ताउम्र भरते रहे तिजोरियाँ,
अब संभालने में गंवा रहे
क्योंकि शहर में हो रही चोरियाँ।
अपनी अमीरी पर लोग बेकार इतराते हैं,
उनकी शान-ओ-शौकत पर
उनके कारिंदे भी इठलाते हैं,
कहलाए साहूकार
न रात को नींद
न दिन में चैन
ढोते रहे सिर पर सोने के सिक्कों की बोरियाँ।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
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