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Monday, February 28, 2011

जरूरतमंदों के सगे-हिन्दी शायरी (jaruratmandon ke sage-hindi shayri)

उनकी कोशिश यही थी
अपने दर्द पर आंसू कुछ इस तरह बहायें
कि पूरे जहां का दर्द उसमें समाया लगे।
उम्मीद थी शायद कुछ लोग
इलाज के लिये दें मदद
उनके अंदर दान का जज़्बात जगे।
आ गया पैसा जेब में
तो अपने एक हाथ से दूसरे में देने लगे,
भलाई बन गयी उनका व्यापार
अपनी जरूरतें पूरी करते रहे
हल्दी लगी न फिटकरी
धेला भी खर्च नहीं किया
पर प्रचार करते हुए
बन गये जरूरतमंदों के सगे।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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