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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, March 29, 2009

रौशनी बचाने के लिये किया अँधेरा-व्यंग्य कविता

धरती की रौशनी बचाने के लिये
उन्होंने अपने घर और शहर में
अंधेरा कर लिया
फिर उजाले में कहीं वह लोग खो गये।
दिन की धूप में धरती खिलती रही
रात में चंद्रमा की रौशनी में भी
उसे चमक मिलती रही
इंसान के नारों से बेखबर सुरज और चंद्रमा
अपनी ऊर्जा को संजोते रहे
एक घंटे के अंधेरे से
सोच में रौशनी पैदा नहीं हो सकती
अपनी अग्नि लेकर ही जलती
सूरज की उष्मा से ही पलती
और चंद्रमा की शीतलता पर यह धरती मचलती
उसके नये खैरख्वाह पैदा हो गये।
नारों से बनी खबर चमकी आकाश में
लगाने वाले चादर तानकर सो गये।

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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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Sunday, March 22, 2009

सूरज अगर डूबता नहीं-व्यंग्य क्षणिकाएँ

पानी से लहराती नदियों
उठते कहीं गिरते पहाड़ों
और हरियाली की चादर ओढ़े
चैन से खड़ा यह चमन था।
बन गया उजाड तब
जब आ गये वह गिद्ध
दिखते थे बहुत बड़े सिद्ध
नीयत थी जिनकी काली
पर जुबां पर पैगाम-ए-अमन था।
............................
इस जमीन पर औरत की
औरत तब तक ही सलमात थी
जब नहीं आये बेआबरू होने से
बचाने वाले पहरेदार
बातें करते थे जो रखवाली की
पर अदाओं में जिनके कयामत थी।
............................
हमने नहीं जाना तब तक
धोखा और गद्दारी क्या होती है
इश्क और यारी क्या होती है
जब तक दिल लगाया नहीं।
अब जाना कि वादे हमसे दोस्त करते हैं
इरादे कहीं और बसते हैं
वफा करते हैं हमेशा
मौका पड़ते ही गद्दारी से चूकते नहीं।
......................
सूरज अगर डूबता नहीं
उसकी कदर कौन करता।
यह अंधेरा ही है जो
उसके होने का अहसास दिलाता है
वरना उसकी इबादत कौन करता।

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Tuesday, March 17, 2009

सबसे बड़ा कौन-लघुकथा

डूबता हुआ सूरज रोज अट्टहास के साथ अपने से ही सवाल करता था कि ‘इस दुनियां में सबसे बड़ा कौन?’
फिर दोबारा अट्टहास करते हुए स्वयं ही जवाब देता था कि ‘मैं’! मेरी रौशनी के बिना इस संसार के उस हिस्से में अंधेरा छा जाता है जहां से मैं विदा लेता हूं।’
एक दिन डूबने से पहले उसने कुछ देर पहले धरती पर झांक कर देखा तो उसे एक औरत अपने घर के बाहर बने छोटे चबूतरे पर एक जलता चिराग रखते हुए दिखाई दी। पड़ौसन ने उससे कहा-‘यह चिराग तुम क्यों जलाकर रखती हो। अपने कमरे में ही चिराग जलते है, फिर यहां रखने से क्या लाभ? बेकार में तेल का अपव्यय करना भला कहां की अक्लमंदी है?’
उस महिला ने कहा-‘यहां गली में रात को अंधेरा रहता है। अनेक राहगीर यहां से गुजरते हैं। इस चिराग से उनको सहायता मिलती है। अपने लिये तो सभी रौशनी करते हैं पर दूसरे के लिये करने पर एक अलग प्रकार का ही आनंद आता है।’

सूरज वहां से विदा हो गया पर उस महिला की बात उसके मन में घर कर गयी। उसने अपने आप से कहा-’मैं भी तो यही करता हूं पर अपने अहंकार की वजह से कभी उस आनंद का अनुभव नहीं कर पाया जो वह महिला करती है। एक छोटा चिराग भी वही कर लेता है जो मैं करता हूं। मतलब न इस दुनियां में रौशनी करने वाला मै अकेला हूं, दूसरों को रौशनी देने की सोचने वाला’
यह सोचकर सूरज मौन हो गया। फिर कभी डूबते समय उसने अट्टहास नहीं किया। उस चिराग और महिला ने ज्ञान का प्रकाश दिखाकर उसके अहंकार को परे कर दिया।

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Wednesday, March 11, 2009

दर्द चाहे जितना खरीदो-व्यंग्य कविता

वह दिखाते अपनी तस्वीरों और शब्दों में लोगों के घाव।
प्रचार में चलता है इसलिये हमेशा चलता है उनका दाव।।
अपने दर्द से छिपते हैं दुनियां के सभी लोग
दूसरे के आंसू के दरिया में चलाते दिल की नाव।।
जज्बातों के सौदागर इसलिये कोई दवा नहीं बेचते
दर्द चाहे जब जितना खरीदो, एक किलो या पाव।।

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Wednesday, March 4, 2009

फासले पर रखो अपना विश्वास-हिंदी शायरी

जिसके लिये प्रेम होता दिल में पैदा
उसके पास जाने की
इच्छा मन में बढ़ जाती है
आंखें देखती हैं पर
बुद्धि अंधेरे में फंस जाती है
कुंद पड़ा दिमाग नहीं देख पाता सच
कहते हैं दूर के ढोल सुहावने
पर दूरी होने पर ही
किसी इंसान की असलियत समझ में आती है
इसलिये फासले पर रखो अपना विश्वास
किसी से टकराने पर
हादसों से जिंदगी घिर जाती है

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