकर्षण सदियों से विश्व की दृष्टि में रहा है क्योंकि यहां का अध्यात्मिक ज्ञान और धन धान्य से संपन्नता सभी को लुभाती है। यही कारण है कि इस पर आक्रमण होते रहे। लोग यहां से लूटकर सामान अपने देश में पहुंचाते रहे, मगर फिर भी यह देश गरीब नहीं हुआ क्योकि यहां प्राकृतिक साधनों में की स्थिति यथावत रही। अन्य हमलावार तो यहां की संस्कृति नहीं मिटा सके पर अंग्रेजों ने यह काम भी कर दिया। देश के विभिन्न राजाओं और अन्य शीर्षस्थ लोगों में व्याप्त अहंकार का लाभ उठाकर उनको ही आपस में लड़ाया। आये थे ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से व्यापार करने और देश के शासक बन गये। इस देश में हमेशा शासन रहे इसलिये ऐसी शिक्षा पद्धति का निर्माण किया जो केवल गुलाम पैदा करती है। वह चले गये पर अपना तंत्र ऐसा बना गये कि आज भी देश का छोटा बड़ा आदमी उनको ही पदचिन्हों पर चल रहा है। आपस में ही एक दूसरे पर विश्वास नहीं है।

पैसा तो गरीब का ही है क्योंकि उसके पसीने से ही बनता है आर्थिक सम्राज्य। किसान जमीन में जो फसल उगाते हैं उसी से ही सारे देश का काम चलता है। मजदूर और किसान को अपने श्रम का जो प्रतिफल मिलना चाहिये वह पूरा नहीं मिलता। उसको प्रतिफल में हुई कमी बनाते हैं किसी को अमीर और वहीं पैसा आज स्विस बैंक में जमा है।
भारतीय अध्यात्म में दान की महिमा बहुत है पर गरीबों के मसीहाओं को वह रास नहीं आता क्योंकि उसमें हक जैसा आभास नहीं आता। गरीबों को हक दिलाने का नारा यहां के लोगों को आज भी प्रिय लगता है और जो जितनी जोर से यह नारा लगाता है वह उनका दिल जीत लेता है। यही कारण है कि जन कल्याण एक फैशन और व्यापार की तरह हो गया है। जो जन कल्याण समाज के शक्तिशाली लोग स्वेच्छा करते थे वह भी इस कारण पीछे हट गये। अब जल कल्याण केवल राज्य के अधीन है और सभी समाजों और समुदायों के शीर्षस्थ लोग केवल उन पर नियंत्रण करने के लिये कल्याण का दिखावा करते हैं।

इस देश से पैसा ले जायेंगे फिर भी यह देश हारेगा नहीं-यह बात अंग्रेजों ने देख ली थी। वह यहां के लोगों के मन मस्तिष्क से भारतीय अध्यात्म और दर्शन की स्मृतियां मिटाना चाहते थे। इसलिये उन्होंने ऐसी विचारधाराओं को आगे बढ़ाया जो उसे नष्ट कर सकते है।
मूर्तिपूजा अंध विश्वास है। सभी भगवान के स्वरूप मिथक हैं। सभी साधु सन्यासी भ्रष्ट हैं। यज्ञ हवन से कुछ नहीं होता। आदि आदि ऐसी बातें कही गयीं। आज भारत में उनके अग्रज भी यही कहते हैं। वैसे कहने वाले कुछ भी कहते रहें पर यह वास्तविकता यह है कि अनेक लोग उनकी परवाह नहीं करते। मंदिर जाकर पत्थर की प्रतिमा पर माला या जल चढ़ाने वाले सुखी नहीं है तो वह भी कौन सुखी हैं जो नहंी जाते। आस्तिक दुखी है तो नास्तिक कौन यहां स्वर्ग भोग रहे हैं। इसके विपरीत जो मंदिरों पर जाकर माला या जल चढ़ाकर अपने आस्तिक भाव से जुड़े है उनके चेहरे पर फिर भी रौनक लगती है और अवसर पर पड़े तो वही किसी गरीब की सहायता कर देते हैं। जो अपने नास्तिक होने के अहंकार में हैं वह तो बस गरीबों की तरफ देखकर अपनी बातें बोल और लिखकर प्रसिद्ध जरूर पा लेते हैं पर किसी गरीब के लिये व्यक्तिगत रूप से कुछ नहीं करते। इसके लिये वह राज्य की तरफ देखते हैं और उसे ही कोसते है।

पहले अनेक लोग ऐेसे होते थे जो थोड़ा पैसा होने पर कहीं तीर्थ वगैरह करने चले जाते थे। वहां अनेक सेठ साहुकारों द्वारा बनी गयी धर्मशालायें होती थीं पर अब तो सभी जगह फाइव स्टार होटल हो गये हैं और यकीनन उनको उनमे सामान्य आदमी के रहने की शक्ति नहीं होती। इसके बावजूद लोग जाते हैं क्योंकि देवताओं की कृपा से खाना और पानी तो मिल ही जाता है। अमीर और गरीब आज भी अपने देवताओं को पूजते है और अभी भी यह पश्चिम के लिये यह असहनीय है। इसलिये वह ऐसा सवाल उठाते हैं कि ‘कौन कहता है कि भारत गरीब है‘। मगर उनसे यह कहा किसने था? कार्ल माक्र्स ने अपनी विचारधारा को पश्चिम में बैठकर लिखा था। उनका मित्र भी एक पूंजीपति था। मजे की बात यह है कि पश्चिम और पूंजीपति ही उनकी विचारधारा के विरोधी रहे पर पूर्व के लोगों ने उसे हाथों हाथ लिया क्योंकि उसमें थे केवल गरीबों के नारे जिसमें गरीब आसानी से बहल जाये।

पूर्व में समाज स्वसंचालित थे पर धीरे धीरे समाज को सरकार से नियंत्रित बना कर उनको समाप्त कर दिया गया । अब अमीर लोग समाज के गरीब लोगों के लिये स्वयं कल्याण करने का काम नहीं करते बल्कि यह राज्य की जिम्मेदारी मानते हैं। धन तो धन है वह उनके पास बढ़ता ही जाता है और वह उनको पश्चिम में भेज देते हैं। पश्चिम की मौज है और यहां चलती रहते हैं बस खालीपीली बहसें। समाज,भाषा और क्षेत्रों को लेकर लोग आपस में झगडे करते है। चीन अपने समाज को मिटा चुका है अब वह दूसरी जगह यही करने का काम कर रहा है। वह अपनी प्रगति का प्रचार कर रहा है पर उसकी वास्तविकता बताने के लिये वहां कोई स्वतंत्र माध्यम नहीं है। भारत में कम से कम यह तो है कि सब सामने आ जाता है। जैसे यह बात आ गयी कि स्विस बैंकों में सबसे अधिक भारतीयों का पैसा जमा है। बहरहाल यह बात तो है कि भारत में देवताओं की कृपा के कारण प्राकृतिक साधनों का बाहुल्य है इसलिये यहां गरीबी के साथ अमीरों की भी बस्ती है। यह अलग बात है कि अमीर अपना अतिरिक्त धन गरीबों के साथ नहीं बांटते बल्कि पश्चिम वालों पर भरोसा कर उनको सौंप देते हैं।
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