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Sunday, March 14, 2010

लायक बच्चे पैदा करने का नारा-व्यंग्य चिंतन और हास्य कविता (woman and child-hindi article and comic poem)

यह एक अजीब बहस है। इस पर केवल हंसा ही जा सकता है जब कोई धर्म गुरु नारियों से कहता है कि ‘उन्हें तो लायक बच्चे पैदा करना चाहिये।’
आखिर उनके कहने का क्या मतलब है कि अगर कोई इंसान नालायकी या शैतानियत पर उतारू हो तो उसकी जननी को जिम्मेदार माना जाना चाहिये। फिर उस पुरुष के बारे में क्या विचार है जो बच्चे के जन्म और पालने के लिये बराबर जिम्मेदार होता है?
दरअसल सर्वशक्तिमान इस दुनियां के निर्माण के लिये जिम्मेदार है पर संचालन का जिम्मा तो उसके द्वारा पैदा किये गये जीवों का स्वयं का है। वह केवल जन्म और मृत्यु के लिये जिम्मेदार है बाकी तो अपने जीवन की जिम्मेदारी सभी जीवों की स्वयं की है।
वह धर्मगुरु कहते हैं कि लायक और कुछ न कर केवल लायक बच्चे पैदा करें तो उनसे पूछना चाहिये कि ‘अगर नारियां इतनी क्षमतावान हो गयी तो वह उस सर्वशक्तिमान के नाम पर लिखी गयी उन किताबों को इस दुनियां में पढ़ने की क्या जरूरत रह जायगी। क्या पुरुष केवल उन किताबों को पढ़ेंगे और नारियां उससे दूर रहें? फिर तो उन पर कोई भी धार्मिक कर्मकांड नहीं लादना चाहिए।’
श्रीमद्भागवत गीता में लिखा गया है परमात्मा के केवल योनि में जीवन स्थापित करता है।’
उसके बाद तो जीव अपने कर्म और विचार के अनुसार जीवन जीता है। जैसे वह संकल्प धारण करता है वैसा ही संसार उसके लिये हो जाता है। उसे तत्वज्ञान हो जिसे वह सहजता से जीवन जी सके-यही ज्ञान श्रीगीता में वर्णित है। चूंकि आत्मा सच है और देह माया। यह माया सर्वशक्तिमान के बस में है तो केवल उसके संकल्प के कारण पर वह अपने द्वारा उत्पन्न जीवों में भी वह शक्ति प्रदान करे यह संभव नहीं है। अगर इंसान अपने अंदर तत्व ज्ञान के द्वारा दृढ़ संकल्प धारण कर ले तो वह इस माया के चक्कर में वैसे काम नहीं करेगा जैसे कि शैतान प्रवृत्ति के लोग करते हैं। जहां तक जन्म के आधार पर आदमी के अच्छे और बुरे होने की बात है तो वह एक हास्यास्पद तर्क है। ऐसा भी देखा गया है कि अनेक स्त्री पुरुष अपनी हालातों की वजह से अपने बच्चे को कम समय दे पाते हैं पर उनके बच्चे योग्य निकलते हैं। इसके विपरीत जो अपने बच्चों को बड़े स्नेह से पालते हैंे उनमें अनेक नालायक निकल जाते हैं। इतना ही नहीं अनेक ऐसे परिवार भी देखे गये हैं जिनको समाज में अच्छा नहीं समझा जाता पर उनके बच्चों ने अपनी योग्यता से नाम रौशन किया और इसके अनेक प्रतिष्ठित परिवारों के बच्चों ने अपना डुबाया।
हमारे कहने का अभिप्राय का अभिप्राय है कि बच्चों में अच्छे संस्कार डालने की जिम्मेदारी अकेली नारी की नहीं होती बल्कि पिता, दादा, दादी तथा अन्य निकटस्था रिश्तेदारों के अलावा गुरुजनों की भी होती है। सीधी बात तो यह है कि पूरे स समाज का एक तरह से जिम्मा है कि उनके सदस्य सही राह चलें।
प्रस्तुत है इस पर एक हास्य कविता।
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‘नारियों को कुछ अधिक न कर
केवल लायक बच्चे पैदा करने चाहिये’
यह एक धर्म गुरु ने बताया।
बच्चे तो स्वाभाविक ढंग से पैदा होते हैं
पर योग्य कैसे हों यह नहीं समझाया।

दोष उनको क्या दें
पवित्र किताबों को तोते की तरह
रटने वालों ने भी
भला इस दुनियां को समझ कहां पाया।

जिस सर्वशक्तिमान का नाम लेकर
लिखी गयी किताबें
उसने इंसान पैदा किये
पर कोई बनता फरिश्ता
किसी पर पड़ जाती है शैतान की छाया।

इस धरती पर फरिश्ते रहें
और शैतान कभी दिखे नहीं
यह तो सर्वशक्तिमान भी तय नहीं कर पाया।

कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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